मोरारी बापू: क्या है सनातन धर्म बनाम स्वामीनारायण संप्रदाय का विवाद


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गुजरात में अभी राजनीतिक विवाद के बजाय धार्मिक विवाद चल रहा है, जिसमें संतों से लेकर लेखक, कवि और कलाकार भी कूद पड़े हैं.
ये नीलकंठ विवाद प्रसिद्ध राम कथाकार मोरारी बापू और स्वामीनारायण संप्रदाय के बीच चल रहा है.
दरअसल इस विवाद की शुरुआत मोरारी बापू के एक बयान से शुरू हुई.
मोरारी बापू ने राम कथा करते वक़्त मंच से कहा, "जहां नीलकंठ अभिषेक की बात आए तो कान खोलकर समझ लेना, शिव का ही अभिषेक होता है. कोई अपनी-अपनी शाखाओं में नीलकंठ का अभिषेक करे तो ये नकली नीलकंठ है. वह कैलाश वाला नहीं है. नीलकंठ कौन है, जिसने ज़हर पिया हो, वो है. जिसने लाडूडी (एक तरह का छोटा लड्डू) खाई है, वो नीलकंठ नहीं हो सकता."
इस विवाद की शुरुआत मोरारी बापू के इसी बयान से हुई. स्वामीनारायण संप्रदाय में लाडूडी प्रसाद के रूप में दी जाती है. और स्वामीनारायण का एक नाम नीलकंठ भी है.
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सनातन धर्म बनाम स्वामीनारायण संप्रदाय

स्वामीनारायण को निशाने पर रखकर कही गई इस बात ने उस संप्रदाय के संतों और अनुयायियों में नाराज़गी पैदा कर दी. इसके बाद दोनों पक्षों में एक-दूसरे के ख़िलाफ़ बयानबाज़ी होती रही.
अब ये लड़ाई सनातन धर्म बनाम स्वामीनारायण संप्रदाय की हो गई है. मोरारी बापू के पक्ष में कई कलाकार ओर लेखकों ने स्वामीनारायण संप्रदाय की तरफ़ से दिया जाने वाला 'रत्नाकर अवॉर्ड' वापस लौटा दिया है.
इस मामले में स्वामीनारायण संप्रदाय के संतों के वीडियो भी सोशल मीडिया में वायरल होने लगे. इसमें एक वीडियो दलितों के ख़िलाफ़ था. इस वीडियो के ख़िलाफ़ दलित नेता और गुजरात के विधायक जिग्नेश मेवाणी ने रैली भी निकाली थी.
सनातन धर्म बनाम स्वामीनारायण संप्रदाय के विवाद को आगे बढ़ाते हुए मोरारी बापू ने एक और बयान दिया, "राम और कृष्ण को एक तरफ़ रखकर वे लोग अपने संतों को आगे कर रहे हैं."
मोरारी बापू के समर्थक उनके बयान को सनातन धर्म की रक्षा के रूप में देखते हैं. उनका कहना है कि स्वामीनारायण संप्रदाय सनातन धर्म को चुनौती दे रहा है.
मोरारी बापू देश और विदेश में अपनी रामकथा से जाने जाते हैं और स्वामीनारायण संप्रदाय गुजरात के पाटीदार समाज के बीच गहरा असर रखता है. स्वामीनारायण संप्रदाय के मंदिर दुनिया के कई देशों में हैं.
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मोदी को फ़कीर कहने वाले मोरारी बापू
साल 1992 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने राम की पादुका पूजन का कार्यक्रम आयोजित किया था.
इसी कार्यक्रम में मोरारी बापू भी आते हैं और कहते हैं कि 'अब देश के युवाओं के लिए केसरिया (बलिदान) करने का समय आ गया है. शहादत को स्वीकार करो, जब तक राम मंदिर का निर्माण न हो तब तक लड़ते रहो.'
ठीक इसके बीस साल बाद, साल 2013 में हरिद्वार स्थित पतंजलि योगपीठ में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी मोरारी बापू और अन्य संतों के साथ स्टेज पर दिखे.
ये समय 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले का था, तब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद की दावेदारी की रेस में थे.
