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पढ़ना न भूलें ये दर्दनाक दास्ताँ ! लगभग रोते हुए अरशद कहते हैं कि हम कोर्ट के फ़ैसले से ख़ुश हैं लेकिन जब ज़िंदगी के क़ीमती साल गुज़र रहे थे तब कोर्ट चुप क्यों थी. कौन उन 23 सालों को वापस लेकर आएगा और अब अली क्या करेगा.

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कश्मीर: जेल में बीती जवानी फिर सुबूत के अभाव में रिहा रियाज़ मसरूर बीबीसी संवाददाता, श्रीनगर 25 जुलाई 2019 इस पोस्ट को शेयर करें Facebook   इस पोस्ट को शेयर करें WhatsApp   इस पोस्ट को शेयर करें Messenger   साझा कीजिए इमेज कॉपीरइट GETTY IMAGES जवानी, ज़िंदगी का वो पड़ाव जब शरीर में कुछ करने का जज़्बा तो होता ही है उसे पूरा करने की ताक़त और ऊर्जा भी होती है. लेकिन अगर किसी की जवानी जेल की दीवरों के भीतर क़ैदी बनकर गुज़र जाए, फिर दो दशक बीतने के बाद एक दिन उन्हें रिहा कर दिया जाए और बताया जाए कि पर्याप्त सुबूत नहीं मिले, इसलिए उन्हें रिहा किया जाता है. ऐसा ही हुआ 49 साल के मोहम्मद अली भट्ट, 40 साल के लतीफ़ वाज़ा और 44 साल के मिर्ज़ा निसार के साथ. अपनी पूरी जवानी जेल में बिताने के बाद मोहम्मद अली भट्ट, लतीफ़ वाज़ा और मिर्ज़ा निसार को सुबूतों के अभाव में रिहा कर दिया गया. इन सभी को दिल्ली के लाजपत नगर और सरोजिनी नगर में साल 1996 में हुए बम धमाकों में शामिल होने के शक में पुलिस ने हिरासत में लिया था. लेकिन उनके ख़िलाफ़ सुबूत नहीं थे और इसलिए उन्हें रिहा

समलेटी धमाका: 23 साल की क़ैद के बाद बरी हुए अभियुक्त

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24 जुलाई 2019 साझा कीजिए इमेज कॉपीरइट GETTY IMAGES राजस्थान हाई कोर्ट ने 1996 के समलेटी धमाका मामले में पांच अभियुक्तों को बरी कर दिया है. द इंडियन एक्सप्रेस की  रिपोर्ट  के मुताबिक लतीफ़ अहमद बाजा(42), अली भट्ट (48), मिर्ज़ा निसार (39), अब्दुल गनी (57 और रईस बेग(56) मंगलवार को जेल से बाहर आए. बेग 8 जून 1997 से जेल में थे जबकि अन्य को जून 1996 और जुलाई 1996 के बीच गिरफ़्तार किया गया था. इस दौरान ये पांचों अभियुक्त दिल्ली और अहमदाबाद की जेलों में बंद रहे लेकिन कभी भी ज़मानत या परोल पर बाहर नहीं आए. पाँचों को बरी करते हुए अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष उनके ख़िलाफ़ षडयंत्र में शामिल होने के सबूत नहीं पेश कर सका है. रिहाई के बाद इन अभियुक्तों का कहना है कि गिरफ़्तारी से पहले वो एक दूसरे को नहीं जानते थे. ये लोग अब पूछ रहे हैं कि हम बरी तो हो गए हैं लेकिन जो समय हमें जेल में गुज़ारना पड़ा उसे कौन वापस लाएगा. https://www.bbc.com/hindi/india-49091979#share-tools बीबीसी हिंदी से साभार 

पढ़ें इस्लाम के प्रति स्वामी लक्ष्मी शंकराचार्य जी की जुबानी :

18 Next Page ‎ Indian Muslims 1 hr मैंने कर्इ साल पहले दैनिक जागरण मे श्री बलराज मधोक का लेख ‘दंगे क्यों होते हैं ?’’ पढ़ा था। इस लेख में हिन्दू-मुस्लिम दंगा होने का कारण कुरआन मजीद में काफिरों से लड़ने के लिए अल्लाह के फरमान बताए गए थे। लेख मे कुरआन मजीद की वे आयते भी दी गर्इ थी। इसके बाद दिल्ली से प्रकाशित एक पैम्फलेट (पर्चा) ‘कुरआन की चौबीस आयतें, जो अन्य धर्मावलम्बियों से झगड़ा करने का आदेश देती हैं’ किसी व्यक्ति ने मुझे दिया। इसे पढ़ने के बाद मेरे मन में जिज्ञासा हुर्इ कि मैं कुरआन पढूं। इस्लामी पुस्तकों की दुकान से कुरआन का हिन्दी अनुवाद मुझे मिला। कुरआन मजीद के इस हिन्दी अनुवाद मे वे सभी आयतें मिली, जो पैम्फलेट (पर्चे) मे लिखी थी। इससे मेरे मन में यह गलत धारणा बनी कि इतिहास में हिन्दू राजाओं व मुस्लिम बादशाहों के बीच जंग में हुर्इ मार-काट तथा आज के दंगों और आतंकवाद का कारण इस्लाम हैं। दिमाग भ्रमित हो चुका था, इसलिए हर आतंकवादी घटना मुझे इस्लाम से जुड़ती दिखार्इ देने लगी। इस्लाम, इतिहास और आज की घटनाओं को जोड़त