अज़ादी के लिये किसी तहरीक या आन्दोलन या बगावत या जंग की शुरुआत ही मुस्लिमों के ज़रिये हुयी ! 1498 की शुरुआत से लेकर 1947 तक मसलमानो ने विदेशी आक्रमनकारीयों से जंग मसलमानो ने विदेशी आक्रमनकारीयों से जंग लड़ते हुए अपना सब कुछ क़ुरबान कर दिया !

"भारत की आज़ादी के हसूलयाबी में मुस्लिमों का किरदार और हिस्सा लेने वाली कुछ तनज़ीमें "
------------------@ शादाब सहराई  & शाहीन इस्लाम 'सुमन'

जब बात भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की होती है तो सिर्फ दो ही नाम जो मुस्लिम कटआउट की तरह जहाँ देखो वहीं दिखाई देते है..?
और वो नाम है "मौलाना अबुल कलाम आज़ाद"  मौलाना अबुल कलाम आज़ाद या नवाब अश्फ़ाकुल्लाह खान वारसी ,जिन्होने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन मे हिस्सा लिया था |

जबकि इतिहास की सच्चाई ये है कि अज़ादी के लिये किसी तहरीक या आन्दोलन या बगावत या जंग की शुरुआत ही मुस्लिमों के ज़रिये हुयी ! 1498 की शुरुआत से लेकर 1947 तक मसलमानो ने विदेशी आक्रमनकारीयों से जंग लड़ते हुए अपना सब कुछ क़ुरबान कर दिया !
यहां हम मुस्लिमों की जानिब से लडी गयी कुछ जंगों और आज़ादी हासिल करने के लिये बनायी गयी कूछ तंज़ीमों और तहरीकों का ज़िक्र ज़रूरी समझते हैं ताकि हमारी नौजवान नस्ल उस इतिहास को समझने के लिये भी कोशीश करे जिसकों लगातार मिटाने की कोशिश की जारही है !
१- कुनाह्ली मक्कर तहरीक -  पुर्तगालियों के खिलाफ लड़ा हुआ किसी भारतीय का पहला हथयार बन्द आंदोलन था , कुन्हाली मरक्कर का नाम , उन मुस्लिम नाविक योद्धाओं के नाम पर है जिन्होंने  पुर्तगालियो के खिलाफ अपने हिन्दू राजा Zamorin (Samoothiri)  के लिये कालीकट केरला में दशकों तक विद्रोह किया था , ये युद्ध 1502 से 1600 ई तक चला !
२ - अंग्रेज़ों के खिलाफ़ जेहाद का फ़तवा और तहरीक-  जवान मुस्लिम नस्ल ये नही जानती कि 1772 मे शाह अब्दुल अज़ीज़ रह ० ने अंगरेज़ो के खिलाफ जेहाद का फतवा दे दिया और मुस्लिमों ने इसपर दिलो जान से लब्बैक कहते हुये अंग्रेज़ों के खिलाफ़ मारका आराई की !
३-  प्लासी का युद्ध -  ये युद्ध भी  स्वतंत्रता संग्राम ही था जो  बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला ने अंग्रेज़ों के खिलाफ़ लडी थी और लडते लडते शहीद हुआ था ये युद्ध 23 जून 1757 को मुर्शिदाबाद के दक्षिण में २२ मील दूर नदिया जिले में गंगा नदी के किनारे 'प्लासी' नामक स्थान पर हुआ था। इसमें गद्दारी करने वाले मुस्लिम शख्स मीर ज़ाफ़र का नाम तो बाकी रहने दिया गया मगर  जिसने मीर ज़ाफ़र से भी बडी गददारी की ! उस जगत सेठ का नाम अब कोई नही जानता जगत सेठ के नाम को भारतिय इतिहास ने मिटा दिया क्योंकि वह समुदाय विशेष का था !
यही वह युद्ध है जिसकी हार ने भारत की गुलामी के लिये रास्ते हमवार करदिये  इस युद्ध से ही भारत की दासता की कहानी शुरू होती है !