इसी कार्यक्रम में मोरारी बापू ने कहा, "अब फ़ैसला राष्ट्र को करना है, मैंने एक बार अहमदाबाद में कहा था और मैं इस बात पर कायम रहूंगा. ये मैं फिर से कह रहा हूं... गंगा के किनारे कह रहा हूं... मुझे लगता है कि हमारे मुख्यमंत्री गुजरात को चला नहीं रहे हैं बल्कि वह इस तरह से राज कर रहे हैं कि मानो अनुष्ठान कर रहे हों."
साल 2005. जगह है गांधीजी का अहमदाबाद का साबरमती आश्रम. मोरारी बापू की कथा चल रही है और तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी आते हैं और मोरारी बापू से मिलते हैं.
इस घटना को मोरारी बापू फिर से बाबा रामदेव के साल 2013 के कार्यक्रम में दोहराते हैं, "मैंने उस कथा में कहा था कि मैं तो बाबा हूं, कुछ भी त्याग कर सकता हूं."
इतना कहने के बाद मोरारी बापू मोदी की तरफ़ इशारा करके फिर आगे बोलते हैं, "तो इस व्यक्ति ने भी कुर्सी पर बैठे-बैठे कहा कि मैं भी फ़कीर हूं."
इतना कहकर मोरारी बापू ने कहा कि आज एक बाबा दूसरे बाबा के साथ बैठा है.
साल 2012. मोरारी बापू न्यूज़ 24 चैनल को इंटरव्यू देते हैं. तब देश में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में सरकार थी. यूपीए की सरकार भ्रष्टाचारों के आरोपो से घिरी हुई है.
इस इंटरव्यू में मोरारी बापू से देश की स्थिति के बारे में पूछा जाता है.
सवाल का जवाब देते हुए मोरारी बापू ने कहा, "जिस रूप में देश चल रहा है, उसके बारे में कहूं तो प्रसन्नता हो, वैसा दृश्य नहीं है. मैंने आदरपूर्वक प्रधानमंत्री से कहा था कि ऐसी स्थिति में भीष्म नहीं बनना चाहिए, भीम बनना चाहिए. एक सभा में भीष्म जैसे महापुरुष को आवाज़ उठाने की ज़रूरत थी लेकिन वो वहां चुप रहे और भीम उछल पड़ा था. आज का माहौल कुछ ऐसा ही है, जिसमें भीष्म नहीं भीम बनना चाहिए."
राजनीति से ख़ुद को दूर बताने वाले मोरारी बापू की ख़ासियत ये रही है कि वो राजनीति में सीधा कुछ कहते नहीं हैं. लेकिन बातों-बातों में बहुत कुछ कह देते हैं.
नीलकंठ विवाद में भी बापू ने अपनी इस कला का बख़ूबी उपयोग किया है.
सीधा कहने के बजाय सांकेतिक बयान देकर ही इसे सनातन धर्म बनाम स्वामीनारायण संप्रदाय की लड़ाई बना दिया है.
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मोरारी बापू का उदय कैसा हुआ?

मोदी से लेकर अंबानी तक सीधी पहुंच रखने वाले मोरारी बापू का जन्म गुजरात के भावनगर ज़िले के महुवा तहसील के तलगाजरडा गांव में 25 सितंबर, 1946 को हुआ था.
राजनीति से दूर रहने वाले बापू अभी भी अपने गांव तलगाजरडा में रहते हैं.
अपने दादा को गुरु मानने वाले मोरारी बापू किसी को अपना शिष्य न मानते हैं और न बनाते हैं. उन्होंने बार-बार कहा है कि उनका कोई शिष्य नहीं है.
अपने दादा के पास से उन्होंने रामचरितमानस का ज्ञान लिया था और चौपाइयां याद की थीं.
उनकी वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक़ 12 साल की उम्र में उन्होंने पूरा रामचरितमानस याद कर लिया था. जो उन्होंने पांच साल की उम्र से सीखना शुरू किया था.
शुरुआत में मुट्ठी भर लोगों को चौपाइयां सुनाने से शुरुआत करने वाले मोरारी बापू ने अपनी पहली रामकथा साल 1960 में अपने ही गांव में की थी.
एक दशक तक महुवा तहसील और भावनगर ज़िले में कथा करते रहे, आज उनके नाम 800 रामकथा हैं.
सत्तर के दशक में गुजरात और गुजरातियों में लोकप्रिय होने के बाद साल 1982 में मोरारी बापू ने अपनी पहली रामकथा विदेश में की. इसके लिए उन्होंने ब्रिटेन को चुना.
