भारत-चीन विवाद: नहीं बनी सहमति, सर्दियों में 'जमे' रहेंगे दोनों देशों के सैनिक-प्रेस रिव्यू


भारतीय सैनिक

भारत और चीन के बीच कई दौर की बातचीत के बाद भी पूर्वी लद्दाख से सेनाओं को हटाने पर कोई सहमति नहीं बन पाई है.

अंग्रेज़ी अख़बार टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने इस रिपोर्ट को प्रमुखता से प्रकाशित किया है. अख़बार लिखता है कि अब यह लगभग तय हो गया है कि दोनों ही देशों के सैनिकों को कड़ाके की सर्दियों में कई महीने तक वहीं बने रहना होगा.

पिछले छह नवंबर को कोर कमांडरों के बीच हुई बातचीत और आठ नवंबर की वार्ता के बाद भी इस विषय में कोई ख़ास प्रगति नहीं हुई है.

अख़बार ने सूत्रों के हवाले से दावा किया है कि आपसी सहमति से पीछे हटने की शर्तों और कदमों पर सहमति न बन पाने से वार्ता लगभग थम सी गई है. चीन ने अभी तक नवें दौर की सैन्य वार्ता के लिए कोई तय तारीख़ भी नहीं बताई है.

रिपोर्ट के अनुसार चीन अब भी इसी बात पर अड़ा हुआ है कि सेना को पीछे हटाने के प्रस्ताव को पैंगोंग सो झील और चुशुल इलाके के दक्षिणी किनारे से लागू किया जाए, जहाँ पर भारतीय सैनिक 29 अगस्त से ही रणनीतिक रूप से चीन पर बढ़त बनाए हुए हैं.

वहीं, भारत चाहता है कि सैनिकों के पीछे हटने की शुरुआत पैंगोंग सो के उत्तरी किनारे से हो जहाँ फिंगर-4 से लेकर फ़िंगर-8 तक के आठ किलोमीटर के इलाके पर चीनी सीमा ने मई महीने से पाँव जमा रखे हैं.

इसके अलावा दोनों देशों में फिंगर इलाके में पीछे हटने की दूरी को लेकर भी मतभेद बना हुआ है. साथ ही, रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण डेपसांग के मैदानी इलाके को लेकर भी विवाद बना हुआ है.

भारत में चुनाव

एक राष्ट्र, एक चुनाव भारत की ज़रूरत: पीएम मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' की ज़रूरत पर ज़ोर दिया है.

अंग्रेज़ी अख़बार हिंदुस्तान टाइम्स ने पहले पन्ने पर छपी ख़बर में लिखा है, "पीएम मोदी न कहा कि 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' सिर्फ़ विचार-विमर्श का मुद्दा नहीं बल्कि देश की ज़रूरत है और इस बारे में गंभीरता से सोचा जाना चाहिए."

प्रधानमंत्री मोदी ने यह बात पीठासीन अधिकारियों के 80वें अखिल भारतीय सम्मेलन के समापन सत्र को वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के ज़रिए सम्बोधित करते हुए कही.

उन्होंने कहा, "वन नेशन वन इलेक्शन सिर्फ़ चर्चा का विषय नहीं बल्कि भारत की ज़रूरत है. हर कुछ महीने में भारत में कहीं न कहीं चुनाव हो रहे हैं. इससे विकास कार्यों पर प्रभाव पड़ता है. ऐसे में वन नेशन,वन इलेक्शन पर गहन मंथन आवश्यक है."

प्रधानमंत्री ने लोकसभा, विधानसभा और पंचायत, सभी चुनावों के लिए एक मतदाता सूची के इस्तेमाल पर भी ज़ोर दिया.

उन्होंने कहा, "इसके लिए रास्ता बनाना होगा. हम इन सब पर समय और पैसा क्यों बर्बाद कर रहे हैं?"

स्टेन स्वामी

नई याचिका में बोले स्टेन स्वामी, 'मैं माओवादी नहीं हूँ'

भीमा कोरेगाँव मामले में अभियुक्त 83 वर्षीय स्टेन स्वामी ने एनआईए कोर्ट से कहा है कि वो माओवादी नहीं हैं.

टाइम्स ऑफ़ इंडिया में प्रकाशित ख़बर के अनुसार बुजुर्ग पादरी और आंदोलनकारी स्वामी ने कहा, ''ऐसे लोगों के लिए काम करना, जिन पर मुक़दमा चल रहा हो, जो माओवादी हो भी सकते हैं और नहीं भी...ये मुझे माओवादी नहीं बना देता.''

