फफूंद से पैदा महामारी क्या हमें ज़ोंबी में बदल सकती है?
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जेम्स गैलघर
इंसाइड हेल्थ प्रेज़ेंटर, बीबीसी रेडियो 4
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एचबीओ की टीवी सीरीज़ द लास्ट ऑफ़ अस में कोर्डिसेप्स फ़ंगस से ख़त्म हुआ शरीर
एक भयावह सच का सामना कर पाएंगे? वो ये कि फफूंद अपने शिकार को ज़ोंबी में बदल सकती है.
इसके जीवाणु शरीर में घुस जाते हैं. इसके बाद फफूंद बढ़ना शुरू हो जाती है. बढ़ती हुई फफूंद मेज़बान शरीर के मस्तिष्क को तब तक हाईजैक करती है जब तक यह नियंत्रण न खो दे.
ये परजीवी फफूंद अपने शिकार को अंदर से खाना शुरू कर देती है और वहां मौजूद पोषक तत्वों की आखिरी बूंद तक निचोड़ लेती है.
फिर किसी हॉरर फिल्म जैसा खौफनाक दृश्य पैदा होता है. इसके बाद एक मौत का तंतु निकलता है. फिर फफूंद फैलना शुरू होती है और इसके जीवाणु आसपास की हर चीज़ में घुस जाते हैं. और इस तरह दूसरी चीज़ें ज़ोंबी बनने की राह पर चल पड़ती हैं.
ये सबकुछ किसी उपन्यास की कहानी जैसा लग सकता है. लेकिन फफूंद का साम्राज्य पौधों और पशुओं के साम्राज्य से अलग है. ये साम्राज्य खाए जाने वाले मशरूम से लेकर भयानक परजीवियों तक फैला है.
परजीवी कोर्डिसेप्स और ओफियोकोर्डिसेप्स फफूंद की प्रजातियां काफी वास्तविक होती हैं. बीबीसी के प्लैनेट अर्थ सीरीज़ में सर डेविड एटनबरो एक चींटी पर फफूंद का नियंत्रण होते देखते हैं.
फफूंद के हमले से ज़ोंबी में तब्दील हुई चींटियों की क्लिप 'द लास्ट ऑफ अस' जैसे वीडियो की प्रेरणा बनी है. ये शायद मेरे लिए सबसे बढ़िया वीडियो गेम था. अब इसी प्लॉट पर बेहतरीन टीवी सिरीज़ बन चुकी है.
वीडियो और टीवी सिरीज़ दोनों में कोर्डिसेप्स अपने शिकार किए हुए कीटों से उछल कर मानव को संक्रमित करता दिखता है. और इस तरह महामारी फैलते ही उससे पूरा मानव समाज ख़त्म हो जाता है.
क्या इससे महामारी फैल सकती है?
लेकिन क्या वास्तविक दुनिया में कोर्डिसेप्स (एक तरह की फफूंद) या ऐसी ही किसी दूसरी किस्म की फफूंद से कोई महामारी फैल सकती है?
हॉस्पिटल फॉर ट्रॉपिकल डिज़ीज़ लंदन के शीर्ष फ़ंगल एक्सपर्ट डॉ. नील स्टोन कहते हैं, "मेरा मानना है कि हम फ़ंगल इन्फ़ेक्शन के ख़तरों को नज़रअंदाज़ कर रहे हैं. यह हमारे लिए बेहद ख़तरनाक साबित हो सकता है. हम फ़ंगल इन्फ़ेक्शन से निपटने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं हैं.''
पिछले साल डब्ल्यूएचओ ने मनुष्य के जीवन को ख़तरे में डालने वाली फफूंद की पहली लिस्ट जारी की.
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यूट्रैक्ट यूनिवर्सिटी में माइक्रोबायोलॉजिस्ट डॉ. चरिसा बेकर ने इस बात का अध्ययन किया है कि कोर्डिसेप्स ज़ोम्बिफाइड चीटियां कैसे बनाती हैं. उनका कहना है मनुष्य में उन्होंने ऐसा होता कभी नहीं देखा.
वो कहती हैं, "हमारे शरीर का तापमान इतना ज़्यादा होता है कि ज़्यादातर फफूंद इस पर अपनी पैठ बना कर विस्तार नहीं ले पाती. और ऐसा कोर्डिसेप्स के मामले में भी होता है."
