जानें क्यों और पीटा गया एक दलित के बच्चे को ? बेचारे दलितों का क्या होगा ? || आखिर इन दलितों ने किसी का क्या बिगाड़ा है ? किसी का कुछ छीन लिया है क्या? क्या हक़ मार कर बैठ गया है देश का दलित ?
गुजरात: दलित युवक को कथित ऊंची जाति जैसा सरनेम रखने की वजह से पीटा
- भार्गव पारिख
- बीबीसी गुजराती, अहमदाबाद
"मेरे माता-पिता खेतिहर मज़दूर हैं, लेकिन उनका सपना है कि हम दो भाई और बहन पढ़-लिखकर अच्छी ज़िंदगी जीएं. वो हमारी पढ़ाई के लिए एक-एक पैसा जोड़ते हैं."
"लॉकडाउन की वजह से सारे कॉलेज बंद हैं और कुछ पैसे कमाने के लिए मैं सौराष्ट्र से साणंद आया था. लेकिन मुझे नहीं पता था कि मेरा सरनेम और शर्ट के बटन खोलकर रखने की मेरी आदत मुझे मुसीबत में डाल देगी और मुझे अपनी नौकरी छोड़नी पड़ेगी."
ये 21 साल के भरत जाधव की कहानी है, जो अनुसूचित जाति से ताल्लुक़ रखते हैं. उन्हें कथित ऊंची जाति के आदमियों ने सिर्फ़ इसलिए पीटा क्योंकि उनका सरनेम कथित ऊंची जाति वाले सरनेम जैसा था.
जाधव कॉमन सरनेम है जिसे दलित और राजपूत दोनों समुदाय के लोग इस्तेमाल करते हैं.
घटना को लेकर साणंद जीआईडीसी पुलिस थाने में एक शिकायत दर्ज कराई गई है.
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मामला क्या है
भरत गुजरात के गिर सोमनाथ ज़िले के वेरावल तालुक़ा के भेटड़ी गांव के रहने वाले हैं. पिछले कुछ महीनों से वो अहमदाबाद के नज़दीक साणंद जीआईडीसी में एक कारख़ाने में काम कर रहे थे.
भरत के पिता बाबूभाई जाधव वेरावल तालुक़ा में एक खेतिहर मज़दूर के तौर पर काम करते हैं. बाबूभाई का सपना है कि वो अपने बच्चों को अच्छे से पढ़ाएं-लिखाएं. अपने पिता का सपना पूरा करने के लिए भरत साणंद के कारख़ाने में काम करने लगे.
10वीं पास करने के बाद भरत ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग का कोर्स किया और राजकोट में आगे की पढ़ाई कर रहे हैं. पढ़ाई के साथ-साथ परिवार की आर्थिक मदद के लिए भरत पार्ट-टाइम जॉब भी करते हैं.
बीबीसी गुजराती से बात करते हुए भरत ने कहा, "लॉकडाउन के चलते स्कूल और कॉलेज बंद होने की वजह से मैं घर पर था. तब मेरे एक दोस्त ने कहा कि साणंद के कारख़ाने में कामगारों की ज़रूरत है और वो कॉन्ट्रेक्ट पर लोगों को रख रहे हैं."
"मुझे लगा कि क्लासेस ऑनलाइन हैं तो क्यों ना कॉलेज खुलने तक कुछ पैसे कमा लिए जाएं. ये सोचकर मैंने एक कॉन्ट्रेक्टर के ज़रिए जॉब ज्वाइन कर लिया."
"मेरी शिफ़्ट दोपहर की होती थी. सुबह अपनी ऑनलाइन क्लासेस ख़त्म करने के बाद मैं एक बजे काम पर आ जाता था. मैंने 2-3 दोस्तों के साथ साणंद में एक कमरा किराए पर ले लिया था. मेरा काम मोल्डिंग पार्ट्स को चेक करने का था और इसके लिए महीने में 9200 रुपये तनख़्वाह मिलती थी. मैं अपनी तनख़्वाह में से एक हिस्सा अपनी पढ़ाई के लिए रख लेता था."
भरत बताते हैं, "1 दिसंबर को जब मैं कंपनी के गेट पर पहुँचा तो मुझे हर्षद नाम के एक आदमी ने रोक दिया. गाली देते हुए हर्षद ने मुझे पूछा, "तुम्हारी शर्ट के बटन क्यों खुले हैं? क्या तुम लोकल गैंग के नेता हो?"
डरी हुई आवाज़ में मैंने उन्हें तुरंत जवाब दिया, "बड़े भाई, अगर आपको पसंद नहीं है, तो मैं अपनी शर्ट के बटन खुले नहीं रखूंगा और फिर मैं कंपनी के अंदर चला गया."
"ब्रेक के वक़्त हर्षद ने मुझसे मेरा नाम और मेरी जाति पूछी. मैंने उनसे कहा कि वेरावल से हूं और कथित नीची जाति से ताल्लुक़ रखता हूं. तुरंत उन्होंने मुझसे कहा कि सिर्फ़ दरबार सरनेम होने का मतलब ये नहीं है कि तुम मुझे भाई कह सकते हो."
