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ऐसा इंसाफ जिस की खुशबू देश ने महसूस किया ।

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जस्टिस मुरलीधर के लिए कितना गौरव और संतोष का क्षण होगा कि उन्होंने अपने काम से इतने वकीलों का विश्वास जीता है

Ravish Kumar  NDTV वकालत की दुनिया आपसी प्रतिस्पर्धा पर चलती है. हर दिन एक वकील दूसरे वकील से होड़ लेता रहता है. एक दिन और एक महीने में न जाने उनके बीच कितनी बार हार और जीत होती होगी. लेकिन वे उसी परिसर में चलते रहते हैं. अगले दिन अगले केस में भिड़ते रहते हैं. कई बार लगता है कि वकालत का पेशा वैसा नहीं रहा. अब कुछ बचा नहीं लेकिन तभी कुछ ऐसा दिख जाता है जिससे पता चलता है कि कितना कुछ बचा है. अगर बहुत सारे वकील जस्टिस एस मुरलीधर की विदाई के लिए बड़ी तादाद में बाहर आते हैं तो उनकी संख्या बता रही होती है कि यह उनके स्टैंड लेने का अपना तरीका है. बताने का तरीका कि उन्होंने जस्टिस एस मुरलीधर के लिए बड़ी संख्या में आकर सिर्फ एक सुंदर दृश्य की रचना नहीं की है बल्कि अपने पेशे के उसूलों को ख़ुद के अहं और प्रतिस्पर्धा से बड़ा भी कर रहे हैं. उन्हें पता है कि उनकी पसंद ना पसंद चाहे जो भी हो, उनका पेशा हमेशा उनसे बड़ा है. जस्टिस मुरलीधर के लिए कितना गौरव और संतोष का क्षण होगा कि उन्होंने अपने काम से इतने वकीलों का विश्वास जीता है. उनकी विदाई के मौके पर होईकोर्ट के चीफ जस्टिस डीएन पटेन कहा कि हम एक ऐसे ज

राजद्रोह जैसा आरोप लगाना कुछ ज्यादा नहीं है?

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Ravish Kumar बंगलुरू की एक सभा में 19 साल की लड़की ने पाकिस्तान को ज़िंदाबाद क्या कहा, मंच पर देखिए कि कैसे घबराहट मच गई. ऐसा लगा कि धरती फट गई है. अमूल्या लियोना नरोहना को कोई खींचने लगा तो कोई माइक छिनने लगा. वो अपनी बात पूरी नहीं कर सकी. Published : February 21, 2020 23:38 IST एक छोटी सी कहानी सुनाना चाहता हूं. यह कहानी आपको याद दिलाएगी कि हम कहां से कहां आ गए हैं. यह हालत हो गई है कि उस मुल्क का नाम सुनते ही इस मुल्क के होश उड़ने लगे हैं. जो अधिकारी अपना काम शायद ही कभी ठीक से कर पाते हों वो तुरंत केस दर्ज कर हीरो बन जाते हैं. राजद्रोह ही लगता है इस वक्त का सबसे प्रचलित अपराध है. पब्लिक लड़की के घर भी चली जाती है और पत्थर मारने लगती है. हम बंगलूरू की अमूल्या को लेकर ही बात करना चाहते हैं लेकिन पहले उस छोटी सी कहानी को सुनाना चाहता हूं. कहानी यह है कि 30 जनवरी 1948 को महात्‍मा गांधी की हत्या के 9 महीने बाद संविधान सभा की पहली बैठक होती है. गांधी जी की हत्या के तीन दिन पहले 27 जनवरी को संविधान सभा की बैठक हुई थी. उसके बाद 9 महीने बाद संविधान सभा की अग