'Sulli Deals': मुस्लिम महिलाओं को 'ट्रोल' करने के लिए बने ऐप से विवाद

 


  • कीर्ति दुबे
  • बीबीसी संवाददाता
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"महिला को ट्रोल करना सोशल मीडिया पर लोगों के लिए सबसे आसान काम है. ये ट्रोलिंग ज़्यादातर पर्सनल होती है.

लेकिन मुस्लिम महिलाओं को परेशान करने के लिए नीचता की सारी हदें तोड़ दी जाती हैं.

ये इतना ख़तरनाक है कि कभी-कभी मैं ये सोचने लगती हूँ कि इस प्लेटफ़ॉर्म पर क्यों रहूँ, क्या मुझे बोलना- लिखना छोड़ देना चाहिए?

हमें जो गालियाँ दी जाती हैं वो जेंडर पर हमला तो है ही लेकिन इस्लामोफ़ोबिक भी होती है.''

नसरीन (बदला हुआ नाम) जब ये बोलती हैं तो उनकी आवाज़ में डर से ज़्यादा ग़ुस्सा झलकता है.

फर्ज़ कीजिए, एक दिन आप सो कर उठती हैं और देखती हैं कि इंटरनेट पर आपकी तस्वीर और निजी जानकारियों की 'नीलामी' हो रही हो, कुछ लोग आप पर अश्लील टिप्पणियां करते हुए आपका मोल-भाव कर रहे हैं. तो आप पर क्या बीतेगी?

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कुछ यही हुआ बीते रविवार और सोमवार को जब कई मुस्लिम महिलाओं की सोशल मीडिया तस्वीर के साथ एक ओपेन-सोर्स ऐप बनाया गया. इस ऐप का नाम था- 'सुल्ली फॉर सेल'.

'सुल्ली' मुस्लिम महिलाओं के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक अपमानजनक शब्द है.

इस ऐप में इस्तेमाल की गई मुस्लिम महिलाओं की जानकारी ट्विटर से ली गई थी. इसमें तकरीबन 80 से ज़्यादा महिलाओं की तस्वीर, उनके नाम और ट्विटर हैंडल दिए गए थे.

इस ऐप में सबसे ऊपर पर लिखा था- 'फाइंड योर सुल्ली डील' .

इस पर क्लिक करने पर एक मुस्लिम महिला की तस्वीर, नाम और ट्विटर हैंडल की जानकारी यूज़र से साझा की जा रही थी.

एडिटर गिल्डस ऑफ़ इंडिया ने भी मुस्लिम महिलाओं, महिला पत्रकारों पर हुए इस हमले की निंदा करते हुए कहा है कि सोशल मीडिया और डिज़िटल प्लेटफॉर्म का इस तरह इस्तेमाल कर महिला पत्रकारों को डराने का तरीका चिंतित करने वाला है.

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गिटहब का जवाब

इस ओपेन सोर्स ऐप को गिटहब पर बनाया गया था.

हालांकि सोमवार शाम को इसे गिटहब ने हटा दिया था.

बीबीसी ने गिटहब से कुछ सवालों के साथ इमेल के ज़रिए संपर्क किया. जवाब देते हुए गिटहब ने कहा, "हमने इस मामले में यूज़र का अकाउंट सस्पेंड कर दिया है. रिपोर्ट्स के आधार पर इस मामले की जाँच शुरू कर दी गई है. गिटहब की नीतियां ऐसे कॉन्टेंट, जो प्रताड़ना, भेदभाव और हिंसा को बढ़वा देते हैं उनके ख़िलाफ़ हैं. ये कॉन्टेंट हमारी नीतियों का उल्लंघन है."

गिटहब की सीओओ एरिका ब्रेसिया ने ट्वीट कर कहा है कि इस अकाउंट को सस्पेंड किया जा चुका है. हालांकि उन्होंने ये नहीं बताया कि आख़िर ये सब हुआ कैसे.

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डर और ग़ुस्सा

नसरीन (बदला हुआ नाम) इस ऑनलाइन प्रताड़ना के बाद इतनी डरी हुई हैं कि वो कहती हैं- 'मेरा नाम मत लिखिएगा. मुझे नहीं पता आगे और क्या हो जाए.'

वो उन मुस्लिम महिलाओं में से एक हैं जिनकी तस्वीर और निजी जानकारियों को इस ऐप पर नीलामी के लिए रखा गया था.

