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प्रशांत किशोर का नीतीश कुमार पर निशाना, कहा- 'गांधीवादी गोडसे समर्थकों के साथ कैसे'

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इस पोस्ट को शेयर करें Facebook   इस पोस्ट को शेयर करें WhatsApp   इस पोस्ट को शेयर करें Messenger   साझा कीजिए इमेज कॉपीरइट SANJAY DAS हाल में जनता दल यूनाइटेड से निकाले गए प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार पर बड़ा हमला बोला है. उन्होंने कहा कि विकास के तमाम मापदंडों पर बिहार जहां 2005 में था, वहीं आज है. 15 सालों में विकास तो हुआ है लेकिन कैसा विकास हुआ है, कि सड़कें बन गई हैं लोगों के पास गाड़ी खरीदने की सुविधा नहीं बढ़ी. बिजली आ गई लेकिन बिजली खपत के मामले में कोई प्रगति नहीं हुई, क्योंकि प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से बिहार आज भी सबसे ग़रीब राज्य बना हुआ है. उन्होंने कहा, "मैं ये नहीं कहूंगा कि बीते पंद्रह सालों में बिहार में विकास नहीं हुआ है लेकिन अगर आप दूसरे राज्यों से तुलना करें तो रफ़्तार उतनी नहीं रही है. बिहार साल 2005 में सबसे ग़रीब राज्यों में था और अभी भी वहीं है. विकास की रैकिंग में भी बिहार अब भी सबसे नीचे ही है." प्रशांत किशोर ने कहा, 'नीतीश जी हमेशा लालू जी के राज से तुलना करके कहते हैं कि बिजली नहीं थी, बिजली आ गई. पटना

......तुझे कितनी आहों से कलेजा ठंडा होगा ।

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बिहार / प्रशांत किशोर का भाजपा पर हमला, कहा- देश में एनआरसी का विचार नागरिकता की नोटबंदी करने जैसा

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प्रशांत किशोर ने संसद में नागरिकता संशोधन बिल पर जदयू के समर्थन किए जाने पर विरोध जताया था। जदयू उपाध्यक्ष प्रशांत ने कहा- गरीब और हाशिये पर पड़े लोग एनआरसी से सबसे ज्यादा पीड़ित होंगे प्रशांत किशोर नागरिकता संशोधन बिल का समर्थन करने के लिए अपनी पार्टी जदयू से निराशा जताई थी उन्होंने इस मुद्दे पर शनिवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात की Dainik Bhaskar Dec 15, 2019, 02:15 PM IST पटना. जदयू उपाध्यक्ष और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने भाजपा पर हमला बोला है। प्रशांत ने ट्वीट कर कहा कि देश भर में एनआरसी (नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन) का विचार नागरिकता की नोटबंदी करने जैसा है। जब तक आप इसे सबित नहीं करते, तब तक यह अमान्य है। अब तक मिले अनुभवों से पता चलता है कि इससे सबसे ज्यादा गरीब और हाशिये पर पड़े लोग पीड़ित होंगे। Prashant Kishor ✔ @PrashantKishor The idea of nation wide NRC is equivalent to demonetisation of citizenship....invalid till you prove it otherwise. The biggest sufferers would be the poor and the marginalised...we know