कश्मीरियों से शादी के सपने पर क्या बोली वहाँ की छात्रा


किताबों के साथ बैठी दुआ का चित्रण

दिल्ली से सौम्या ने पहले ख़त में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बारे में पूछा तो जवाब में पढ़िए श्रीनगर से दुआ भट ने क्या लिखा -
तारीख़ - 30.12.19
प्यारी सौम्या
कश्मीर से मेरा ठिठुरन भरा सलाम.
ठिठुरन भरा इसलिए क्योंकि इन दिनों यहां बहुत ज़्यादा सर्दी है. मैं अच्छी हूं और अलहमदुलइल्लाह मेरे परिवार में भी सब अच्छे हैं. आप कैसी हो और परिवार में बाक़ी सब?
हम 'पेन पैल्स' बने रहने के वायदे पर इसलिए क़ायम नहीं रह पाए क्योंकि यहां ज़्यादातर व़क्त इंटरनेट बंद रहता है और वादी के बाहर किसी के साथ भी संपर्क बनाए रखना अपने आप में एक क़वायद है.
मुझे ये जानकर बहुत अच्छा लगा कि आपका कॉलेज शुरू हो गया है और पढ़ाई अच्छी चल रही है. इस व़क्त अवीन क्या कश्मीर में पढ़ रहे सभी बच्चों की पढ़ाई का बहुत हर्जाना हो रहा है.
मैंने अभी ग्यारहवीं क्लास के इम्तिहान दिए हैं और अब बारहवीं की पढ़ाई शुरू हो रही है. मैं उन लोगों में से हूं जो कोचिंग सेंटर्स की जगह ख़ुद पढ़ाई करने में यक़ीन रखते हैं.
मेरे जैसे स्टूडेंट्स को पिछले महीनों में सबसे ज़्यादा नुक़सान हुआ है क्योंकि हम इंटरनेट की मदद से पढ़ते रहे हैं. कोई भी बात समझ ना आए तो इंटरनेट की मदद से जवाब ढूंढ़ लेते थे पर पिछले छह महीनों से हमारे सवाल, सवाल ही बने रहे.
अल्लाह ही जानते हैं कि हमने इम्तिहानों के लिए अपना सिलेबस व़क्त से कैसे ख़त्म किया. मैं मानती हूं कि कश्मीरी स्टूडेंट्स ही ऐसी चुनौती का सामना कर सकते हैं और अगर भारत के बाक़ी शहरों के स्टूडेन्ट्स ऐसी परिस्थिति में फंसे तो मुझे 100 फ़ीसदी यक़ीन है कि वो इसे झेल नहीं पाएंगे.
इंटरनेट और कम्युनिकेशन के बाक़ी ज़रिए बंद किया जाना, ये सब जम्मू-कश्मीर को ख़ास दर्जा देने वाले भारतीय संविधान के आर्टिकल 370 को हटाने की वजह से हुआ.
संक्षेप में आपको बताऊं तो यहां के लोग हमारा ख़ास दर्जा ख़त्म किए जाने से ख़ुश नहीं हैं. निजी तौर पर मुझे लगता है कि लोगों को अपने परिवार और जानने वालों से बात करने और संपर्क में रहने से रोकना मानवाधिकारों का उल्लंघन है.
कश्मीर के अस्पतालों में करोड़ों रुपए की मशीनें बेकार होने की कगार पर हैं. इंटरनेट ना होने की वजह से लोगों को पता ही नहीं चल पा रहा कि वादी के बाहर की दुनिया में क्या हो रहा है. ये सब हमारे मानवाधिकारों का और 'राइट टू इन्फ़र्मेशन' (सूचना के अधिकार) का उल्लंघन है.
आपने यहां के इंडस्ट्रियलाइज़ेशन की बात की. ज़्यादातर लोग नहीं जानते कि कई कंपनियों, जैसे यूनियन कार्बाइड, टाटा स्टील्स वगैरह के यूनिट यहां मौजूद हैं.
लेकिन कई कारणों से ये यूनिट काफ़ी समय पहले बंद हो गए. ये कारण भौगोलिक और राजनीति से जुड़े हैं. तो मुझे नहीं लगता कि बड़े दर्जे पर इंडस्ट्रियलाइज़ेशन यहां कारगर हो पाएगी.
आपने ये भी कहा कि लोग यहां शादी करने के ख़्वाब देख रहे हैं. ख़ैर, अलग-अलग ख़्वाब देखना इंसानी फ़ितरत है पर ये ज़रूरी नहीं कि सभी ख़्वाब सच हों.
सौम्या, ज़्यादातर लोग नहीं समझ पा रहे कि बाक़ी मुल्क में क्या हो रहा है. मैं भी नहीं. यहां के न्यूज़ चैनल इतनी जानकारी नहीं दे रहे कि सीएए और एनआरसी असल में क्या है, इसकी पूरी समझ बन पाए.
क्या आप मुझे इनके बारे में बता सकती हो? हमारे सुनने में बस यही आ रहा है कि देश के अलग-अलग शहरों में इस ऐक्ट के पास किए जाने के ख़िलाफ़ प्रदर्शन हो रहे हैं.
और ऐसे नारे भी सुनने को मिलते हैं कि, "चले थे कश्मीर को भारत बनाने, पूरे भारत को कश्मीर बना दिया". क्या वहां हालात इतने ख़राब हैं?
उम्मीद है कि आप मेरे सवालों का जवाब दे पाओगी. मैं सचमुच जानना चाहती हूं.
बेसब्री से आपके जवाब के इंतज़ार में,
आपकी दोस्त
दुआ

दुआ और सौम्या का चित्रण

जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर में बड़ी हो रही 17 साल की दुआ भट और दिल्ली की 18 साल की सौम्या सागरिका ने एक-दूसरे की अलग ज़िंदगियों को समझने के लिए चिट्ठियों के ज़रिए दोस्ती की.
क़रीब दो साल पहले एक-दूसरे को पहली बार लिखा. कई आशंकाएं दूर हुईं.
फिर पिछले साल अगस्त में जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने के साथ-साथ वहां कई सारी बंदिशें लागू कर दी गईं. संपर्क करना मुहाल हो गया. पाँच महीने बाद जब इनमें कुछ ढील दी गई ख़तों का सिलसिला फिर शुरू हुआ.
दोनों के बीच दिसंबर से फ़रवरी के दौरान लिखे गए छह ख़तों में से यह दूसरा ख़त है. पहला ख़त सौम्या ने लिखा था, जिसका दुआ ने जवाब दिया. दुआ के इस ख़त के जवाब में लिखी सौम्या की अगली चिट्ठी सोमवार को बीबीसी हिन्दी डॉट कॉम पर प्रकाशित की जाएगी.
(प्रोड्यूसर: बीबीसी संवाददाता दिव्या आर्य; इलस्ट्रेटर: नीलिमा पी. आर्यन)

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