बीबीसी से नसरीन ने कहा, "मुझे ये जानकारी एक ट्वीट से मिली. एक लड़की के स्क्रीनशॉट के साथ एक यूज़र ने लिखा था- मैं अच्छी डील की तलाश में था और मुझे ये मिला, इसमें मेरी कोई ग़लती नहीं है. अपने ट्वीट में उस यूज़र ने इस ऐप के बारे में लिखा था.''

"जब मैं इस ऐप पर गई तो उस पर लिखा था 'फ़ाइंड अ सुल्ली'.

इस पर जब मैंने टैप किया तो- 'योर डील फ़ॉर टुडे' के साथ मेरी तस्वीर और ट्विटर अकाउंट की जानकारी सामने आई.

ये देख कर मुझे डर से ज़्यादा ग़ुस्सा आया क्योंकि ये पहली बार नहीं हुआ था.

इससे पहले मेरी कुछ मुसलमान महिला दोस्तों की तस्वीरें शेयर कर एक ट्विटर अकाउंट यूज़र ने - 'फ़ॉर सेल' लिखा था. लेकिन अगले ही पल मैं इस बात से डर गई कि इस बार प्रताड़ना का स्तर ट्विटर से आगे बढ़ चुका है, हमारी प्रताड़ना के लिए एक पूरा प्लेटफ़ॉर्म बनाया गया है. ना जाने आगे और क्या हो सकता है?"

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"अगर मुस्लिम महिलाएँ बोलती हैं तो उन्हें रेप की धमकियाँ मिलती हैं, इस तरह से बिकाऊ बना दिया जाता है.

आप कितनी भी मज़बूत हों लेकिन इस तरह के हमले, आपकी तस्वीर, जानकारी सार्वजनिक कर दी जाए तो ये आपको डराता है, परेशान करता है. कई लड़कियाँ जिन्होंने पहली बार इस तरह की प्रताड़ना झेली है, उन्होंने तो अपना अकाउंट तक डिएक्टिवेट कर दिया. उन लड़कियों को डरा दिया गया है.''

लेकिन इतने ग़ुस्से और डर के बावजूद नसरीन पुलिस में शिकायत करने के लिए तैयार नहीं.
पुलिस में शिकायत दर्ज कराने पर वो कहती हैं, "कई महिलाएँ इसका शिकार हुई है. क़ानूनी विकल्प क्या हो सकता है इसे लेकर हम सोच रहे हैं. लेकिन सच कहूँ तो पुलिस से मुझे ज़्यादा उम्मीद नहीं है. इससे पहले जब मेरी दोस्तों के साथ ईद के वक़्त ऐसा ही कुछ हुआ था तो उन लोगों ने पुलिस स्टेशन से शिकायत दर्ज कराई थी लेकिन कुछ नहीं हुआ. ये आसान है कि मुस्लिम महिलाओं को कुछ भी बोल दो और आसानी से बच निकलो."

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ओपेन सोर्स प्लेटफॉर्म

बीबीसी ने आर्काइव के ज़रिए इस ऐप को लेकर जानकारियां खंगालने की कोशिश की.

हमने पाया कि 14 जून को इस ऐप को शुरू किया गया. सबसे ज़्यादा गतिविधि 4-5 जुलाई के बीच हुई. ये एक ओपन सोर्स कम्युनिटी ऐप था, जिसे सॉफ्टवेयर कोडिंग प्रोवइडर प्लेटफॉर्म गिटहब पर बनाया गया था.

बीबीसी ने इस एक कोडर से ये समझने की कोशिश की कि आख़िर ओपेन सोर्स प्लेटफ़ॉर्म होते क्या हैं और कैसे काम करते हैं?

दरअसल, ओपेन सोर्स में कोड को सार्वजनिक कर दिया जाता है और उसमें अलग-अलग कम्युनिटी के कोडर कोड के ज़रिए नए फ़ीचर जोड़ सकते हैं या कोई बग है तो उसे हटा सकते हैं.

हालांकि ये कोड के ज़रिए किए जा रहे बदलाव ऐप में नज़र आएं या नहीं इसका कंट्रोल ऐप डिज़ाइन करने वाले के पास होता है.

अगर ये ऐप डिज़ाइन करने वाले के पास से डिलीट हो जाए, तो डोमेन नेम सिस्टम प्रोवाइडर के पास इस ऐप से जुड़ी जानकारियां होती हैं.

