इलाहाबाद विश्वविद्यालय: अमित शाह को काला झंडा दिखाने वाली टॉपर छात्रा नेहा यादव निलंबित


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क़रीब एक साल पहले बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को काले झंडे दिखाकर चर्चा में आईं इलाहाबाद विश्वविद्यालय की शोध छात्रा नेहा यादव को विश्वविद्यालय प्रशासन ने निलंबित कर दिया है. नेहा यादव पर अनुशासनहीनता के तमाम आरोप लगे हैं.
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रॉक्टर प्रोफ़ेसर रामसेवक दुबे ने बीबीसी को बताया कि नेहा यादव सिर्फ़ दो साल से ही यहां की छात्रा हैं लेकिन इस दौरान उनके ख़िलाफ़ अनुशासनहीनता की कई शिकायतें मिली हैं.
उनका कहना है, "छात्रावास में अनुशासनहीनता करना और कराना इनका काम है. देर रात छात्रावास में जाना, गार्ड्स से दुर्व्यवहार करना जैसे तमाम आरोप हैं. ये पहला मामला है जबकि 70-80 छात्राओं ने किसी के ख़िलाफ़ लिखित शिकायत दी है."
वहीं नेहा यादव का आरोप है कि विश्वविद्यालय प्रशासन उनके ख़िलाफ़ दुर्भावना से काम कर रहा है.
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्रावासों में से वॉशआउट की कार्रवाई का कुछ छात्र ये कहकर विरोध कर रहे थे कि उन्हें कुछ दिन और रहने की छूट दे दी जाए क्योंकि आने वाले दिनों में यूजीसी की परीक्षा है.
एकेडमिक सत्र समाप्त होने पर प्रशासन छात्रावासों को खाली करा रहा था. नेहा यादव और कई अन्य छात्राएं इस आंदोलन का नेतृत्व कर रही थीं. आरोप है कि इस आंदोलन की वजह से सड़क पर जाम लग गया और प्रशासन को जाम हटाना पड़ा.
निलंबन के बाद नेहा यादवइमेज कॉपीरइटFACEBOOK/NEHA BHU

'बेबुनियाद आरोप'

