जामिया मिल्लिया, जिसके लिए गांधी भीख मांगने तक को तैयार थे


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नागरिकता संशोधन क़ानून पर शुरू हुआ प्रदर्शनों का दौर अब उत्तर-पूर्वी राज्यों से होते हुए देश की राजधानी दिल्ली पहुंच गया है.
रविवार को जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्र इसके विरोध में सड़कों पर उतरे. इसी दौरान तीन बसों में आग लगाने का वाक़या हुआ और फिर हिंसक झड़पें हुईं.
दिल्ली पुलिस जामिया मिल्लिया इस्लामिया की लाइब्रेरी में बिना अनुमति के पहुंची और वहां उसने पढ़ाई कर रहे छात्रों पर लाठियां चलाई.
पुलिस की कार्रवाई में कई छात्र ज़ख़्मी हुए हैं.
जामिया मिल्लिया इस्लामिया की वीसी प्रोफ़ेसर नजमा अख़्तर ने विश्वविद्यालय में हुई पुलिस कार्रवाई की निंदा करते हुए पूरे वाक़ये पर दुःख जताया है.
उन्होंने एक वीडियो बयान में कहा, "मेरे छात्रों के साथ हुई बर्बरता की तस्वीरें देखकर मैं बहुत दुखी हूं. पुलिस का कैंपस में बिना इजाज़त आना और लाइब्रेरी में घुसकर बेगुनाह बच्चों को मारना अस्वीकार्य है. मैं बच्चों से कहना चाहती हूं कि आप इस मुश्किल घड़ी में अकेले नहीं हैं. मैं आपके साथ हूं. पूरी यूनिवर्सिटी आपके साथ खड़ी है."
इसके बाद उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस भी किया, जिसमें उन्होंने जामिया को बदनाम न करने की अपील की. उन्होंने कहा कि सिर्फ़ जामिया कहना एक भ्रम फैलाता है. इलाक़े का नाम भी जामिया है और विश्वविद्यालय का नाम भी जामिया है, ऐसे में अगर इलाक़े में भी कोई विरोध-प्रदर्शन होता है तो यह समझा जाता है कि यह विश्वविद्यालय की ओर से किया जा रहा है.

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कभी अलीगढ़ में हुआ करता था जामिया मिल्लिया

उर्दू भाषा में जामिया का अर्थ होता है 'विश्वविद्यालय' और मिल्लिया का अर्थ 'राष्ट्रीय' होता है.
आप जिस जामिया मिल्लिया इस्लामिया को आज दिल्ली में देख रहे हैं, वो अपने स्थापना काल में कभी अलीगढ़ में हुआ करता था.
औपनिवेशिक काल में पश्चिमी शिक्षा के विरोध में और स्वतंत्रता आंदोलन के लिए रचनात्मक शक्तियों को संगठित करने के लिए 22 नवंबर, 1920 को अलीगढ़ में जामिया मिल्लिया इस्लामिया की स्थापना की गई थी.
इसकी आधारशिला स्वतंत्रता सेनानी मौलाना महमूद हसन ने रखी थी. महात्मा गांधी की सक्रियता भी इसमें उल्लेखनीय रही थी.

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इसके पहले चांसलर हक़ीम अजमल ख़ान बनाए गए थे, वहीं अल्लामा इक़बाल के महात्मा गांधी के प्रस्ताव को अस्वीकार करने के बाद मोहम्मद अली जौहर इसके पहले वाइस चांसलर बनाए गए.
इसकी स्थापना के बाद औपनिवेशिक काल में जन्में राजनैतिक संकट में एक वक़्त के लिए लगा था कि स्वतंत्रता संघर्ष की आग में जामिया बच नहीं पाएगा लेकिन कई संकटकाल के बाद भी यह विश्वविद्यालय अपना अस्तित्व बचाने में कामयाब रहा.
जामिया मिल्लिया इस्लामिया में इतिहास पढ़ाने वाले रिज़वान क़ैसर बताते हैं, "साल 1920 में चार बड़ी संस्थाएं खोली गई थीं. जमिया मिल्लिया इस्लामिया, काशी विद्यापीठ, गुजरात विद्यापीठ और बिहार विद्यापीठ."
"जामिया की बुनियाद में राष्ट्रवाद, ज्ञान और स्वायत्त संस्कृति हैं. धीरे-धीरे यह शैक्षिक संस्थान के तौर पर पनपता रहा. जामिया आज़ादी का पक्षधर रहा है और इसके मूल्यों को लेकर चला है."
वो बताते हैं कि असहयोग और ख़िलाफ़त आंदोलन के वक़्त जामिया मिल्लिया इस्लामिया फला फूला लेकिन 1922 में असहयोग और 1924 में खिलाफत आंदोलन के वापस लिए जाने के बाद इसका अस्तित्व ख़तरे में पड़ गया.
आंदोलनों से मिलने वाली वित्तीय सहायता बंद हो गईं. जामिया पर संकट के बादल मंडराने लगे.

