राम मंदिर ट्रस्ट की घोषणा के बाद भी संतों में क्यों है नाराज़गी?


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अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के गठन से अयोध्या के संत नाखुश हैं. हालांकि तात्कालिक रूप से संतों की नाराज़गी को थामने की कोशिश ज़रूर की गई है लेकिन ये ग़ुस्सा कितने दिनों तक थमा रहता है, कहना मुश्किल है.
संतों की नाराज़गी इस बात को लेकर है कि पंद्रह सदस्यीय ट्रस्ट में जिन नौ सदस्यों के नामों की घोषणा की गई है, उनमें न तो अयोध्या के संत समाज का कोई व्यक्ति है और न ही राम मंदिर आंदोलन से जुड़ा कोई चेहरा. यही नहीं, संतों की आपत्ति इस बात को लेकर भी है कि अयोध्या के जिन दो लोगों को इस ट्रस्ट में रखा गया है उनमें से एक व्यक्ति को कोई जानता तक नहीं है.
राम जन्मभूमि न्यास के नृत्य गोपाल दास
Image captionराम जन्मभूमि न्यास के नृत्य गोपाल दास

नृत्यगोपाल दास ने ज़ाहिर की नाराज़गी

अयोध्या के जिन प्रमुख संतों के इस ट्रस्ट में शामिल होने की चर्चा थी, उनमें रामजन्म भूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल दास का नाम सबसे ऊपर था. लेकिन ट्रस्ट में उन्हें जगह नहीं दी गई. नृत्यगोपाल दास ने तुरंत अपनी नाराज़गी भी ज़ाहिर की. उनके नामित उत्तराधिकारी कमल नयन दास ने तो इस ट्रस्ट को मानने से ही इनकार कर दिया और आंदोलन की चेतावनी तक दे डाली. आनन-फ़ानन में गुरुवार को सभी संतों की एक बैठक बुलाई गई लेकिन उससे पहले ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ नृत्यगोपाल दास की वार्ता ने इस भड़के माहौल को थोड़ा शांत कर दिया.
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हालांकि गृहमंत्री या फिर बीजेपी की ओर से ऐसी बातचीत की पुष्टि नहीं हुई है लेकिन कमल नयन दास ने बीबीसी से बातचीत में बताया कि महंत नृत्यगोपाल दास को ट्रस्ट में शामिल करने का आश्वासन दिया गया है. उनका कहना था, "मस्जिद गिराने के मामले में आपराधिक मुक़दमा चल रहा है इसीलिए महंत जी का नाम अभी शामिल नहीं हो पाया है लेकिन आने वाले दिनों में महंत नृत्यगोपाल दास ही इस ट्रस्ट के अध्यक्ष बनेंगे और चंपत राय महामंत्री."
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'अयोध्यावासी संत महंतों का अपमान'

कमल नयन दास इस सवाल का जवाब गोल-मटोल ही देते रहे कि ये आश्वासन उन्हें किसने दिया है लेकिन संतों की बैठक टलने के पीछे उन्होंने अमित शाह और महंत नृत्यगोपाल दास के बीच हुई वार्ता को वजह बताया. हालांकि वो अब भी कह रहे हैं कि यदि ऐसा नहीं हुआ तो संत समाज आंदोलन करेगा.
ट्रस्ट के गठन की घोषणा के बाद ख़ुद राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपालदास ने ही इसे अयोध्यावासी संत महंतों का अपमान बताया था. उनका कहना था, "जिन्होंने पूरे जीवन की कुर्बानी दी है, बीस वर्षों से ज़्यादा समय तक मंदिर आंदोलन से जुड़े रहे हैं, उनका ट्रस्ट में कहीं नामोनिशान तक नहीं है. जो ट्रस्ट बना है उसमें अयोध्यावासी संत महंतों की अवहेलना की गई है. सरकार को अपने निर्णय पर पुनर्विचार करना होगा."
राम जन्मभूमि

नृत्यगोपाल दास को क्यों नहीं किया गया शामिल?

