जस्टिस मुरलीधर के लिए कितना गौरव और संतोष का क्षण होगा कि उन्होंने अपने काम से इतने वकीलों का विश्वास जीता है

Ravish Kumar 
NDTV
वकालत की दुनिया आपसी प्रतिस्पर्धा पर चलती है. हर दिन एक वकील दूसरे वकील से होड़ लेता रहता है. एक दिन और एक महीने में न जाने उनके बीच कितनी बार हार और जीत होती होगी. लेकिन वे उसी परिसर में चलते रहते हैं. अगले दिन अगले केस में भिड़ते रहते हैं. कई बार लगता है कि वकालत का पेशा वैसा नहीं रहा. अब कुछ बचा नहीं लेकिन तभी कुछ ऐसा दिख जाता है जिससे पता चलता है कि कितना कुछ बचा है. अगर बहुत सारे वकील जस्टिस एस मुरलीधर की विदाई के लिए बड़ी तादाद में बाहर आते हैं तो उनकी संख्या बता रही होती है कि यह उनके स्टैंड लेने का अपना तरीका है. बताने का तरीका कि उन्होंने जस्टिस एस मुरलीधर के लिए बड़ी संख्या में आकर सिर्फ एक सुंदर दृश्य की रचना नहीं की है बल्कि अपने पेशे के उसूलों को ख़ुद के अहं और प्रतिस्पर्धा से बड़ा भी कर रहे हैं. उन्हें पता है कि उनकी पसंद ना पसंद चाहे जो भी हो, उनका पेशा हमेशा उनसे बड़ा है. जस्टिस मुरलीधर के लिए कितना गौरव और संतोष का क्षण होगा कि उन्होंने अपने काम से इतने वकीलों का विश्वास जीता है. उनकी विदाई के मौके पर होईकोर्ट के चीफ जस्टिस डीएन पटेन कहा कि हम एक ऐसे जज को खो रहे हैं जिनसे कानून के किसी भी विषय पर चर्चा की जा सकती थी और किसी भी तरह के मामले में फैसले पर पहुंचा जा सकता था. ब्रांडबेंच.कॉम ने लिखा है कि दिल्ली हाईकोर्ट बार संघ के सचिव ने कहा कि हाईकोर्ट के कोहिनूर आज 100 किमी दूर जा रहे हैं. जस्टिस मुरलीधर ने अपने विदाई भाषण में यही कहा कि जब इंसाफ़ को जीतना होता है, इंसाफ़ ही जीतता है. सत्य के साथ रहिए, इंसाफ़ होगा. जस्टिस मुरलीधर का पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में तबादला हुआ है. उस दिन तबादले का आदेश आया जिस दिन उन्होंने बीजेपी के चार नेताओं ने नफ़रत वाले भाषणों पर टिप्पणी की थी और उनका वीडियो चलाया था. वकीलों की मौजूदगी बता रही है कि उनके भीतर गलत और सही की रेखाएं अभी भी स्पष्ट हैं. कानून की धारा की तरह. इंसाफ की तरह
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