मसूद अज़हर की रिहाई के समय कहाँ थे अजित डोभाल? राहुल गांधी के दावे की हक़ीक़त
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने दावा किया है कि पुलवामा हमले के दोषी मसूद अज़हर को भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ख़ुद ही विमान में कंधार (अफ़गानिस्तान) छोड़कर आए थे.
सोमवार को दिल्ली में हुई पार्टी कार्यकर्ताओं की बैठक में राहुल गांधी ने कहा, "पुलवामा में बस में किसने बम फोड़ा? जैश-ए-मोहम्मद, मसूद अज़हर. आपको याद होगा कि 56 इंच की छाती वालों की जब पिछली सरकार थी तो एयरक्राफ़्ट में मसूद अज़हर जी के साथ बैठकर जो आज नेशनल सिक्योरिटी एडवाइज़र हैं- अजित डोभाल, वो मसूद अज़हर को जाकर कंधार में हवाले करके आ गए."
उन्होंने कहा, "पुलवामा में अगर बम ब्लास्ट हुआ, वो ज़रूर पाकिस्तान के लोगों ने, जैश-ए-मोहम्मद के लोगों ने करवाया. मगर मसूद अज़हर को बीजेपी ने जेल से छोड़ा. कांग्रेस पार्टी के दो प्रधानमंत्री शहीद हुए हैं. हम किसी से नहीं डरते हैं."
लेकिन राहुल गांधी के इस बयान का सिर्फ़ वो हिस्सा जहाँ वो 'मसूद अज़हर जी' बोलते हैं, सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है.
केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद समेत कई अन्य बड़े बीजेपी नेताओं ने ये वायरल वीडियो शेयर किया है. इसे सोशल मीडिया पर लाखों बार देखा जा चुका है. हालांकि एक और वीडियो शेयर किया जा रहा है जिसमें रविशंकर प्रसाद हाफ़िज सईद को हाफ़िज जी कह रहे हैं.
लेकिन जिन्होंने यू-ट्यूब पर मौजूद राहुल गांधी का ये पूरा भाषण सुना है, उनकी जिज्ञासा है कि 'मसूद अज़हर के भारत से रिहा होकर कंधार पहुँचने में' राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल की भूमिका क्या थी?
हमने पाया कि राहुल गांधी का ये दावा कि 'अजित डोभाल मसूद अज़हर के साथ एयरक्राफ़्ट में बैठकर दिल्ली से कंधार गए थे', सही नहीं है. अजित डोभाल पहले से कंधार में मौजूद थे और यात्रियों को छुड़वाने के लिए तालिबान से चल रही बातचीत की प्रक्रिया में शामिल थे.
मसूद अज़हर के कंधार पहुंचने की कहानी
पुर्तगाली पासपोर्ट के साथ भारत में घुसे मसूद अज़हर के गिरफ़्तार होने के 10 महीनों के भीतर ही चरमपंथियों ने दिल्ली में कुछ विदेशियों को अगवा कर उन्हें छोड़ने के बदले मसूद अज़हर की रिहाई की मांग की थी.
ये मुहिम असफल हो गई थी क्योंकि उत्तर प्रदेश और दिल्ली पुलिस सहारनपुर से बंधकों को छुड़ाने में सफल हो गई थी.
एक साल बाद हरकत-उल-अंसार ने फिर कुछ विदेशियों का अपहरण कर उन्हें छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन ये प्रयास भी असफल रहा था.
साल 1999 में जम्मू की कोट भलवाल जेल से मसूद अज़हर को निकालने के लिए सुरंग खोदी गई, लेकिन मसूद को निकालने का चरमपंथियों का यह प्रयास भी विफल रहा था.
कुछ महीनों बाद दिसंबर, 1999 में चरमपंथी एक भारतीय विमान (इंडियन एयरलाइंस की फ़्लाइट संख्या IC-814) का अपहरण कर कंधार ले गए और इस विमान के यात्रियों को छोड़ने के बदले भारत सरकार मसूद अज़हर समेत तीन चरमपंथियों को छोड़ने के लिए तैयार हो गई थी.
उस समय भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी रॉ के प्रमुख रहे अमरजीत सिंह दुलत ने बीबीसी संवाददाता रेहान फ़ज़ल को बताया कि "ज़रगर को श्रीनगर जेल और मसूद अज़हर को जम्मू की कोट भलवाल जेल से श्रीनगर लाया गया. दोनों को रॉ ने एक छोटे गल्फ़स्ट्रीम जहाज़ में बैठाया था."
"दोनों की आँखों में पट्टी बंधी हुई थी. मेरे जहाज़ में सवार होने से पहले दोनों को जहाज़ के पिछले हिस्से में बैठा दिया गया. जहाज़ के बीच में पर्दा लगा हुआ था. पर्दे के एक तरफ़ मैं बैठा था और दूसरी तरफ़ ज़रगर और मसूद अज़हर."