भरत बताते हैं, "अपना काम पूरा करने के बाद, मैं बस स्टैंड पर इंतज़ार कर रहा था. तभी हर्षद 5-6 लड़कों के साथ वहां आया. उन्होंने मुझ पर भद्दी टिप्पणियां कीं और कहा कि तुम नीची जाति के हो तो कैसे तुमने दरबार सरनेम रखने की हिम्मत की? तुम शर्ट का बटन क्यों खोलकर रखते हो?"
"ये कहते हुए उन्होंने मुझे थप्पड़ मारा."
फ़ोन पर मिली धमकियां
भरत कहते हैं कि उन्होंने हाथ जोड़ कर हर्षद और उनके दोस्तों से माफ़ी माँगी.
"मैंने हर्षद से कहा कि बड़े भाई मैं एक मामूली सा छात्र हूं और अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए ये नौकरी कर रहा हूं. जैसे ही कॉलेज खुलेगा, मैं राजकोट लौट जाऊंगा. कल से मैं अपनी शर्ट के सभी बटन लगाकर आऊंगा."
"ये सुनकर हर्षद चिल्लाया और कहा कि एक दलित होकर तुम मुझे भाई कह रहे हो? और मुझे मारना शुरू कर दिया."
"रात के 10:30 बज रहे थे और बस स्टॉप पर मुझे बचाने वाला कोई नहीं था. पीटने की वजह से मेरे कपड़े फट गए थे. मैं जैसे-तैसे करके वहां से गुज़र रही एक बस में चढ़ा."
"बस कंडक्टर ने मुझसे मेरी हालत के बारे में पूछा और जब मैंने उन्हें पूरी बात बताई तो उन्होंने मुझे साणंद पुलिस स्टेशन तक की एक टिकट दी और कहा कि मैं पुलिस के पास जाकर शिकायत दर्ज करवाऊं."
भरत कहते हैं कि जब वो साणंद पुलिस स्टेशन पहुँचे तो वहां मौजूद पुलिस वालों ने उन्हें कहा कि घटना साणंद जीआईडीसी की है, इसलिए मुझे वहीं शिकायत दर्ज करवानी चाहिए. "मैं देर रात साणंद जीआईडीसी पुलिस स्टेशन पहुँचा. वहां शिकायत दर्ज कराई. लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की."
"मैं अगले दिन काम पर नहीं गया. घटना के 24 घंटे बाद तक पुलिस ने मामले में कोई गिरफ़्तारी नहीं की. मुझे फ़ोन पर धमकियां मिल रही थीं और कई लोग मुझे शिकायत वापस लेने के लिए कह रहे थे."
फ़ोन करने वाला शख़्स कहता है, "तुम एक दरबार के साथ लड़ाई मोल क्यों ले रहे हो."
डरे हुए भरत अपने दोस्तों और वणकर वास के निवासियों के साथ साणंद जीआईडीसी पुलिस स्टेशन गए. उनके दबाव डालने के बाद पुलिस ने मामले के अभियुक्तों को गिरफ़्तार कर लिया.
पुलिस का क्या कहना है?
साणंद जीआईडीसी पुलिस स्टेशन के इंस्पेक्टर धीरुभा जडेजा कहते हैं, "जब भरत थाने में आए थे, तो वो घबरा गए थे और केवल एक व्यक्ति को जानते थे."
"हमने मामले के मुख्य अभियुक्त को गिरफ़्तार कर लिया है और कुछ अन्य लोगों को हिरासत में लिया है. पहचान के लिए परेड करवाई गई है और भरत ने हर्षद के साथ तीन युवकों की पहचान की है. हमने एट्रोसिटी एक्ट के तहत मामला दर्ज किया है और उन्हें जेल भेज दिया है. हम अन्य अभियुक्तों का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं."
जडेजा ने आश्वासन दिया कि घटना में शामिल किसी को भी नहीं बख़्शा जाएगा और कहा कि अगर ज़रूरत पड़ी तो भरत को पुलिस सुरक्षा प्रदान की जाएगी.
पुलिस ने तीन लोगों को गिरफ़्तार किया है, लेकिन भरत जाधव इतने डरे हुए हैं कि उन्होंने अपने गांव लौटने का फ़ैसला किया है.
भरत कहते हैं, "मैं अपने माता-पिता की आर्थिक मदद करना चाहता था. मेरा भाई भी परिवार का भरण-पोषण करने के लिए नौकरी करता है."
"मुझे अभी भी फ़ोन पर धमकी मिल रही है और जान का ख़तरा है. मैं घर से बाहर क़दम नहीं रखता हूं. मैं साणंद छोड़कर वापस अपने गांव लौट रहा हूं. मैं राजकोट या आसपास की जगहों पर नौकरी ढूंढूंगा और कभी वापस नहीं लौटूंगा.
बीबीसी गुजराती ने मामले में अभियुक्त हर्षद राजपूत के परिवार के सदस्यों से बात करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने कहा कि क़ानूनी कार्रवाई जारी है इसलिए वो इस पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगे.
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