नीतीश कुमार को DGP पद पर क्यों पसंद आए गुप्तेश्वर पांडे? बिहार के नए डीजीपी का कार्यकाल एक फ़रवरी 2019 से शुरू होगा. स्थानीय मीडिया में बुधवार तक ये ख़बरें चल रही थीं कि डीजीपी की रेस में सबसे आगे आरके मिश्रा का नाम है. सुनील कुमार के नाम की भी चर्चा थी. लेकिन, सरकार ने मौजूदा डीजीपी के कार्यकाल के आख़िरी घंटों में गुप्तेश्वर पांडेय के नाम पर मुहर लगाई. यह भी पढ़ें | बिहार में बीजेपी क्यों मजबूर नज़र आ रही है: नज़रियाइमेज कॉपीरइटFACEBOOK/GUPTESHWAR PANDEY आख़िर क्या वजह रही कि जो नाम चर्चा में थे, वो पीछे रह गए और गुप्तेश्वर पांडेय को डीजीपी का पद मिल गया? बिहार के सीनियर क्राइम जर्नलिस्ट कुलदीप भारद्वाज इसकी तीन वजहें गिनाते हैं. कुलदीप बताते हैं, "पहला तो ये कि गुप्तेश्वर पांडेय की नेटवर्किंग बहुत मज़बूत है. नीतीश कुमार के चहेते तो हैं ही, धार्मिक और आध्यात्मिक रुझान उन्हें नागपुर (आरएसएस मुख्यालय) तक जोड़ता है." "दूसरा कि इन्होंने वाक़ई बिहार की पुलिसिंग को पीपल्स फ्रेंडली बनाने का काम किया, जिसकी चाहत मुख्यमंत्री भी रखते हैं. तीसरी महत्वपूर्ण वजह है कि इन्होंने नीतीश कुमार के ड्रीम प्रोजेक्ट पूर्ण शराबबंदी को ज़मीन पर उतारने में मदद की. डीजीपी का पद इनके इन्हीं कामों का इनाम है." यह भी पढ़ें | कुशवाहा के आने से बिहार में कितना ताक़तवर होगा 'महागठबंधन'इमेज कॉपीरइटFACEBOOK/GUPTESHWAR PANDEYलॉ एंड ऑर्डर गुप्तेश्वर पांडे द्वारा नशा मुक्ति और शराबबंदी को लेकर हाल के दिनों में चलाए गए अभियान की वजह से चर्चा में रहे थे. कुलदीप कहते हैं, "गुप्तेश्वर पांडे पोस्ट क्राइसिस मैनेजमेंट और साम्प्रदायिक हिंसा को संभालने में माहिर माने जाते हैं. हाल ही में औरंगाबाद में धार्मिक उन्माद से फैली हिंसा और झड़प के बाद उभरे तनाव की स्थिति पर काबू पाने के लिए उन्हें भेजा गया था. इसके पहले भी कई मौक़ों पर विशेष हालात में उनकी तलाश होती रही है और वे सफल भी रहे हैं." गुप्तेश्वर पांडेय ऐसे वक्त में बिहार पुलिस के मुखिया बनाए गए हैं, जब पुलिस पर लॉ एंड ऑर्डर बनाए रख पाने में असफल होने के आरोप लग रहे हैं. ख़बरों के मुताबिक़, पिछले 24 घंटे में बिहार के कई ज़िलों में हत्या के 10 वारदात हुई हैं. अपराध के बढ़ते ग्राफ पर विपक्ष सरकार को लगातार घेर रहा है. ऐसे में लोकसभा चुनावों में विपक्ष इस मुद्दे को भुना सकती है
बिहार पुलिस महकमे को जिस नियुक्ति का इंतजार था, वह गुरुवार को पूरा हो गया.
तमाम अटकलों के बीच बिहार सरकार के गृह विभाग कीY ओर से ये अधिसूचना जारी की गई कि बिहार पुलिस के नए डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे होंगे.
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की ओर से बिहार सरकार को जिन तीन अफसरों के नाम भेजे गए थे, उनमें गुप्तेश्वर पांडेय का नाम भी था.
एक दिन पहले तक मीडिया रिपोर्ट्स में ये कहा जा रहा था कि डीजीपी बनने की रेस में सबसे आगे आरके मिश्रा हैं.
लेकिन मौजूदा डीजीपी के. एस द्विवेदी के विदाई समारोह से महज कुछ घंटों पहले सरकार के गृह विभाग ने गुप्तेश्वर पांडे के नाम का ऐलान कर सबको चौंका दिया.
गुप्तेश्वर पांडे के पुलिस करियर में इससे पहले भी कई मौके रहे हैं, जब उन्होंने लोगों को चौंकाया है.
रिटायरमेंट लेने की कहानी
मार्च, 2009 को पांडे के एक फ़ैसले ने तब सबको चौंका दिया था, जब उन्होंने पुलिस सेवा से रिटायरमेंट ली थी.
इस रिटायरमेंट के बाद लोगों को हैरानी तब हुई, जब वो ठीक नौ महीने बाद पुलिस सेवा में फिर से शामिल हो गए.
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक़, राज्य में ये पहली बार हुआ था कि ख़ुद से रिटायरमेंट लिए एक अफसर को वापस सेवा में बहाल किया गया.
