मॉब लीनचिंग वाले देश में खुदा की लीनचिंग ! जब मासूमों पर जुल्म होगा , आवाम तमाशा देखेगी तो क्या होगा , ऊपर बैठा खुदा तो अपने तरीके से हिसाब किताब यानी इंसाफ तो करेगा ही ।
भारत में बढ़ती गर्मी से कम होंगी 3.4 करोड़ नौकरियां
सयुंक्त राष्ट्र संघ ने अपनी हालिया रिपोर्ट में दावा किया है कि भारत में बढ़ती गर्मी की वजह से साल 2030 तक 3.4 करोड़ नौकरियां ख़त्म हो जाएंगी.
इस रिपोर्ट में बताया गया है कि बढ़ती गर्मी दुनिया भर में काम करने वाले मज़दूरों की ज़िंदगी पर क्या असर डालेगी.
भारत में सबसे ज़्यादा लोग खेती समेत तमाम दूसरे असंगठित क्षेत्रों में काम करते हैं, जहां मज़दूरों को उनके शारीरिक श्रम के बदले में मज़दूरी मिलती है.
ऐसे लोगों को धूप में सुबह 10 बजे से लेकर शाम 5 बजे तक काम करना पड़ता है. इस बीच में आराम करने की अवधि भी लगभग तीस मिनट होती है.
रिपोर्ट बताती है कि बढ़ती गर्मी की वजह से ऐसे मज़दूर दिन के घंटों में काम नहीं कर पाएंगे क्योंकि इस दौरान तापमान अपने चरम पर होगा.
इस वजह से काम के घंटों में कमी आएगी जो कि सीधे तौर पर मजदूरों की आमदनी को प्रभावित करेगी.
ग़रीबों पर सबसे ज़्यादा असर
सयुंक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट में भी ये बात सामने आई है कि जलवायु परिवर्तन का सबसे ज़्यादा असर खेतिहर और बिल्डिंग निर्माण में लगे मज़दूरों पर पड़ेगा.
भारत में 90 फ़ीसदी मजदूर असंगठित क्षेत्रों में काम करते हैं जिनमें खेती और बिल्डिंग निर्माण जैसे क्षेत्र शामिल हैं.
इन क्षेत्रों में मजदूरों को धूप और लू का सामना करते हुए सुबह दस बजे से लेकर शाम पांच बजे तक काम करना पड़ता है.
रिपोर्ट के मुताबिक़, 'बढ़ती गर्मी की वजह से दुनिया भर में काम के घंटों में 2.2 फ़ीसदी की कमी आएगी. इसका सबसे ज़्यादा असर भारत पर पड़ेगा. साल 1995 में भारत में काम के घंटों में 4.3 फ़ीसदी की कमी आई थी. लेकिन साल 2030 तक ये आंकड़ा 5.8 फ़ीसदी तक बढ़ने की आशंका है."
साल 2019 में भी ऐसे मामले सामने आए हैं जिनकी वजह से इस तरह की नौकरियों के कम होने के संकेत मिले हैं.
बीबीसी ने बिहार में आम मज़दूरों पर गर्मी के असर को लेकर एक रिपोर्ट की है.
इस रिपोर्ट में सामने आया है कि गर्मी की वजह से काम के लिए उपलब्ध मज़दूरों की संख्या और काम की उपलब्धता में कमी आई है.
ईंट भट्टों पर काम करने वाले मज़दूरों के संबंध में रिपोर्ट बताती है, "भारत में करोड़ों लोग ईंट-भट्टों पर काम करते हैं जिनमें से ज़्यादातर लोग अपने गांवों को छोड़कर शहर किनारे बने ईंट भट्टों पर काम करते हैं."
"इन मज़दूरों में बच्चे भी शामिल होते हैं जो कि अक्सर निचले सामाजिक-आर्थिक दर्जे से आते हैं. ये लोग कठिन स्थितियों में काम करते हैं और बदले में काफ़ी कम मज़दूरी हासिल करते हैं. कभी-कभी इन मज़दूरों को उनकी मज़दूरी भी नहीं मिलती है. ये लोग तेज धूप में काम करते हैं और भट्टों पर कभी-कभी तापमान 45 डिग्री तक पहुंच जाता है."
सेंटर फॉर इन्वॉयरन्मेंट स्टडीज़ के उपनिदेशक चंद्र भूषण ईंट भट्टों पर काम करने वाले मज़दूरों को लेकर चिंता व्यक्त करते हैं.
