प्यारे दोस्तों जब तुम पैदा नहीं हुए थे, तब भी ये भूमि थी. जब तुम नहीं रहोगे, तब भी ये भूमि रहेगी और इसपर कोई और रहेगा. अशोक के साम्राज्य में तो अफ़ग़ानिस्तान भी शामिल था. अब अफ़ग़ानिस्तान एक अलग देश है. तो कौन-सी मातृ या पितृ भूमि या ये तेरा है - ये मेरा और एक इंच भी आगे बढ़ा तो इसी भूमि पर लिटा दूंगा. ज़ाहिर है, एक दिन तो हम सभी लेट जाएंगे, इसी भूमि पर. कोई पहले - कोई बाद में. इसलिए नक्शे बनाने और एक दूसरे को नक्शे दिखाने का कोई मतलब ही नहीं है. आदमी हो तो आदमी बनकर जीओ और इज़्ज़त से निकल लो. नक्शेबाज़ी ना करो, प्लीज़.

कश्मीरः आदमी बनकर जियो, नक्शेबाज़ी ना करो - वुसअत का ब्लॉग


भारत सरकार की ओर से जारी किया गया भारत का नवीनतम मानचित्रइमेज कॉपीरइटPIB
Image captionभारत सरकार की ओर से जारी किया गया भारत का नवीनतम मानचित्र

भारत ने कश्मीर का जो नया नक्शा छापा है, उसमें पाकिस्तान प्रशासित गिलगित और बाल्टिस्तान को लद्दाख के नए संघीय क्षेत्र का और पाकिस्तान प्रशासित आज़ाद कश्मीर की राजधानी मुज़फ़्फ़राबाद और मीरपुर को जम्मू-कश्मीर के नए संघीय क्षेत्र का हिस्सा दिखाया गया है.
ज़ाहिर है कि पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने इस नक्शे को खारिज कर दिया है, क्योंकि पाकिस्तान के सरकारी नक्शे में पहले से ही पूरा लद्दाख और जम्मू-कश्मीर पाकिस्तान का हिस्सा है.
लेकिन इसमें बारीक शब्दों में ये भी लिखा हुआ है कि ये विवादित क्षेत्र है.
जबकि भारत के पुराने नक्शे में भी गिलगित-बाल्टिस्तान और पाकिस्तान प्रशासित आज़ाद कश्मीर, भारत का हिस्सा है और इसपर विवादित क्षेत्र भी नहीं लिखा जाता.
और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छपने वाले नक्शों में जम्मू-कश्मीर का जो हिस्सा जिस देश के नियंत्रण में है, उसे वैसा ही दिखाया जाता है. सिवाय चीन के, जो लद्दाख का कुछ हिस्सा और अक्साई चीन का कुछ हिस्सा अपना होने का दावा करता है.
लेकिन कहते हैं कि किस्मत बदले ना बदले - हाथ की रेखा, सीमा की लकीर और नदी का रास्ता हमेशा बदलता रहता है और इन तीनों को तब्दीली से कोई नहीं रोक सकता.
कभी ब्रिटेन के नक्शे में आधी दुनिया शामिल थी. आज ब्रिटेन ही यूरोप के नक्शे से बाहर कूदने के लिए हाथ-पैर मार रहा है.
कभी अल्जीरिया, फ्रांस के नक्शे में और पूर्वी तिमोर, इंडोनेशिया के नक्शे में और बर्मा, बांग्लादेश और पाकिस्तान - भारत के नक्शे में थे. फिर एक के चार-चार नज़र आने लगे.
इसलिए मुझे आजतक मातृभूमि और पितृभूमि की संस्कृत समझ में नहीं आई और ना ही ये बात पल्ले पड़ी कि अपने देश के चप्पे-चप्पे के लिए जान दे देंगे का आखिर अर्थ क्या है.
कोई ये नहीं कहता कि हम अपने देश की सीमा के अंदर सब लोगों की रक्षा के लिए जान दे देंगे या ले लेंगे.
और बाय द वे, क्या रक्षा का मतलब जान देना-लेना या दुश्मन को खाक में मिलाना ही रह गया है.
या समझदारी ये है कि आंखों में खून उतारे बगैर या दिल दहला देने वाले नारे लगाए बगैर हम एक दूसरे की सीमा, चारदीवारी और इज़्ज़त का ख्याल रखना सीख लें.

कश्मीरइमेज कॉपीरइटGETTY IMAGES

प्यारे दोस्तों जब तुम पैदा नहीं हुए थे, तब भी ये भूमि थी. जब तुम नहीं रहोगे, तब भी ये भूमि रहेगी और इसपर कोई और रहेगा.
अशोक के साम्राज्य में तो अफ़ग़ानिस्तान भी शामिल था. अब अफ़ग़ानिस्तान एक अलग देश है.
तो कौन-सी मातृ या पितृ भूमि या ये तेरा है - ये मेरा और एक इंच भी आगे बढ़ा तो इसी भूमि पर लिटा दूंगा.
ज़ाहिर है, एक दिन तो हम सभी लेट जाएंगे, इसी भूमि पर. कोई पहले - कोई बाद में.
इसलिए नक्शे बनाने और एक दूसरे को नक्शे दिखाने का कोई मतलब ही नहीं है.
आदमी हो तो आदमी बनकर जीओ और इज़्ज़त से निकल लो. नक्शेबाज़ी ना करो, प्लीज़.

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