४- श्रीरंगापटनम की जंग -  हैदर अली, और बाद में उनके बेटे टीपू सुल्तान ने ब्रिटिश इस्ट इंडिया कंपनी के प्रारम्भिक खतरे को समझा और उसका विरोध किया।
टीपू सुल्तान  एक उच्च कोटि का शाषक के साथ भारत के इतिहास में एक ऐसा योद्धा भी था जिसकी दिमागी सूझबूझ और बहादुरी ने कई बार अंग्रेजों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया. अपनी वीरता के कारण ही वह ‘शेर-ए-मैसूर’ कहलाए !
पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने उन्हें विश्व का सबसे पहला राकेट आविष्कारक बताया था. बहरहाल, 1799 में टीपू सुल्तान अंततः कर्नाटक के श्रीरंगापटनम के मुकाम पर देश की आज़ादी के लिये अपने देश के शाषकों के असह्योग और गद्दारी के वजह से  4 मई 1799 को 48 वर्ष की आयु में  आखिर दम तक लडते हुये शहीद हो गये !
 भारत का यही वह शख्स है जिस्की शहादत पर अंगरेज़ जर्नल ने पहली बार पुरे यकीन के साथ बोला था कि " अब इन्डिया हमारा है "
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५- वहाबी तहरीक - सय्यद अहमद शहीद के ज़ेर ए सरपरस्ती चलने वाली ये भी मुस्लिम उलमा के तरफ़ से आज़ादी हासिल करने के लिये चलायी गयी तहरीक थी उन्नीसवी सदी के चौथे अश्रे से सातवे अशरे तक इस तहरीक ने नुमाया काम करते हुये अंग्रेज़ॊ के नाक मे दम किये रखा ! सय्यद अहमद शहीद ,मौलावी अहमदुल्ला ,पटना के विलायत अली और इनायत अली इस आन्दोलन के प्रमुख नायक थे।
सय्यद अहमद शहीद ने पेशावर पर 1830 ई. में कुछ समय के लिए अधिकार कर लिया  था तथा अपने नाम के सिक्के भी चलवाए थे। इस संगठन ने सम्पूर्ण भारत में अंग्रेज़ों के विरुद्ध भावनाओं का प्रचार-प्रसार किया।
 वहाबी तहरिक के ही स्वतंत्रता नायक मौलावी अहमदुल्लाह के इशारे पर १८७१ मे बंगाल के चीफ जस्टिस पेस्टन नामॅन की हत्या अबदुल्ला नाम के एक शख़्स ने उस समय कर दी, जब वे सीढियों से नीचे उतर रहे थे। इतना ही नहीं, भारत के वाइसराय लॉर्ड मेयो जब सरकारी दौरे पर अंडमान गए तो मौलवी अहमदुल्ला की योजना के अनुसार ही 8 फरवरी, 1872 को एक पठान शेर अली अफरीदी ने लॉर्ड मेयो की उस समय हत्या कर दी, जब वे मोटर बोट पर चढ़ रहे थे। इन दोनों को फ़ांसी की सज़ा हुयी ,सैंकड़ों की तादाद मे लोग काला पानी भेज दिए गए !
ये एक ऐसी तहरीक थी जिसने १८५७ के बाद अंग्रेज़ को सबसे अधिक नुक़सान दिया था  1857 में इस आन्दोलन का नेतृत्व पीर अली ने किया था, जिन्हें कमिश्नर टेलबू ने वर्तमान एलिफिन्सटन सिनेमा के सामने एक बडे पेड़ पर लटकवाकर फांसी दिलवा दी
‘वाहाबी विद्रोह’ के बारे में यह कहा जाता है कि ‘यह 1857 ई. के विद्रोह की तुलना में कहीं अधिक नियोजित, संगठित और सुव्यवस्थित था’।
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६- बहादुर शाह ज़फ़र १८५७ गदर तहरीक -
१८५७ की क्रान्ति को मंगल पांडे से नामांकित किया गया और बहादुर शाह का नाम भी  इतिहास से मिटाने की कोशिश की जारही है जब की १८५७ के स्वतंत्रता संग्राम के सेनापति वही थे उन्ही की सरपरस्ती में बगावत हुयी थी, जिसके लिये उन्हे रंगून भेज कर अंग्रेज़ों ने उनके बेटों के सर काट कर उन के सामने एक थाली में पेश किया था !

