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जिंदगी की यही हकीकत है ।। कब कहां जिंदगी की शाम हो जाए कोई नहीं कह सकता ,फिर भी नफरत का बाजार दुनिया में गर्म रहता है ।। बेचारों कीआत्मा को शांति मिले ।

मुसीबत के न जानें कितने रूप ? पल भर में न जानें अल्लाह (ईश्वर) कब किस की जिंदगी के किस्से तमाम कर दे ...इसलिए हम सब को चाहिए कि इंसान बन कर एक दूसरे के काम आए ... जो चले गए जैसे भी गए उनके रूह और आत्मा को अल्लाह सकून और शांति दे ।।

ﺍﻟﻠﮧ ﮐﺎ ﺣﺘﻤﯽ ﻓﯿﺼﻠﮧ ﺻﺮﻑ ﺍﺱ ﺑﻨﯿﺎﺩ ﭘﺮ ﮨﻮﮔﺎ ﮐﮧ " ﮨﻢ ﻧﮯ ﺭﺏ ﭼﺎ ﮨﯽ ﺯﻧﺪﮔﯽ ﮔﺰﺍﺭﯼ ﯾﺎ ﻣﻥ ﻣﺎﻧﯽ ﺯﻧﺪﮔﯽ"-