उन्होंने बताया कि 'टेक ऑफ़' से कुछ सेकेंड पहले ही ये सूचना आई थी कि हमें जल्द से जल्द दिल्ली पहुंचना हैं क्योंकि विदेश मंत्री जसवंत सिंह हवाई अड्डे पर ही कंधार जाने के लिए हमारा इंतज़ार कर रहे थे.
दुलत बताते हैं, "दिल्ली में उतरते ही इन दोनों चरमपंथियों को जसवंत सिंह के जहाज़ में ले जाया गया था जिसमें तीसरा चरमपंथी ओमर शेख़ पहले से ही मौजूद था. हमारा काम ज़रगर और मसूद को दिल्ली तक पहुँचाने का था."
'निर्णय लेने वाला शख़्स'
पूर्व रॉ चीफ़ अमरजीत सिंह दुलत बताते हैं कि ये सवाल उठा था कि इन बंदियों के साथ भारत की तरफ़ से कंधार कौन-कौन जाए.
ये बात आधिकारिक रिकॉर्ड में दर्ज है कि इंटेलिजेंस ब्यूरो के अजित डोभाल इस विमान के दिल्ली से उड़ान भरने से पहले ही कंधार में मौजूद थे.
उनके साथ विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव विवेक काटजू और रॉ के सीडी सहाय भी कंधार में ही थे. तीनों अधिकारी लगातार तालिबान से समझौता करने के लिए बातचीत के प्रयास कर रहे थे.
इन तीनों अधिकारियों ने एक स्वर में कहा था कि कंधार किसी ऐसे शख़्स को भेजा जाए जो ज़रूरत पड़ने पर वहाँ बड़े निर्णय ले सके, क्योंकि यह व्यवहारिक नहीं होगा कि हर फ़ैसले के लिए दिल्ली की तरफ़ देखा जाए.
डोभाल को गिफ़्ट में मिला 'बाइनाकुलर'
जब तीनों चरमपंथियों को लेकर भारतीय विमान दिल्ली से कंधार पहुँचा, तो क़रीब पाँच बजे अजित डोभाल अपहृत विमान में यात्रियों से मिलने गए थे.
जब वो विमान से उतरने लगे तो दो अपरहरणकर्ताओं बर्गर और सैंडी (तालिबान अपरहरणकर्ताओं के बदले हुए नाम) ने अजित डोभाल को एक छोटा 'बाइनाकुलर' भेंट किया था.
डोभाल के हवाले से जसवंत सिंह ने अपनी आत्मकथा 'अ कॉल टु ऑनर - इन सर्विस ऑफ़ एमर्जिंग इंडिया' में लिखा है, "उन्होंने मुझे बताया कि वो इसी 'बाइनाकुलर' से बाहर हो रही गतिविधियों पर नज़र रखे हुए थे. बाद में जब मैं कंधार से दिल्ली आने के लिए रवाना हुए तो डोभाल ने वो 'बाइनाकुलर' विदेश मंत्री जसवंत सिंह को दिखाया. हमने कहा कि ये बाइनाकुलर हमें कंधार के हमारे बुरे अनुभव की याद दिलाएगा."
नाराज़ फ़ारूक़ अब्दुल्ला
भारत के पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, "जैसे ही तीनों चरमपंथी नीचे उतरे, हमने देखा कि उनका बहुत गर्मजोशी से स्वागत किया गया. उनके उतरते ही हमारे जहाज़ की सीढ़ियाँ हटा ली गईं ताकि हम नीचे न उतर सकें. नीचे मौजूद लोग ख़ुशी में चिल्ला रहे थे. तीनों चरमपंथियों के रिश्तेदारों को पाकिस्तान से कंधार लाया गया था ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि हमने असली लोगों को ही छोड़ा है."
इन चरमपंथियों की रिहाई से पहले अमरजीत सिंह दुलत को ख़ासतौर से नेशनल कॉन्फ़्रेंस के नेता फ़ारूक़ अब्दुल्ला को मनाने श्रीनगर भेजा गया था.
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फ़ारूक़ अब्दुल्ला, मुश्ताक अहमद ज़रगर और मसूद अज़हर को छोड़ने के लिए क़तई तैयार नहीं थे. दुलत बताते हैं कि फ़ारूक़ अब्दुल्ला को मनाने के लिए उन्हें एड़ी चोटी का ज़ोर लगाना पड़ा था.
जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगने से ख़फ़ा फ़ारूक़ अब्दुल्ला ने समाचार एजेंसी पीटीआई को इसी सप्ताह दिए अपने एक बयान में कहा है, "जो हमें अब देशद्रोही बता रहे हैं, हमने उनकी सरकार (बीजेपी) से 1999 में कहा था कि मसूद अज़हर को रिहा न करें. हम तब उस फ़ैसले के ख़िलाफ़ थे, आज भी हैं."
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