वो कहती हैं, "उनका नर्वस सिस्टम हमारे नर्वस सिस्टम से ज़्यादा सरल है. इसलिए मनुष्य के नर्वस सिस्टम की तुलना में किसी कीट के नर्वस सिस्टम को हाईजैक करना ज़्यादा आसान है. इसके अलावा उनका इम्यून सिस्टम भी हमारे इम्यून सिस्टम से काफी अलग होता है."
परजीवी कोर्डिसेप्स की ज़्यादातर प्रजातियां ने लाखों साल पहले कीड़ों की एक प्रजाति में घुसने की महारत हासिल कर ली थी. हालांकि ये एक कीड़े से दूसरे कीड़ों में छलांग नहीं लगाते.
फफूंद की लाखों प्रजातियों में से सिर्फ मुट्ठी भर प्रजातियां ही बीमारियां पैदा करती हैं. लेकिन कुछ प्रजातियां एथलीट फुट या अंगूठे के नाखून में संक्रमण पैदा करने वाली फफूंद से ज़्यादा ख़राब हैं.
मलेरिया से भी अधिक मौतें होती हैं
फफूंद संक्रमण की वजह से हर साल 17 लाख लोगों की मौत होती है. ये मलेरिया से होने वाली मौतों से तीन गुना ज़्यादा है.
डब्ल्यूएचओ ने ऐसी 19 तरह की फफूंद की पहचान की है जो चिंता पैदा करती हैं. इनमें अचानक पैदा होने वाली खतरनाक सुपरबग कैंडिडा ऑरिस शामिल हैं. इसके अलावा एक तरह की फफूंद म्युकोरमिसिटस पैदा होती है.
ये हमारे मांस को इतनी जल्दी खाता है कि इससे चेहरे गंभीर घाव बन सकते हैं.
डॉ. नील स्टोन ने मुझे लंदन में हेल्थ सर्विसेज लेबोरेट्री में आमंत्रित किया. यहां ब्रिटेन के मरीजों के सैंपल रखे हुए थे. यहां इन सैंपल का इस लिहाज़ से विश्लेषण हो रहा था कि क्या संक्रमण फफूंद से फैले हैं. अगर ऐसा है तो इनका क्या इलाज हो सकता है. हमने फफूंद से पैदा होने वाले कुछ बड़े ख़तरों पर भी चर्चा की.
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डॉक्टर नील स्टोन कहते हैं कि हम फ़ंगस को नज़रअंदाज़ करते हैं जबकि कैंडिडा ऑरिस 'हमारी आपदा' हैं
कैंडिडा ऑरिस क्या होती है?
दरअसल ये खमीर की तरह का फफूंद होती है. आपको शराब की भट्ठी या ब्रेड के लिए गूंथे गए आटे में इसकी महक मिलती है.
लेकिन अगर ये शरीर में घुस जाए तो खून में समा सकती है. ये नर्वस सिस्टम या आंतरिक अंगों में पहुंच सकती है.
डब्ल्यूएचओ का आकलन है कि जिन लोगों के अंदर हमलावर कैंडिडा ऑरिस का संक्रमण पहुंचता है, उनमें से आधे की मौत हो सकती है.
डॉ. स्टोन कहते हैं, "ये एक दैत्य की तरह है जो 15 साल पहले पैदा हुआ था लेकिन अब ये पूरी दुनिया में फैल चुका है.''
इसका पहला दस्तावेज़ी केस 2009 में टोक्यो मेट्रोपोलिटन ज़ेरिएट्रिक हॉस्पिटल में एक मरीज़ के कान में मिला था.
कैंडिडा ऑरिस एंटी-फंगल दवाइयों से बच निकलती है. फफूंद की कुछ प्रजातियां तो सभी तरह की दवाइयों का प्रतिरोधी हैं. यही वजह है कि इसे सुपरबग कहा जाता है.
इस तरह के फफूंद का फैलाव अस्पतालों की संक्रमित सतह से होता है. यह शरीर की अंदरूनी नसों की सतह और ब्लडप्रेशर कफ्स में चिपक जाती हैं. उन्हें वहां से हटाना मुश्किल होता है. ब्रिटेन में ऐसा होते देखा गया है. ये बेहद ख़तरनाक फफूंद है.
