क्या चाबहार पोर्ट पर भारत फिर से फोकस बढ़ा रहा है?
- प्रवीण शर्मा
- बीबीसी हिंदी के लिए
भारत, ईरान और उज़्बेकिस्तान के बीच पहली त्रिपक्षीय वर्किंग ग्रुप की बैठक सोमवार को हुई. तीनों देशों के बीच व्यापार, आवाजाही और क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ाने के लिए चाबहार पोर्ट के संयुक्त रूप से इस्तेमाल को लेकर यह बैठक हुई है.
विदेश मंत्रालय (एमईए) की एक आधिकारिक रिलीज़ में कहा गया है कि इस बैठक में शामिल हुए तीनों देशों ने चाबहार पोर्ट के इस्तेमाल को लेकर चर्चा की है. रिलीज़ में कहा गया है कि तीनों पक्षों ने कोविड-19 महामारी के दौरान मानवीय सहायता में मदद के लिए इस बंदरगाह की भूमिका की भी सराहना की.
इस बैठक में जनवरी 2021 में भारत की मेज़बानी में आयोजित होने वाले इंटरनेशनल मैरीटाइम समिट के दौरान "चाबहार दिवस" आयोजित करने के भारत के प्रस्ताव का भी समर्थन किया गया.
इसी महीने 11 तारीख को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उजबेकिस्तान के राष्ट्रपति शावकत मिर्जियोयेव के बीच वर्चुअल समिट हुई थी. दोनों नेताओं की इस बैठक में चाबहार पोर्ट को लेकर चर्चा हुई थी.
इस पहल के साथ ही ये लग रहा है कि भारत एक बार फिर से चाबहार प्रोजेक्ट पर अपना फोकस बढ़ा रहा है.
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दरअसल, भारत के लिए चाबहार सेंट्रल एशिया और कॉकेशस रीजन में जाने का दरवाजा है. ट्रेन कनेक्टिविटी से भी बड़ा फायदा होगा.
रणनीतिक मामलों के जानकार कमर आग़ा कहते हैं कि इंडिया चाबहार और ईरान को नहीं छोड़ सकता है.
वे कहते हैं, "बीच में निर्णय लेने में भारत ने थोड़ी हिचकिचाहट दिखाई और इस वजह से इस प्रोजेक्ट में भी देरी हुई, लेकिन अब सरकार को लग रहा है कि कहीं ये हमारे हाथ से निकल न जाए. चीन के ईरान में निवेश को देखते हुए भी भारत सक्रियता दिखा रहा है."
वे कहते हैं, "अगर ईरान चीन के हाथ में चला गया तो हमारे लिए सेंट्रल एशिया और अफ़ग़ानिस्तान जाने का रास्ता बंद हो जाएगा. साथ ही एक मुश्किल भारत के लिए पैदा हो जाएगी."
ऐसा नहीं है कि अकेले भारत के लिए ईरान की ज्यादा जरूरत है, ईरान भी भारत पर भरोसा करता है और उसे भी भारत की उतनी ही जरूरत है.
आग़ा कहते हैं, "ईरान के लिए भारत महत्वपूर्ण है. भारत बड़ा मुल्क है और तेल का आयातक है. भारत से ईरान की कुछ चीज़ों को लेकर भले ही नाराजगी है, लेकिन ईरान के बड़े हितों में भारत ज्यादा ज़रूरी हो जाता है. ऐसे में वे चाहते हैं कि चाबहार प्रोजेक्ट को भारत ही करे."
इसके अलावा, इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (आईएनएसटीसी) भारत, ईरान, अफगानिस्तान, आर्मेनिया, अज़रबैजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप के बीच माल ढुलाई के लिए जहाज, रेल और सड़क मार्ग का 7,200 किलोमीटर लंबा नेटवर्क है. भारत इस नॉर्थ-साउथ कॉरिडोर में भागीदार है और इसमें चाबहार एक अहम बिंदु है. इस लिहाज से भी भारत के लिए चाबहार अहम हो जाता है.
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चाबहार पोर्ट क्या है?
चाबहार में दो पोर्ट हैं- शाहिद कलंतरी और शाहिद बहिश्ती.
इन दोनों में पांच-पांच बर्थ हैं. शिपिंग मिनिस्ट्री की प्रोजेक्ट इनवेस्टमेंट इकाई इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल ने यहां दो कंटेनर बर्थ डिवेलप करने के लिए जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट और गुजरात के कांडला पोर्ट ट्रस्ट के साथ संयुक्त उद्यम बनाया है. इस पर 8.5 करोड़ डॉलर का निवेश किया गया है.