वरिष्ठ पत्रकार रमेश ओझा कहते हैं, "मोरारी बापू अच्छे वक्ता और कथाकार हैं और उनकी हाज़िर जवाबी वाली शैली ने उनकी लोकप्रियता को परवान चढ़ा दिया."
अभी सर्वधर्म समभाव की बातें करने वाले मोरारी बापू एक समय राम-जन्मभूमि आंदोलन में सक्रिय थे और विश्व हिंदू परिषद जैसे संगठनों का साथ दिया करते थे.
साल 1989 आने तक तो राममंदिर की लड़ाई ज़ोर पकड़ चुकी थी.
रमेश ओझा कहते हैं, "जब देश में सांप्रदायिक मानसिकता उभार पर थी, तब बापू ने राममंदिर के लिए ले जाने वाली शिला का पूजन किया था.
ओझा बताते हैं, "मोरारी बापू को विवादों से बचने और निकल जाने की कला आती है. इसके अलावा पत्रकारों और लेखकों से अच्छे रिश्तों ने भी उनको लोकप्रिय बनाया."
जाने-माने पत्रकारों का कहना है कि रामजन्मभूमि के आंदोलन के बाद मोरारी बापू में परिवर्तन आना शुरू हुआ. वो उथली धार्मिक सोच, भक्तों की भीड़ और सांप्रदायिकता से दूर होते गए.
बाद में उन्होंने कथा के बदले पैसे लेना बंद कर दिया और अपनी कुछ संस्थाओं को बंद कर दिया.
सौराष्ट्र के समुद्र में व्हेल मछली को बचाने का अभियान हो या मुस्लिम समाज की लड़कियों की शादी में मदद करना हो, मोरारी बापू हमेशा आगे रहे हैं.
दलित, मुस्लिम और वंचित तबकों के साथ सरलता से घुल-मिल जाने वाले बापू ने यौन कर्मियों और किन्नरों को भी अपनी कथा में बुलाया है.
रामकथा में एक भी रुपया न लेने की घोषणा करने वाले मोरारी बापू गुजरात का भूकंप हो या बिहार में आई बाढ़ हो या फिर पुलवामा हमला हो, वो सहायता करने के लिए हमेशा आगे आए हैं.
कैलाश पर्वत की तलहटी, कच्छ की दरगाह के पास और बनारस में श्मशान घाट के पास रामकथा का आयोजन करने वाले मोरारी बापू ने ब्रिटन, अमरीका, ब्राज़ील, ऑस्ट्रेलिया, इसराइल, जापान, श्रीलंका, इंडोनेशिया, ओमान, ज़ांबिया, तंज़ानिया में भी रामकथा की है.
दुनियाभर में उन्हें चाहने वाले लोग हैं. हिंदू संत होने के बावजूद मोरारी बापू अपनी रामकथा में बौद्ध, जैन और ईसाई धर्म की बात करने से हिचकिचाते नहीं हैं.
उनकी ताक़त का पता तब चलता है जब अपने आश्रम के कार्यक्रम में 'राम के नाम' डॉक्यूमेंट्री बनाने वाले आनंद पटवर्धन को बुलाते हैं और मोदी सरकार की कड़ी आलोचना करने वाले और रेमन मैग्सेसे अवॉर्ड प्राप्त करने वाले रवीश कुमार को भी बुलाते हैं.
घर वापसी और 'वेटिकन से आने वाले लोग गुजरात में धर्म परिवर्तन कराते हैं', ऐसा कहने वाले मोरारी बापू साल 2014 में रोम में रामकथा का आयोजन करते हैं.
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राम मंदिर और मोरारी बापू

राम की कथा सुनाने वाले और ख़ुद को राम का भक्त कहने वाले मोरारी बापू अयोध्या में राम मंदिर बनाने की अनेक बार बात कह चुके हैं.
लेकिन संवाद और स्वीकृति को जीवन में अपनाने की बात कहने वाले बापू अब विश्व हिंदू परिषद, बीजेपी और बजरंग दल की तरह राम मंदिर के लिए आक्रमक नहीं हैं.
पर एक समय था, जब सौम्य दिखने वाले मोरारी बापू राम मंदिर के लिए उकसाने वाले बयान दिया करते थे.