वह कहते हैं, "रिपोर्ट में ईंट-भट्टों पर काम करने वाले मज़दूरों का ज़िक्र किया गया है. मैंने हाल ही में कई भट्टों का दौरा किया और पाया कि इन भट्टों में तापमान 45 डिग्री सेल्सियस से कहीं आगे बढ़कर पचपन से साठ डिग्री तक पहुंच जाता है."
"यहां काम करना कितना मुश्किल है, ये इस बात से समझा जा सकता है कि यहां काम करने वाले लोग प्लास्टिक या रबड़ से बनी चप्पलें नहीं पहन पाते हैं. क्योंकि वे गर्मी की वजह से पिघल जाती हैं. ऐसे में ये लोग लकड़ी की बनी चप्पलों को पहनने पर विवश होते हैं."
"ऐसे में ईंट भट्टे और असंगठित क्षेत्रों में धातु पिघलाने की भट्टियों में काम करने वाले लोगों के लिए काम करना बेहद मुश्किल हो जाएगा. ऐसे में लगातार बढ़ता तापमान इस तरह की नौकरियों पर बड़ा प्रश्नचिह्न लगाता है."
मध्य वर्ग पर असर
देश की राजधानी दिल्ली में बढ़ते तापमान का असर बिजली की खपत के रूप में सामने आ रहा है.
बीते मंगलवार को राजधानी दिल्ली में रिकॉर्ड तोड़ 7409 मेगावॉट बिजली खर्च की गई जिसने पिछले सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं.
न्यूज़ वेबसाइट लाइवमिंट के मुताबिक़, पूरे भारत में किसी शहर में एक दिन में इतनी बिजली खर्च नहीं की गई है.
चंद्र भूषण बिजली की खपत के आर्थिक पहलू की ओर ध्यान खींचते हैं.
वह बताते हैं, "बढ़ते तापमान की वजह से दिल्ली में बिजली की ख़पत सात हज़ार मेगा वॉट से ज़्यादा हो चुकी है. लेकिन अगर आने वाले सालों में ये खपत 12000 तक पहुंच जाए तो मुझे आश्चर्य नहीं होगा. क्योंकि बढ़ती गर्मी लोगों को एयर-कंडीशन और कूलर ख़रीदने पर मजबूर करती है. इस वजह से गर्मियों में बिजली की खपत बढ़ने लगती है."
"फ़िलहाल भारत में लगभग 14 से 15 फीसदी घरों में एयर कंडीशन लगे हुए हैं. लेकिन आने वाले समय में ज़्यादा से ज़्यादा घरों तक एसी की पहुंच बढ़ेगी क्योंकि 48-50 डिग्री सेल्सियस में जीना मुश्किल है."
ऐसे में रोज़गार की कमी का सामना कर रहे मध्य वर्ग पर गर्मी से बचाव के लिए भी क्षमता से ज़्यादा खर्च करने का दबाव पड़ेगा.
क्या होंगे दूरगामी परिणाम
इस रिपोर्ट से पहले भी जारी हुई तमाम अध्ययनों में ये बात सामने आई है कि बढ़ती गर्मी विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था को भी गंभीर रूप से प्रभावित करेगी.
लेकिन सवाल उठता है कि भारत की अर्थव्यवस्था पर इसका कितना असर होगा.
इस रिपोर्ट को लिखने वालीं कैथरीन सेगेट इस सवाल का जवाब देती हैं.
वो बताती हैं, "गर्मी की वजह से मज़दूरों की उत्पादकता पर असर पड़ना जलवायु परिवर्तन का सबसे गंभीर परिणाम है. हम इस बात की उम्मीद कर सकते हैं आने वाले समय में कम आय-वर्ग और ज़्यादा आय-वर्ग वाले देशों के बीच आमदनी के बीच की खाई काफ़ी बढ़ सकती है. इसका सबसे ज़्यादा असर उन लोगों पर पड़ सकता है जो कि पहले से जोख़िम भरी स्थितियों में काम कर रहे हैं."
इसके साथ ही भारत की जीडीपी पर भी इसका भारी असर देखने को मिलेगा क्योंकि तापमान में बढ़ोतरी की वजह से भारत की जीडीपी में 5 फीसदी की कमी आ सकती है.
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