इस पहली जंगे आजादी के महान स्वतंत्र सेनानी अल्लामा फजले हक खैराबादी ने दिल्ली की जामा मस्जिद से सबसे पहले अंग्रेजों के खिलाफ जेहाद का फतवा दिया था ! इस फतवे के बाद आपने बहादुर शाह ज़फर के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोला और अज़ीम जंगे आजादी लड़ी !
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७- फ़िरंगी महल तहरीक - अंगरेज़ों से आज़ादी हासिल करने के लिये  शोहरत याफ़्ता और माया नाज़ उलमा ए फिरंगी महल  ने भारत के मुसलमानों का नेतृत्व किया और आगे बढ़ाया।
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८- खिलाफ़त तहरीक - गो कि ये एक खालिस मुस्लिम मज़हबी तहरीक थी जो खिलाफ़त ए उस्मानिया की बका के लिये चलायी गयी थी जिस का बाद में कांग्रेस और गांधी जी से इत्तेहाद होगया और आज़ादी के लिये नयी तवानाई लोगों को मिली इसी तहरीक के कायद मौलाना मुहम्मद अली जौहर ने लंदन की गोलमेज़ कांफ़्रेंस में कहा था कि  बिना आज़ादी लिये हम वापस अपने मुल्क भारत नही जायें गे " आज़ादी नही मिली और वह वही इन्तकाल कर गये उनकी तदफ़ीन बैतुल मुक्दिस में हुयी !
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९- रेशमी रूमाल तहरीक - दारुल उलूम देवबंद के उस्ताद और सदरुलमुर्रेसीन शेखुल हिंद मौलाना महमूद हसन देवबंदी के नेत्रित्व में चलाई गयी 'तहरीक-ए-रेशमी रुमाल' ने अंग्रेजों के दांत खट्टे किए थे। इसके तहत रुमाल पर गुप्त संदेश लिखकर इधर से उधर भेजे जाते थे, जिससे अंग्रेजी फौज को, आंदोलन के तहत की जाने वाली गतिविधियों की खबर नहीं लग सके !  अंग्रेजों के चंगुल व देशवासियों को अंग्रेजों के जुल्मों सितम से बचाने का दर्द दिल में लेकर 1901 में शेखुल हिंद अपने साथियों के साथ मिलकर कोशिश करने लगे। उन्होंने देश ही नहीं, बल्कि विदेशों तक अपना नेटवर्क स्थापित कर लिया। इस तहरीक में दारुलौलूम देवबंद का अहम किरदार रहा !

१०- देवबंद उलमा तहरीक - जिन महान स्वतंत्रता सेनानियों व संस्थानों ने धर्मनिरपेक्षता व देशभक्ति का पाठ पढ़ाया उनमें दारुल उलूम देवबन्द के कार्यों व सेवाओं को भुलाया नहीं जा सकता। स्वर्गीये मौलाना महमूद हसन (विख्यात अध्यापक व संरक्षक दारुल उलूम देवबन्द) उन सैनानियों में से एक थे जिनके क़लम, ज्ञान, आचार व व्यवहार से एक बड़ा समुदाय प्रभावित था, इन्हीं विशेषताओं के कारण इन्हें शैखुल हिन्द (भारतीय विद्वान) की उपाधि से विभूषित किया गया था, उन्हों ने न केवल भारत में वरन विदेशों (अफ़ग़ानिस्तान, ईरान, तुर्की, सऊदी अरब व मिश्र) में जाकर भारत व ब्रिटिश साम्राज्य की भर्तसना की और भारतीयों पर हो रहे अत्याचारों के विरूद्ध जी खोलकर अंग्रेज़ी शासक वर्ग की मुख़ालफत की। बल्कि शेखुल हिन्द ने अफ़ग़ानिस्तान व इरान की हकूमतों को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के कार्यक्रमों में सहयोग देने के लिए तैयार करने में एक विशेष भूमिका निभाई। मिसाल के तौर पर यह कि उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान व इरान को इस बात पर राज़ी कर लिया कि यदि तुर्की की सेना भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के विरूद्ध लड़ने पर तैयार हो तो ज़मीन के रास्ते तुर्की की सेना को आक्रमण के लिए आने देंगे।
शेखुल हिन्द ने अपने सुप्रीम शिष्यों व प्रभावित व्यक्तियों के मध्यम से अंग्रेज़ के विरूद्ध प्रचार आरंभ किया और हजारों मुस्लिम आंदोलनकारियों को ब्रिटिश साम्राज्य के विरूद्ध चल रहे राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल कर दिया। इनके प्रमुख शिष्य मौलाना हुसैन अहमद मदनी, मौलाना उबैदुल्ला सिंधी थे जो जीवन पर्यन्त अपने गुरू की शिक्षाआंे पर चलते रहे और अपने देशप्रेमी भावनाओं व नीतियों के कारण ही भारत के मुसलमान स्वतंत्रता सेनानियों व आंदोलनकारियों में एक भारी स्तम्भ के रूप में जाने जाते हैं।

उड़ीसा के गवर्नर श्री बिशम्भर नाथ पाण्डे ने एक लेख में लिखा है कि दारुल उलूम देवबन्द भारत के स्वतंत्रता संग्राम में केंद्र बिन्दु जैसा ही था, जिसकी शाखायें दिल्ली, दीनापुर, अमरोत, कराची, खेडा और चकवाल में स्थापित थी।

