दिल्ली चुनावः केजरीवाल की हैट्रिक, BJP के हाथ से फिर फिसला मैच, कांग्रेस क्लीन बोल्ड
शनिवार को दिल्ली विधानसभा चुनाव के ख़त्म होने के फौरन बाद आए एग्ज़िट पोल्स ने मंगलवार के मौसम की झलक उसी दिन दिखला दी थी - कि एक बार फिर सत्ता आम आदमी पार्टी के ही हाथ में ही रहेगी.
हालाँकि बीजेपी के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी के 48 सीटों पर जीत के दावे वाले ट्वीट ने मुक़ाबले में रोमांच का माहौल बना दिया.
लेकिन मंगलवार को जब दिन शुरू हुआ और जैसे-जैसे चुनावी रुझान सामने आने लगे, ये तय हो गया कि एग्ज़िट पोल्स का निशाना लगभग सटीक था.
आम आदमी पार्टी का लगातार तीसरी बार सत्ता में आना तय है. अरविंद केजरीवाल तीसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं.
शुरुआती दौर में ऐसा लग रहा था कि बीजेपी शायद अपने पिछले प्रदर्शन को बेहतर करेगी मगर मतों की गिनती के आख़िरी चरणों में स्पष्ट हो गया कि इस बार भी मुक़ाबला एकतरफ़ा ही रहा.
घोषित नतीजों और रुझानों के आधार पर लगभग तय है कि आम आदमी पार्टी ने 70 में से 62 सीटें अपने नाम कर ली हैं.
बीजेपी के हिस्से में आठ सीटें आई हैं. और कांग्रेस लगातार दूसरी बार दिल्ली विधानसभा में अपना खाता नहीं खोल पाई है.
आम आदमी पार्टी, बीजेपी और कांग्रेस - तीनों प्रमुख दलों ने जनादेश को स्वीकार कर लिया है.
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'आप' का प्रदर्शन
2015 के चुनाव में 67 सीटें जीतने वाली आम आदमी पार्टी ने सत्ता विरोधी लहर की अटकलों को ख़ारिज करते हुए इस बार 62 सीटें अपने कब्ज़े में की हैं.
शायद राजनीति की भाषा में इसे ही शानदार प्रदर्शन कहा जाता है और ये बात कभी 'आप' एमएलए रहे और इस बार मॉडल टाउन विधानसभा क्षेत्र से बीजेपी प्रत्याशी कपिल मिश्र के बयान से जाहिर भी हुई.
उन्होंने कहा, "मैं आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल को इस शानदार जीत के लिए बधाई देता हूं. बीजेपी लगातार पांचवां चुनाव हारी है. इसका मतलब ये हुआ कि हम दिल्ली के लोगों से जुड़ने में कहीं न कहीं नाकाम रहे हैं."
इसका दूसरा पहलू ये भी है कि 'आप' दिल्ली की पब्लिक से कनेक्ट करने में जबर्दस्त तरीके से कामयाब रही है. चुनाव जीतने के बाद केजरीवाल के संक्षिप्त से भाषण में इसकी झलक तब मिली जब उन्होंने कहा, "दिल्ली वालों आई लव यू."
उन्होंने आगे कहा, "ये हर उस परिवार की जीत है जिनको आज दिल्ली में 24 घंटे बिजली मिलने लगी है. ये हर उस परिवार की जीत है जिनके बच्चों को अच्छी शिक्षा मिलने लगी है. ये हर उस परिवार की जीत है जिनके लोगों का दिल्ली के अस्पतालों में अच्छा इलाज होने लगा है. दिल्ली के लोगों ने आज देश में एक नई किस्म की राजनीति को जन्म दिया है. जिसका नाम है काम की राजनीति. "
"दिल्ली के लोगों ने अब ये संदेश दे दिया है कि वोट उसी को जो स्कूल बनवाएगा. जो मोहल्ला क्लिनिक बनवाएगा. जो 24 घंटे बिजली देगा, वोट उसी को जो सस्ती बिजली देगा, घर-घर को पानी देगा. हमारे मोहल्ले में सड़क बनवाएगा. ये एक नई किस्म की राजनीति की शुरुआत है. ये एक शुभ संकेत है. यही राजनीति हमें 21वीं सदी में ले जा सकती है."
बीजेपी का हाल
वैसे, पिछली बार की तीन सीटों के लिहाज से इसे बीजेपी के प्रदर्शन में सुधार कहा जा सकता है.
बीजेपी नेता मनोज तिवारी ने दिल्ली के चुनावी नतीजों पर कहा, "हम अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सके. हम इसका मूल्यांकन करेंगे. जब हमारी उम्मीदों के मुताबिक़ नतीजे नहीं आते हैं तो हमें निराशा होती है लेकिन मैं अपने पार्टी कार्यकर्ताओं से कहना चाहूंगा कि वो निराश न हों. साल 2015 की तुलना में हमारा वोट प्रतिशत बढ़ा है."
पर पार्टी ने हार स्वीकार करने में देरी नहीं की. बीजेपी की तरफ़ पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अरविंद केजरीवाल को बधाई दी.
प्रधानमंत्री ने कहा, "दिल्ली विधानसभा चुनाव में जीत के लिए AAP और अरविंद केजरीवाल को बधाई. दिल्ली के लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए उन्हें शुभकामनाएं."
बीजेपी ने पिछले बार की अपनी तीन सीटों में से दो - रोहिणी और विश्वास नगर - बचा ली हैं मगर पिछली बार की उसकी मुस्तफ़ाबाद सीट आम आदमी पार्टी ने हथिया ली.
इस बार जिन सात सीटों पर भगवा परचम लहराया वे हैं - गांधी नगर, घोंडा, करावल नगर, लक्ष्मी नगर, रोहिणी, रोहतास नगर, विश्वास नगर और बदरपुर.
हाशिये पर कांग्रेस
शीला दीक्षित के नेतृत्व में दिल्ली की सत्ता पर लगातार 15 साल तक राज करने वाली कांग्रेस का आंकड़ा लगातार दूसरी बार भी सिफर रहा है.
शीला दीक्षित की मृत्यु के बाद कांग्रेस आज भी किसी भरोसेमंद चेहरे की तलाश में संघर्ष करती हुई लग रही है.
कांग्रेस का वोटबैंक आहिस्ता-आहिस्ता आम आदमी पार्टी के खेमे में शिफ़्ट हो गई और पार्टी नेताओं के मतभेद उभर कर सामने आने लगे.
दिल्ली चुनाव में कांग्रेस के प्रदर्शन पर संदीप दीक्षित ने कहा, "शीला जी की जो विरासत थी, उसको पिछले 6-7 साल में कांग्रेस ने अपनी विरासत नहीं माना. हम अपने काम से शर्मशार होते रहे, तो फिर कोई दूसरा कैसे मानेगा. दिल्ली में जो हैंडलिंग थी, वो माशा अल्लाह रही."
पार्टी प्रवक्ता शर्मिष्ठा मुखर्जी ने भी नाराज़गी जताई, "हम एक बार फिर दिल्ली में सिमट कर रह गए हैं. आत्मावलोकन बहुत हुआ, अब कदम उठाने का वक़्त है. शीर्ष नेतृत्व के स्तर फ़ैसला लेने में बहुत ज़्यादा देरी, रणनीति और राज्य इकाई में एकता का अभाव, हतोत्साहित कार्यकर्ता, ज़मीन से कोई जुड़ाव नहीं... ये हमारी हार के कारण हैं. सिस्टम का हिस्सा होने की वजह से मैं हार की जिम्मेदारी लेती हूं."
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