पाकिस्तानी संसद में अर्दोआन ने कश्मीर को अपना बताया तो बजती रहीं तालियां

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Image captionपाकिस्तानी संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन
तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने शुक्रवार को पाकिस्तानी संसद के संयुक्त सत्र को चौथी बार संबोधित किया.
इस संबोधन में उन्होंने पाकिस्तान को समर्थन जारी रखने का वादा किया और कश्मीर के साथ अन्य मुद्दों पर भी समर्थन देने की बात कही.
अर्दोआन ने कहा कि वो अल्लाह के शुक्रगुज़ार हैं कि उन्हें पाकिस्तान की संसद को संबोधित करने का मौक़ा मिला. तुर्की के राष्ट्रपति ने कहा कि पाकिस्तान में उनका जिस तरह से स्वागत किया गया उससे वो अभिभूत हैं.
अर्दोवान ने कहा, ''पाकिस्तान में आने के बाद किसी भी मामले में अजनबीपन जैसा नहीं लगता है. हमें लगता है कि यह अपना घर है. एशिया में पाकिस्तान इस्लामिक दुनिया का एक समृद्ध इलाक़ा है. पाकिस्तान और तुर्की में जिस भाईचारे का संबंध है वो दो राष्ट्रों में कम ही देखने को मिलता है. हम दोनों के संबंध प्रशंसनीय हैं. पाकिस्तान ने तुर्की का हर मुश्किल वक़्त में साथ दिया है.''

'कश्मीर जैसा आपके लिए है वैसा ही मेरे लिए'