११- गदर तहरीक -
गदर शब्द का अर्थ है - विद्रोह। लेकिन आप इसे १८५७ वाली गदर न समझें ये अलग तहरीक थी इसका मुख्य उद्देश्य भारत में क्रान्ति लाना था। जिसके लिए अंग्रेज़ी नियंत्रण से भारत को स्वतंत्र करना आवश्यक था। गदर पार्टी का हैड क्वार्टर सैन फ्रांसिस्को में स्थापित किया गया। भोपाल के बरकतुल्लाह ग़दर पार्टी के संस्थापकों में से एक थे जिसने ब्रिटिश विरोधी संगठनों से नेटवर्क बनाया था| ग़दर पार्टी के सैयद शाह रहमत ने फ्रांस में एक भूमिगत क्रांतिकारी के रूप में काम किया और 1915 में असफल गदर (विद्रोह) में उनकी भूमिका के लिए उन्हें फांसी की सजा दी गई| फैजाबाद (उत्तर प्रदेश) के अली अहमद सिद्दीकी ने जौनपुर के सैयद मुज़तबा हुसैन के साथ मलाया और बर्मा में भारतीय विद्रोह की योजना बनाई और 1917 में उन्हें फांसी पर लटका दिया गया था;
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१२- खुदाई खिदमत गार तहरीक - लाल कुर्ती आन्दोलन भारत में पश्चिमोत्तर सीमान्त प्रान्त में ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान द्वारा आज़ादी हासिल करने की लडाई लडने वाली भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के समर्थन में खुदाई ख़िदमतगार के नाम से चलाया गया एक ऐतिहासिक आन्दोलन था। खुदाई खिदमतगार एक फारसी शब्द है जिसका हिन्दी में अर्थ होता है ईश्वर की बनायी हुई दुनिया के सेवक। 1937 में नये भारत सरकार अधिनियम के अन्तर्गत कराये गए चुनावों में लाल कुर्ती वालों के समर्थन से काँग्रेस पार्टी को बहुमत मिला ! ये उस वक्त की बहौत बडी उप्लब्धि थी !
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१३- अली गढ तहरीक - सर सैय्यद अहमद खां ने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिये अलीगढ़ मुस्लिम आन्दोलन का नेतृत्व किया !
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१४-  मालाबार विद्रोह Malabar rebellion- केरल के मोपला मुसलमानों द्वारा 1920 में ब्रितानियों या अंग्रेज़ों के विरुद्ध किया गया विद्रोह मोपला विद्रोह कहलाता है।
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१५- अहरार तहरीक - इस आंदोलन की स्थापना स्वतंत्रता सेनानी रईस उल अहरार मौलाना हबीब उर रहमान लुधियानवी, सैय्यद उल अहरार, सैय्यद अताउल्लाह शाह बुखारी, चौधरी अफजल हक ने 29 दिसंबर 1929 ई0 को लाहौर के हबीब हाल में की थी। अहरार पार्टी की स्थापना इसलिए की गई थी कि हम देश में उस समय मौजूद जालिम अंग्रेज सरकार को देश से उखाड़ फैंकें और अहरार पार्टी के कार्यकर्ताओं ने अपने इस फर्ज को अच्छी तरह निभाया। एक-दो नहीं बल्कि हजारों अहरारी कार्यकर्ताओं ने स्वतंत्रता संग्राम में जेलें काटीं हैं।
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१६- खाकसार तहरीक The Khaksar movement
खाकसार पर्शियन भाषा के दो शब्दों से मिलकर बना है जिसमें खाक - का मतलब है मिट्टी और सार का मतलब है जीवन और इसका संयुक्त मतलब निकलता है विनम्र इंसान। हालांकि ये आंदोलन हथियारबद्ध था। ये पूरा आंदोलन उस समय चलाया गया था जब ब्रिटिश काल में भारतीय अर्थव्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई थी। इस आंदोलन के जनक थे अल्लामा इनायतुल्लाह खान मशरक़ी जो एक महान राष्ट्रवादी थे ।
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१७ Provisional Government of Free India (Azad Hind) तहरीक - चौंकिये मत ये नेता सुभाष जी वाली आज़ाद हिन्द फ़ौज नही है !बल्कि ये एक तहरीक है सन 1914 ई. में मौलाना उबैदुल्ला सिंधी ने अफ़गानिस्तान जाकर अंग्रेज़ों के विरूद्ध अभियान चलाया और काबुल में रहते हुए भारत की सर्वप्रथम स्वंतत्र सरकार स्थापित की जिसका राष्ट्रपति राजा महेन्द्र प्रताप को बनाया गया। और उनके लिये  सबसे पहले  29 अक्टूबर 1915 को अफगानिस्तान में  फ़ौज बनायी गयी उस फ़ौज का नाम आज़ाद हिन्द फ़ौज रखा गया !
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१८ - मुस्लिम नेशनलिस्ट पार्टी
ऑल इंडिया मुस्लिम नेशनलिस्ट पार्टी एक राष्ट्रवादी पार्टी थी जिसका उद्देश्य स्वतंत्रता प्रप्ति था जिसे मौलाना आज़ाद , डॉक्टर मुख़्तार अंसारी , महोम्मेद अली करीम चागला , अवसाफ अली और शेरवानी वगैरह ने मिलकर बनाया था ! इस पार्टी ने मुस्लिम लीग की खुल कर मुखालफत की, लेकिन इसे स्वंत्रता संग्राम के दौरान अनदेखा किया गया और हाशिए में धकेल दिया गया।
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१९- आल इन्डिया मुस्लिम लीग -
 चौंकिये मत !आल इन्डिया मुस्लिम लीग  ने भी भारत की आज़ादी के लिये अहम काम किया 1930 के दशक तक, मुहम्मद अली जिन्ना भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य इसलामी तालिमात से दूर , घोर राष्ट्रवादी और स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा थे। जिन्नाह  ही  बाल गंगाधर तिलक के मुकद्दमे के वकील थे ! कवि और दार्शनिक, डॉ॰ सर अल्लामा मुहम्मद इकबाल हिंदू – मुस्लिम एकता और 1920 के दशक तक अविभाजित भारत के एक मजबूत प्रस्तावक थे.अपने प्रारम्भिक राजनीतिक कैरियर के दौरान हुसेन शहीद सुहरावर्दी भी बंगाल में राष्ट्रीय कांग्रेस में सक्रिय थे। मौलाना मोहम्मद अली जौहर और मौलाना शौकत अली ने समग्र भारतीय संदर्भ में मुसलमानों के लिए, मुक्ति के लिए संघर्ष, और महात्मा गांधी और फिरंगी महल मौलाना अब्दुल के साथ स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया। 1930 के दशक तक भारत के मुसलमानों ने मोटे तौर पर एक अविभाजित भारत के समग्र संदर्भ में अपने देशवासियों के साथ राजनीति की.

