कोरोना वैक्सीन: लोगों तक पहुँचने में लग सकते हैं ढाई साल


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वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइज़ेशन (डब्ल्यूएचओ) के कोविड-19 के लिए विशेष दूत डेविड नाबारो ने कहा है कि दुनिया की पूरी आबादी तक कोरोना वायरस की वैक्सीन पहुँचने में ढाई साल तक का वक़्त लग सकता है.
जिनेवा में डब्ल्यूएचओ के मुख्यालय से बीबीसी के साथ एक ख़ास इंटरव्यू में नाबारो ने कहा, "सभी अनुमान इस ओर इशारा कर रहे हैं कि एक सुरक्षित और प्रभावी वैक्सीन विकसित करने में कम से कम 18 महीने का वक़्त लग सकता है. हमें ऐसी कई वैक्सीन की ज़रूरत होगी. इसके बाद इस वैक्सीन की मैन्युफैक्चरिंग करने और इसे दुनिया की 7.8 अरब की आबादी को मुहैया कराने में एक साल और लग जाएगा."
नाबारो लंदन के इंपीरियल कॉलेज में ग्लोबल हेल्थ के प्रोफ़ेसर भी हैं.
वे कहते हैं कि लोगों को इस बात को समझना होगा कि अभी भी ऐसे कुछ वायरस मौजूद हैं जिनके लिए पिछले कई सालों से कोई सुरक्षित वैक्सीन नहीं बन पाई है.

भारत की मुश्किलें क्या हैं?

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प्रोफ़ेसर नाबारो ने पूरी तरह से लॉकडाउन को लागू करने का साहसी क़दम उठाने के लिए भारत की तारीफ़ की.
लेकिन, उन्होंने यह चेतावनी भी दी कि ख़ासतौर पर मुंबई, चेन्नई, कोलकाता और दिल्ली समेत घनी आबादी वाले भारत को अनुमान से कहीं ज्यादा लंबे वक़्त के लिए सोशल डिस्टेंसिंग और आइसोलेशन का पालन करना पड़ सकता है.
उन्होंने कहा कि अगर ऐसा नहीं किया गया तो ज़्यादा भीड़भाड़ वाले इलाक़ों में इस वायरस को फैलने से रोकना मुश्किल हो सकता है.

भारत में कोरोनावायरस के मामले

यह जानकारी नियमित रूप से अपडेट की जाती है, हालांकि मुमकिन है इनमें किसी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के नवीनतम आंकड़े तुरंत न दिखें.
राज्य या केंद्र शासित प्रदेशकुल मामलेजो स्वस्थ हुएमौतें
महाराष्ट्र244275125921
गुजरात89033246537
तमिलनाडु8718213461
दिल्ली7639251286
राजस्थान41262378117
मध्य प्रदेश39861860225
उत्तर प्रदेश3664187382
पश्चिम बंगाल2173612198
आंध्र प्रदेश2090105646
पंजाब191417132
तेलंगाना132683032
जम्मू और कश्मीर93445510
कर्नाटक92543331
बिहार8313836
हरियाणा78034211
केरल5244894
ओडिशा4371163
चंडीगढ़187283
झारखंड172793
उत्तराखंड69461
हिमाचल प्रदेश65392
असम65392
छत्तीसगढ़59540
लद्दाख42210
अंडमान निकोबार द्वीप समूह33330
पुडुचेरी1391
गोवा770
मणिपुर220
मिज़ोरम100

स्रोतः स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय
13: 4 IST को अपडेट किया गया
भारत में कोविड-19 का पहला मामला इस साल 30 जनवरी को सामने आया था. इसके बाद 24 मार्च को पूरे देश में लॉकडाउन लागू कर दिया गया. तब तक देश में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या 550 के पार चली गई थी.
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तब से इस लॉकडाउन को तीन बार बढ़ाया जा चुका है. हालांकि, इस दौरान धीरे-धीरे पाबंदियों को हटाया गया है और आवश्यक सेवाओं की आपूर्ति की इजाज़त दी गई है.
इसके बावजूद अब तक भारत में कोरोना वायरस के 74 हज़ार से ज़्यादा मामले दर्ज हो चुके हैं. देश में अब तक कोरोना से 2415 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है.
टेस्टिंग बढ़ने के साथ मरीज़ों की संख्या बढ़ रही
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यह पूछे जाने पर कि क्या टेस्टिंग की संख्या बढ़ाने के चलते ज़्यादा मामले सामने आ रहे हैं और क्या इन मामलों में आगे और तेज़ बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है, कोविड-19 से निबटने की रणनीतियों की देखरेख कर रहे डब्ल्यूएचओ के विशेष दूत डेविड नाबारो ने इस शंका पर सहमति जताई.
नाबारो ने कहा, "जब आप टेस्ट करते हैं तभी इस बीमारी का पता चलता है. टेस्टिंग हर जगह उपलब्ध नहीं है. भारत और पूरी दुनिया में कमोबेश ऐसी ही स्थिति है. लेकिन, इसके दूसरे इंडिकेटर भी हैं. मसलन, हॉस्पिटलों में जो हो रहा है उससे इसका पता चल रहा है. क्या हॉस्पिटलों में बड़ी तादाद में कोविड-19 से जुड़ी हुई बीमारियों वाले मरीज़ आ रहे हैं? अगर ऐसा हो रहा है तो समझ लीजिए कि यह वायरस हमारी कोशिशों से आगे निकल रहा है. साथ ही हेल्थ प्रोफ़ेशनल्स और मेडिकल इंश्योरेंस सर्विसेज़ के संपर्क में रहना भी मददगार साबित होता है."

