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कोरोना लॉकडाउन: गांवों में भूख से जूझते ग़रीब लोग, फ़ेल होती सरकारी व्यवस्था


झारखंड
Image captionलक्षु लोहरा

भारत में कोरोनावायरस के मामले

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कुल मामले

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353

मौतें

स्रोतः स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय
19: 2 IST को अपडेट किया गया
भूख से लक्षु लोहरा और सोमरिया देवी की पहचान कोई नई नहीं थी, लेकिन अबकी भूख मौत को साथ लाई थी.
'मांग-चांग, चौका-बर्तन या दूसरों की मदद से गुज़ारा' करने वाले लक्षु और सोमरिया को कई दिनों तक दाना नसीब नहीं हुआ और करुण गांव निवासी पुष्पा देवी के मुताबिक़ सोमरिया देवी की लॉकडाउन के आठवें दिन मौत हो गई.
लक्षु फ़िलहाल झारखंड प्रशासन से मिले 10 किलो चावल की मदद से ज़िंदा हैं और शायद आसपास हो रही इस बहस को चुपचाप सुन रहे कि उनकी बीवी की मौत भूख से हुई, जैसा सामाजिक कार्यकर्ता कह रहे हैं, या फिर बीमारी से, जो कि प्रशासन का कहना है.
लक्षु और सोमरिया के पास राशन कार्ड नहीं था, न ही वो किसी और सरकारी सहायता योजना में रजिस्टर्ड थे.
अचानक की गई तालाबंदी के बाद करोड़ों मज़दूरों के बेकार हो जाने और कई राज्यों से भुखमरी की ख़बरों की बात स्वयंसेवी संस्थाएं कर रही हैं.
रोजी-रोटी अधिकार अभियान ने केंद्रीय खाद्य मंत्री रामविलास पासवान को पत्र भेजा है जिसमें मांग की है कि राशन सबको मुहैया करवाया जाना चाहिए क्योंकि देश की कम-से-कम नौ करोड़ ज़रूरतमंद जन-वितरण प्रणाली के तहत पंजीकृत नहीं हैं. इन लोगों को सरकारी राहत स्कीमों का लाभ नहीं मिलेगा.
सामाजिक कार्यकर्ता सिराज कहते हैं बीपीएल कार्ड धारकों को सरकार के तीन माह के अतिरिक्त राशन की घोषणा की बजाए राशन डीलर एक माह का राशन देकर चलता कर दे रहे हैं, कई जगहों पर लोगों के राशन कार्ड महाजनों के पास गिरवी होने की भी ख़बरें हैं और बहुत सारा वर्ग ग़रीब होने के बावजूद सरकारी योजनाओं का हिस्सा कभी बन ही न पाया था.

रोज़गार और लोगों की आमदनी पर असर

कर्नाटक पीपुल्स यूनियन ऑफ़ सिविल लिबर्टीज़ ने राशन वितरण और सीनियर सीटिज़न पेंशन से जुड़े इन मुद्दों को हाई कोर्ट में उठाया है.
श्रम मंत्रालय के एक आंकड़े के मुताबिक़ मुल्क की 81 फ़ीसदी से ज़्यादा आबादी की मासिक आमदनी 18,000 रूपये से भी कम है और तालाबंदी की वजह से कारखाने और बहुत सारे व्यावसाय बंद हैं जिसका असर रोज़गार और लोगों की आमदनी पर पड़ेगा.
मुज़फ्फ़रपुर के महंत मनिहारी गांव की रहने वाली इंदु देवी के दो बेटे लॉकडाउन के ऐलान के बाद किसी तरह घर पहुंच पाए हालांकि सबसे छोटा बंगलुरू में फंस गया है और 'किसी तरह समय काट रहा है'.
भूमिहीन इंदु देवी का गुज़ारा 'मनरेगा में होने वाले कामों से चलता था लेकिन वो पिछले तीन महीने से बंद है.'
झारखंड भूख से मौत
Image captionइंदु देवी

मज़दूरी करने वालों के पास काम नहीं

मुज़फ़्फ़रपुर के ही रतनौली गांव के संजय साहनी कहते हैं, काफ़ी ग्रामवासी - महिला और पुरुष दोनों, पास के औद्योगिक क्षेत्रों में रोज सुबह काम पर जाकर शाम को वापस आ जाते थे, लेकिन अब वो रुका पड़ा है.
ठेला लगाने, छोटी गुमटियों में सामान बेचने वाले और भवन निर्माण में मज़दूरी करने वाले लोग बिना काम और कमाई के बैठे हैं, और हालांकि गेंहू कटाई का काम चल रहा है लेकिन 'बाहर से गांव वापिस आए लोग इस डर से वहां नहीं जा रहे और छिपे फिर रहे हैं कि कहीं किसी गांव वाले की शिकायत पर पुलिस या सरकारी अमला उन्हें अस्पताल लेकर जाकर न भर्ती करवा दे.'
इस बीच पुलिस पर लाठियाँ चलाने के रोप लग रहे हैं, सोमवार को मुज़फ्फ़रपुर के गोपालपुर बाज़ार में दुकानदारों और ख़रीदारों पर पुलिस की लाठी जमकर बरसी; इसका असर लोगों को मदद पहुंचाने के काम में भी आ रहा है.