एक दूसरा मारक और खतरनाक फफूंद है क्रिप्टोकोकस नियोफॉरमेन्स, यह लोगों के नर्वस सिस्टम में घुस जाती है. इससे ख़तरनाक दिमागी बुखार हो सकता है.
हनीमून पर जब पड़ा दौरा
सिड और एली अपने हनीमून पर कोस्टा रिका में थे जहां पर एली बीमार पड़ गईं.
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फ़ंगल इन्फ़ेक्शन से पहले एली और सिड अपनी शादी में
उनकी बीमारी के शुरुआती लक्षण थे सिर दर्द और उल्टी लेकिन उसके बाद उन्हें दौरे पड़ने लगे. इसके बाद उन्हें तुरंत एक बोट में स्वास्थ्य मदद के लिए ले जाया गया.
सिड ने मुझे बताया, "मैंने इससे अधिक भयानक लम्हा पहले कभी नहीं देखा था और ख़ासतौर पर मैं अपने आप को असहाय महसूस कर रहा था."
स्वास्थ्य जांच के बाद एली के दिमाग़ में सूजन पाई गई और जांच में क्रिप्टोकोकस की पहचान हुई. सौभाग्य से एली पर इलाज का असर होने लगा और 12 दिन वेंटिलेटर पर रहने के बाद वो कोमा से बाहर आ गईं.
एली कहती हैं, "मुझे सिर्फ़ चीख़ना याद है."
उनको भ्रम भी पैदा हो गया था जिसमें उन्हें लगता था कि उनके तीन बच्चे हैं और उनके पति ने उनके पैसे जुए में उड़ा दिए हैं. वो कहती हैं, "तो पहली चीज़ ये थी कि मैंने उनसे कहा कि सब ख़त्म हो गया है."
वो कहती हैं कि उन्होंने 'कभी भी नहीं' सोचा था कि फफूंद किसी शख़्स के साथ ऐसा भी कर सकती है. "आप ऐसा नहीं सोचते हैं कि आप अपने हनीमून पर जाएं और लगभग मर जाएं."
म्यूकोरमाइसिटीस को ब्लैक फ़ंगस के रूप में जाना जाता है जो मांस को खा जाने वाली बीमारी म्यूकोमाइकोसिस का कारण बनती है. इसका एक उपनाम भी है जो इसकी घातक प्रकृति को प्रकट करता है जिसे 'द लिड लिफ़्टर' (ढक्कन को उठाने वाला) कहा जाता है.
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म्यूकोरमाइसिटीस फंगस बहुत तेज़ी से बढ़ता है
ये बहुत तेज़ी से ऊपर उठता है. यह तस्वीर दिखाती है कि कैसे 24 घंटे के अंदर पेट्री डिश में यह पनना और इसने ढक्कन को ऊपर उठा दिया.
एचएसएल में क्लीनिकल साइंटिस्ट डॉक्टर रिबेका गोर्टन कहती हैं, "अगर आपके पास एक फल का टुकड़ा हो तो अगले दिन ये सिर्फ़ एक लुगदी के रूप में रह जाएगा क्योंकि इसमें म्यूकर-फ़ंगस(म्यूकोरमाइसिटीस) है."
वो कहती हैं कि यह इंसानों में बहुत दुर्लभ है लेकिन यह 'वास्तव में बेहद ख़तरनाक संक्रमण' हो सकता है.
ब्लैंक फ़ंगस अवसरवादी होता है जो कमज़ोर इम्यून सिस्टम वाले लोगों में पकड़ बना लेता है. वो चेहरे, आंखों और दिमांग़ पर हमला करता है जिससे जान भी जा सकती है या लोगों का शरीर गंभीर रूप से बिगाड़ देता है.
डॉक्टर गोर्टन कहती हैं कि एक ख़राब संक्रमण शरीर में 'बहुत तेज़ी से पैदा होता है' जैसा कि किसी फल या लैब में होता है.
कोरोना महामारी के दौरान भारत में ब्लैक फ़ंगस का विस्फोट हुआ था. 4,000 से अधिक लोगों की मौत हुई थी. माना जाता है कि कोरोना महामारी के दौरान लिए गए स्टेरॉयड्स ने इम्यून सिस्टम को कमज़ोर किया और हाई लेवल डाइबिटीज़ ने फ़ंगस का प्रसार किया.