गांधी जामिया को हर हाल में चलाना चाहते थे

जामिया मिल्लिया इस्लामिया के जनसंपर्क अधिकारी अहमद अजीम बताते हैं कि इसके बाद हकीम अजमल ख़ान, डॉ. मुख्तार अहदम अंसारी और अब्दुल मजीद ख़्वाजा ने महात्मा गांधी के सहयोग से जामिया मिल्लिया इस्लामिया को 1925 में अलीगढ़ से दिल्ली के करोल बाग ले आए.
गांधीजी जामिया को हर साल में चलाना चाहते थे और उन्होंने उस वक़्त कहा था, "जामिया को चलना होगा, अगर आपलोगों को वित्तीय कट की चिंता है तो मैं इसके लिए कटोरा लेकर भीख मांगने को तैयार हूं..."
गांधी जी की इस बात से जामिया से जुड़े लोगों का मनोबल बढ़ा. गांधी जी फंड जुटाने की कोशिशों में जुट गए लेकिन ब्रिटिश काल में कोई भी संस्था इसकी मदद कर खुद के लिए जोखिम नहीं उठाना चाहती थी.
अंत में जामिया को दिल्ली लाने वाले लोगों ने मदद जुटाने के लिए दौरा किया और सामूहिक प्रयासों से इसका पतन टल पाया.

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पुनरुत्थान की कोशिशें

यूनिवर्सिटी की वेबसाइट के मुताबिक दिल्ली लाए जाने के बाद जामिया के पुनरुत्थान की कोशिशें शुरू हुईं. इस कड़ी में तीन दोस्तों का एक समूह इससे जुड़ा. डॉ. जाकिर हुसैन, डॉ. आबिद हुसैन और डॉ. मोहम्मद मुजीब.
जामिया की कमान डॉ. जाकिर हुसैन को हाथों में दी गई. उन्होंने सबसे पहला कदम शाम की कक्षाओं में प्रौढ़ शिक्षा की शुरुआत करना था. यह शैक्षणिक कार्यक्रम काफी लोकप्रिय हुआ.
जामिया मिल्लिया इस्लामिया में इतिहास पढ़ाने वाले रिज़वान क़ैसर बताते हैं, "जामिया पहली ऐसी संस्था है पूरे भारत में जहां टीचर्स ट्रेनिंग का प्रावधान किया गया था और देश भर के अलग-अलग हिस्सों से शिक्षक यहां प्रशिक्षण लेने आते थे."
"उसे 'उस्तादों का मदरसा' नाम दिया गया था. जामिया का मास कम्यूनिकेशन सेंटर देश में अव्वल है."
साल 1935 में जामिया से जुड़े सभी संस्थान और कार्यक्रम दिल्ली के बाहरी इलाक़े के एक गांव ओखला में स्थानांतरित कर दिया गया. चार साल बाद जामिया मिल्लिया इस्लामिया को एक संस्था के रूप में रजिस्टर किया गया.
कारवां बढ़ता गया और इसी बीच देश को आज़ादी मिली और बंटवारा भी झेलना पड़ा. विभाजन के बाद देश ने दंगे देखे. हर संस्था इससे प्रभावित हुई लेकिन जामिया कमोबेश अछूता रहा.
वेबसाइट के मुताबिक़ महात्मा गांधी ने उस वक़्त जामिया परिसर को "सांप्रदायिक हिंसा के मरूस्थल में एक रमणीय स्थान की तरह" बताया था.
साल 1962 में इसे मानित विश्वविद्याल घोषित किया गया. दिसंबर 1988 में संसद में एक विशेष क़ानून लाकर इसे केंद्रीय विश्वविद्यालय की मान्यता दी गई.
जामिया मिल्लिया इस्लामिया में आज 56 पीएचडी प्रोग्राम, 80 मास्टर्स, 15 मास्टर्स डिप्लोमा, 56 ग्रेजुएशन और सैंकड़ों डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स चलाए जा रहे हैं.
टीम बीबीसी हिन्दी

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