क्या ‘लव जिहाद’ पर क़ानून लाने के बहाने

 

क्या ‘लव जिहाद’ पर क़ानून लाने के बहाने मुसलमानों के सामाजिक बहिष्कार की साज़िश हो रही है

जब ख़ुद केंद्र सरकार मान चुकी है कि लव जिहाद नाम की कोई चीज़ है ही नहीं, तो फिर कुछ राज्य सरकारों को उस पर क़ानून लाने की क्यों सूझी?

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

उत्तर प्रदेशहरियाणा और कर्नाटक की सरकारों ने घोषणा की है कि वे ‘लव जिहाद’ पर काबू पाने के लिए कानून लाने जा रही हैं.

एक बयान में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने तो अजीबोग़रीब चेतावनी दे डाली है कि जो लोग ‘छद्म वेश में, चोरी-छुपे, अपना नाम छिपाकर, या अपना स्वरूप छिपाकर बहन, बेटियों की इज्ज़त के साथ खिलवाड़ करते हैं, अगर वे सुधरे नहीं तो ‘राम नाम सत्य है’ की यात्रा अब निकलने वाली है.’

देश में ‘लव जिहाद’ की बात शुरू कैसे हुई

2009 में ‘हिंदूजागृति’ (hindujagruti.org) नाम की वेबसाइट ने दावा किया था कि केरल में मुस्लिम यूथ फोरम नाम के संगठन ने ‘लव जिहाद’ का एक पोस्टर लगवाया है, जिसमें कथित तौर पर हिंदू लड़कियों को ‘प्रेमजाल में फंसा कर’ उनका धर्मांतरण करवाने और फिर उनसे शादी कर लेने की बात की गई है. फिर ऐसी ही बात दूसरे राज्यों से भी उठाई गई.

‘हिंदूजागृति’ ने पांच मुस्लिम वेबसाइट्स का भी ज़िक्र किया था कि उनमें ऐसी बात की गई है. केरल पुलिस ने इस पर विस्तृत जांच पड़ताल की और ‘लव जिहाद’ के आरोप को झूठा पाया.

दो वर्षों की जांच के बाद केरल हाईकोर्ट के जस्टिस एम. शशिधरन नाम्बियार ने जांच को बंद करने का आदेश देते हुए कहा कि ‘हमारे समाज में अंतर-धर्म विवाह सामान्य बात है और उसमें कोई अपराध नहीं है.’

‘लव जिहाद’ की मूल अवधारणा ही सरासर गैर कानूनी है

मज़े की बात ये है कि हिंदू कट्टरपंथी संगठन ‘लव जिहाद’ का राग तब भी अलापे जा रहे हैं जब कि अभी फरवरी में ही खुद भारत सरकार ने संसद में कहा है कि वर्तमान कानूनों में ‘लव जिहाद’ जैसी कोई चीज कहीं भी परिभाषित नहीं है और किसी केंद्रीय जांच एजेंसी के पास ऐसा कोई केस नहीं है.

याद होगा कि 2018 के हादिया मामले में नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी ने हिंदू कट्टरपंथियों की हां में हां मिलाते हुए ये आरोप लगाया था कि हादिया ब्रेनवाशिंग (इनडॉक्ट्रिनेशन) और ‘साइकोलॉजिकल किडनैपिंग’ जैसी काल्पनिक चीज का शिकार थी.

सुप्रीम कोर्ट ने इसे सिरे से खारिज करते हुए कहा कि आस्था और विश्वास के मसले संविधान द्वारा प्रदत्त स्वतंत्रताओं के मूल में हैं और सरकार या समाज की पितृमूलक व्यवस्था उसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती हैं.

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था कि जीवनसाथी चुनने का अधिकार संपूर्ण और निरपेक्ष होता है और आस्था उसमें आड़े नहीं आ सकती.

कुछ नेताओं द्वारा इलाहाबाद हाईकोर्ट के हाल के दिनों में प्रियांशी केस में दिए गए फैसले को जानबूझकर अप्रासंगिक होने के बावजूद यूं पेश किया जा रहा है मानो हाईकोर्ट ने अंतर-धर्म विवाहों को अवैध ठहरा दिया हो.

