#Action_on_Kashmiri_Journalist:- भारत प्रशासित कश्मीर में महिला पत्रकार के ख़िलाफ़ UAPA के तहत मामला दर्ज



मोसर्रत ज़हरा

कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ लॉकडाउन के बीच भारत प्रशासित कश्मीर की एक युवा महिला पत्रकार मोसर्रत ज़हरा के ख़िलाफ़ पुलिस ने ग़ैर-क़ानूनी गतिविधियों को रोकने के यूएपीए क़ानूनके तहत मुक़दमा दर्ज किया है.
मोसर्रत ज़हरा पिछले कई वर्षों से फ़्रीलांस फ़ोटो जर्नलिस्ट के तौर पर भारत प्रशासित कश्मीर में काम कर रही हैं. वो भारत और अंतरराष्ट्रीय मीडिया के कई संस्थानों के लिए काम कर चुकी हैं.
वो ज़्यादातर हिंसाग्रस्त क्षेत्रों में महिलाओं और बच्चों से जुड़े मामलों पर रिपोर्ट करती रहीं हैं. अपने चार साल के करियर में उन्होंने आम कश्मीरियों पर हिंसा के प्रभाव को दिखाने की कोशिश की है.
पाँच अगस्त, 2019 को भारत सरकार ने संविधान की धारा 370 के तहत कश्मीर को मिलने वाले विशेष राज्य के दर्जे को ख़त्म कर दिया और पूरे राज्य को लॉकडाउन कर दिया था.
मोसर्रत ज़हरा ने इस दौरान जो रिपोर्टें कीं उनको काफ़ी सराहा गया था.मोसर्रत ने कश्मीर सेंट्रल यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में मास्टर्स किया है.
सोपा इमेजेज़, एनयूआर फ़ोटोज़, ज़ूमा प्रेस जैसी फ़ोटो एजेंसियों के लिए उन्होंने काम किया है. इसके लिए अलावा मोसर्रत की रिपोर्ट में अल-जज़ीरा, टीआरटी वर्ल्ड,वाशिंगटन पोस्ट, अल-अरेबिया में भी आ चुकी है.उनके फ़ोटो-लेख अंतरराष्ट्रीय अकादमिक जर्नल जैसे डब्ल्यूएसक्यू फ़ेमिनिस्ट प्रेस, सेज वग़ैरह में शामिल हो चुके हैं.
न्यूयॉर्क के ब्रूकलिन में भी उनकी तस्वीरों को दिखाया गया है.
द क्विंट और कारवां मैगज़ीन जैसे भारतीय मीडिया प्लेटफ़ॉर्म के लिए भी वो काम कर चुकी हैं.
लेकिन पुलिस के बयान में उन्हें एक फ़ेसबुक यूज़र के तौर पर पेश किया गया है और उन पर आरोप है कि उन्होंने कई भड़काऊ पोस्ट के ज़रिए कश्मीरी युवाओं को भारत के ख़िलाफ़ हथियारबंद बग़ावत के लिए उकसाया है.
पुलिस के अनुसार मोसर्रत ज़हरा ने फ़ेसबुक पर भारत विरोधी पोस्ट किया है और एक पोस्ट में धार्मिक व्यक्ति को चरमपंथियों के साथ तुलना की है.
पुलिस ने अपने बयान में कहा है कि उन्हें कई लोगों से ये शिकायत मिली है कि मोसर्रत ऐसी पोस्ट करती हैं जिससे कश्मीरी युवा इससे भड़क सकते हैं और वो चरमपंथी गतिविधियों की तरफ़ आकर्षित हो सकते हैं.
मोसर्रत ने बीबीसी से अपनी सफ़ाई में कहा कि उन्होंने कश्मीरी महिलाओं में तनाव से संबंधित एक रिपोर्ट के सिलसिले में गांदरबल ज़िले की एक महिला का इंटरव्यू किया था.
मोसर्रत के अनुसार उन महिला ने उन्हें बताया था कि 20 साल पहले उनके पति को एक कथित फ़र्ज़ी मुठभेड़ में मार दिया गया था.
मोसर्रत का कहना है कि उन्होंने इस रिपोर्ट से संबंधित कुछ तस्वीरें भी पोस्ट की थीं.
मोसर्रत को श्रीनगर स्थित साइबर पुलिस स्टेशन ने तलब किया था जिसके बाद स्थानीय पत्रकारों ने सूचना विभाग की अधिकारी सहरिश असग़र से संपर्क किया.
मोसर्रत कहती हैं, "सहरिश जी ने मुझे बताया कि ये मामला हल हो चुका है, अब वहां जाने की ज़रूरत नहीं. लेकिन मुझे अब कहा गया है कि एसएसपी साहब ने तलब किया है, इसलिए मुझे मंगलवार को वहां जाना होगा."
पुलिस ने मोसर्रत के ख़िलाफ़ मुक़दमे की पुष्टि करते हुए एक बयान जारी किया है. उस बयान में पुलिस ने जनता को चेतावनी दी है कि सामाजिक नेटवर्किंग की वेवसाइट पर 'देश विरोधी' पोस्ट करने से परहेज़ करें और ऐसा करने वालों के ख़िलाफ़ सख़्त क़ानूनी कार्रवाई की जाएगी.
दूसरी तरफ़ भारत के अंग्रेज़ी अख़बार द हिंदू के पत्रकार आशिक़ पीरज़ादा को रविवार रात श्रीनगर से 60 किलोमीटर दूर अनंतनाग पुलिस स्टेशन में तलब किया गया था.
आशिक़ कहते हैं कि उन्होंने शोपियां ज़िले से एक ऐसे जोड़े की कहानी रिपोर्ट की थी जिनका बेटा एक मुठभेड़ में मारा गया था.


मोसर्रत ज़हराइमेज कॉपीरइटFACEBOOK/MASRAT ZAHRA

आशिक़ के ख़िलाफ़ कोई मुक़दमा तो दर्ज नहीं किया गया है लेकिन अनंतनाग पुलिस स्टेशन बुलाए जाने को आशिक़ एक सज़ा के तौर पर देखते हैं.
आशिक़ पीरज़ादा कहते हैं, "उनको इस बात पर आपत्ति थी कि मैंने अधिकारियों का पक्ष शामिल नहीं किया था, लेकिन मैंने कई बार डीसीपी को फ़ोन किया और टेक्सट भी किया लेकिन वो मसरूफ़ थे. ये सुनकार पुलिस वाले संतुष्ट्र हो गए और मैं देर रात घर वापस लौट आया."
भारत प्रशासित कश्मीर में पत्रकारों को पुलिस थाना बुलाया जाना एक आम बात है जो पिछले कई वर्षों से जारी है. लेकिन मोसर्रत ज़हरा पर यूएपीए लगाया जाना अपने आप में इस तरह का पहला मामला है.
इस क़ानून में पिछले साल भारतीय संसद से संशोधन हुआ था और इस क़ानून के तहत कश्मीर घाटी में मानवाधिकार के कई कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार किया गया है.
कश्मीर प्रेस क्लब के उपाध्यक्ष मोअज़्ज़म मोहम्मद कहते हैं, "कश्मीर में वैसे भी काम करना ख़तरनाक है और ऐसे समय में जब पत्रकार इंटरनेट पर पाबंदी और कोरोना वायरस के ख़ौफ़ से बचकर काम कर रहे हैं तो उन पर तरह-तरह की पाबंदियां लगाकर पत्रकारिता पर अंकुश लगाया जा रहा है.

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