राम कथा से राम मंदिर की बात को लेकर समाज में जाने वाले बापू ने साल 1992 में राम की पादुका की पूजा के बाद कहा था, "हमने राम रथ यात्रा का आयोजन किया (आडवाणी के नेतृत्व में) हमने मंदिर का शिलान्यास भी कर दिया, हमने पादुका का पूजन भी कर लिया. इस तरह से तीन सत्य पूर्ण हो गये. लेकिन सरकार इसको सकारात्मक तरीके से नहीं ले रही है."
उनका कहना था, "ये सच्चाई के साथ क्रूर मज़ाक है और जब सच्चाई को हंसी में उड़ाने की बात होती है तब चौथे सत्य का उपयोग करना ज़रूरी हो जाता है. और ये सत्य है, ताक़त. अब देश के युवाओं के लिए बलिदान करने का समय आ गया है. शहादत को स्वीकार करो, जब तक राम मंदिर का निर्माण न हो तब तक लड़ते रहो. समय की मांग है कि हिंदुओं को एक होना होगा." (कास्ट एंड डेमॉक्रेटिक पॉलिटिक्स इन इंडिया. P:304)
साल 1989 में वीएचपी के साथ रहकर राम मंदिर के लिए शिला पूजन करने वाले बापू लगभग पच्चीस साल बाद रजत शर्मा की आप की अदालत में कहते हैं कि राम मंदिर बनना चाहिए, लेकिन मंदिर के बाहर शोरशराबा करके कुछ नहीं हो सकता.
नीलकंठ विवाद में भी कभी उग्र दिखने वाले बापू इसी कार्यक्रम में कहते है, "मैं रैली निकालूं, नारेबाज़ी करूं, ये मेरे स्वाभाव में नहीं है. राम मंदिर बनना चाहिए लेकिन जितना हो सके उतनी समझदारी से, स्वीकार होना चाहिए."
मोरारी बापू के स्वभाव के बारे में बात करते हुए रमेश ओझा कहते हैं, "उनमें धीरे-धीरे बदलाव आया. जैसे-जैसे वक़्त गुज़रता गया, वे धर्म की राजनीति से दूर होते गए."
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गुजरात दंगे में मोरारी बापू की भूमिका

साल 2002. गुजरात में कारसेवकों को ट्रेन में ज़िंदा जला देने के बाद दंगे भड़क गए थे.
कई लोगों की जान लेने वाले इन दंगों में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका को लेकर भी सवाल उठे थे.
दंगों में मोरारी बापू के साथ शांति यात्रा में मौजूद रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश शाह कहते हैं, "उस समय मोरारी बापू ने कहा था कि कुछ चीज़ें नहीं करनी चाहिए. लेकिन सामान्य रूप से देखा जाए तो ऐसा लगता था कि उनका रुख़ सत्ता की तरफ़ ही था. मोरारी बापू ने दंगे के समय अहमदाबाद के मुस्लिम इलाक़े में एक शांति सभा का आयोजन किया था. हमने जब शांति यात्रा का आयोजन किया तो उसमें मोरारी बापू भी आए थे, हमारे साथ चले थे."
वो बताते हैं, "लेकिन सब कुछ करने के बाद भी मोरारी बापू का इम्प्रेशन ऐसा रहा कि वो सत्ता की तरफ़ झुकाव रखते हैं. लेकिन बापू ने जो क़दम उठाया था, वो उनके अनुयायियों को रास नहीं आने वाला था. ऐसा इसलिए कि अहमदाबाद में जिस इलाक़े से शांति यात्रा निकली थी, वो उनके हिंदू समर्थकों का इलाक़ा था. जहां सवर्ण और ख़ासतौर पर पाटीदार समाज के लोग रहते थे."
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Image caption2002 दंगों के दौरान अहमदाबाद में शांति यात्रा निकालते मोरारी बापू
असीमानंद, मोरारीबापू और घरवापसी
गुजरात के 2002 के दंगों के दाग अभी धुले भी नहीं थे, नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री की दूसरी टर्म के लिये चुनाव प्रचार में व्यस्त थे. उस समय गुजरात के डांग ज़िले में शबरीधाम बनाने की हलचल शुरू हो चुकी थी.