इस केस में एक मुस्लिम लड़की ने 29 जून को हिंदू धर्म स्वीकार किया था और 31 जुलाई को एक हिंदू युवक से शादी कर ली. उन दोनों ने हाईकोर्ट से प्रतिवादियों से सुरक्षा के आदेश की प्रार्थना की थी.

हाईकोर्ट ने कहा कि धर्मांतरण केवल विवाह के उद्देश्य से किया गया है और हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया. इस सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट के दो अन्य फैसलों को भी तोड़मरोड़ कर प्रस्तुत किया जा रहा है.

लिली थॉमस (2000) और सरला मुद्गल (1995) के केसों में हिंदू पतियों ने दूसरी शादी करने की नीयत से इस्लाम स्वीकार कर लिया था. कोर्ट ने कहा कि धर्म परिवर्तन उनका अधिकार है लेकिन हिंदू मैरिज एक्ट के तहत जब तक उनका पहली पत्नी से विधिवत विवाह विच्छेद नहीं हो जाता, तब तक वे दूसरी शादी नहीं कर सकते.

इस प्रसंग में कोर्ट ने कहा था कि धर्म परिवर्तन तब वैध होगा जब कि उन्होंने अपनी आस्था और विश्वास में भी परिवर्तन किया हो. केवल दूसरी शादी की नीयत से इतना कह देना मात्र पर्याप्त नहीं है कि मैंने इस्लाम कुबूल किया.

ध्यान देने की बात है कि कोर्ट ने ये नहीं कहा था कि हर समय और हर प्रकार के धर्म परिवर्तन के लिए अपनी आस्था और विश्वास में परिवर्तन का कोई सबूत देना आवश्यक है. विश्वास मन के अंदर की वस्तु है और उसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं दिया जा सकता.

कोर्ट के लिए आप सच्चा या झूठा हलफनामा दायर कर सकते हैं लेकिन आपके मन में क्या है वो तो सिर्फ आप ही जानते हैं.

नवंबर 2019 में उत्तर प्रदेश के लॉ कमीशन ने सरकार को एक रिपोर्ट दी, जिसमें उन्होंने अन्य बातों के अलावा धर्मांतरण से संबंधित एक नए कानून का मसौदा भी दिया है.

सिद्धांततः यह मसौदा आठ अन्य राज्यों में मौजूद ‘फ्रीडम ऑफ रिलीजन’ या एंटी-कन्वर्शन कानूनों के नाम से प्रचलित कानूनों के समान है.

ये आठ राज्य हैं, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, और उत्तराखंड. मूलतः ये कानून ज़बरदस्ती, धोखाधड़ी से या प्रलोभन देकर किए जाने वाले धर्मांतरण को रोकने के लिए बनाए गए थे.

1977 में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने स्टैनिसलॉस केस में मध्य प्रदेश और ओडिशा के उपरोक्त कानूनों को वैध ठहराया था. उसमें कोर्ट ने एक बारीक कानूनी मुद्दा स्पष्ट किया था कि धर्म का प्रचार करना आपका अधिकार है लेकिन धर्मांतरण करना अधिकार नहीं है- संबंधित व्यक्ति की अपनी इच्छा होनी चाहिए.

खैर, अब उत्तर प्रदेश लॉ कमीशन के अध्यक्ष जस्टिस आदित्यनाथ मित्तल स्वयं कह रहे हैं कि यदि सरकार अंतर-धर्म विवाह रोकने मात्र के उद्देश्य से कानून लाती है तो वह गैर कानूनी होगा. चूंकि अभी सरकार कानून लाई नहीं है, इसलिए उस विषय में कुछ और कहने की आवश्यकता नहीं है.

इस प्रसंग में कानपुर में पुलिस द्वारा एक स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम का गठन भी निंदनीय है. एनडीटीवी द्वारा की गई एक पड़ताल में अनेक हिंदू लड़कियों ने डंके की चोट पर कैमरे पर कहा कि उन्होंने अपनी मर्जी से मुस्लिमों से शादी की है और उन पर न कोई दबाव था न कोई प्रलोभन.

अब अगर उनके घर वाले कहते हैं कि कोई गड़बड़ थी तो उसका सीधा उपाय है कि लड़कियों से न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने बयान ले लिया जाता या नोटरी पर हलफनामा मांग लिया जाता. केस दर्ज करने का उद्देश्य खाली मुसलमान लड़कों और उनके परिवारों को परेशान करना है.