 भारत की आज़ादी केवल भारत की आज़ादी के लिये इतने मूवमेंट , तहरीकें , आंदोलन सिर्फ़ मुस्लिमों के ज़रिये चलाये गये ! इसके उपरान्त मुस्लिमों ने स्वदेशी मूवमेंट, होम रूल मूव मेंट , असहयोग आन्दोलान , किसान आन्दोलन , साइमन कमीशन वापस जाओ आन्दोलन , अंगरेज़ों भारत छोडों आन्दोलन में सबसे बढचढकर हिस्सा लिया ! मुसलमान महिलाओं में हजरत महल, असगरी बेगम, बाई अम्मा , सदीका बीबी जैसी लाखों मुस्लिम औरतों ने ब्रिटिश के खिलाफ स्वतंत्रता के संघर्ष में योगदान दिया
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बात  आयी तो आप को बताते चलूं की स्वतंत्रता संग्राम में अपनाये गये नारों के रचयिता भी अकसर मुस्लिम थे ! जैसे!
१-’साइमन गो बैक ’ और ’  Quit India ’ का नारा एक मुस्लिम क्रन्तिकारी युसूफ मैहर अली ने दिया था !
२-’जय हिन्द ’ का नारा आज के तिलंगाना के एक मुस्लिम आबिद हसन साफ़रानी ने दिया था !
३- ’इनकलाब ज़िन्दाबाद ’ का नारा हसरत मोहानी ने दिया था !
४- सुरैया तय्यब जी नामी मुस्लिम औरत ने तिरंगे का यह रूप दिया जो आज हम लहराते हैं !
५-’मादर ए वतन -भारत की जय ’ का नारा १८५७ में आज के बिहार के अज़ीमुल्लाह खान ने दिया था !
६- ’ सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है ’ के रचयिता स्वतंत्रता सेनानी रामप्रसाद बिस्मिल नही है ये जानबूजझ कर गलतफ़ह्मी फ़ैलायी गयी है हकीकत में इस के रचयिता बीहार अज़ीमाबाद के मुस्लिम शायर ,बिस्मिल अज़ीमाबादी हैं !
७- रष्ट्रिय गीतों में हर लिहाज़ से उम्दा ’ सारे जहां से अच्छा हिन्दूस्तां  हमारा ’ लिखने वाले अल्लामा डाक्टर मुहम्मद इकबाल हैं !
८- उमर सुबहानी, जो की बंबई के एक उद्योगपति करोड़पति थे, उन्होंने आज़ादी हासिल करने के लिये उस समय गांधी और कांग्रेस को अपनी पूरी दौलत देदी थी और अंततः स्वतंत्रता आंदोलन में अपने को कुर्बान कर दिया था। क्या भारत के इतिहास में उनके जैसा कोई दूसरा आदमी मिल सकता है ? नही कत्तई नही ! लेकिन इन अज़ीम शहीदों का नाम आज के इतिहास में नही मिलता !