गुरुवार को संतों की बैठक से पहले ही अयोध्या के बीजेपी विधायक वेद प्रकाश गुप्ता समेत कई बीजेपी नेता महंत नृत्यगोपाल दास से मिलने मणिराम दास छावनी पहुंचे लेकिन महंत के समर्थकों ने उन्हें अंदर जाने से ही रोक दिया. बाद में इन लोगों के प्रयास से ही महंत नृत्यगोपाल दास की गृहमंत्री अमित शाह से बातचीत कराई गई. नृत्यगोपाल दास की सुरक्षा ट्रस्ट के गठन के बाद से ही बढ़ा दी गई थी जिससे ये माना जा रहा था कि उन्हें ट्रस्ट में अहम ज़िम्मेदारी दी जा सकती है लेकिन ट्रस्ट में उनका नाम ही नहीं था.
लखनऊ में वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्र कहते हैं, "नृत्यगोपाल दास के ख़िलाफ़ केस होना तो बहाना मात्र है. केस चलते हुए तो लोग एमपी, एमएलए से लेकर मंत्री और मुख्यमंत्री तक हुए हैं. ऐसे में ट्रस्ट का सदस्य बनने में क्या दिक़्क़त और अनैतिकता होती, समझ से परे है. दो-चार दिन में यदि उन्हें इसमें शामिल कर ही लिया जाएगा तो कौन सा यह केस ख़त्म हो चुका होगा. लेकिन यह जान लीजिए कि संतों का यह विवाद अभी लंबा चलेगा, थमने वाला नहीं है."
राम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास
Image captionराम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास

'स्थानीय स्तर पर शामिल लोगों का मंदिर आंदोलन से वास्ता नहीं'

ट्रस्ट में अयोध्या के संतों को न शामिल करना रामलला के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास और दिगंबर अखाड़े के महंत सुरेश दास भी को भी नागवार गुज़रा.
सत्येंद्र दास कहते हैं, "सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए सरकार को पावर दी है लेकिन सरकार को ये सोचना चाहिए कि आख़िर अयोध्या में बनने वाले मंदिर के ट्रस्ट में अयोध्या के संत नहीं होंगे तो और कौन होगा. स्थानीय स्तर पर जिनको शामिल किया गया है, उनका मंदिर आंदोलन से कोई वास्ता नहीं है."
वहीं अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि ने ट्रस्ट के अध्यक्ष के रूप में एक गृहस्थ व्यक्ति के मनोनयन पर सवाल उठाए हैं. नरेंद्र गिरि भी उन लोगों में शामिल थे जो ट्रस्ट में जगह चाहते थे और इसके लिए कोशिश भी कर रहे थे. हरिद्वार में मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा, "एक गृहस्थ व्यक्ति के अधीन संत लोग बैठक करेंगे, यह संत समाज का अपमान है."
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Image captionअयोध्या के कारसेवकपुरम में प्रस्तावित राम मंदिर का एक मॉडल
राम मंदिर ट्रस्ट में नाम न होने को लेकर न सिर्फ़ संत बल्कि मंदिर आंदोलन में अहम भूमिका निभा चुके कुछ नेताओं ने भी सवाल उठाए हैं. उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह और मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने ट्रस्ट में पिछड़े वर्ग को भी प्रतिनिधित्व देने की बात कही है. उमा भारती का कहना है, "मंदिर आंदोलन का नेतृत्व पिछड़े वर्ग के लोगों ने ही किया था जिसमें कल्याण सिंह, मैं ख़ुद, विनय कटियार जैसे तमाम लोग शामिल थे. ऐसे में जब दलित समुदाय को प्रतिनिधत्व मिला है तो पिछड़ों को भी मिलना चाहिए."
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ग़ुस्सा अपने चरम पर

बहरहाल, ट्रस्ट की घोषणा के साथ ही संतों का जो ग़ुस्सा अपने चरम पर पहुंच चुका था, वह कुछ देर के लिए शांत ज़रूर हुआ है लेकिन कितने दिनों तक बना रहेगा, यह कहना मुश्किल है. ऐसा माना जा रहा है कि महंत नृत्यगोपाल दास और चंपत राय को ट्रस्ट में समायोजित किया जा सकता है लेकिन संतों की नाराज़गी सिर्फ़ इतने से ही थम जाएगी, यह कहना मुश्किल है.
योगेश मिश्र कहते हैं, "संत समाज की नाराज़गी किसी एक व्यक्ति के समायोजन तक सीमित नहीं है. नाराज़गी और विवाद के इतने पहलू हैं कि सबको संतुष्ट करना संभव ही नहीं है. दूसरी ओर, नाराज़ होने वाले संतों की दावेदारी के अपने आधार हैं और मंदिर निर्माण के लिए सभी ने संघर्ष किया था. ऐसे में किसी की भी दावेदारी ख़ारिज करना आसान नहीं है. सरकार ने इसीलिए एक साथ इन सबकी दावेदारी ख़ारिज कर दी थी लेकिन नृत्यगोपालदास यदि शामिल होते हैं तो इस विवाद का और बढ़ना तय है."
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