'द कैरावन बुक ऑफ प्रोफ़ाइल' में सुप्रिया नायर लिखती हैं, "अक्टूबर, 2002 में असीमानंद ने गुजरात के डांग में शबरीधाम बनाने का काम शुरू किया था.
हिंदू मान्यता के अनुसार ये वो जगह है, जहां चौदह साल के वनवास के दौरान राम शबरी से मिले थे और उनके हाथों से जूठे बेर खाए थे.
द हिंदू और कैरावन की रिपोर्ट के अनुसार यहां से मोरारी बापू और असीमानंद की घरवापसी की कथा शुरू होती है.
यहां मंदिर और आश्रम बनाने के लिए ज़रूरी रक़म जुटाने के लिए असीमानंद ने मोरारी बापू की राम कथा का आयोजन किया था.
'द कैरावन बुक ऑफ प्रोफ़ाइल' में किए गए दावे के अनुसार उस समय नरेंद्र मोदी दूसरे कार्यकाल के लिए चुनाव प्रचार में व्यस्त थे और चुनाव प्रचार के बीच में वो मोरारी बापू से मिलने के लिए यहां आये थे.
सुप्रिया नायर ने लिखा है कि रामकथा करते वक्त मोरारी बापू ने शबरीधाम में कुंभ के आयोजन की इच्छा जताई थी.
फ्रंटलाइन मैगज़ीन की रिपोर्ट के मुताबिक़ मोरारी बापू ने कुंभ के आयोजन की बात करते हुए कहा था, "यहां कुंभ का आयोजन होना चाहिए क्योंकि इसी जगह पर शबरी ने राम को बेर खिलाए थे."
इसी रिपोर्ट में लिखा गया है कि आमतौर पर भारत में सिर्फ़ चार कुंभ होते हैं लेकिन विश्व हिंदू परिषद ने मोरारी बापू की इच्छा को देखते हुए गुजरात के डांग में पांचवां कुंभ आयोजित किया था.
सुप्रिया नायर लिखती हैं कि साल 2006 में असीमानंद के आश्रम से 6 किलोमीटर की दूरी पर शबरीकुंभ की शुरुआत हुई.
इस कुंभ में प्रसिद्ध लोग आए थे, जो एक स्टेज पर थे. यहां मोरारी बापू के साथ आसाराम, जयेन्द्र सरस्वती और साध्वी ऋतंभरा भी थीं. उस समय के वीएचपी के फ़ायर ब्रान्ड नेता प्रवीण तोगड़िया और अशोक सिंघल भी थे. इन सब लोगों के साथ स्टेज पर भाजपा के नेता भी थे.
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक़ मोरारी बापू ने यहां कहा था कि ईसा मसीह भी धर्म परिवर्तन के विरोध में थे.
उन्होंने कहा, "आज बहुत लोग वेटिकन से यहां आते हैं और धर्म परिवर्तन के काम में लगे हुए हैं. लेकिन जब हम घरवापसी कराते हैं तो इसमें ग़लत क्या है? ये कार्यक्रम शांति ओर सहिष्णुता के लिए है, जो हिंदुत्व का ही एक हिस्सा है. इससे किसी को डरने की ज़रूरत नहीं है."
सुप्रिया नायर के मुताबिक़ असीमानंद ने मोरारी बापू, मोदी और आरएसएस के नेताओं की मदद से डांग में हाई प्रोफ़ाइल घरवापसी की शुरुआत कराई थी.
इसके बाद असीमानंद पर अजमेर दरगाह, मक्का मस्जिद और समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट को लेकर आरोप लगे थे और उनकी गिरफ़्तारी भी हुई. शबरीधाम की परिकल्पना अधूरी रह गई. अभी असीमानंद इस आरोपों से बरी कर दिए गए हैं.
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महुवा, किसान आंदोलन और मोरारी बापू

साल 2008. नरेंद्र मोदी दंगे के साये से आगे निकलकर विकास के रास्ते पर चल पड़े थे.
ये वो समय था जब गुजरात में बड़ी-बड़ी कंपनियों के लिए रेड कार्पेट बिछाई जा रही थी.
जब बिज़नेसमेन गुजरात के विविध इलाकों पर अपनी नज़र ठहरा रहे थे तब मोरारी बापू की जन्मभूमि से ही मोदी सरकार और निरमा के सीमेंट प्लांट के विरोध में किसानों ने अपना आंदोलन शुरू किया था.