‘लव जिहाद’ का हौवा खड़ा करने के पीछे निहित उद्देश्य क्या हैं?

प्रश्न ये उठता है कि जब खुद केंद्र सरकार ही मान चुकी है कि लव जिहाद नाम की कोई चीज है ही नहीं तो फिर कुछ राज्य सरकारों को उस पर कानून लाने की क्यों सूझी?

कट्टरपंथी हिंदू संगठन इस पर आधिकारिक रूप से कुछ बोलने से बचते हैं. लेकिन उनकी सांप्रदायिक विद्वेष फैलाने वाली विचारधारा का काफी हद तक सही अनुमान उनके नेताओं के बयानों (जिनके लिए वे बाद में कहेंगे कि वे उन्होंने अपनी निजी हैसियत से दिए थे), सोशल मीडिया पर व्याप्त संदेशों और कितनी ही अनाधिकारिक वेबसाइट्स की सामग्री से लगाया जा सकता है.

सीधे शब्दों में उनका मानना है कि ‘लव जिहाद’ मुसलमानों का देश के विरुद्ध एक षड्यंत्र है.

उनकी कल्पना में इसके माध्यम से मुसलमान हिंदुओं को यह बताना चाहते हैं कि वे अभी भी हिंदुओं की स्त्रियों को ‘उठा ले जाने’ में सक्षम हैं-अगर मध्य युग की तरह युद्धों में पराजित करके नहीं, तो प्रेम जाल में फंसा के ही सही!

दूसरा, यह हिंदू स्त्रीत्व का अपमान है कि मुसलमान उनका ‘उपभोग’ करें. ये उस प्राचीन अवधारणा का अर्वाचीन रूप है जिसमें यह माना जाता था कि ‘म्लेच्छ’ हिंदू स्त्रियों को ‘भ्रष्ट’ कर देते हैं.

तीसरा, ये हिंदू पुरुषत्व के मुंह पर तमाचा है कि उनकी स्त्रियों को सुख की तलाश अपने समुदाय के बाहर करनी पड़ रही है, चाहे वह प्यार की तलाश हो या यौन सुख की.

चौथा, हिंदू लड़कियों से शादी करके वे हिंदुओं की कीमत पर मुसलमानों की आबादी बढ़ाना चाहते हैं क्योंकि तब उतनी लड़कियां हिंदू संततियां उत्पन्न करने के लिए उपलब्ध नहीं होंगी और इस प्रकार वे धरती पर मुस्लिम जीन्स का विस्तार चाहते हैं.

पांचवां, अगर यह बेरोकटोक चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब देश में मुसलमानों की आबादी हिंदुओं से ज्यादा हो जाएगी और हिंदू अपने ही देश में अल्पसंख्यक हो जाएंगे.

कहने की आवश्यकता नहीं कि ऐसे विचार राष्ट्र और समाज के हितों के विरुद्ध सांप्रदायिक भावनाएं भड़काने का गर्हित कार्य कर रहे हैं और इसलिए इनका तत्काल कठोरतापूर्वक शमन आवश्यक है.

यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि इस पूरे प्रकरण में जिहाद शब्द का प्रयोग करके जनता को डराया और बरगलाया दोनों जा रहा है.

हालांकि ‘जिहाद फ़ी सबिलिल्लाह’ नामक धार्मिक अवधारणा का शुभ अर्थ होता है, लेकिन सामान्यतया लोग उसे आतंकवादी गतिविधियों से जोड़ते हैं.

जिहाद शब्द के ऐसे प्रचलित गलत उपयोग के चलते 2010 में तत्कालीन गृह मंत्री पी. चिदंबरम को अपने वक्तव्य में सुधार करने को बाध्य होना पड़ा था क्योंकि एक मुस्लिम संगठन ‘तमिलनाडु मुस्लिम मुनेत्र कड़गम’ ने उस पर ऐतराज़ किया था.

