दिल्ली अग्निकांड ! किसकी ज़्यादा ज़िम्मेदारी दिल्ली में?

दिल्ली: आग के लिए पार्टियां एक दूसरे को ज़िम्मेदार ठहरा रही हैं


दिल्ली में एक कारखाने में लगी आगइमेज कॉपीरइटEPA
रविवार सवेरे दिल्ली के रानी झांसी स्थित आज़ाद अनाज मंडी में भयंकर आग लग गई. आग के कारण क़रीब 43 लोगों की मौत हुई जबकि दर्जनों घायल हुए.
संकरी गलियों वाले इस इलाक़े में आग स्कूल बैग और प्लास्टिक के खिलौने बनाने वाली एक फैक्ट्री में लगी और तेज़ी से फैली.
दोपहर तक दमकल कर्मचारियों ने आग पर क़ाबू पा लिया. लेकिन इसके साथ ही जो सियासत शुरु हुई उसकी आंच अभी कुछ दिनों तक रहने वाली है.
एक तरफ जहां कांग्रेस और बीजेपी ने प्रदेश की सत्ताधारी आम आदमी पार्टी को दुर्घटना के लिए ज़िम्मेदार ठहराया वहीं आम आदमी पार्टी ने इसका ठीकरा म्यूनिसिपलिटी (एमसीडी) पर फोड़ा जो फिलहाल बीजेपी के हाथों में है.
वहीं दिल्ली में दमकल विभाग के प्रमुख अतुल गर्ग ने बीबीसी को बताया है न तो इस इमारत का फाय़र क्लीरेंस था और न ही इमारत के भीतर आग लगने की स्थिति से बचने के लिए ही कोई तैयारी थी.
दिल्ली में जल्द विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और ऐसे में माना जा रहा है राजनीतिक पार्टियां इसे बड़ा मुद्दे बना रही हैं.

एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा ने कहा कि इसके लिए दिल्ली की केजरीवाल सरकार ज़िम्मेदार है. बीजेपी के अधिकार वाली एमसीडी भी इसके लिए समान रूप से ज़िम्मेदार है.
वहीं बीजेपी नेता हरदीप पुरी ने कहा कि पूरे इलाके में बिजली के खंभों से तारें लटक रही हैं जो बेहद ख़तरनाक है, लेकिन प्रदेश सरकार कई शिकायतों के बाद भी इस मामले का कोई समाधान नहीं कर रही.

दिल्ली में एक कारखाने में लगी आगइमेज कॉपीरइटEPA
बीजेपी नेता हरदीप पुरी ने कहा कि पूरे इलाके में बिजली के खंभों से तारें लटक रही हैं जो बेहद ख़तरनाक है, लेकिन प्रदेश सरकार कई शिकायतों के बाद भी इस मामले का कोई समाधान नहीं कर रही.
उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार को इस इलाके से लोगों को निकाल कर दूसरी जगह पर बसाना चाहिए था लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया.
वहीं एक और वरिष्ठ बीजेपी नेता विजेंद्र गोयल ने कहा कि रिहाईशी इलाक़े में फैक्ट्री चल रही थी जिन्हें दूसरी जगहों पर शिफ्ट करना चाहिए थे, सरकार ने ऐसा नहीं किया.
वहीं आप आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह ने कहा है कि फैक्ट्री की आग अभी ठंडी भी नहीं हुई और बीजेपी ने अपनी राजनीति शुरू कर दी है. उन्होंने कहा कि "फैक्ट्री का लाइसेंस देने का काम एमसीडी करती है. अगर एक घर के भीतर कोई अवैध तरीके से फैक्ट्री चल रही है तो इसे रोकने का काम एमसीडी का है जो भाजपा के शासन में है."

बीजेपी ने अलग से की मदद की घोषणा


दिल्ली में एक कारखाने में लगी आगइमेज कॉपीरइटREUTERS
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घटना पर शोक जताते हुए प्रधानमंत्री राहत कोष से मारे जाने वाले लोगों के परिवारों के लिए 2-2 लाख की मदद का ऐलान किया.
दिल्ली के मुख्यमंत्री ने मौक़े का दौरा किया और कहा कि इस मामले में न्यायिक जांच के आदेश दिए गए हैं. उन्होंने मृतकों के लिए 10-10 लाख रुपये की मदद और घायलों को 1 लाख रुपये की मदद की घोषणा की है.
बीजेपी के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी ने मौक़े का दौरा किया और पार्टी की तरफ से मृतकों के परिवार को 5-5 लाख रुपए और घायलों को 25,000 रुपए की आर्थिक सहायता की घोषणा की.
ऐसे मौक़े पर राजनीति करना ग़ैर-ज़िम्मेदाराना- नज़रिया
दिल्ली में हुई इस घटना के बाद राजनेताओं के बयानों और ज़िम्मेदारी को एक-दूसरे पर डालने की कोशिशों को लेकर बीबीसी संवाददाता आदर्श राठौर ने वरिष्ठ पत्रकारशेखर अय्यर से बात की. पढ़ें उनका नज़रिया:
इस दुखद घटना के लिए सारी पार्टियां दोषी हैं क्योंकि इन्होंने फ़ायर सेफ़्टी नॉर्म्स और बिल्डिंग संबंधी क़ानून दिल्ली में लागू ही नहीं किए. जितने भी ग़ैरकानूनी निर्माण हैं, उन्हें वैध करने के लिए दिल्ली सरकार, म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन और केंद्र सरकार के बीच होड़ मची रहती है. इसी में सुरक्षा के नियमों का बहुत उल्लंघन हुआ है और इस संबंध में सख़्त कार्रवाई करने की इनमें इच्छा नहीं हैं.
चुनाव आने में जब तीन-चार महीने ही बचे हैं, तब इनके अंदर दूसरी दौड़ शुरू हो गई है- घटना के पीड़ितों को मुआवज़ा दिया जाए ताकि यह दोष न आए कि घटना को रोकने के लिए कुछ नहीं किया गया. क्योंकि इस पूरे मामले में अहम सवाल यही है कि ऐसी घटनाएं हो क्यों रही हैं.
1997 के उपहार कांड के बाद आज की घटना में ही सबसे अधिक लोगों की मौत हुई है. इसमें शहर के अधिकारियों के साथ-साथ सरकारों का भी दायित्व बनता है.