आज वो लोग हमें राष्ट्र प्रेम का दर्स देने आते हैं जिनके नेता सावरकर की पूरी उम्र ही अंग्रेज़ों से माफ़ी मांगते गुज़री , जिन्होंने १९४० के आस पास अंग्रेज़ों की फ़ौज में भारतियों को भर्ती होने के लिये रात दिन निवेदन किया !  बंकिम चन्द चटोपाध्याय को अपनी किताब आनंद मठ में बार बार अंग्रेज़ों को अपना दोस्त कहना पडा ! किसी ने अंगरेज़ों के लिये मुख्बिरी की तो किसी ने किसी के द्वारा किये गये कार्य को अपने नाम कर लिया ! आज उन को वीर  और स्वतंत्रता सेनानी कहा जाता है तो कईयों को भारत रत्न की उपाधि मिली है वो इस्लिये कि ये लोग समुदाय विशेष के वर्ग विशेष से संबन्ध रखते थे ! और क्रित्रिम इतिहास का सिल सिलसिला निरन्तर जारी है ताज़ा मिसाल राज्स्थान का है जहां ४०० साल बाद राणा प्रताप हल्दी घाटी कि जंग में अकबर को हरा देता है महाराष्ट्र के इतिहास से मुस्लिम और मुगलों के नाम हटाये जारहे हैं ! आप को बता दूं कि ये वही लोग हैं जिन्होने अपने मतलब के लिये अपने ही वेदों में त्रांस्पोसीजन तक किया है ये मैं नही नही कहरहा हूं बल्कि राम गोविन्द जी कह रहे हैं जिन्हों ने मनुस्मिर्ति का हिन्दी अनुवाद किया है ! यही लोग आज हमारे राष्ट्र का पर सर्टीफ़िकेट मांग रहे हैं !

अरे हम मुस्लिमों की हुब्बुलवत्नी राष्ट्रप्रेम का गवाह उस समय का मौत का जज़ीरा ’कालापानी’ जिसे आज अन्डमान निकोबार द्वीप समूह कहते हैं का ज़र्रा ज़र्रा है ! इतने मुस्लिमों को काला पानी की जेल में मरने के लिये भेजा गया कि आज वहां मुस्लिमों की बुहतात है और मुस्लिम एम० पी० ही अकसर वहां से जीत कर आता है !
 इसके आगे इतिहास , भारत के पेड और कण कण इस हकीकत का भी गवाह है कि जंगे अज़ादी में जितने लोगों को फ़ासी हुयी है उनमें ८०% मुस्लिम थे ! हमारे खून से ये मिट्टी लालाज़ार होती रही है !

लेकिन क्या हमारे इर्द गिर्द की, आज की हमारी नौजवान नस्ल ये सब बातें जानती है ? यकीनन नही ! और क्या वो जानना चाहती है ? एक बार फ़िर वही जवाब आये गा ’ यकीनन नही’ और जब हम जाने गें ही नही तो उनका ज़िक्र और उनको याद कैसे करेंगे ? याद रखिये जो ज़िन्दा है वही जानने की कोशिश करता है किसी को याद करता है ! और जब हम याद करने के लिये कोइ सर्माया या पूंजी नही रखते तो खुद को ज़िन्दा कहने का हक भी नही बनता ! कहने को बहुत  कुछ है ! लेकिन कहा तक कहा जाय !
 आखिर में हम उन तमाम  शोह्दा को ताज़ीम व हदिये खुलूस पेश करते हुये उनके लिये आलाह ताला से आला दर्जात की हसूलयाबी की दुआ करते हुये ये भी दुआ करते हैं कि अल्लाह सुभानहु ताला हमें वो शऊर दे की हम जानने की अहमियत व अफ़्दियत को समझें ताकि अपने आप को ज़िन्दा कहने में हक बजानिब हों !

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अंग्रेज़ों के खिलाफ़ लडने वाले कुछ मुस्लिम मुजाहिदों के नाम !

1. NAWAB SIRAJUDDOULA.2. Sher-e-Mysoor TIPU SULTAN SHAHEED.

3. Hazrat Shah Waliyullah Muhaddis Dehlawi.4.Hazrat Shah Abdul Aziz Muhaddis Dehlawi.

5. Hazrat Syed Ahmed Shaheed.6. Hazrat Moulana Vilayat Ali Sadiq puri.

7. Abu Zafar Sirajuddin Muhammed Bahadur ShahZafar.8. Allama Fazl-e-haq khairabadi.

9. Shehzada Feroz Shah.10. Moulvi Mohammed Baqar Shaheed.11. Begum Hazrat Mahal.

12. Moulana Ahmadullah Shah.13. Nawab Khan Bahadur Khan.14. Azizan bai.

15.Shah Abdul Qadir Ludhianavi.16. Hazrat Haji Imdadullah muhajir-e-makki.17. Hazrat Moulana Muhammed Qasim Nanotawi.