भारत में कोरोनावायरस के मामले

यह जानकारी नियमित रूप से अपडेट की जाती है, हालांकि मुमकिन है इनमें किसी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के नवीनतम आंकड़े तुरंत न दिखें.
राज्य या केंद्र शासित प्रदेशकुल मामलेजो स्वस्थ हुएमौतें
महाराष्ट्र2337229160
दिल्ली15103028
तेलंगाना11735811
तमिलनाडु8791333
मध्य प्रदेश7305150
उत्तर प्रदेश657495
गुजरात6175526
आंध्र प्रदेश473149
केरल3791983
जम्मू और कश्मीर270164
कर्नाटक258659
हरियाणा199343
पश्चिम बंगाल190367
राजस्थान1761412
बिहार66261
पुडुचेरी55181
उत्तराखंड3570
हिमाचल प्रदेश32131
छत्तीसगढ़31100
असम3101
झारखंड2402
चंडीगढ़2170
लद्दाख15100
अंडमान निकोबार द्वीप समूह11100
गोवा750
पंजाब710
मणिपुर210
मिज़ोरम100
ओडिशा

स्रोतः स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय
19: 2 IST को अपडेट किया गया
केंद्र, राज्य और ज़िला प्रशासन बार-बार कहते रहे हैं कि आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई पर किसी तरह की कोई रोक नहीं है.
मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर इलाक़े में कार्यरत सुकर्मा फाउंडेशन की माया विश्वकर्मा और उनके साथियों को भोजन और लोगों की मदद के दूसरे सामानों को मोटरसाइकिल पर ढोना पड़ा क्योंकि पुलिस वाले गाड़ियां ज़ब्त कर रहे थे.
लोग डर के मारे ज़रूरी सामान तक लाने को बाज़ार तक नहीं जा पा रहे.
पन्ना लाल और उनकी पत्नी ब्लड प्रेशर के मरीज़ हैं, पिपरियां कलां गांव की मेडिकल स्टोर में दवा ख़त्म हो चुकी है, और उनका बाहर जा पाना मुमकिन नहीं हो पा रहा.
झारखंड
Image captionपन्ना लाल और उनकी पत्नी ब्लड प्रेशर के मरीज़ हैं

राहतों के साथ तालाबंदी जारी रहेगी

कोरोना राहत के तहत सरकार ने जनधन अकाउंट होल्डर्स के खाते में प्रति माह 500 रूपये (तीन माह के लिए), उज्जवला योजना के तहत तक़रीबन 800 रूपये जैसी मदद का ऐलान किया था और काफ़ी लोगों को ये पैसे मिले हुए हैं.
ग्रामीणों की सुविधा के लिए चलाए जाने वाले कॉमन सर्विस सेंटर में काम करने वाले एक व्यक्ति ने नाम न ज़ाहिर करने की शर्त पर बताया कि किन्हीं कारणों से बहुत सारे अकाउंट्स में 'खातेदार को लेन-देन की आज्ञा नहीं', 'प्लीज़ बैंक से संपर्क करें' और 'प्रक्रिया पूरी नहीं हुई है' जैसे संदेश आ रहे हैं जिनका निबटारा बैंक भी नहीं कर पा रहे.
महाराष्ट्र के बीड में रहने वाले कार्यकर्ता नामदेव चह्वण कहते हैं कि फ़सल कटाई के काम की समाप्ति के बाद हालात और बिगड़ेंगे, अभी तो लोगों के पास कुछ पैसे हैं और कुछ आमदनी गेंहू कटाई वग़ैरह से हो जा रही है.
ओडिशा, पंजाब, तेलंगाना और तमिलनाडु के बाद मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी तालाबंदी को आगे बढ़ाने की बात बात कह दी है. प्रधानमंत्री ने कहा कि कुछ जगहों में 20 के बाद राहतों के साथ तालाबंदी तीन मई तक जारी रहेगी.
नामदेव चह्वण कहते हैं लोगों को क़र्ज़, दुकानों से राशन तक मिलना बंद हो जाएगा या फिर उसके लिए उन्हें भारी मुनाफ़े देने होंगे.

राजनीतिक और सांस्कृतिक प्रभाव

जनहित स्वास्थ स्पेश्लिस्ट सिल्विया करपगम
Image captionजनहित स्वास्थ स्पेश्लिस्ट सिल्विया करपगम
जनहित स्वास्थ स्पेश्लिस्ट सिल्विया करपगम कहती हैं कि ये पूरी स्थिति आम लोगों ख़ास तौर पर ग़रीब तबक़े के स्वास्थ्य पर बुरा असर डालेगी, भारत में पहले से ही बच्चों और औरतों में पौष्टिकता की भारी कमी पाई जाती है.
अफ्रीकी और दलित मामलों के हार्वार्ड स्कॉलर सूरज येंगडे कहते हैं कि कोरोना का असर जहां इन सारे मामलों पर सीधी दिख रहा इसके राजनीतिक और सांस्कृतिक प्रभाव को भी पूरी तरह नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए.
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येंगडे कहते हैं कि प्रवासी मज़दूरों में अधिकतर पिछड़े, दलित और आदिवासी समाज से ताल्लुक रखते हैं और उन्होंने गांव-घर इसलिए छोड़ा था क्योंकि वो जातीय हिंसा, ग़रीबी जैसी समस्याओं से निजात चाहते थे, आज समय ने उन्हें वापिस फिर वहीं लाकर खड़ा कर दिया है.
पिछले सालों में हालांकि देश के शहरी इलाक़ों में आमदनी पहले के मुक़ाबले बेहतर हई है गांव में इसमें 8.8 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है, वहीं भारत के 83 फ़ीसद से कुछ कम घरों के पास एक हेक्टेयर से भी कम खेती की ज़मीन है.
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