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कृषि क़ानूनों को वापस लेना मोदी सरकार का मास्टर स्ट्रोक या मजबूरी?

  मोदी सरकार ने नए कृषि क़ानून वापस लेने का फैसला लिया है. इसकी टाइमिंग की चर्चा खूब हो रही है. कुछ दिन बाद संसद का शीतकालीन सत्र शुरू होने वाला है. 26 नवंबर को किसान आंदोलन के एक साल पूरे होने पर किसानों ने आंदोलन को और तेज़ करने की घोषणा पहले से की हुई है. पाँच राज्यों में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले है, जिनमें उत्तर प्रदेश सबसे बड़ा राज्य है. जहाँ एक दिन पहले ही अमित शाह को पश्चिम उत्तर प्रदेश की कमान सौंपी गई थी. सोशल मीडिया पर इसके साथ ही 'मास्टर स्ट्रोक' ट्रेंड कर रहा है जिनमें दावा किया जा रहा है कि ये फ़ैसला एक मास्टर स्ट्रोक है. रिपोर्टः टीम बीबीसी आवाज़ः नवीन नेगी वीडियो एडिटः रुबाइयत बिस्वास ( बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप  यहां क्लिक  कर सकते हैं. आप हमें  फ़ेसबुक ,  ट्विटर ,  इंस्टाग्राम  और  यूट्यूब  पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)

नए कृषि कानून से बिहार के किसान बर्बाद होने लगे

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  बिहार में मंडी ख़त्म हुई तो बिहार के किसान बर्बाद हो गए Advertisement Ravish Kumar बिहार के किसानों को गेहूं और धान का दाम नहीं मिलता है. मक्का और दाल का भी नहीं मिलता है. अगर वहां मंडी होती तो कुछ प्रतिशत ही सही किसानों को MSP तो मिलती. Published : December 22, 2020 10:42 IST बेशक भाजपा इस बात पर गर्व कर सकती है कि बिहार का किसान उसे ही वोट करता है लेकिन वह यह साबित नहीं कर सकती है कि 2006 में बिहार में मंडी समाप्त कर बिहार का किसान अमीर हो गया. बिहार के किसानों को गेहूं और धान का दाम नहीं मिलता है. मक्का और दाल का भी नहीं मिलता है. अगर वहां मंडी होती तो कुछ प्रतिशत ही सही किसानों को MSP तो मिलती. लेकिन मंडी समाप्त करने के बाद MSP की हर संभावना समाप्त हो गई. किसान अपने दरवाज़े पर ही कम दाम में धान गेहूं बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा. उन्हें पता ही नहीं चला कि मंडी ख़त्म कर कैसे उन्हें ग़रीब बनाने का रास्ता खोल दिया गया ताकि वे खेती छोड़ कर दूसरे शहरों की तरफ़ पलायन करें और सस्ते दर में मज़दूरी के लिए उपलब्ध हो सकें. बिहार की ज़मीन उर्वर है. सिंचाई की भी ख़ास समस्या नहीं है. इसके बाद