18. Hazrat Moulana Rahmatullah kairanawi.19. Shaikh-ul-Hind Hazrat Moulana Mahmood-ul-Hasan.

20. Hazrat Moulana Ubaidullah sindhi.21. Hazrat Moulana Rasheed Ahmed Gangohi.

22. HazratMoulana Anwar Shah Kashmiri.23. Moulana Barkatullah Bhopali.

24. Hazrat Moulana Mufti kifayatullah.25. Sehbaan-ul-Hind Moulana Ahmed Sayeed Dehlawi.

26. Hazrat Moulana Sayyid Hussain Ahmed Madani.27. Saiyyidul Ahrar Moulana Muhammed Ali Jaohar.

28. Moulana Hasrat Mohani.29.Molana Arif hiswi

30.Moulana Abul kalam Azad.31. Rayees-ul-Ahrar Moulana Habiburrehman Ludhianavi.

32. Dr. Saifuddin Kuchlu Amritsari.33. Masih-ul-mulk Hakim Ajmal khan.

34.Moulana Mazharul Haq.35. Moulana Zafar Ali Khan.

36. Allama Inayatullah Khan Mashriqi.37. Dr Mukhtar Ahmed ansari.

38. General Shahnwaz Khan.39. Hazrat Moulana Syed Muhammed Miyan.

40. Moulana Muhammed Hifzurrahman Syoharwi.41. Hazrat Moulana Abdul Bari Farangimahli.42. Khan Abdul Gaffar Khan.

43. Mufti Ateequrrahman Usmani.44 . Dr Syed Mahmood.

45. Khan Abdul Samad Khan.46. Rafi Ahmed Qidwai.

47. Yusuf Mehar Ali.48. Ashfaqullah Khan.49. Barister Asif Ali.

50. Hazrat Moulana Ataullah Shah Bukhari.51. Molana Khalil-ur-Rahman Ludhianavi.

53. Abdul Qayyum Ansari.54 . Bismil Azimabadi

55. Shaheed Peer Ali khan56. Ghasita Khalifa57. Ghulam Abbas

58. alias Sipahi 59. Jumman Miyan 60. Kajil Khan

61. Ramzani Miyan 62. Peer Bakhsh 63. Sadat Ali 64. Wahid Ali 65. Ghulam Ali

66. Mahmood Akbar67. Asrar Ali Khan 68. Habibullah 69. Faiyaz Ali

70. Mirza Agha Mughal 71. Rajab Ali 72. Asghar Ali Beg

73. Deen Mahmood 74. Peer Bakhsh Dafali 75. Sheikh Fakir

76. Kallu Khan 77. Paigambar Bakhsh 78. Ausaf Husain

79. Sheikha Nabi Bakhsh 80. Rahmat Ali 81. Khwaja Amir Jan
-------(शादाब सहराई )
कितना दुःखद विडंबना है कि आज वो लोग जो लोग स्वतंत्रता संग्राम से कोसों दूर रहे जो आज भी तिरंगा अपने मुख्यालय में नहीं फहराते वो उन मदरसों में देश-भक्ति की तालीम देने और तिरंगा फहराने की सलाह दे रहे हैं ,जिन्हों ने स्वतंत्रता की लड़ाई की बुनियाद रखी. यह वह समय था जब अन्य समुदाय के लोगों में स्वतंत्रता-प्राप्ति की स्वस्थ चेतना भी पैदा नहीं हुई थी तब मदरसा और मुसलमानों द्वारा जगाई गई चेतना के कारण ही अन्य समुदाय के लोग भी इस आन्दोलन में शरीक हुए और उल्लेखनीय भागीदारी निभाई जिसके परिणाम स्वरूप १८५७ के प्रथम स्वाधीनता-संग्राम की विफलता के बाद अंग्रेजों ने मुसलमानों और मदरसों को अपना प्रथम शत्रु माना लिया और उनपर घोर अमानुषिक अत्याचार किये हजारों मुस्लिम क्रान्तिकारियों संहित इन मरसों ने लाखों उलेमा की आहूति दी. जब देश के मदरसे अंग्रेजों के ज़ुल्म का शिकार हो रहे थे इस जुर्म में कि वो अंग्रेजों के विरुद्ध लोगों में जागरुकता पैदा कर रहे थे तब ये 'राष्ट्रभक्त' लोग 'द्विराष्ट्र' के प्रचार-प्रसार मे व्यस्त थे ताकि अंग्रेजों के 'फूट डालो-राज करो' की नीति को और मज़बूती प्रदान कर सकें !!!
"इन्क़िलाब-ज़िन्दाबाद !" का नारा देने वाले
(१)मौलाना हसरत मोहानी
(२) मोलवी अहमद शाह
