पश्चिम बंगाल के ‘डायमंड हार्बर से हिंदुओं के पलायन’ का सच


सोशल मीडिया
पश्चिम बंगाल के डायमंड हार्बर शहर का बताकर सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर किया जा रहा है जिसमें कुछ महिलाएं अपनी तकलीफ़ बताते हुए कहती हैं कि उनपर घर छोड़कर चले जाने का दबाव बनाया जा रहा है.
इस वायरल वीडियो के साथ लोग ये दावा कर रहे हैं कि 'पश्चिम बंगाल में मस्जिदों से चेतावनी दी जा रही है कि हिंदू बंगाल छोड़कर चले जायें.'
कुछ लोगों ने इस वीडियो को पोस्ट करते हुए लिखा है कि 'बधाई हो हिन्दुओं, पश्चिम बंगाल को दूसरा कश्मीर बनते देखने के लिए. तुम अपने घरों में सोते रहो.'
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दक्षिणपंथी रुझान वाले कई बड़े फ़ेसबुक ग्रूप्स में इन्हीं दावों के साथ यह वीडियो 50 हज़ार से ज़्यादा बार शेयर किया जा चुका है.
साथ ही ट्विटर और वॉट्सऐप पर भी क़रीब ढाई मिनट का यह वीडियो सर्कुलेट किया जा रहा है.
लेकिन अपनी पड़ताल में हमने पाया है कि ये वीडियो पश्चिम बंगाल के डायमंड हार्बर शहर का नहीं है.
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Image captionबीबीसी की ही पुरानी रिपोर्ट से लिया गया है ये वीडियो

वीडियो की हक़ीक़त

सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा ये वीडियो पश्चिम बंगाल के आसनसोल शहर का है जो राजधानी कोलकाता से दक्षिण में स्थित डायमंड हार्बर शहर से क़रीब ढाई सौ किलोमीटर दूर है.
यह वीडियो 1 अप्रैल 2018 का है जिसे बीबीसी संवाददाता दिलनवाज़ पाशा ने अपने कैमरे से शूट किया था.
बीबीसी हिन्दी की वेबसाइट पर यह वीडियो 2 अप्रैल 2018 को पोस्ट किया गया था जिसे इस लिंक पर क्लिक करके देखा जा सकता है.
पश्चिम बंगाल हिंसा 2018: 'सब जला दिया... न खाने को कुछ न पहनने को'
पश्चिम बंगाल के रानीगंज इलाक़े (आसनसोल) में पिछले साल रामनवमी (26 मार्च) के मौक़े पर हिंसा भड़क गई थी और सैकड़ों घरों को हिंसा की आग में झोंक दिया गया था.
दिलनवाज़ पाशा ने ग्राउंड पर जाकर इस हिंसा से प्रभावित लोगों से मुलाक़ात की थी.
दिलनवाज़ पाशा के अनुसार, "रामनवमी का जुलूस निकाले जाने के दौरान हुई कहासुनी बड़ी हिंसा और आगजनी में बदल गई थी. बहुत सारी दुकानें और घर दंगाईयों ने जला दिये थे. जब हम ग्राउंड पर पहुँचे तो हमने पाया था कि रानीगंज में नुक़सान मुसलमानों का ही नहीं, बल्कि हिंदुओं का भी हुआ था और शहर के अधिकांश लोग कह रहे थे कि दंगा बाहर के लोगों ने भड़काया है. हिंदू और मुसलमान, दोनों की यही राय थी. लेकिन ये बाहर के लोग कौन थे, इसका जवाब किसी के पास नहीं था."
सोशल मीडिया
Image captionये हैं सोनी देवी जो कि वायरल वीडियो में भी दिखाई देती हैं
मार्च-अप्रैल 2018 में हुई आसनसोल हिंसा पर बीबीसी की ग्राउंड रिपोर्ट्स पढ़ें:
ग्रे लाइन

पर डायमंड हार्बर में क्या हुआ?

अपनी पड़ताल में हमने पाया कि आसनसोल के एक साल पुराने वीडियो को सोशल मीडिया पर ग़लत संदर्भ के साथ शेयर किया जा रहा है.
लेकिन इस वीडियो के साथ जो दावा किया जा रहा है, वो डायमंड हार्बर संसदीय सीट से जुड़ा है.
लोग लिख रहे हैं कि 'पश्चिम बंगाल के डायमंड हार्बर में हिंदुओं को ज़बरन घर छोड़ने के लिए कहा जा रहा है'.
बीबीसी
इस दावे में कितनी सच्चाई है? यह जानने के लिए हमने डायमंड हार्बर के एसपी श्रीहरि पांडे से बात की.
उन्होंने बताया कि डायमंड हार्बर के बोगखली गाँव में 13 मई को हिंसा की घटना हुई थी. पुलिस ने इस घटना के संबंध में उसी दिन सात लोगों को गिरफ़्तार कर लिया था और अभियुक्तों को न्यायिक हिरासत में भेज दिया था. गाँव में पुलिस तैनात की गई है. फ़िलहाल गाँव की स्थिति सामान्य है और लोगों के घर छोड़ने की बात ग़लत है.
स्थानीय पुलिस ने बताया कि इस घटना से जोड़ते हुए कई अन्य फ़र्ज़ी वीडियो भी सोशल मीडिया पर सर्कुलेट किये जा रहे हैं जिनका डायमंड हार्बर से वास्ता नहीं है.
डायमंड हार्बर संसदीय सीट पर लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण (19 मई) में वोट डाले गये थे.
बीबीसी

हिंसा के बाद ग्राउंड रिपोर्ट

वोटिंग से छह दिन पहले डायमंड हार्बर में हुई हिंसा की इस घटना के बारे में अमरीकी अख़बार न्यूयॉर्क टाइम्स ने ग्राउंड रिपोर्ट पब्लिश की थी.
न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, डायमंड हार्बर के एक गाँव में हुई हिंसा की ये घटना राजनीति से प्रेरित थी जिसमें हिंदू और मुसलमान, दोनों के घर जला दिये गए.
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अख़बार ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि इस हिंसा में 17 घर और आधा दर्ज़न से ज़्यादा दुकानें आग के हवाले कर दी गई थीं. 17 में से 7 घर हिंदुओं के थे और 10 घर मुसलमानों के. स्थानीय लोगों के अनुसार इस घटना के पीछे लोकल नेताओं का हाथ था जो इस चुनाव में आमने-सामने थे.
न्यूज़ वेबसाइट 'द वायर' ने भी हिंसा की इस घटना पर ग्राउंड रिपोर्ट की है.
वेबसाइट के अनुसार इस हिंसा में ज़्यादा नुक़सान मुस्लिम परिवारों का हुआ.
अपनी रिपोर्ट में 'द वायर' ने स्थानीय लोगों से हुई बातचीत के आधार पर लिखा है कि "दंगा करने वाले लोग बाहर से आये थे. वो 'जय श्रीराम' के नारे लगा रहे थे. गाँव के लोग उनमें से किसी की पहचान नहीं कर पाते."
फ़ैक्ट चेक टीम
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