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क्या प्रशासन और पुलिस को ऐसा करने का हक़ था? उत्तर प्रदेश सरकार इलाहाबाद हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट दोनों को ही ये बताने में नाकाम रही कि उसने लोगों के नाम, पते और तस्वीर के साथ होर्डिंग लगाने का फ़ैसला किस हक़ से किया? इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सोमवार को कहा, "एडवोकेट जनरल हमें इस बात का जवाब देने में नाकाम रहे हैं कि कुछ ही लोगों की निजी जानकारी होर्डिंग पर क्यों लगाई गई जबकि उत्तर प्रदेश में अपराध के गंभीर आरोपों का सामना कर रहे लाखों अभियुक्तों की निजी जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई." सीआरपीसी के तहत ऐसा करने का हक़ केवल कोर्ट के पास है. वारंट की तामील से बचने की कोशिश कर रहे अभियुक्त की हाजिरी सुनिश्चित कराने के लिए ही ऐसा किया जा सकता है. उत्तर प्रदेश पुलिस के पूर्व डीजी ब्रजमोहन सारस्वत कहते हैं, "आपने देखा होगा कि पुलिस थानों में जेबकतरों या अन्य वांछित अभियुक्तों की तस्वीर लगा दी जाती है. इस बारे में बॉम्बे हाई कोर्ट का एक आदेश है कि जिसमें डॉजियर्स रखने की छूट दी गई है लेकिन इनका सार्वजनिक तौर पर डिस्प्ले नहीं किया जा सकता है. इस पर मद्रास हाई कोर्ट भी एक आदेश में कह चुका है कि अभियुक्तों की तस्वीर नहीं ली जा सकती है." वे आगे कहते हैं, "दिल्ली में हुए दंगों के मामले में गृह मंत्री ने संसद में बयान दिया है कि वो इसके लिए दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस को सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुक़सान के मूल्यांकन और इसकी कितनी भरपाई की जाए, इसके लिए रिक्वेस्ट करेंगे. दरअसल प्रक्रिया यही है. हालांकि सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुक़सान की भरपाई के लिए पुलिस ऐक्ट में भी प्रावधान हैं और अतीत में इसका इस्तेमाल होता रहा है पर लखनऊ ज़िला प्रशासन और पुलिस ने जो किया उसमें प्रक्रिया का उल्लंघन हुआ है."

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लखनऊ में CAA विरोधी प्रदर्शनकारियों के पोस्टर्सः क्या पुलिस से ग़लती हुई विभुराज बीबीसी संवाददाता इस पोस्ट को शेयर करें Facebook   इस पोस्ट को शेयर करें WhatsApp   इस पोस्ट को शेयर करें Messenger   साझा कीजिए इमेज कॉपीरइट AFP VIA GETTY IMAGES नागरिकता संशोधन क़ानून विरोधी प्रदर्शनकारियों की तस्वीरों वाली होर्डिंग लखनऊ के चौक-चौराहों पर किस क़ानून के तहत लगाई गई थी? उत्तर प्रदेश सरकार इस सवाल का जवाब न तो इलाहाबाद हाई कोर्ट में दे पाई और न ही उसकी तरफ़ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सुप्रीम कोर्ट में दे पाए. सोमवार को पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट में और फिर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में ये बात तो साफ़ हो गई कि होर्डिंग लगाने के फ़ैसले को वाजिब ठहराने के लिए असल में कोई क़ानून है ही नहीं. तो क्या लखनऊ ज़िला प्रशासन और पुलिस ने अतिउत्साह में ऐसा किया? क्या उनके पास इसका हक़ था? ज़िला प्रशासन और पुलिस ने होर्डिंग पर जिन कथित प्रदर्शनकारियों की तस्वीरें, नाम और पते के साथ लिखकर टांग दी, उनकी प्राइवेसी और सुरक्षा का क्या होगा? क्या इस मामले में प्राकृतिक न्याय के सिद्धां

#Yogi सरकार को करारा झटका !

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यूपी CAA हिंसा: बिजनौर में रिकवरी नोटिस पर हाई कोर्ट ने लगाई रोक aajtak.in प्रयागराज,  8 March, 2020 बिजनौर में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए थे. बिजनौर प्रशासन ने उपद्रवियों के खिलाफ रिकवरी नोटिस जारी किया था. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने फिलहाल रिकवरी नोटिस पर रोक लगा दी है.   बिजनौर में भी हुए थे हिंसक विरोध प्रदर्शन बिजनौर प्रशासन ने जारी की थी रिकवरी नोटिस नागरिकता कानून के खिलाफ हुई थी हिंसा नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हिंसक विरोध प्रदर्शन के बाद एडीएम बिजनौर की ओर से जारी की गई रिकवरी नोटिस पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रोक लगा दी है. कोर्ट ने तोड़फोड़ के 4 आरोपियो के खिलाफ जारी नोटिस पर रोक लगाई है. 24 फरवरी को कोर्ट ने उपद्रवियों के खिलाफ नोटिस जारी किया था. इससे पहले मोहम्मद फैजान के मामले में दिए गए स्टे के आधार पर रोक लगाई है. इस याचिका को पहले की याचिका के साथ संबद्ध करने का आदेश दिया है. नागिरकता कानून के खिलाफ 19 और 20 दिसंबर को बिजनौर में हिंसा और तोड़फोड़ हुई थी. इस मामले की अगली सुनवाई 20 अप्रैल को होगी. हाई कोर्ट में