ओडिशा: दलित किशोरी के फूल तोड़ने से लेकर महीनों तक चले दलितों के सामाजिक बहिष्कार की कहानी
संदीप साहू बीबीसी हिंदी के लिए भुवनेश्वर से, इस पोस्ट को शेयर करें Facebook इस पोस्ट को शेयर करें WhatsApp इस पोस्ट को शेयर करें Messenger इस पोस्ट को शेयर करें Twitter साझा कीजिए इमेज कॉपीरइट HINDUSTAN TIMES Image caption सांकेतिक तस्वीर ओडिशा के ढेंकानाल ज़िले की एक घटना बताती है कि आज़ादी के 73 साल बाद भी भारत में दलित किन हालातों में रह रहे हैं. ढेंकानाल ज़िले में एक मामूली बात से शुरू हुए विवाद के बाद सवर्णों ने दलितों का सामाजिक बहिष्कार कर दिया जिसकी वजह से दलितों के लिए हालात बेहद मुश्किल हो गए हैं. बहिष्कार के चार महीने बाद, मीडिया में रिपोर्टें आने के बाद अब प्रशासन ने इस मामले में दख़ल दिया है और सवर्णों के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज कर लिया गया है. हालांकि सवर्णों ने सामाजिक बहिष्कार के आरोपों से इनकार करते हुए इसे अपने बचाव में उठाया गया क़दम बताया है. सवर्णों का दावा है कि दलित बात-बेबात दलित उत्पीड़न क़ानून के तहत कार्रवाई की धमकी देते हैं जिसके बाद 'आपसी सहमति से' दलितों से संपर्क न रखने का फ़ैसला लिया गया था. null और ये भी पढ