जश्न ए उर्दू आज , मगर मुख्यमंत्री जनाब नीतीश कुमार बताएं के यह जश्न विकाश की ख़ुशी में मनाई जा रही या विनाश की ख़ुशी में ?



बिहार के मंत्रिमंडल सचिवालय ( राजभाषा ) विभाग ,उर्दू निदेशालय " जश्न ए उर्दू " के नाम से दो दिवसिये समारोह (4 -5 जनवरी 2014 ) , प्रेमचंद रंगशाला में मनाने जा रह है , जिसमे मुख्य अतिथि खुद सी एम ऑफ़ बिहार होंगे ,सम्मानित अतिथि पदम् श्री डा.कलीम अहमद आजीज होंगे .

सूत्रों की मानें तो इस जश्ने उर्दू पे तकरीबन 40 लाख से ऊपर सरकारी राशी का खर्च हो रहा है .

सवाल उठाना लाजमी है के क्या जो चालीश लाख खर्च करके "जश्न ए उर्दू "जो मनाई जा रही उससे हासिल क्या होने जा रहा ? क्या इस खर्चीली "जश्न ए उर्दू " से उर्दू सवैयं उर्दू का कितना भला होगा ? सवाल यह भी उठ रहा है के जब इस 40 लाखी जश्न से उर्दू को जब भला ही नहीं होगा तब इतना बड़ा और इतना खर्चीला जश्न क्यों ?

मुसलमानों का पुराना आरोप रहा है के बिहार में ऐसे सैकड़ों नहीं हजारों उर्दू स्कूल मौजूद हैं जहां उर्दू शिक्षक के पद रहते हुए भी उर्दू शिक्षकों की बहाली नहीं की जा रही , और ऐसा जान बुझकर किया गया या किया जा रहा , आरोप यह भी है के जिन शिक्षकों की बहाली हुई भी तो उनसे उर्दू जुबान (भाषा ) को पढ़ने पढ़ाने का काम न लेकर उनसे दुसरे काम लिए जा रहे , अगर मुसलमानों का आरोप सही है तो सवाल पैदा होता है के क्या मुख्य मंत्री नीतीश कुमार के पास इस बात का जवाब है के उन्होंने इस समस्या के हल के लिए उन्होंने क्या ठोस उपाए किये ?

मुसलमानों का एक और भी आरोप रहा है एक तरफ उर्दू शिक्षकों की बहाली के लिए विज्ञापन भी बच्चों से मांगती है ,दूसरी तरफ उन बच्चों और अभियार्थियों को बहाली से रोकने के लिए तरह के गैर जरुरी नियम ,काएदा कानून के अलावा साजिश का सहारा लेकर टेट जैसे इम्तिहान में सवालों के गलत जवाब भी कंप्यूटर में फीड करती है ताके यह बहाना हो जाए के हमारी सरकार ने तो उर्दू शिक्षकों की कमी को दूर करने के लिए कोशिश तो बहुत की पर क्या किया जाये उतनी मात्रा में दक्ष और काबिल शिक्षक मुस्लिम समुदाय से मिला ही नहीं तो फिर .........?

सवाल पैदा होता है के क्या मुसलमानों का आरोप बेबुनियाद है ? मुसलमानों के आरोप में कितना दम है और आरोप सच्चा है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है के कुछ सालों पहले 34 हजार ट्रेंड शिक्षकों की बहाली हुई ,जिसमे बताया जाता है के 12 हजार उर्दू शिक्षकों के पद थे , मुसलमानों का आरोप यह रहा है जिससे मुख्मंत्री नीतीश कुमार बखूबी वाकिफ भी हैं " उर्दू शिक्षकों के पुरे 12 हजार पद पुरे न हो जाएँ सरकार के विशेष आदेश पर 200 नंबर के साथ इंटर पास होना शर्त लगा दिया गया साथ ही trained होना भी लाजमी था जिससे इस कड़े शर्त को पूरा करने वाले अभियर्थि मिला ही नहीं और सरकार ने उर्दू के पद पर सामान शिक्षकों से भर दी " और यह सब सोंची समझी साजिश और प्लान के तेहत किया गया ,कयोंके इससे पहले उर्दू शिक्षक बन्ने के लिए 200 नंबर के साथ इंटर पास होने की शर्त कभी न रही , जब इससे पहले कभी न थी तो सवाल पैदा होता है के आखिर क्यों ऐसा किया गया ,और यही बातें साबित करती है के मुसलामानों के आरोप नाराधर नहीं ।

उसी प्रकार उर्दू स्पेशल टेट में किया गया ,जिस पर मुख्मंत्री ने खुद यह आदेश दिया के तिन दिन के भीतर छात्र हीत में फैसले लिए जाएँ ,मगर बताया जा रहा है के तीन दिन के भीतर क्या आज 20 दिन से जेयादः गुजर जाने के बावजूद आज तक छात्र हित में फैसले नहीं लिए गए ।
सवाल पैदा होता है के जब सरकार एक तरफ रवैया उर्दू के साथ भेदभाव से लबरेज रहा है ,उर्दू दुश्मनी का रहा है ,उर्दू को मिटाने वाला रहा है , वहीँ दूसरी तरफ वही सरकार उर्दू के विकाश के नाम पर 40 लाख खर्च करके " जश्न ए उर्दू " मनाने जा रही सवाल पैदा होता है के क्या सरकार और खास कर मुख्मंत्री नीतीश कुमार को जश्न ए उर्दू मनाने का हक है ?बिहार का मुसलमान सवाल कर रहा है के मुख्य मंत्री पहले जनता को इस बात का जवाब दें के यह जश्न उर्दी के विकाश की ख़ुशी में मनाई जा रही या बरबादी की ख़ुशी में ?

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