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#Faiz_Ahmad_Faiz की वह नज़्म जिसे हिन्दू विरोधी बता कर सियासत की रोटी सेंकने की कोशिशें हो रही उसकी हक़ीक़त क्या है देखिये और समझिए ।

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पाकिस्तानी शायर फैज अहमद फैज ने 1979 में जनरल जियाउल हक के मार्शल लॉ के दौर में अपनी नज़्म 'हम देखेंगे' लिखी थी. फैज़ 1984 में चल बसे थे. इसके दो साल बाद इकबाल बानो ने सैनिक शासन के खिलाफ एक सभा में ये गीत गाया और अचानक इसके बाद ये इंकबाल का नगमा हो गया. एशिया के अलग-अलग हिस्सों में जब भी हुक़ूमत के खिलाफ कोई आंदोलन चलता है तब इस गीत को याद किया जाता है. इसे गाने वाले निकल जाते हैं. आईआईटी कानपुर में भी जब कुछ छात्रों ने जामिया मिल्लिया के समर्थन में आंदोलन किया तो उनको ये गीत याद आया. उन छात्रों को अपने छोटे से आंदोलन के लिए क्या कुछ झेलना पड़ा- ये कहानी अलग है, लेकिन जिन बातों की वजह से इस आंदोलन को गैरकानूनी बताया जा रहा है, उनमें फैज की ये नज़्म भी है. इसे हिंदू विरोधी नज़्म बताया जा रहा है. अब एक कमेटी तय करेगी कि ये हिंदू विरोधी है या नहीं? Click कर देखें वीडियो  https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10159618113387715&id=22704527714&sfnsn=scwspwa&d=w&vh=e&funlid=pCtIuRB2ORVdFV02

#CAA_NRC_NPR Protest | पुलिसिया जुल्म की पोल खोलती वीडियो । कौन दिलाएगा इंसाफ ?

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सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत के बयान पर बोले येचुरी- कहीं हम पाकिस्तान के रास्ते पर तो नहीं जा रहे

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26 दिसंबर 2019 इस पोस्ट को शेयर करें Facebook   इस पोस्ट को शेयर करें WhatsApp   इस पोस्ट को शेयर करें Messenger   साझा कीजिए इमेज कॉपीरइट GETTY IMAGES Image caption बिपिन रावत सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने नागरिकता संशोधन क़ानून पर हो रहे विरोध-प्रदर्शन को लेकर जो टिप्पणी की उस पर न केवल उनकी निंदा की जा रही बल्कि अब उनसे माफ़ी मांगने और सरकार से भी संज्ञान लेने का आग्रह किया गया है. सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी ने पार्टी के पोलित ब्यूरो की तरफ से सेना प्रमुख के बयान की स्पष्ट रूप से निंदा करते हुए ट्विटर पर लिखा, "जनरल रावत के इस बयान से स्पष्ट हो जाता है कि मोदी सरकार के दौरान स्थिति में कितनी गिरावट आ गई है कि सेना के शीर्ष पद पर बैठा व्यक्ति अपनी संस्थागत भूमिका की सीमाओं को लांघ रहा है." "ऐसी स्थिति में यह सवाल उठना लाजिमी है कि कहीं हम सेना का राजनीतिकरण कर पाकिस्तान के रास्ते पर तो नहीं जा रहे? लोकतांत्रिक आंदोलन के बारे में इससे पहले सेना के किसी शीर्ष अधिकारी के ऐसे बयान का उदाहरण आज़ाद भारत के इतिहास में नहीं मिलता है."