इस आंदोलन के नेता थे बीजेपी से ही विधायक रह चुके कनुभाई कलसरिया. ये आंदोलन देखते ही देखते जन आंदोलन में बदल गया.
नरेंद्र मोदी की सरकार के ख़िलाफ़ ये सबसे सफल कहा जाने वाला आंदोलन था. मोरारी बापू यहां के ही थे. इसलिए किसानों की इच्छा थी कि मोरारी बापू की पहुंच नरेंद्र मोदी तक है तो वो आंदोलन का साथ दें.
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दरअसल निरमा के करसनभाई पटेल महुवा ज़िले के गांवों में सीमेंट प्लांट लगाना चाहते थे और किसान इसका विरोध कर रहे थे.
इस आंदोलन की लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची थी. वहां किसानों ने इस लड़ाई को जीत लिया और निरमा को सीमेंट प्लांट की योजना रद्द करनी पड़ी.
इस बारे में बीबीसी गुजराती से बात करते हुए आंदोलन के नेता कनुभाई ने बताया कि बापू ने आंदोलन से एक तरह की दूरी ही रखी.
कलसरिया ने कहा, "जब ये आंदोलन चल रहा था तब मैं दो-तीन बार बापू से मिला था, एक बार बापू ने मुझे सामने से बुलाया था. आंदोलन के बारे में हमने बात की तो बापू ने कहा कि इसमें संवाद के ज़रिये कुछ नहीं किया जा सकता क्या? कोई बीच का रास्ता नहीं निकाल सकते? बापू का आग्रह इसी तरह का था."
"जब गुजरात हाइकोर्ट में हमारा केस चल रहा था और फैसला अभी बाकी था तब बापू ने मुझे बुलाया. मोरारी बापू ने मुझे कहा कि करसनभाई (निरमा के मालिक) साथ बात करके कोई बीच का कोई रास्ता निकालने की कोशिश की जाए. मैंने बापू को कहा करसनभाई के साथ चर्चा करने में मुझे कोई दिक्कत नहीं है. देखते हैं, चर्चा कर लेते हैं."
"मैंने बापू से कहा कि आपको मध्यस्थता करनी पड़ेगी. बापू ने हां कही और मुझसे अनुकूल समय भी पूछा. बाद में करसनभाई बापू के आश्रम में आए लेकिन मुझे कोई ख़बर नहीं दी गई. करसनभाई मोरारी बापू के साथ चर्चा करके निकल गए."
"दूसरे दिन बापू ने मुझे बुलाया और कहा कि करसनभाई आए थे लेकिन उनकी दलील थी कि अगर कनुभाई हमारी बात मानेंगे ही नहीं तो फिर चर्चा का क्या मतलब."
कलसरिया का कहना है कि किसानों की इच्छा थी कि बापू उनको सपोर्ट करें लेकिन मोरारी बापू इसको राजनीतिक मुद्दा करार देकर आंदोलन से अलग ही रहे.
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Image captionसाल 2006 में मोरारी बापू और नरेंद्र मोदी

अहमद पटेल, मोरारी बापू और मोदी

साल 2019 के लोकसभा चुनाव को सिर्फ़ दो महीने बाकी थे. देशभर में चुनाव की तैयारियां चल रही थीं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनता के पास अपने दूसरे कार्यकाल के लिए वोट मांगने जा रहे थे.
उसी समय मोरारी बापू ने रजत शर्मा के बहुचर्चित शो में एक सवाल के जवाब में कहा, "मैं कई बार कह चुका हूं और फिर से दोहरा रहा हूं कि राजनीति में लोग साम-दाम-दंड-भेद करते रहते हैं. वो लोग जानें लेकिन हमारे प्रधानमंत्री की राष्ट्रभक्ति पर कोई ऊंगली नहीं उठा सकता."
इस कार्यक्रम में मोरारी बापू ने ये भी कहा कि लोगों को अपनी अंतरआत्मा की आवाज़ पर वोट देना चाहिए.
राजनीति से दूर रहने वाले मोरारी बापू की नरेंद्र मोदी से मुलाक़ात तब भी हुआ करती थी जब वह गुजरात के मुख्यमंत्री थे और अब जब वह प्रधानमंत्री के पद पर हैं.