प्रॉक्टर प्रोफ़ेसर दुबे बताते हैं कि नेहा यादव की पहले भी कई ऐसे मामलों में संलिप्तता रही है जिन्हें अनुशासनहीनता की परिधि में रखा जा सकता है. इसीलिए उन्हें निलंबित करते हुए कारण बताओ नोटिस दिया गया. धरना-प्रदर्शन में शामिल तमाम दूसरी छात्राओं के ख़िलाफ़ ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की गई.
प्रॉक्टर प्रोफ़ेसर रामसेवक दुबे कहते हैं, "इस मामले में कुलपति प्रो. रतन लाल हांगलू ने पांच सदस्यीय जांच कमेटी गठित की थी. कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है. इस पर कुलपति ने क्या कार्रवाई की है, ये उनके जवाब के बाद पता चलेगा."
वहीं नेहा यादव का कहना है कि उनके ऊपर जो भी आरोप लगाए गए हैं वो पूरी तरह बेबुनियाद हैं.
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बीबीसी से बातचीत में नेहा यादव का कहना था, "आंदोलन में इतनी छात्राएं थीं, कुछ ऐसी भी थीं जो छात्रसंघ का चुनाव लड़ चुकी हैं लेकिन कार्रवाई सिर्फ़ मेरे ख़िलाफ़ ही हुई. मुझ पर आरोप लगे हैं कि मेरे ख़िलाफ़ कई मामले दर्ज हैं, जबकि जो भी मामले दर्ज हैं वो छात्र हितों की लड़ाई लड़ने के आरोप में ही दर्ज हैं. मैं विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा की टॉपर रही हूं और उसी आधार पर मुझे यहां एडमिशन मिला है लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन में बैठे कुछ लोग दुर्भावनावश मेरा करियर ख़राब करने पर तुले हैं. उसकी वजह सिर्फ़ यह है कि मैं यहां की ख़ामियों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाती हूं."
नेहा यादव का आरोप है कि वो विश्वविद्यालय प्रशासन के निशाने पर तभी से हैं जब उन्होंने पिछले साल अमित शाह को काला झंडा दिखाया था और उस आरोप में वो जेल भी गई थीं.
नेहा यादव विश्वविद्यालय के फूड एंड टेक्नोलॉजी विभाग में शोध छात्रा हैं और हॉल ऑफ रेजिडेंस (एचओआर) हॉस्टल में रहती हैं. इस परिसर में कुल छह छात्रावास हैं जिनमें क़रीब दो हज़ार छात्राएं रहती हैं.
नेहा यादव का आरोप है कि इविवि प्रशासन ने उनके ख़िलाफ़ एकतरफ़ा कार्रवाई की है. उनका कहना है कि विश्वविद्यालय ने मुझे कोई चेतावनी पत्र तक नहीं दिया, सीधे निलंबित कर दिया और कारण बताओ नोटिस में पूछा है कि 'क्यों न आपको निष्कासित कर दिया जाए.'
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'आवाज उठाने वाले को किया जाता हैनिलंबित'
वहीं इस मामले में अन्य पक्षों से बात करने पर विश्वविद्याल प्रशासन भी कठघरे में खड़ा दिख रहा है. विश्वविद्यालय के कुछ छात्र नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि 'पिछले कुछ सालों में विश्वविद्याल की ये परंपरा बन गई है कि यहां व्याप्त अनियमितताओं के ख़िलाफ़ जो भी आवाज़ उठाता है उसे पहले तो प्रताड़ित किया जाता है और फिर उसे निलंबित और निष्कासित कर दिया जाता है.'
छात्रों का आरोप है कि इसी डर से कई छात्र किसी भी अनियमितता के ख़िलाफ़ कोई आवाज़ नहीं उठाते हैं.
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रसंघ अध्यक्ष रह चुके रोहित मिश्र को भी ऐसी ही आरोपों में निलंबित किया जा चुका है और कुछ छात्रों को लंबी कार्रवाई प्रक्रिया के बाद माफ़ी मांगने की शर्त पर छोड़ दिया गया.
विज्ञान संकाय के एक छात्र को कुछ समय पहले इन्हीं अनियमितताओं के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने के कारण विश्वविद्यालय प्रशासन के कोप-भाजन का शिकार होना पड़ा था.
छात्र ने अपनी आपबीती मानव संसाधन विकास मंत्रालय, प्रधानमंत्री और यहां तक कि राष्ट्रपति के यहां भी पहुंचाई लेकिन आख़िरकार हर जगह से उसे यही सलाह मिली कि 'करियर बचाना चाहते हो तो शांत रहो और माफ़ी मांग लो.'
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प्रॉक्टर दुबे का जवाब

नेहा यादव कहती हैं, "मैंने तो माफ़ी भी मांगी है कि कुछ ग़लत किया हो तो माफ़ कर दिया जाए लेकिन मेरी बात कोई सुन ही नहीं रहा है. कुलपति महोदय से भी मिलने की दो दिन तक कोशिश की लेकिन मिल नहीं पाई."
प्रॉक्टर राम सेवक दुबे नेहा यादव के ख़िलाफ़ जिन छात्राओं की लिखित शिकायत का हवाला देते हैं उनमें से कुछ छात्राओं ने साफ़तौर पर ऐसी शिकायत करने से मना किया है.
एक छात्रा ने नाम न छापने की शर्त पर बीबीसी को बताया कि उन्होंने ऐसी कोई शिकायत नहीं की है.
नेहा यादव साल 2016 में विश्वविद्यालय में संयुक्त प्रवेश परीक्षा की टॉपर रही हैं और उनका अच्छा अकादमिक रिकॉर्ड रहा है.
प्रॉक्टर रामसेवक दुबे भी इस बात से इनकार नहीं करते लेकिन वो कहते हैं, "अकादमिक रिकॉर्ड अच्छा होना किसी की शार्पनेस का परिचायक है, इस बात का नहीं कि वो ग़लत काम नहीं करेगा. आईएएस और पीसीएस की परीक्षाओं में टॉप करने वाले कितने लोग आज जेल काट रहे हैं."

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