मज़दूरों की समस्या के बीच सरकार की मुश्किल

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भारत सरकार के अचानक देशव्यापी लॉकडाउन लागू करने से दूसरे शहरों में काम करने के लिए रह रहे लाखों मज़दूर खाने-पीने और ठहरने के इंतज़ाम के बग़ैर उन्हीं शहरों में फँस गए.
मज़दूरों को हो रही इस परेशानी के लिए भारत की आलोचना भी हुई.
लेकिन, डेविड नाबारो मानते हैं कि निश्चित तौर पर यह एक मुश्किल फ़ैसला रहा होगा क्योंकि इसके साथ बड़ी मानवीय और आर्थिक क़ीमत जुड़ी हुई है.
वह कहते हैं, "पूरी दुनिया में लोग सरकारों और यहां तक कि डब्ल्यूएचओ तक की इस बात के लिए आलोचना कर रहे हैं कि उन्होंने पहले ही इस महामारी को लेकर ख़तरे की चेतावनी क्यों नहीं दी. स्पेन, इटली, ब्रिटेन और अमरीका के लोग पूछ रहे हैं कि क्या हम इससे निबटने के लिए पहले से इंतज़ाम नहीं कर सकते थे? निश्चित तौर पर अब हमें लग रहा है कि आप जितनी जल्दी क़दम उठाते हैं उतना ही अच्छा रहता है. लेकिन, यह सोचिए कि भारत में पहला केस कब सामने आया था और तब ही आप एक पॉलिसी लागू कर देते तो इसका बुरा असर लाखों-करोड़ों लोगों पर तत्काल पड़ता. ऐसे में अगर आप पीछे मुड़कर देखते हैं तो आपको राजनीतिक तौर पर ऐसी चीज़ों को देखना होगा."

भारत में बिना लक्षण वाले मरीज़ों ने हालात को जटिल बनाया?

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हालांकि, भारत में कोरोना से संक्रमितों की संख्या लगातार बढ़ रही है, लेकिन आधिकारिक आँकड़ों से पता चलता है कि भारत के सभी राज्यों में कुल कोरोना वायरस मरीज़ों में से 50 से 70 फ़ीसदी ने ख़ुद को एसिम्पटोमैटिक यानी बिना लक्षणों वाला बताया है.
एसिम्पटोमैटिक कोरोना वायरस मरीज़ में बीमारी के कोई स्पष्ट लक्षण नहीं दिखाई देते हैं क्योंकि यह मज़बूत इम्यून सिस्टम समेत कई फ़ैक्टरों पर निर्भर करता है. साथ ही एक्सपर्ट मानते हैं कि अगर टेस्टिंग के ज़रिए पता न लगाया जाए तो ऐसे शख्स वायरस के कैरियर हो सकते हैं जो इसे दूसरे लोगों में इसे ट्रांसफ़र कर सकते हैं.
इंटरव्यू के दौरान नाबारो ने भारत में बड़ी संख्या में एसिम्पटोमैटिक मरीज़ों के आने से पैदा हो रही मुश्किलों के बारे में समझाया.
उन्होंने कहा, "चूंकि भारत में हल्के या न के बराबर लक्षणों वाले कोरोना के पॉज़िटिव केसों की संख्या ज़्यादा है, ऐसे में इससे निबटने के लिए सबसे अच्छी रणनीति बनाना एक बड़ी चुनौती है. जब किसी व्यक्ति में कोई लक्षण नहीं दिख रहा हो तो उसे उसका कामकाज या कमाई छुड़वाकर सेल्फ़-आइसोलेशन में डालना बेहद मुश्किल है. असलियत यह है कि पूरी दुनिया बेहद अलग-अलग हालातों वाली है और इससे इस महामारी को नियंत्रित करने में और ज़्यादा मुश्किलें आ रही हैं."

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