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नागरिकता संशोधन कानून चिंताजनक: अमरीकी आयोग

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इस पोस्ट को शेयर करें Facebook   इस पोस्ट को शेयर करें WhatsApp   इस पोस्ट को शेयर करें Messenger   साझा कीजिए इमेज कॉपीरइट SAMIRATMAJ MISHRA/BBC अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के भारत दौरे में अब केवल चार दिन रह गए हैं. वो 24 फ़रवरी को भारत आ रहे हैं. लेकिन उनके दौरे से ठीक पहले एक अमरीकी एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट में भारत के नागरिकता संशोधन क़ानून और एनआरसी पर चिंता जताई है. अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर नज़र रखने वाली अमरीकी एजेंसी यूएससीआईआरएफ़ ने बुधवार को अपनी वार्षिक रिपोर्ट जारी की. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में धार्मिक उत्पीड़न के मामलों में बढ़ोत्तरी हो रही है. जिस नागरिकता संशोधन क़ानून और एनआरसी को लेकर भारत के कई शहरों में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं उस क़ानून के बारे में भी रिपोर्ट में ज़िक्र है और इसे भी भारत में धार्मिक उत्पीड़न के एक उदाहरण के तौर पर पेश किया गया है. एजेंसी ने 2019 के इस वार्षिक रिपोर्ट में भारत को टियर-2 की श्रेणी में रखा है. null और ये भी पढ़ें कन्हैया कुमार क्या वाकई पीएम मोदी के लिए चुनौती

पुलिस से नुक़सान की भरपाई कौन करेगा? उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक रह चुके प्रकाश सिंह का कहना है कि यूपी में नुक़सान की भरपाई के लिए प्रदर्शनकारियों से जुर्माना वसूलने का जो आदेश दिया है वो सबके लिए सबक़ लेने वाली बात है. प्रकाश सिंह को जाट आंदोलन के बाद जांच का ज़िम्मा दिया गया था औरअपनी रिपोर्ट में उन्होंने प्रदर्शनकारियों से हर्ज़ाना वसूल करने की बात कही थी जिसे सरकार ने नहीं माना. वे कहते हैं कि सरकार ने जब इस सम्बन्ध में कोई ठोस क़ानून नहीं बनाया तो राज्य सरकारों के लिए समय समय पर उच्च न्यायालयों या सुप्रीम कोर्ट के निर्देश काफ़ी हैं. वहीं भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी और मानव अधिकार कार्यकर्ता हर्ष मांदर कहते हैं कि ये कार्रवाई एकतरफा है जबकि क़ानून के सामने सभी को अपना पक्ष रखने और ख़ुद को निर्दोष साबित करने का मौक़ा मिलना चाहिए. इसके अलावा उनको लगता है कि उत्तर प्रदेश में जो कुछ सरकार ने किया वो नागरिकों की समानता के हिसाब से नहीं है. मंदर कहते हैं कि सरकार का व्यवहार पारदर्शी और बराबरी वाला होना चाहिए. वे कहते हैं कि कश्मीर में अगर विरोध प्रदर्शन होता है तो उसको अलग तरीके से देखा जाए और दूसरे प्रांतों में समाज के अलग अलग तबक़ों के प्रदर्शनों को अलग तरीके से देखा जाना और उनसे निपटना भी ग़लत है. वे कहते हैं कि उत्तर प्रदेश सरकार इस मुद्दे पर खामोश है कि जिन लोगों की संपत्ति का नुक़सान सरकारी अमले या पुलिस ने किया है उसकी भरपाई कैसे होगी?

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t सूची खोजें News हिंदी BBC News हिंदी Navigation सेक् सलमान रावी बीबीसी संवाददाता क्या सरकार प्रदर्शनकारियों से नुक़सान की भरपाई करवा सकती है?  इस पोस्ट को शेयर करें Facebook   इस पोस्ट को शेयर करें WhatsApp   इस पोस्ट को शेयर करें Messenger   साझा कीजिए इमेज कॉपीरइट ANI तारीख़- 28 दिसंबर 2019, जगह- जसिया, ज़िला- रोहतक, हरियाणा. अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति की बैठक में अध्यक्ष यशपाल मलिक ने वर्ष 2016 के फ़रवरी में हरियाणा में हुए जाट आंदोलन के दौरान मारे गए जाट युवाओं के परिजनों को सरकारी नौकरी की मांग दोहराई. उन्होंने आंदोलन के दौरान जाटों पर दर्ज़ किए गए सभी मामलों को वापस लेने की मांग करते हुए एक बार फिर से आंदोलन तेज़ करने की धमकी दी. हरियाणा सरकार के अनुसार इस आंदोलन के दौरान कुल 30 प्रदर्शनकारी मारे गए थे जबकि हिंसा की वजह से राज्य को एक हज़ार करोड़ रुपये से भी ज़्यादा का नुक़सान झेलना पड़ा था. सरकारी अधिकारियों का कहना है कि इस हिंसा में जिनकी संपत्ति का नुक़सान हुआ था उन्हें सरकार को 60 करोड़ र