अर्दोआन ने कहा कि कश्मीर जितना अहम पाकिस्तान के लिए है उतना ही तुर्की के लिए भी है.
तुर्की के राष्ट्रपति ने कहा, ''हमारे कश्मीरी भाई और बहन दशकों से पीड़ित हैं. हम एक बार फिर से कश्मीर पर पाकिस्तान के साथ हैं. हमने इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में उठाया था. कश्मीर का मुद्दा जंग से नहीं सुलझाया जा सकता. इसे इंसाफ़ और निष्पक्षता से सुलझाया जा सकता है. इस तरह का समाधान ही सबके हक़ में है. तुर्की इंसाफ़, शांति और संवाद का समर्थन करता रहेगा.''
जब अर्दोआन ने कश्मीर पर बोलना शुरू किया तो पाकिस्तानी संसद तालियों से गूंज गई. पाकिस्तानी सांसद संसद में देर तक टेबल थपथपाते रहे. अर्दोआन ने कहा कि वो कश्मीरियों को कभी नहीं भूल सकते हैं.
तुर्की के राष्ट्रपति ने कहा, ''पाकिस्तान और तुर्की का रिश्ता मोहब्बत का रिश्ता है. पाकिस्तान का दुःख और दर्द हमारा दुख और दर्द है. पाकिस्तान की ख़ुशी हमारी ख़ुशी है. हम इस देश के लोगों को कैसे भूल सकते हैं जो तुर्की के लिए दुआ मांगते हैं. हमारा रिश्ता मोहब्बत पर टिका है न कि स्वार्थ पर. हमारा संबंध छोटे हितों को लेकर नहीं लड़खड़ाता है. हम अतीत की तरह आगे भी पाकिस्तान का समर्थन करते रहेंगे. तुर्की पाकिस्तान को फ़ाइनैंशियल एक्शन टास्क फोर्स के मामले में भी समर्थन करेगा. पाकिस्तान शांति और स्थिरता के रास्ते पर है और ये कुछ दिनों में नहीं आता बल्कि इसमें वक़्त लगता है.''
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अर्दोआन ने कहा, ''पाकिस्तान ने जिस तरह से आतंकवाद के ख़िलाफ़ युद्ध किया वो प्रशंसनीय है. पाकिस्तान धार्मिक कट्टरता का शिकार रहा है. इस मुल्क ने बहुत कुछ बलिदान किया है. मुस्लिम भाईचारे को कोई तोड़ नहीं सकता है. हमें एक दूसरे के साथ खड़े होने की ज़रूरत है. मुसलमान जहां भी पीड़ित हैं, हमें उन्हें समर्थन करने की ज़रूरत है. यह कोई मायने नहीं रखता है कि मुसलमान कहां के हैं. तुर्की ने लीबिया, यमन, सीरिया और फ़लस्तीन में अहम भूमिका निभाई है. हमने बेगुनाह मुसलमानों को बचाने में अहम भूमिका निभाई है.''
अर्दोआन ने कहा कि इस्लामिक दुनिया में मतभेदों को मिटाने की ज़रूरत है. उन्होंने कहा, ''हमें ख़ासकर फ़लस्तीन, साइप्रस और कश्मीर में न्यायसंगत समाधान करने की ज़रूरत है. राष्ट्रपति ट्रंप का मध्य-पूर्व प्लान कोई शांति योजना नहीं है बल्कि यह क़ब्ज़े की योजना है. इसराइल हमारे अल-क़ुद्स अल-शरीफ़ पर हमला किया तो हम कड़ा रुख़ अपनाएंगे. हम हरम अल-शरीफ़ को इसराइल की दया पर नहीं छोड़ सकते हैं.''
पाकिस्तानी संसद में राष्ट्रपति अर्दोआन प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के साथ पहुंचे. इनके साथ पाकिस्तान की नेशनल असेंबली के स्पीकर असद क़ैसर और सीनेट के चेयरमैन सादिक़ संजारनी भी थे. इससे पहले 2016 में अर्दोआन ने नवाज़ शरीफ़ के वक़्त में पाकिस्तानी संसद को संबोधित किया था. तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन गुरुवार को पत्नी के साथ पाकिस्तान के दो दिवसीय दौरे पर पहुंचे हैं. राष्ट्रपति अर्दोआन के स्वागत में इमरान ख़ान और उनकी कैबिनेट एयरपोर्ट पर खड़ी थी.
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पाकिस्तान और तुर्की के संबंध
पाकिस्तान और तुर्की के बीच संबंध भारत की तुलना में काफ़ी अच्छे रहे हैं. दोनों मुल्क़ इस्लामिक दुनिया के सुन्नी प्रभुत्व वाले हैं. अर्दोआन के पाकिस्तान से हमेशा से अच्छे संबंध रहे हैं.
जब जुलाई 2016 में तुर्की में सेना का अर्दोआन के ख़िलाफ़ तख्तापलट नाकाम रहा तो पाकिस्तान खुलकर अर्दोआन के पक्ष में आया था. पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने अर्दोआन को फ़ोन कर समर्थन किया था. इसके बाद शरीफ़ ने तुर्की का दौरा भी किया था. तब से अर्दोआन और पाकिस्तान के संबंध और अच्छे हुए हैं.
2017 से तुर्की ने पाकिस्तान में एक अरब डॉलर का निवेश किया है. तुर्की पाकिस्तान में कई परियोजनाओं पर काम कर रहा है. वो पाकिस्तान को मेट्रोबस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम भी मुहैया कराता रहा है. दोनों देशों के बीच प्रस्तावित फ़्री ट्रेड एग्रीमेंट को लेकर अब भी काम चल रहा है.
अगर दोनों देशों के बीच यह समझौता हो जाता है कि तो द्विपक्षीय व्यापार 90.0 करोड़ डॉलर से बढ़कर 10 अरब डॉलर तक पहुँच सकता है.
पाकिस्तान में टर्किश एयरलाइंस का भी काफ़ी विस्तार हुआ है. इस्तांबुल रीजनल एविएशन हब के तौर पर विकसित हुआ है. ज़्यादातर पाकिस्तानी तुर्की के रास्ते पश्चिम के देशों में जाते हैं.
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हालांकि पाकिस्तानियों को तुर्की में जाने के लिए वीज़ा की ज़रूरत पड़ती है. अगर फ़्री ट्रेड एग्रीमेंट हो जाता है तो दोनों देशों के बीच संबंध और गहरे होंगे. तुर्की में हाल के वर्षों में पश्चिम और यूरोप के पर्यटकों का आना कम हुआ है ऐसे में तुर्की इस्लामिक देशों के पर्यटकों को आकर्षित करना चाहता है.
पाकिस्तान के लिए तुर्की लंबे समय से आर्थिक और सियासी मॉडल के रूप में रहा है. लेकिन वक़्त के साथ चीज़ें काफ़ी बदल गई हैं. पाकिस्तानी सेना के पूर्व प्रमुख और पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ तुर्की के संस्थापक मुस्तफ़ा कमाल पाशा के प्रशंसक रहे हैं.
मुशर्रफ़ पाशा के सेक्युलर सुधारों और सख़्त शासन की प्रशंसा करते रहे हैं. पाकिस्तान के वर्तमान प्रधानमंत्री इमरान ख़ान अर्दोआन की प्रशंसा करते रहे हैं.
2016 में तुर्की में तख़्तापलट नाकाम करने पर इमरान ख़ान ने अर्दोआन को नायक कहा था. ज़ाहिर है इमरान ख़ान भी नहीं चाहते हैं कि पाकिस्तान में राजनीतिक सरकार के ख़िलाफ़ सेना का तख्तापलट हो, जिसकी आशंका पाकिस्तान में हमेशा बनी रहती है.