याचिका में कहा गया है कि राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए) ने जिस 'पर्सिक्यूटेड पोलिटिकल प्रिज़नर्स सोलिडैरिटी' कमेटी को सीपीआई (माओवादी) का संगठन बताया है वो देश और झारखंड के बेहतरीन मानवाधिकार संगठनों में से एक है, जो ज़रूरतमंद लोगों को क़ानूनी मदद मुहैया कराती है.

याचिका में कहा गया है, ''ऐसा कहीं नहीं कहा गया है कि माओवादियों को क़ानूनी सहायता देना अपराध है. संविधान में कहीं ये भी नहीं कहा गया है कि माओवाद के अभियुक्त व्यक्ति को अपना पक्ष रखने का अधिकार नहीं है.''

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इससे पहले स्टेन स्वामी ने जेल में स्ट्रॉ और सिपर के इस्तेमाल की इजाज़त माँगते हुए याचिका दायर की थी, जिस पर अदालत ने जेल के सम्बन्धित मेडिकल अधिकारी से जवाब माँगा था.

वहीं, एनआईए ने कहा था कि उसके पास स्टेन स्वामी की स्ट्रॉ और सिपर नहीं है, इसलिए वो इन्हें ये सामान नहीं दे सकती है.

83 वर्षीय स्टेन स्वामी भीमा-कोरेगाँव हिंसा मामले में महाराष्ट्र की तलोजा जेल में बंद हैं.

बुजुर्ग स्टेन स्वामी पार्किन्सन्स डिज़ीज़ नाम की बीमारी से ग्रसित हैं. यह तंत्रिका तंत्र से जुड़ा एक डिसऑर्डर है जिससे पीड़ित मरीज़ के शरीर में अक्सर कँपकँपाहट होती है. मरीज़ का शरीर स्थिर नहीं रहता और संतुलन नहीं बना पाता.

ऐसे में स्टेन स्वामी ने एक याचिका दायर करके अपील की थी कि बीमारी की वजह से उन्हें खाना और पानी का ग्लास पकड़न में परेशानी होती है इसलिए उन्हें जेल में 'स्ट्रॉ' और 'सिपर' इस्तेमाल करने की इजाज़त दी जाए.

इससे पहले, पिठले महीने डीई कोठालिकर ने यूएपीए का हवाला देते हुए स्वास्थ्य के आधार पर दायर की गई स्टेन स्वामी की ज़मानत अर्ज़ी ख़ारिज कर दी थी.

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एशिया में सबसे ज़्यादा घूसखोरी भारत में: रिपोर्ट

भ्रष्टाचार पर नज़र रखने वाली संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, पूरे एशिया में सबसे ज़्यादा रिश्वतखोरी भारत में होती है.

जनसत्ता ने इस ख़बर को पहले पन्ने पर एंकर स्टोरी के तौर पर छापा है.

ग्लोबल करप्शन बैरोमीटर (जीटीबी) एशिया के अमुसार, भारत के लगभग 50 फ़ीसदी लोगों को रिश्वत देने को कहा गया था. वहीं, 32 फ़ीसदी भारतीयों का कहना था कि रिश्वत न देने पर उन्हें ज़रूरी सेवाएं आसानी से नहीं मिलतीं.

यह रिपोर्ट उस सर्वेक्षण पर आधारित है, जो भारत में इस साल 17 जून,2020 से 17 जुलाई 2020 के बीच किया गया था. इस सर्वे में 2,000 लोगों को शामिल किया गया था.

रिपोर्ट में कहा गया है कि भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए भ्रष्टाचार के मामलों की जानकारी देना बेहद महत्वपूर्ण है लेकिन भारत में आम तौर पर लोग इस बारे में शिकायत नहीं करते.

रिपोर्ट के अनुसार 63 फ़ीसदी भारतीयों को लगता है कि अगर वो भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद की शिक़ायत करेंगे तो उन्हें बदले की कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा.

इन ख़बरों के अलावा, सभी अख़बारों ने किसानों के विरोध प्रदर्शन और पुलिस की उन्हें रोकनी की कोशिश से जुड़ी रिपोर्ट्स को पहले पन्ने पर लीड ख़बर के तौर पर प्रकाशित किया है.

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किसानों के विरोध प्रदर्शन में पूरे दिन क्या-क्या हुआ?

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