क्या हमें फ़ंगस को गंभीरता से लेना चाहिए?
बैक्टीरिया या वायरस के मुक़ाबले फ़ंगस का संक्रमण अलग तरह का होता है. जब भी फ़ंगस हमें बीमार करता है तो ये हमें वातावरण से मिलता है न कि खांसी या ज़ुकाम से फैलता है.
हम लगातार फ़ंगस के संपर्क में रहते हैं लेकिन बीमार करने के लिए इसे एक कमज़ोर इम्यून सिस्टम चाहिए होता है. दवाइयां हमें जितना ज़िंदा रखती हैं इससे उतना ही हमारा इम्यून सिस्टम कमज़ोर होता है जिस तरह से कोई कैंसर का इलाज करा रहा होता है.
डॉक्टर स्टोन कहते हैं कि कोविड की तुलना में फ़ंगस की महामारी फैलने और लोगों को संक्रमित करने के मामले में शायद अलग ही तरह की होगी.
वो मानते हैं कि इसका ख़तरा इसलिए है क्योंकि 'जलवायु परिवर्तन, अंतरराष्ट्रीय यात्रा, बढ़ते मामले और इलाज के मामले में घोर लापरवाही के कारण वातावरण में अच्छा ख़ासा फ़ंगस फैला हुआ है."
फ़ंगस शायद हम सबको ज़ोम्बी में न बदले लेकिन एथलीट्स फ़ुट की तुलना में ये और भी बहुत सी दिक़्क़तें पैदा कर सकता है.
सिमरन प्रजापति with Rekha Vinod Jain and 4 others Mon · क्या खुब लिखा है किसी ने ... "बक्श देता है 'खुदा' उनको, ... ! जिनकी 'किस्मत' ख़राब होती है ... !! वो हरगिज नहीं 'बक्शे' जाते है, ... ! जिनकी 'नियत' खराब होती है... !!" न मेरा 'एक' होगा, न तेरा 'लाख' होगा, ... ! न 'तारिफ' तेरी होगी, न 'मजाक' मेरा होगा ... !! गुरुर न कर "शाह-ए-शरीर" का, ... ! मेरा भी 'खाक' होगा, तेरा भी 'खाक' होगा ... !! जिन्दगी भर 'ब्रांडेड-ब्रांडेड' करने वालों ... ! याद रखना 'कफ़न' का कोई ब्रांड नहीं होता ... !! कोई रो कर 'दिल बहलाता' है ... ! और कोई हँस कर 'दर्द' छुपाता है ... !! क्या करामात है 'कुदरत' की, ... ! 'ज़िंदा इंसान' पानी में डूब जाता है और 'मुर्दा' तैर के दिखाता है ... !! 'मौत' को देखा तो नहीं, पर शायद 'वो' बहुत "खूबसूरत" होगी, ... ! "कम्बख़त" जो भी ...
करे गैर गर बूत की पूजा तो काफिर जो ठहराए बेटा खुदा का तो काफिर गिरे आग पर बहर सिजदा तो काफिर कवाकिब में मानें करिश्मा तो काफिर मगर मोमिनो पर कुशादा हैं राहें परस्तिश करें शौक से जिस की चाहें नबी को जो चाहें खुदा कर दिखाएं इमामों का रुतबा नबी से बढ़ाएं मज़ारों पे दिन रात नजरें चढ़ाएं शहीदों से जा जा के मांगें दुआएं न तौहीद में कुछ खलल इससे आये न इस्लाम बिगड़े न ईमान जाए । ( मुसद्दस हाली ) __________________________________________________ Padhne k baad kya Samjhe ? Agar Gair Boot ki Puja , Murti Puja , Yani ek khuda k Awala ki kisi Dusre ki puja kare to Kafir Eesha Alaihissalam ko manne wale Agar Ek Allah ki Parastish karne k sath Eesha Alaihissalam ko Khuda maan Liya to Fir bhi Kaafir Aag ki sijdah Jisne Kiya wah bhi kaafir ho gaya Falkiyaat Aur chaand aur sitaron k Wajud ko Allah ka banaya hua n maan kar Sirf Karishma maan liya to bhi Kaafir ... Lekin Musalmano ki Rahen Aasan aur Wasi kai...
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