सैन्य और सुरक्षा संबंध

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तुर्की-पाकिस्तानी एकता दशकों से साफ़ दिखती रही है. दोनों देश एक दूसरे को अपने आतंरिक मसलों पर समर्थन करते रहे हैं. दोनों देशों की क़रीबी अज़रबैजान को लेकर भी है.
तीनों देशों की यह दोस्ती आर्मेनिया को भारी पड़ती है. पाकिस्तान दुनिया का एकमात्र देश है जिसने आर्मेनिया को संप्रभु राष्ट्र की मान्यता नहीं दी है. अज़रबैजान विवादित इलाक़ा नागोर्नो-काराबाख़ पर अपना दावा करता है और पाकिस्तान भी इसका समर्थन करता है. तुर्की का भी इस मामले में यही रुख़ है.
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इसके बदले में तुर्की पाकिस्तान को कश्मीर पर समर्थन देता है. पिछले साल फ़रवरी में भारत ने पाकिस्तान के बालाकोट में कथित चरमपंथी कैंपों पर एयर स्ट्राइक का दावा किया तो दोनों देशों के बीच तनाव काफ़ी बढ़ गया था. पाकिस्तान ने एक भारतीय पायलट को गिरफ़्तार कर लिया था जिसे बाद में छोड़ दिया था. पाकिस्तान के इस क़दम की राष्ट्रपति अर्दोआन ने तारीफ़ की थी.
पाँच अगस्त को जब भारत ने अपने नियंत्रण वाले जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी किया तब भी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने राष्ट्रपति अर्दोआन से संपर्क किया और उन्होंने पाकिस्तान के रुख़ का समर्थन किया.
अर्दोआन ख़ुद को मुस्लिम दुनिया के बड़े नेता और हिमायती के तौर पर भी पेश करते हैं. हालांकि दोनों देशों में भले दोस्ती है लेकिन दोनों के दोस्त एक ही नहीं हैं. तुर्की और चीन के संबंध अच्छे नहीं हैं लेकिन चीन और पाकिस्तान के संबंध बहुत अच्छे हैं. तुर्की चीन में वीगर मुसलमानों के प्रति सरकार व्यवहार की खुलकर आलोचना करता है जबकि पाकिस्तान चुप रहता है.
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