(३) मौलाना उबैदुल्लाह सिंधी
(४) मुफ्ती किफायतुल्लाह
(५) मौलाना बरकतुल्लाह भोपाली
(६) मौलाना सैयद हुसैन अहमद मदनी
(७) शैख़ुलहिन्द मौलाना महमूद हसन देवबंदी
(८) मौलाना फ़रीदुद्दीन देहलवी
(९) मौलाना किफायत अली काफ़ी शहीद
(१०) मौलाना मुहम्मद क़ासिम नानौतवी
(११) बहादुर शाह ज़फ़र
(१२) मौलाना मुहम्मद बिन क़ासिम पानीपती
(१३) सैयद अहमद शहीद
(१४) नवाब अमीर ख़ाँ
(१५) शाह इस्माईल शहीद
(१६) नवाब अमीर ख़ान
(१७) शाह अब्दुल अज़ीज़
(१८) शाह वलीउल्लाह देहलवी
(१९) बिस्मिल अज़ीमाबादी
(२०) मोलवी बाक़र
(२१) मोलवी शरीअकुल्लाह ख़ान
(२२) ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ाँ
(२३) पीर अली लखनवी
(२४) मौलाना ज़फ़र अली ख़ाँ
(२५) हाजी इमदादुल्लाह
(२७) मोलाना मुहम्मद मियां अंसारी
(२८) हकीम अजमल खां
(२९) अलताफ़ हुसैन हाली
(३०) सैयद अहमद सरहिंदी
(३१) मौलाना शिबली नोमानी
(३२) सैफुद्दीन किचलू
(३३) अली अहमद सिद्दीक़ी
(३४) सैयद मुजतुबा हुसैन
(३५) अब्दुल वक्कोम क़ादिर
(३६) बी अम्मा
(३७) बेग़म हज़रकत महल
(३८) असग़री बेगम
(३९) हबीबा बी
(४०) जमीला बेगम
(४१) बेगम ज़ीनत महल
(४२) बेगम हज़रत महल
(४३) बख़तावरी बेगम
ये सब किसी कान्वेंट स्कूल से नहीं सब मदरसों की ही पैदावार थे ! आज जानबूझ कर स्वाधीनता-संघर्ष में मुसलमानों की बुनियादी भूमिका को इतिहास के पन्नों से मिटाने का कुप्रयास जारी है.
स्वाधीनता आन्दोलन में (१) जमीअतुल उलेमा (२) मजलिसे अहरार (३) अंजुमने-वतन बलूचिस्तान (४) ख़िलाफत कमेटी (५) प्रजा कृषक पार्टी (६) कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस (७) खुदाई खिदमतगार जैसे प्रमुख मुस्लिम संगठनों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई . ख़ाकसार पार्टी और तहरीके-रेशमीरुमाल को कौन भूल सकता है ?
जब हम इतिहास के पन्नों को खंगालते हैं तो जो हमें एक दस्तावेज के अनुसार स्वतंत्रता आन्दोलन में १९३० में सूबा सरहद (सीमांत प्रदेश) में ३००० मुसलमानों गोलियों से उड़ाया गया था जबकि ४००० मुसलमानों को नपुंसक बना गिया गया था और ४०,००० गिरफ़्तार किये गये थे. १९३० में ही उत्तरप्रदेश में १०,.००० बिहार में ३००० असम में ३००० पंजाब में ४००० बम्बई में ३००० बंगाल में ४००० तथा सिंध में ३००० मुसलमानों को गिरफ्तार किया गया था.
बहुत से मुस्लिम स्वतंत्रता-सेनानियों के नाम तक गुमनाम है परन्तु एक इतिहासिक रिकार्ड के अनुसार स्वाधीनता-संग्राम में २ लाख ७८ हजार मुसलमानों को गिरफ्तार किया था.
मुसलमान देशभक्त थे, हैं और रहेंगे ! हमें उन लोगों से 'राष्ट्रभक्ति' का प्रमाण-पत्र नहीं चाहिये जो छद्म राष्ट्रवाद के ध्वजवाहक रहे हैं  !
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जंग ए आज़ादी में शामिल थे, यूं तो हमारे  भी  बुज़ुर्ग !
अहद ए नव को ये हकीक़त, किस तरह समझाएं हम !!
अहद ए हाज़िर के मुअर्रिख़, बिक गए मिट्टी के मोल ,
किसके हाथों क़ौम की अब, कुर्बानियां लिखवाएं हम !!!
☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆डाॅoशाहीन सुमन ☆☆☆☆☆☆

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"बक्श देता है 'खुदा' उनको, ... ! जिनकी 'किस्मत' ख़राब होती है ... !! वो हरगिज नहीं 'बक्शे' जाते है, ... ! जिनकी 'नियत' खराब होती है... !!"

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