प्रणब मुखर्जी: प्रधानमंत्री न बन पाने की कसक रही जीवन भर
रेहान फ़ज़ल बीबीसी संवाददाता, दिल्ली इस पोस्ट को शेयर करें Facebook इस पोस्ट को शेयर करें WhatsApp इस पोस्ट को शेयर करें Messenger इस पोस्ट को शेयर करें Twitter साझा कीजिए इमेज कॉपीरइट HINDUSTAN TIMES बात 31 अक्तूबर, 1984 की है. कोलकाता से दिल्ली जाने वाले इंडियन एयरलाइंस के बोइंग 737 विमान पर राजीव गाँधी, प्रणब मुखर्जी, शीला दीक्षित, उमाशंकर दीक्षित, बलराम जाखड़, लोकसभा के सेक्रेटरी जनरल सुभाष कश्यप और एबीएग़नी ख़ाँ चौधरी सवार थे. ढाई बजे राजीव गाँधी ने विमान के कॉकपिट से बाहर निकल कर घोषणा की कि इंदिरा गाँधी ने दम तोड़ दिया है. आरंभिक सदमे के थोड़ी देर बाद इस बात पर चर्चा होने लगी कि इसके आगे क्या किया जाए? प्रणब मुखर्जी ने अपनी बात रखते हुए कहा कि 'नेहरू के ज़माने से ऐसी परिस्थिति में अंतरिम प्रधानमंत्री को शपथ दिलाए जाने की परंपरा रही है. नेहरू के देहावसान के बाद कैबिनेट में सबसे वरिष्ठ मंत्री गुलज़ारी लाल नंदा को अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में चुना गया था.' जाने माने पत्रकार रशीद किदवाई अपनी किताब '24 अकबर रोड' में लिखते हैं