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स्वामी विवेकानंद ने जब गोरक्षक से पूछे कई मुश्किल सवाल || स्वामी विवेकानंद ने कहा, 'जो सभा-समिति इंसानों से सहानुभूति नहीं रखती है, अपने भाइयों को भूखे मरते देखते हुए भी उनके प्राणों की रक्षा करने के लिए एक मुट्ठी अनाज तक नहीं देती है लेकिन पशु-पक्षि‍यों के वास्ते बड़े पैमाने पर अन्न वितरण करती है, उस सभा-समिति के साथ मैं रत्ती भर भी सहानुभूति नही रखता हूँ. इन जैसों से समाज का कोई विशेष उपकार होगा, इसका मुझे विश्वास नहीं है.' फिर विवेकानंद कर्म फल के तर्क पर आते हैं. वे कहते हैं, "अपनों कर्मों के फल की वजह से मनुष्य मर रहे हैं- इस तरह कर्म की दुहाई देने से जगत में किसी काम के लिए कोशि‍श करना तो बिल्कुल बेकार साबित हो जाएगा. पशु-पक्ष‍ियों के लिए आपका काम भी तो इसके अंतर्गत आएगा. इस काम के बारे में भी तो बोला जा सकता है- गोमाताएँ अपने-अपने कर्मफल की वजह से ही कसाइयों के हाथ में पहुँच जाती हैं और मारी जाती हैं इसलिए उनकी रक्षा के लिए कोशि‍श करना भी बेकार है." ।। पढ़िए पूरी गुफ्तगू

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  स्वामी विवेकानंद ने जब गोरक्षक से पूछे कई मुश्किल सवाल नासिरूद्दीन वरिष्ठ पत्रकार, बीबीसी हिंदी के लिए 1 अगस्त 2018 अपडेटेड 4 जुलाई 2021 बात फरवरी 1897 की है. कोलकता का बाग़ बाज़ार इलाका. स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस के एक भक्त प्रियनाथ के घर पर बैठे थे. रामकृष्ण के कई भक्त उनसे मिलने वहाँ पहुँचे थे. तरह-तरह के मुद्दों पर चर्चा हो रही थी. तभी वहाँ गोरक्षा एक प्रचारक आ पहुँचे और स्वामी विवेकानंद ने उनसे बात करने गए, स्वामी विवेकानंद और गोरक्षा के प्रचारक संन्यासी के बीच एक दिलचस्प संवाद हुआ जिसे शरतचंद्र चक्रवर्ती ने  बांग्ला भाषा में कलमबंद  किया था. यह संवाद स्वामी विवेकानंद के विचारों के  आधि‍कारिक संकलन  का हिस्सा भी बना. स्वामी विवेकानंद ने गोरक्षा के काम में जुटे इस प्रचारक से क्या कहा होगा? थोड़ी कल्पना कीजिए. अमरीका के शिकागो में 1893 में वि‍श्व धर्म संसद में हिन्दू धर्म की पताका लहराकर लौटे थे विवेकानंद, गेरुआ वस्त्र पहनने वाले संन्यासी ने गोरक्षक जो कुछ कहा उसकी कल्पना करना आपके लिए आसान नहीं होगा. विज्ञापन विवेकानंद-गोरक्षक संवाद  पढ़िए छोड़कर और ये भी पढ़ें आगे बढ़ें औ