'सुल्ली फॉर सेल' ऐप अब गिटहब पर नहीं है. ना ही इस बात की जानकारी मिल पाई है कि इसे किसने डिज़ाइन किया है.

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'ये भयानक है, हिंदुओं को भी हमारे लिए आवाज़ उठानी चाहिए'

फ़राह ख़ान (बदला हुआ नाम) अपने काम के सिलसिले में बाहर थीं जब उन्हें उनके दोस्तों से इस ऐप का स्क्रीनशॉट उन्हें मिला.

वो बताती हैं, "पाँच जुलाई की सुबह मुझे तब पता चला जब मेरे दोस्तों ने मुझे बताया कि तुम्हारी तस्वीर एक वेबसाइट पर हैं. हालाँकि अब तस्वीरें हटा दी गई हैं प्लेटफ़ॉर्म भी बंद है लेकिन इस तरह अपनी तस्वीर के साथ 'फ़ॉर सेल' का टैग देख कर मैं काफ़ी डिस्टर्ब थी, सच कहूँ तो समझ ही नहीं आ रहा था कि ये क्या हुआ है?"

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"मेरे दिमाग़ में और भी डरावने ख़याल आने लगे कि क्या उनके पास मुझसे जुड़ी कोई और जानकारी भी है? क्या अगला पड़ाव ये तो नहीं की मुझसे जुड़ी और जानकारियाँ भी इस तरह किसी प्लेटफ़ॉर्म पर सार्वजनिक कर दी जाएंगी?

ये सोच-सोच कर मैं और डर गई थी. लेकिन फिर मुझे ये लगा कि वो यही चाहते हैं. जो मुस्लिम महिलाएँ अपने हक़ के लिए बोलती लिखती हैं उन्हें डरा दिया जाए. "

"एक बात जो मुझे हमारी इस लड़ाई के लिए सबसे अहम लगती है, वो ये कि हमारी इस लड़ाई में लिबरल हिंदुओं को ग़लत के लिए आवाज़ उठानी चाहिए.

सही के लिए धर्म से ऊपर उठ कर सभी को ग़लत को समाने आकर ग़लत कहना चाहिए. मैं और मेरी जैसी कई महिलाओं ने ट्वीट किए, महिला आयोग, दिल्ली पुलिस को टैग करके ट्वीट किया लेकिन कोई सुध नहीं ली गई. जो लोग ऐसा कर रहे हैं उन्हें पुलिस और क़ानून का डर नहीं है. उन्हें यक़ीन है कि कुछ नहीं होगा.''

नसरीन की तरह फ़राह भी पुलिस में शिकायत दर्ज कराने को लेकर आशंकित हैं.

वो कहती हैं कि अभी मैं अपने काम के कारण शहर से बाहर हूँ और सच कहूँ तो तय भी नहीं किया है कि पुलिस के पास जाऊंगी या नहीं.

लेकिन कुछ महिलाओं ने इस हैरेसमेंट के खिलाफ़ दिल्ली महिला आयोग में शिकायत दर्ज कराई है.

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मुंबई पुलिस ने गिटहब और ट्विटर से मांगी जानकारी

ऐप में जिन मुस्लिम महिलाओं की जानकारी शेयर की गई थी, उनमें से कुछ दिल्ली की और कुछ दूसरे शहरों की महिलाएँ हैं.

इस बारे में हमने दिल्ली पुलिस से सम्पर्क किया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. दिल्ली महिला आयोग ने दिल्ली पुलिस को नोटिस भेज कर एफ़आईआर रजिस्टर करने की बात की है.

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एक शिकायत मुंबई पुलिस में भी की गई है.

इस ऐप के जरिए प्रताड़ना की शिकार हुई मुंबई की रहने वाली फ़ातिमा ने पाँच जुलाई को साकीनाका पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई है.

जवाब में साकीनाका पुलिस स्टेशन की ओर से ट्विटर इंडिया और गिटहब को चिट्ठी लिख कर ऐप बनाने वाले और इसे ट्विटर पर शेयर करने वालों की जानकारी मांगी है.

गिटहब से पुलिस ने आईपी एड्रेस, लोकेशन और ऐप कब बना है- इसकी जानकारी मांगी है. साथ ही ऐप को बनाने में इस्तेमाल होने वाला इमेल आईडी और फ़ोन नंबर भी मांगा है.

इसके अलावा ट्विटर से कुछ आपत्तिजनक ट्वीट डिलीट करने और उस हैंडल को चलाने वाले लोगों का डेटा मांगा गया है.

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