मई 2016 नरेंद्र मोदी ने ईरान दौरा किया था. 15 साल में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की यह पहली ईरान विजिट थी. इस दौरे में मोदी ने भारत, ईरान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच एक त्रिपक्षीय संबंध के लिए ईरान में चाबहार पोर्ट को विकसित और ऑपरेट करने के लिए 55 करोड़ डॉलर लगाने का ऐलान किया था.
ईरान काफी पहले से चाहता था कि भारत इस प्रोजेक्ट को विकसित करे. लेकिन, भारत ने इस प्रोजेक्ट को पूरा करने में काफी देरी की है.
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उज़्बेकिस्तान क्यों हुआ शामिल?
उज़्बेकिस्तान चाबहार पोर्ट को हिंद महासागर के लिए एक ट्रांजिट पोर्ट के तौर पर इस्तेमाल करने के लिए पहले से दिलचस्पी दिखा रहा है. इसके अलावा यह पोर्ट सेंट्रल एशिया और रूस के पूर्वी हिस्सों जैसे जमीन से घिरे हिस्सों को यह पोर्ट ज्यादा विकल्प मुहैया कराता है.
इसी को देखते हुए भारत भी सेंट्रल एशिया के कई देशों को इस प्रोजेक्ट में जोड़ने के लिए जोर लगा रहा है. कज़ाख्स्तान ने भी इस पोर्ट में अपनी दिलचस्पी दिखाई है.
ईरान पर कड़े आर्थिक प्रतिबंधों के बावजूद चाबहार पोर्ट को विकसित करने की भारतीय कोशिशों को इन प्रतिबंधों में शामिल नहीं किया गया है.
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) में अंतरराष्ट्रीय मामलों के प्रोफ़ेसर एके पाशा कहते हैं कि भारत लगातार कोशिश कर रहा है कि किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, कज़ाख्स्तान जैसे देश भी इस प्रोजेक्ट में साथ जुड़ें.
अमेरिकी फैक्टर
अमेरिका में जो बाइडन का राष्ट्रपति बनना तय होने के साथ भारत को अब लग रहा है कि वह ईरान के रास्ते सेंट्रल एशिया तक पहुंच बना सकता है.
प्रो. पाशा कहते हैं, "ट्रंप के शासन के दौरान भारत को चाबहार पोर्ट के जरिए अफ़ग़ानिस्तान माल भेजने की छूट दी गई थी. लेकिन, यह छूट ईरान के रास्ते सेंट्रल एशिया को सामान भेजने की छूट नहीं थी. इस वजह से कंटेनर ईरान से इन देशों को नहीं जा पा रहे थे."
प्रो. पाशा कहते हैं, "ईरान चाहता है कि उसके ऊपर लगाए गए प्रतिबंध हटा दिए जाएं. इसी वजह से भारत ने भी चाबहार पर अपना फोकस बढ़ा दिया है."
रेल लिंक
पोर्ट विकसित करने के अलावा भारत चाबहार पोर्ट से अफ़गानिस्तान तक पहुंचने के लिए एक रेलवे लिंक विकसित करने पर भी जोर लगा रहा है.
चाबहार-जाहेदान रेलवे प्रोजेक्ट को विकसित करने के लिए भारत और ईरान के बीच 2016 में ही एक सहमति पत्र पर दस्तखत हो चुके हैं.
हालांकि, रेल लिंक विकसित करने का काम बीच में अड़चनों में फंसा रहा. इसी साल सितंबर में लोकसभा में विदेश राज्यमंत्री वी मुरलीधरन ने बताया कि दोनों पक्ष इस मसले पर काम कर रहे हैं.
दरअसल, उज़्बेकिस्तान का अफ़ग़ानिस्तान तक एक रेलवे लिंक मौजूद है. इसे ही चाबहार पोर्ट तक ईरानी रेलवे लिंक के जरिए जोड़ दिया जाएगा. इस तरह से अफ़ग़ानिस्तान, उज़्बेकिस्तान और ईरान तक बने इस रेल लिंक से इन देशों की सीधे हिंद महासागर तक पहुंच हो जाएगी.