दूसरी तरफ़ मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद यूनेस्को के एक कार्यक्रम में मोरारी बापू को याद करते हैं. उस समय मोरारी बापू पेरिस में रामकथा कर रहे थे.
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मोदी ने कहा, "हाल के दिनों में पेरिस राम में रम गया है. पूज्य बापू की वजह से सब लोग राम की भक्ति में लीन हो गए हैं. जो इन्द्र के सामने भी अपनी कथा का समय बदलते नहीं उन्होंने (मोरारी बापू) आज नरेंद्र मोदी के लिए कथा का समय बदल दिया. इसका कारण बापू की रगरग में रामभक्ति भी है और राष्ट्रभक्ति भी है."
ऊपर के उदाहरणों से मोदी ओर मोरारी बापू के संबंधों को समझने में आसानी होगी.
गुजरात के वरिष्ठ पत्रकार राज गोस्वामी ने बीबीसी गुजराती से कहा, "मोरारी बापू ने जनता की ओर से सरकार से कभी सवाल नहीं पूछा है और न ही सरकार की ग़लतियों के बारे में कभी कुछ कहा है."
राज गोस्वामी कहते हैं, "वैसे तो वो जनता के संत हैं लेकिन कुछ चीज़ों के बारे में चुप रहते हैं. आमतौर पर उनकी छवि सरकार और सत्ता समर्थक रही है."
बात साल 2004 की है. मुकेश अंबानी और उनके भाई अनिल अंबानी के संबंधों में दरार आ गई थी. नवंबर का महीना था और मुकेश अंबानी की मां कोकिला बेन मोरारी बापू के घर उनसे मिलने जाती हैं.
लगभग दो घंटे तक मोरारी बापू के साथ मुलाक़ात के बाद कोकिला बेन आश्रम से निकलती हैं. इसके साथ ही मोरारी बापू दोनों भाइयों के बीच मध्यस्थता करेंगे, ऐसी चर्चा शुरू हो जाती है.
इससे पहले अक्टूबर महीने में मोरारी बापू ऐसा बयान दे चुके थे कि कोकिला बेन अगर चाहेंगी तो वो अंबानी परिवार को सलाह देंगे.
अंबानी परिवार के आध्यात्मिक गुरु के तौर पर देखे जाने वाले मोरारी बापू ने एक बार पत्रकारों के साथ बातचीत में कहा था कि उन्होंने दोनों पक्षों को कोई नुक़सान ना हो, इस प्रकार की सलाह दी थी.
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक़ कोकिला बेन दोनों पुत्रों के बीच सुलह के लिए मोरारी बापू से एक से ज़्यादा बार मिली थीं.
भाजपा के पक्ष में बयान देने के आरोपों का सामना कर चुके मोरारी बापू ने कांग्रेस के नेता और सोनिया गांधी के सलाहकार अहमद पटेल के अस्पताल के लिए फ़ंड इकट्ठा करने के लिए भी रामकथा की थी.
बात 1981 की है जब अहमद पटेल हॉस्पिटल बनवाना चाहते थे तब रामकथा करके मोरारी बापू ने लगभग 4 लाख रुपये की राशि इकट्ठा करने में मदद की थी.
ये हॉस्पिटल तब विवाद में आया जब गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने विधानसभा चुनाव से पहले आरोप लगाया कि अहमद पटेल के अस्पताल में काम करने वाले एक व्यक्ति को इस्लामिक स्टेट से संबंध रखने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया है. इसलिए अहमद पटेल को इस्तीफ़ा दे देना चाहिए.
लेकिन अहमद पटेल की तरफ़ से इन आरोपों को तत्काल नकार दिया गया था.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार अहमद पटेल जब गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष थे, तब मोरारी बापू ने फ़ंड इकट्ठा करने में मदद की थी.
मोरारी बापू की औद्योगिक जगत में इतनी पहुंच है कि वो निरमा कंपनी के मालिक को अपने यहां बुला सकते हैं और अंबानी को भी सलाह दे सकते हैं.
सूरत डायमंड के बिजनेसमैन उनकी कथा का आयोजन करते हैं और अफ्रीका में भी बिजनेसमैन बापू को राम कथा के लिए बुलाते हैं. इस तरह देश और विदेश के बिजनेस मैन तक मोरारी बापू की पहुंच है.

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