‘लव जिहाद’ की कहानी में तथ्यात्मक गलतियां

‘लव जिहाद’ की कहानी केरल से शुरू हुई थी. इसलिए उसकी पोल भी केरल से ही खोलते हैं. केरल में 2012 में सरकार ने विधानसभा को आंकड़े दिए कि 2006-12 के दौरान 2,667 हिंदू लड़कियों ने इस्लाम धर्म स्वीकार किया था.

इसका मतलब है कि साल में हद से हद 500-1,000 मुस्लिम लड़कों की हिंदू लड़कियों से शादी हुई होगी.

अगर यह मानें कि देश में साल में लगभग एक करोड़ शादियां होती हैं, तब देश के मुकाबले केरल की आबादी के हिसाब से राज्य में 2,76000 शादियां होती हैं. यानी अंतर-धर्म विवाह, कुल विवाहों का मात्र 0.36% हैं. इनसे भला क्या अंतर पड़ सकता है?

केरल में 2001-11 के दौरान मुस्लिम आबादी साल में लगभग एक लाख की दर से बढ़ी थी. अंतर-धर्म विवाह इस बढ़ोतरी का मात्र 1% हिस्सा हैं. अब ये तो हिंदू कट्टरपंथी संगठनों को बताना चाहिए कि इसमें चिंता का विषय क्या है?

यह विषवमन राष्ट्र के भविष्य के लिए अशुभ लक्षण है

सरकारों को किसी काल्पनिक वस्तु पर कानून बनाने का अधिकार नहीं है. अगर ऐसे कानून बनाए जाते हैं तो यह विधायी अधिकारों का दुरुपयोग होगा.

‘लव जिहाद’ जैसी काल्पनिक चीज की चर्चा करना भी विवाह जैसी कानून सम्मत व्यवस्था का सांप्रदायीकरण और अपराधीकरण दोनों है.

यह अनैतिक है क्योंकि यह प्रेम जैसी पवित्र भावना को गैर कानूनी ठहराने का कार्य करता है.

यह पितृ मूलक और स्त्री-विरोधी है क्योंकि इसका तात्पर्य है कि हिंदू स्त्रियों को हिंदू पुरुष समाज की संपत्ति समझा जा रहा है, जिसमें उनकी ‘सेक्सशुएलिटी’ पर भी पुरुषों का अधिकार है.

यह स्त्रियों के लिए अपमानजनक है क्योंकि उसका मतलब है कि हिंदू स्त्रियां इतनी मूर्ख और आसानी से धोखा खा जाने वाली हैं कि वे अपने भले-बुरे का सही निर्णय कर पाने में भी सक्षम नहीं हैं और उन्हें कोई भी फुसलाकर उनका ‘उपभोग’ कर सकता है.

इस सारे वितंडावाद के पीछे निहित राजनीतिक उद्देश्य मुसलमानों के सामाजिक अलगाव को उस सीमा तक ले जाना है, जहां वह उनके सामाजिक बहिष्कार में बदल जाए या देश के सामाजिक इकोसिस्टम में उनकी कोई अर्थपूर्ण भागीदारिता ही रह न जाए.

ये लोग जानते हैं कि इस देश की तमाम पेचीदगियों के चलते वे भले ही अपनी कल्पना के ‘हिंदू राष्ट्र’ को एक राजनीतिक या भौतिक हकीकत न बना पाएं, लेकिन इस प्रकार के विषवमन से उसे एक सामाजिक यथार्थ तो बना ही सकते हैं. हमें इसी खतरे से सावधान रहना है.

(लेखक रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी हैं और केरल के पुलिस महानिदेशक और बीएसएफ व सीआरपीएफ में अतिरिक्त महानिदेशक रहे हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

The post क्या ‘लव जिहाद’ पर क़ानून लाने के बहाने मुसलमानों के सामाजिक बहिष्कार की साज़िश हो रही है appeared first on The Wire - Hindi.

http://thewirehindi.com/147504/love-jihad-laws-muslim-exclusion-ulterior-motive/


___________________________________________



Comments

Popular posts from this blog

"बक्श देता है 'खुदा' उनको, ... ! जिनकी 'किस्मत' ख़राब होती है ... !! वो हरगिज नहीं 'बक्शे' जाते है, ... ! जिनकी 'नियत' खराब होती है... !!"

Magar Momino pe Kushada hain rahen || Parashtish karen Shauq se Jis ki chahein