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मुस्लिम नहीं, हिंदू बिगाड़ते हैं शांति व्यवस्था: राजीव धवन

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  28 नवंबर 2019 इस पोस्ट को शेयर करें Facebook   इस पोस्ट को शेयर करें WhatsApp   इस पोस्ट को शेयर करें Messenger   साझा कीजिए इमेज कॉपीरइट ANI Image caption अयोध्या मामले में मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम पक्षकार सुन्नी सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड की तरफ से पैरवी करने वाले वकील राजीव धवन ने हिंदू-मुस्लिम से जुड़े अपने बयान पर स्पष्टीकरण दिया है. राजीव धवन ने एक इंटरव्यू में कहा था कि मुस्लिम नहीं, बल्कि हिंदू शांति व्यवस्था बिगाड़ते हैं. अब उन्होंने अपने इस बयान को टीवी चैनलों की चालाकी बताया है. राजीव धवन ने कहा है, ''जब मैं हिंदू बोलता हूं तो उसका मतलब सभी हिंदू नहीं होता.'' उन्होंने अपने बयान को स्पष्ट करते हुए कहा, ''जब मैं कहीं पर हिंदू शब्द का प्रयोग कर रहा हूं तो उसका मतलब है संघ परिवार जो बाबरी मस्जिद मामले से जुड़ा है. कोर्ट में मैं लोगों को कहता था कि जो लोग बाबरी विध्वंस में शामिल थे वो हिंदू तालिबानी हैं. मैं संघ परिवार के उस ख़ास हिस्से की बात कर रहा हूं जो हिंसा और लिंचिंग से

अकाल तख़्त ने की आरएसएस पर बैन की मांग

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15 अक्तूबर 2019 इस पोस्ट को शेयर करें Facebook   इस पोस्ट को शेयर करें WhatsApp   इस पोस्ट को शेयर करें Messenger   साझा कीजिए इमेज कॉपीरइट EPA सिख धर्म से जुड़ी सबसे बड़ी धार्मिक संस्था अकाल तख़्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) पर देश को बांटने वाली गतिविधियां चलाने का आरोप लगाया है. उन्होंने आरएसएस पर तुरंत पाबंदी लगाने की मांग की है. उन्होंने कहा, "सभी धर्म और संप्रदाय के लोग भारत में रहते हैं और यही इस देश की खूबसूरती है. संघ का कहना है कि भारत को हिंदू राष्ट्र बनाएंगे, लेकिन ये देश के हित में नहीं है." इस बीच भारतीय जनता पार्टी के सिख नेता आरपी सिंह ने आरएसएस का बचाव किया है. उन्होंने बयान पर कड़ी आपत्ति ज़ाहिर करते हुए कहा है, "हिंदू कोई धर्म पंथ का नाम नहीं है, ये एक संस्कृति है. मैं अकाल तख़्त के जत्थेदार से निवेदन करूंगा कि आरएसएस का तीन सदस्य मंडल अल्पसंख्यक आयोग से मिला था और उन्होंने माना था कि सिख अलग धर्म है और इसका अलग अस्तित्व है." null आपको ये भी रोचक लगेगा 'दोनों पक्ष

जब हमारी रोजमर्रा की ज़िन्दगी में मिलने वाले लोग "हिन्दू" या "मुसलमान" नहीं होते तो फिर क्या वजह है कि "चुनाव" आते ही हम "हिन्दू" या "मुसलमान" हो जाते हैं ?

Farhad Khan एक आम आदमी सुबह जागने के बाद सबसे पहले टॉयलेट जाता है, बाहर आ कर साबुन से हाथ धोता है, दाँत ब्रश करता है, नहाता है, कपड़े पहनकर तैयार होता है, अखबार पढता है, नाश्ता करता है, घर से काम के लिए निकल जाता है, बाहर निकल कर रिक्शा करता है, फिर लोकल बस या ट्रेन में या अपनी सवारी से ऑफिस पहुँचता है, वहाँ पूरा दिन काम करता है, साथियों के साथ चाय पीता है, शाम को वापिस घर के लिए निकलता है, घर के रास्ते में एक सिगरेट फूँकता है, बच्चों के लिए टॉफी, बीवी के लिए मिठाई वगैरह लेता है, मोबाइल में रिचार्ज करवाता है, और अनेक छोटे मोटे काम निपटाते हुए घर पहुँचता है, अब आप बताइये कि उसे दिन भर में कहीं कोई "हिन्दू" या "मुसलमान" मिला ? क्या उसने दिन भर में किसी "हिन्दू" या "मुसलमान" पर कोई अत्याचार किया ? उसको जो दिन भर में मिले वो थे.. अख़बार वाले भैया, दूध वाले भैया, रिक्शा वाले भैया, बस कंडक्टर, ऑफिस के मित्र, आंगतुक, पान वाले भैया, चाय वाले भैया, टॉफी की दुकान वाले भैया, मिठाई की दूकान वाले भैया.. जब ये सब लोग भैया और मित्र हैं तो