पाकिस्तानी विदेश मंत्री के चीन दौरे से इमरान ख़ान को क्या हासिल होगा


पाकिस्तान के पीएम इमरान ख़ान और चीन के राष्ट्रपित शी जिनपिंगइमेज कॉपीरइटGETTY IMAGES
Image captionपाकिस्तान के पीएम इमरान ख़ान और चीन के राष्ट्रपित शी जिनपिंग

पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी चीन की दो दिवसीय यात्रा पर है. चीन के हैनान प्रांत में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की दूसरे दौर की रणनीतिक वार्त होगी. पहले दौर की वार्ता पिछले साल मार्च 2019 में हुई थी.
चीन के लिए रवाना होने से पहले एक वीडियो जारी कर शाह महमूद क़ुरैशी ने कहा वह चीन की 'बहुत महत्वपूर्ण यात्रा' पर जा रहे हैं और यात्रा से पहले प्रधानमंत्री इमरान खान के साथ उनकी चर्चा हुई. क़ुरैशी ने कहा, "उन्हें उम्मीद है कि चीन के विदेश मंत्री वांग यी के साथ मेरी मुलाकात दोनों देशों के लिए फायदेमंद साबित होगी."
चीन और पाकिस्तान के बीच वार्ता होना ऐसे तो सामान्य बात है लेकिन सऊदी अरब के साथ पाकिस्तान की तल्खी और प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के चीन को लेकर बयान के बीच ये वार्ता बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है.
पिछले कुछ समय से पाकिस्तान की राजनीति में हलचल बढ़ गई है. सऊदी अरब के साथ उसके रिश्तों में खटास आई है. कश्मीर पर ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन (ओआईसी) की बैठक को लेकर सऊदी अरब का साथ ना मिलने से पाकिस्तान के विदेशी मंत्री क़ुरैशी ने सऊदी अरब पर सख़्त रुख अपना लिया था.
उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा था, “मैं एक बार फिर से पूरे सम्‍मान के साथ ओआईसी से कहना चाहता हूं कि हम विदेश मंत्रियों की परिषद की बैठक चाहते हैं. यदि आप इसे बुला नहीं सकते हैं तो मैं प्रधानमंत्री इमरान खान से यह कहने के लिए बाध्‍य हो जाऊंगा कि वह ऐसे इस्‍लामिक देशों की बैठक बुलाएं जो कश्‍मीर के मुद्दे पर हमारे साथ खड़े होने के लिए तैयार हैं.”
शाह महमूद क़ुरैशी के इस बयान के बाद सऊदी अरब ने पाकिस्तान से 6.2 बिलियन डॉलर के वित्तीय समझौते को रद्द कर दिया. साथ ही पाकिस्तान को दिया तीन अरब डॉलर का कर्ज वापस मांग लिया. पाकिस्तान ने सिर्फ़ एक अरब डॉलर का कर्ज ही चुकाया था.
इसके बाद पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल क़मर जावेद बाजवा सऊदी अरब की यात्रा पर पहुंचे. उनकी सऊदी अरब के सेना प्रमुख फय्यद बिन हामिद अल-रूवैली से मुलाकात तो हुई लेकिन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने उनसे मुलाक़ात नहीं की.
इसके बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने एक निजी टीवी न्यूज़ चैनल दुनिया न्यूज़ पर एक साक्षात्कार में कहा कि पाकिस्तान का भविष्य और तरक़्क़ी चीन के साथ जुड़ी हुई है.
हालांकि, उन्होंने सऊदी अरब के साथ पाकिस्तान के संबंधों पर भी बात की और कहा कि सऊदी अरब के साथ कोई मतभेद नहीं हैं और उसके साथ मज़बूत भाईचारे वाले संबंध क़ायम हैं.
ऐसे में पाकिस्तान के विदेश मंत्री का चीनी दौर और महत्वपूर्ण हो गया है. इस दौरे के क्या मायने हैं और सऊदी अरब व पाकिस्तान के संबंधों पर चीन का कितना प्रभाव है.

चीन-पाकिस्तान घनिष्ठता

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर साउथ एशियन स्टडीज़ में प्रोफेसर संजय के भारद्वाज कहते हैं कि पाकिस्तान और चीन के विदेश मंत्रियों की मुलाक़ात उनके कारोबारी और रणनीतिक संबंधों को तो आगे बढ़ाएगी ही, साथ ही इससे दोनों की घनिष्ठता का संदेश भी देने की कोशिश है. लेकिन, सऊदी अरब से रिश्तों पर प्रभाव भी डालेगी.

पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशीइमेज कॉपीरइटGETTY IMAGES
Image captionपाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी

पाकिस्तान के विदेश मंत्री इस दौरे पर चीनी विदेश मंत्री के साथ-साथ चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी के अधिकारियों से भी बीजिंग में मिलेंगे. दोनों देशों के बीच पिछले साल हुई रणनीतिक बातचीत में चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर की सुरक्षा पर ज़ोर दिया गया था. दोनों ही बलूचिस्तान के अलगाववादियों और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में इसके विरोध को लेकर चिंतित थे.
मौजूदा दौरे में दोनों देशों के बीच इकोनॉमिक कॉरिडोर, निवेश, आर्थिक सहयोग, क्षेत्रीय सुरक्षा और रेल व पावर प्रोजेक्ट पर बात हो सकती है. विशेषज्ञों का कहना है कि दोनों देशों के बीच कश्मीर और सऊदी अरब पर भी बात होने की संभावना है. हालांकि, चीन इसमें भारत के साथ अपने गतिरोध का भी ध्यान रखेगा.

सऊदी-पाक पर चीन का प्रभाव

प्रोफेसर संजय के भारद्वाज कहते हैं, “चीन और सऊदी अरब पाकिस्तान की विदेश नीति की रीढ़ हैं. पाकिस्तान पूरी तरह से कोशिश कर रहा है कि रणनीतिक और आर्थिक तौर पर मदद के लिए चीन से रिश्ते मज़बूत बनाए रखे. वहीं, इस्लामिक देशों पर प्रभाव के लिए सऊदी अरब के साथ भी अच्छे संबंध बनाए.”
“लेकिन, चीन के प्रभाव में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रहे पुनर्गठन से पाकिस्तान और सऊदी अरब के रिश्तों में तनाव आ रहा है. उसका एक कारण ये है कि चीन सऊदी अरब के स्थान पर एक नया इस्लामिक लीडर तलाश कर रहा है. इसलिए वो पाकिस्तान, मलेशिया, तुर्की और ईरान के गठजोड़ में विकल्प खोजता है. वो अमरीका से नाखुश मुस्लिम देशों को एकसाथ रखने की कोशिश में है ताकि मुस्लिम देशों पर अपना प्रभाव बढ़ाया जा सके. इसमें बांग्लादेश को भी शामिल करने का प्रयास है. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का बांग्लादेश की प्रधानमंत्री को फोन करके कश्मीर का मुद्दा उठाना इसी ओर संकेत करता है.”
मलेशिया में हुई इस्लामिक देशों की बैठक को भी सऊदी के मुस्लिम दुनिया में वर्चस्व को चुनौती माना गया था. हालांकि, सऊदी अरब के दबाव में पाकिस्तान इसमें शामिल नहीं हुआ था.

सऊदी प्रिंस मोहम्मद बिन सलमानइमेज कॉपीरइटREUTERS
Image captionसऊदी प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान

लेकिन, जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफ़ेसर और अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार एसडी मुनि सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच चीन को कोई फैक्टर नहीं मानते. वह कहते हैं कि पाकिस्तान के लिए दोनों ही देश बहुत महत्वपूर्ण हैं. हां, ये ज़रूर है कि वो इस दौरे पर चीन से सऊदी अरब के संबंध में ज़रूर बात कर सकते हैं.
एसडी मुनि कहते हैं, “सऊदी अरब पाकिस्तान के बीच तनाव के कई और मसले भी हैं. सऊदी अरब पाकिस्तान की सत्ता को संतुलित करने की कोशिश करता है. नवाज़ शरीफ के साथ जो हुआ उससे वो बहुत खुश नहीं है. सऊदी अरब कश्मीर के मसले पर पाकिस्तान का पूरी तरह समर्थन नहीं करता. इससे पाकिस्तान के लिए मुश्किल होती है.”

सऊदी अरब और पाकिस्तान के रिश्तों में रहेगा तनाव

विश्लेषक मानते हैं कि सऊदी और पाकिस्तान का तनाव इतनी ज़ल्दी संभलने वाला नहीं है. पाकिस्तान की चीन पर निर्भरता बढ़ी है और चीन के पाकिस्तान में अपने हित हैं.
प्रोफेसर भारद्वाज ने बताया कि हैनान में बैठक होना भी अपने आप में महत्वपूर्ण है. ये चीन का एक द्वीप है जहां पर उनकी न्यूक्लियर पनडुब्बी है और द्वीप दक्षिण चीन सागर से लगा हुआ है. ये रणनीतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है. चीन इसके ज़रिए ये संदेश देना चाहता है कि एक मुस्लिम देश पाकिस्तान से उसके कितने गहरे संबंध है और वो एक मुस्लिम देश को कितना महत्व देता है. ऐसे में पाकिस्तान को भी चीनी हितों का ख्याल रखना होगा.
हालांकि, चीन भी सऊदी अरब को खोना नहीं चाहता. दोनों के बीच बड़े स्तर पर कारोबार होता है. दोनों देशों में 2019 में करीब 78 अरब डॉलर का द्विपक्षीय कारोबार हुआ है और फिलहाल मुस्लिम देशों में पहुंच बनाने के लिए एकमात्र रास्ता भी वही है.
ऐसे में पाकिस्तानी विदेश मंत्री का चीनी दौरान उनके चीन से संबंधों को तो और मजबूत करेगा लेकिन इससे सऊदी अरब से संबंधों पर ज़रूर असर पड़ेगा.
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