दिनयार पटेल इतिहासकार इमेज स्रोत, GETTY IMAGES इमेज कैप्शन, प्रिंस ऑफ वेल्स आज से ठीक 100 साल पहले ग़ुलाम भारत के बॉम्बे (अब मुंबई) में एक ऐसा दंगा हुआ, जिसे भारतीय इतिहास के सबसे अलग तरह के दंगों में से एक माना गया. इस दंगे में हिंदू और मुसलमान एक-दूसरे के ख़िलाफ़ लड़ने के बजाय एक साथ मिलकर लड़े थे. वहीं इनके विरोध में दूसरे समूह खड़े थे. इतिहासकार दिनयार पटेल आज के भारत को उस घटना से मिले सबक़ के बारे में बताते हैं. बॉम्बे का ये दंगा नवंबर 1921 में हुआ. प्रिंस ऑफ वेल्स दंगे के नाम से भी जाने जानेवाले इस दंगे को वैसे अब भुला दिया गया है. पर आज जैसे बंटे हुए वक़्त में धार्मिक असहिष्णुता और बहुसंख्यकवाद को लेकर यह दंगा देश को कई अहम सबक़ देता है. असहयोग आंदोलन के समय हुआ ये दंगा हिंसा की उन घटनाओं में आज़ादी की लड़ाई के एक हीरो, भावी ब्रिटिश सम्राट और पतनशील तुर्क सुल्तान कहीं न कहीं शामिल थे. साथ ही कई विचारधाराओं और लक्ष्यों, जैसे: स्वराज, स्वदेशी (आर्थिक आत्मनिर्भरता), बहिष्कार और पैन-इस्लामिज़्म को भी इसकी वजह बताया गया. विज्ञापन ब्रिटेन के प्रिंस ऑफ वेल्स (एडवर्ड आठवें) नवंबर 192