ईरान अब खुद अफ़ग़ानिस्तान तक रेल लिंक बनाना चाहता है. उसने पिछले हफ्ते ही हेरात तक रेल कनेक्टिविटी बनाने का ऐलान किया है.
प्रो. पाशा कहते हैं, "भारत के लिए यह फायदेमंद है. इस वजह से भी भारत चाबहार पोर्ट में अपनी दिलचस्पी दिखा रहा है."
अफ़ग़ानिस्तान में पहुंच मजबूत करने का जरिया
इस कनेक्टिविटी से भारत को अफ़ग़ानिस्तान में अपनी पहुंच को और बढ़ाने में भी मदद मिलेगी.
भारत पाकिस्तान से गुजरे बगैर सीधे चाबहार पोर्ट से होकर अफ़ग़ानिस्तान पहुंच पाएगा और इस तरह से अफगानिस्तान में चल रहे भारतीय कामों के लिए पाकिस्तान पर निर्भरता ना के बराबर रह जाएगी.
भारत पिछले कुछ वक्त से अफ़ग़ानिस्तान को गेहूं और दूसरी सामग्री को चाबहार पोर्ट के जरिए ही भेज रहा है.
अफगानिस्तान को भारत की ओर से 75,000 टन गेहूं चाबहार के जरिए ही भेजे गए हैं. दूसरी ओर, अफगानिस्तान से भारत को होने वाला निर्यात भी इसी रूट के जरिए हो रहा है.
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कारोबार में बढ़ोतरी
इस प्रोजेक्ट पर भारत इस वजह से भी जोर दे रहा है क्योंकि यह व्यापार बढ़ाने के लिए मददगार साबित हो रहा है. ईरान को भी इस पोर्ट से फायदा हो रहा है.
चाबहार पोर्ट के पूरी तरह से चालू हो जाने के बाद भारत के लिए कई सामानों का आयात करने में आसानी होगी. भारत में तेल के आयात पर होने वाला खर्च भी काफी कम हो जाएगा.
विदेश राज्यमंत्री वी मुरलीधरन ने सितंबर में लोकसभा में बताया था कि भारतीय कंपनी इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल ने इस पोर्ट के ऑपरेशंस को दिसंबर 2018 में अपने हाथ ले लिया था और तब से यह कंपनी 12 लाख टन बल्क कार्गो और करीब 8,200 कंटेनर्स को हैंडल कर चुकी है.
अमेरिका में जो बाइडन के राष्ट्रपति बनने के बाद अगर ईरान से प्रतिबंध कम किए जाते हैं और ख़ासतौर पर ईरान को भारत को ज्यादा तेल बेचने की इजाजत दे दी जाती है तो भारत के लिए इस खरीदारी की कीमत काफी कम बैठेगी क्योंकि भारत चाबहार पोर्ट के जरिए इस तेल का आयात कर पाएगा.
ख़बरों के मुताबिक़, इसी साल फरवरी में पूरे हुए 11 महीनों के दौरान चाबहार पोर्ट से होने वाले निर्यात में 190 गुने का इजाफ़ा हुआ है.
भारत और ईरान इस प्रोजेक्ट को विकसित करने के लिए लगने वाले इक्विपमेंट्स पर टैरिफ को तरजीही आधार पर तय करने पर सहमत हो चुके हैं.
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चीन को रोकने की कोशिश
चाबहार पोर्ट चीन की अरब सागर में मौजूदगी को चुनौती देने के लिहाज से भी भारत के लिए मददगार साबित होगा. इसके अलावा, चीन पाकिस्तान में ग्वादर पोर्ट को विकसित कर रहा है. यह पोर्ट चाबहार पोर्ट से सड़क के रास्ते केवल 400 किलोमीटर दूर है जबकि समुद्र के जरिए यह दूरी महज 100 किमी ही बैठती है. इस तरह से ग्वादर और चाबहार पोर्ट को लेकर भी भारत और चीन के बीच टक्कर है.
इसके अलावा, रणनीतिक लिहाज से भी ग्वादर पोर्ट में चीनी मौजूदगी भारत के लिए दिक्कत पैदा कर सकती है. ऐसे में चाबहार पोर्ट में भारत का होना फायदेमंद साबित होगा.
क़मर आग़ा कहते हैं, "ईरान में चीन भारी निवेश कर रहा है और इसे देखते हुए भारत सजग है. चाबहार पोर्ट भारत के लिए इस वजह से भी जरूरी है."
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