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दिल्ली फ़ायर सर्विस की ओर से रिपोर्ट दी जाती है कि कितनी इमारतें ऐसी हैं जो सुरक्षा नियमों के अनुरूप नहीं हैं. कुछ जगहों पर तो दमकल वाहन भी नहीं पहुंच सकते.
आज की घटना तो दिल्ली की एकदम आंतरिक जगह हुई है जो सेंट्रल दिल्ली के क़रीब है. यहां पर बाहर से आए ग़रीब श्रमिक काम करते थे. कहा जा रहा है कि इस इमारत में फ़ैक्ट्रियां चल रही थीं. इस सबको रोका नहीं गया तो अब हादसा होने पर मुआवज़ा देने की होड़ मची है.
सवाल है सुशासन का है मगर चुनाव नज़दीक होने के कारण पार्टियां मुआवज़ा देने में लगी हुई हैं. आम आदमी पार्टी की दिल्ली में सरकार है तो साधन होने के कारण वह 10 लाख दे पा रही है. बीजेपी भी मुआवज़ा दे रही है. वह सोच रही होगी कि लोकसभा में अच्छे प्रदर्शन को देखते हुए आगामी विधानसभा चुनाव जीतने का मौक़ा है.
लेकिन राजनीतिक पार्टियां इच्छाशक्ति इस्तेमाल करके ऐसी फ़ैक्ट्रियों को क्यों नहीं रोक रहीं जहां ऐसे हादसे होने की आशंका है?
पूरे एनसीआर में, अंदरूनी दिल्ली से लेकर बाहरी इलाक़ों तक ऐसी कई फ़ैक्ट्रियां चल रही हैं. मगर इन्हें रोकने के बजाय घटना होने पर मुआवज़ा देकर सोचा जाता है कि मामला दब गया.

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किसकी ज़्यादा ज़िम्मेदारी दिल्ली में?

दिल्ली ऐसा राज्य है जहां केंद्र सरकार की भी काफ़ी भूमिका है. यहां राज्य सरकार की तो ज़िम्मेदारी बनती ही है, एमसीडी वगैरह का भी दायित्व बनता है. उनके अधिकारियों, सेफ़्टी इंस्पेक्टर और इंडस्ट्रियल इंस्पेक्टर वगैरह की ज़िम्मेदारी बनती है कि सारी चीज़ों पर नज़र रखे और ज़रूरी क़दम उठाए.
राजनीतिक दायित्व के अभाव के अलावा सिस्टम में भी एक ख़ामी है. जहां भी निर्माण होता है, वहां नियमों को न तो शुरू में लागू किया जाता है और फिर उल्लंघन करने वालों पर बाद में कार्रवाई भी नहीं होती.
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने अतिक्रमण को लेकर सख़्ती बरती थी तो भी हमने देखा कि पार्टियां उसका तोड़ निकालने में जुटी हुई थीं.
जब अवैध कॉलोनियों को रेग्युलराइज़ किया गया तो केंद्र और राज्य सरकारों के बीच श्रेय लेने की होड़ मच गई. मगर आप ऐसी कॉलोनियों को रेग्युलराइज़ करेंगे तो सेफ़्टी के बारे में तो सोचना ही होगा.

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ज़्यादा समय नहीं हुआ जब दिल्ली के करोल बाग़ में भी आग लगने की ऐसी घटना हुई थी जहां रेस्तरां में बाहर निकलने का रास्ता नहीं था. वहां पर दिल्ली फ़ायर सर्विस के हर नियम का उल्लंघन किया गया था.
दिल्ली में आबादी का घनत्व इतना है कि एक भी इमारत हादसे की शिकार हो जाए तो कम से कम 50-60 लोगों की तो मौत होना स्वाभाविक है. ऐसी घटनाएं न हों, इसके लिए पहले से उपाय उठाने की ज़रूरत है. मगर ऐसा हो नहीं रहा.
पार्टियां सिर्फ़ राजनीति कर रही हैं. बिहार से आए श्रमिकों की मौत की बात भी उठाई जा रही है क्योंकि वहां से आए लोगों के काफ़ी वोट हैं.
लेकिन पार्टियों को सोचना चाहिए कि चुनाव तो आएंगे-जाएंगे, अगर आप दिल्ली शहर में इस तरह से अवैध निर्माण होने देते रहेंगे तो ऐसी घटनाएं भी होती रहेंगी.
चुनाव आता देख अगर पार्टियां राजनीति में लग जाएं तो यह बहुत ग़ैर-ज़िम्मेदार काम है.

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