कोयला प्राइवेट कंपनियों के हवाले करने से ‘आत्मनिर्भर’ हो जाएगा भारत?
प्रियंका दुबे बीबीसी संवाददाता इमेज स्रोत, JONAS GRATZER खेती-किसानी, तकनीक, रक्षा, श्रम और उद्योग जैसे कई क्षेत्रों के साथ एक महत्वपूर्ण क्षेत्र जिसमें 'आत्मनिर्भर भारत अभियान' के तहत बड़े बदलाव किए जा रहे हैं, वह है खनन. बॉलीवुड के इर्द-गिर्द जारी शोर के बीच शायद यह ख़बर आपकी नज़रों से छूट गई हो कि खनन मंत्रालय ने 'खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 या एमएमडीआर ऐक्ट में, अगस्त महीने में नौ बड़े फेरबदल प्रस्तावित करते हुए भारतीय खनन में बड़े स्तर पर निजीकरण की प्रक्रिया को शुरू कर दिया है. सरकार का दावा है कि इन प्रस्तावित बदलावों से खनन में बड़ी तदाद में रोज़गार पैदा किया जा सकेगा और देश की अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी. लेकिन जानकार रोज़गार के इन सरकारी दावों के साथ-साथ, इस निजीकरण के पर्यावरण, खदान बहुल राज्यों के जंगलों और वहां के आम जनजीवन पर पड़ने वाले प्रभावों पर भी सवाल उठा रहे हैं. विज्ञापन इन बदलावों के बारे में जानना इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि ये बदलाव खनन में सीधे तौर पर शामिल देश की एक बड़ी जनसंख्या को प्रभावित करेंगे. छोड़कर और ये भी पढ़ें आगे बढ़ें