कहा जाता है कि गुप्तेश्वर पांडे बक्सर से चुनाव लड़ना चाहते थे और उन्हें टिकट का भरोसा भी मिला था लेकिन बाद में बात बनी नहीं और तब उन्होंने वापस सेवा में आने की अर्जी लगाई.
गुप्तेश्वर पांडेय 1987 बैच के बिहार कैडर के आईपीएस अधिकारी हैं. पैतृक घर बिहार के बक्सर जिले में ही है.
फिलहाल उनके पास डीजी ट्रेनिंग और डीजी पुलिस अकेडमी की ज़िम्मेदारी थी.
क्यों इंतजार था नए डीजीपी का?
दरअसल, इस बार बिहार में नए डीजीपी की नियुक्ति में पहली बार इतनी देर हुई है, क्योंकि यह नियुक्ति नए प्रावधानों के तहत की जानी थी.
नए प्रावधान की वजह से राज्य सरकार के पास सीमित अधिकार हैं.
सुप्रीम कोर्ट के गाइडलाइन के अनुसार, अब राज्य में जो भी डीजीपी बनेगा वो अगले दो सालों तक इस पद पर बना रहेगा.
इसलिए ज़रूरी था कि वैसे अधिकारी की नियुक्ति की जाए, जिसकी सेवा अवधि कम से कम दो साल बची हो.
सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन की वजह से भी संघ लोक सेवा आयोग और बिहार सरकार के बीच काफ़ी जिरह हुई.
पहले बिहार सरकार ने डीजी के पद पर तैनात बारह पुलिस अधिकारियों के नाम की सूची संघ लोक सेवा आयोग को भेजी.
आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के मद्देनजर में उन 12 नामों में से तीन नामों का चयन किया और फिर ये बिहार सरकार पर छोड़ दिया कि वो उनमें से किसको डीजीपी नियुक्त करती है.
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गुप्तेश्वर पांडेय के ही नाम पर मुहर क्यों?
बिहार के नए डीजीपी का कार्यकाल एक फ़रवरी 2019 से शुरू होगा.
स्थानीय मीडिया में बुधवार तक ये ख़बरें चल रही थीं कि डीजीपी की रेस में सबसे आगे आरके मिश्रा का नाम है. सुनील कुमार के नाम की भी चर्चा थी.
लेकिन, सरकार ने मौजूदा डीजीपी के कार्यकाल के आख़िरी घंटों में गुप्तेश्वर पांडेय के नाम पर मुहर लगाई.
- यह भी पढ़ें | बिहार में बीजेपी क्यों मजबूर नज़र आ रही है: नज़रिया
आख़िर क्या वजह रही कि जो नाम चर्चा में थे, वो पीछे रह गए और गुप्तेश्वर पांडेय को डीजीपी का पद मिल गया?
बिहार के सीनियर क्राइम जर्नलिस्ट कुलदीप भारद्वाज इसकी तीन वजहें गिनाते हैं.
कुलदीप बताते हैं, "पहला तो ये कि गुप्तेश्वर पांडेय की नेटवर्किंग बहुत मज़बूत है. नीतीश कुमार के चहेते तो हैं ही, धार्मिक और आध्यात्मिक रुझान उन्हें नागपुर (आरएसएस मुख्यालय) तक जोड़ता है."
"दूसरा कि इन्होंने वाक़ई बिहार की पुलिसिंग को पीपल्स फ्रेंडली बनाने का काम किया, जिसकी चाहत मुख्यमंत्री भी रखते हैं. तीसरी महत्वपूर्ण वजह है कि इन्होंने नीतीश कुमार के ड्रीम प्रोजेक्ट पूर्ण शराबबंदी को ज़मीन पर उतारने में मदद की. डीजीपी का पद इनके इन्हीं कामों का इनाम है."
लॉ एंड ऑर्डर
गुप्तेश्वर पांडे द्वारा नशा मुक्ति और शराबबंदी को लेकर हाल के दिनों में चलाए गए अभियान की वजह से चर्चा में रहे थे.
कुलदीप कहते हैं, "गुप्तेश्वर पांडे पोस्ट क्राइसिस मैनेजमेंट और साम्प्रदायिक हिंसा को संभालने में माहिर माने जाते हैं. हाल ही में औरंगाबाद में धार्मिक उन्माद से फैली हिंसा और झड़प के बाद उभरे तनाव की स्थिति पर काबू पाने के लिए उन्हें भेजा गया था. इसके पहले भी कई मौक़ों पर विशेष हालात में उनकी तलाश होती रही है और वे सफल भी रहे हैं."
गुप्तेश्वर पांडेय ऐसे वक्त में बिहार पुलिस के मुखिया बनाए गए हैं, जब पुलिस पर लॉ एंड ऑर्डर बनाए रख पाने में असफल होने के आरोप लग रहे हैं.
ख़बरों के मुताबिक़, पिछले 24 घंटे में बिहार के कई ज़िलों में हत्या के 10 वारदात हुई हैं.
अपराध के बढ़ते ग्राफ पर विपक्ष सरकार को लगातार घेर रहा है. ऐसे में लोकसभा चुनावों में विपक्ष इस मुद्दे को भुना सकती है.
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