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क्या ‘लव जिहाद’ पर क़ानून लाने के बहाने

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  क्या ‘लव जिहाद’ पर क़ानून लाने के बहाने मुसलमानों के सामाजिक बहिष्कार की साज़िश हो रही है 10:44 PM Nov 13, 2020 | निर्मल चंद्र अस्थाना जब ख़ुद केंद्र सरकार मान चुकी है कि लव जिहाद नाम की कोई चीज़ है ही नहीं, तो फिर कुछ राज्य सरकारों को उस पर क़ानून लाने की क्यों सूझी? (प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स) उत्तर प्रदेश ,  हरियाणा  और  कर्नाटक  की सरकारों ने घोषणा की है कि वे ‘लव जिहाद’ पर काबू पाने के लिए कानून लाने जा रही हैं. एक बयान में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने तो अजीबोग़रीब  चेतावनी दे डाली  है कि जो लोग ‘छद्म वेश में, चोरी-छुपे, अपना नाम छिपाकर, या अपना स्वरूप छिपाकर बहन, बेटियों की इज्ज़त के साथ खिलवाड़ करते हैं, अगर वे सुधरे नहीं तो ‘राम नाम सत्य है’ की यात्रा अब निकलने वाली है.’ देश में ‘लव जिहाद’ की बात शुरू कैसे हुई 2009 में ‘हिंदूजागृति’ (hindujagruti.org) नाम की वेबसाइट ने दावा किया था कि केरल में मुस्लिम यूथ फोरम नाम के संगठन ने ‘लव जिहाद’ का एक पोस्टर लगवाया है, जिसमें कथित तौर पर हिंदू लड़कियों को ‘प्रेमजाल में फंसा कर’ उनका धर्मांतरण करवाने और फिर उनसे शादी कर लेने की बात की गई

पुलवामा हमले के शहीद बीजेपी के लिए महज़ चुनावी मुद्दा: कांग्रेस

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27 फरवरी 2020 इस पोस्ट को शेयर करें Facebook   इस पोस्ट को शेयर करें WhatsApp   इस पोस्ट को शेयर करें Messenger   साझा कीजिए इमेज कॉपीरइट REUTERS कांग्रेस ने पुलवामा हमला मामले से जुड़ी एक lख़बर को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साधा है. पुलवामा हमले की साज़िश रचने के एक अभियुक्त को ज़मानत मिलने की  ख़बर  शेयर करते हुए कांग्रेस के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से एक ट्वीट किया गया है. इसमें कहा गया है कि 'एनआईए की अक्षमता के कारण पुलवामा के अभियुक्त को ज़मानत मिलना दिखाता है कि आतंकी ख़तरों को लेकर सरकार की कितनी गंभीर है.' आगे लिखा है, "पुलवामा के शहीद बीजेपी के लिए महज चुनावी मुद्दा थे, उनके परिवार सरकार के लिए मायने नहीं रखते." इमेज कॉपीराइट @INCIndia @INCINDIA ख़बर के मुताबिक़, कोर्ट ने यह ज़मानत इसलिए दी क्योंकि मामले की जांच कर रही नेशनल इन्वेस्टिगेटिव एजेंसी (NIA) तय समय पर आरोपपत्र दाख़िल नहीं कर पाई. null और ये भी पढ़ें ऋषभ पंत को टीम में जगह क्यों नहीं मिल रही? अंडर-19 वर्ल्ड कप फ़ाइनल: भारत के लिए बांग्ला

#PulwamaAttack: सीआरपीएफ़ के क़ाफ़िले पर हमले की जाँच कहां तक पहुंची?

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जुगल पुरोहित बीबीसी संवाददाता इस पोस्ट को शेयर करें Facebook   इस पोस्ट को शेयर करें WhatsApp   इस पोस्ट को शेयर करें Messenger   साझा कीजिए इमेज कॉपीरइट GETTY IMAGES दक्षिणी कश्मीर का लडूमोड इलाक़ा 14 फ़रवरी 2019 की दोपहर 3 बजकर 10 मिनट से पहले तक बाक़ी कश्मीरी इलाक़ों की ही तरह था. लेकिन अगले ही मिनट हमेशा के लिए सबकुछ बदल गया. लडूमोड वो जगह बन गई जहां पर सीआरपीएफ़ के क़ाफ़िले की एक बस में आत्मघाती हमलावर मारूती सुज़ुकी ईको गाड़ी लेकर घुस गया और इससे हुए धमाके में 40 सीआरपीएफ़ के जवान मारे गए. सीआरपीएफ़ के लिए कश्मीर में ऐसा संघर्ष या उसके क़ाफ़िले पर हमला कोई नई बात नहीं थी. लेकिन भारत प्रशासित कश्मीर में तीन दशकों से चले आ रहे चरमपंथ में ऐसा पहले कभी नहीं देखा गया था. इमेज कॉपीरइट GETTY IMAGES सीआरपीएफ़ ने क्या किया? लेकिन इस घटना के बाद ये सवाल उठे कि ऐसी घटना फिर न हो उसके लिए क्या किया गया है. null और ये भी पढ़ें निर्भया गैंगरेप: विनय शर्मा की दया याचिका सुप्रीम कोर्ट में ख़ारिज पुलवामा कांड: जवानों के परिजन आज भी हादसे की जा