असमः अपने पिता का शव लेने से इनकार क्यों कर रहा है यह परिवार?
"मेरे पिता को बांग्लादेशी घोषित कर घर से उठा ले गए थे. दो साल डिटेन्शन कैंप में कैद करके रखा. अब हिरासत में उनकी मौत हो गई है, तो सरकार हम लोगों पर उनका शव ले जाने के लिए दबाव बना रही है. यह किस तरह का न्याय है?''
25 साल के अशोक पॉल अपने पिता की मौत को लेकर सरकार के रवैये से बेहद गुस्से में है.
वो कहते हैं, ''जब मेरे पिता ज़िंदा थे तो उन्हें 'बांग्लादेशी' बना दिया, अब मरने के बाद वे स्वदेशी कैसे हो सकते है? सरकार को हमें लिखकर देना होगा कि वे भारतीय नागरिक थे तभी हम उनका शव ग्रहण करेंगे. हम बांग्लादेशी व्यक्ति का शव लाने नहीं जाएंगे."
दरअसल असम के तेजपुर सेंट्रल जेल के भीतर बने डिटेन्शन कैंप में बंद 65 साल के दुलाल चंद्र पॉल नामक एक कैदी की मौत ने प्रदेश की सरकार को एक बड़ी ही अजीबोगरीब स्थिति में डाल दिया है.
दुलाल चंद्र पॉल की बीते रविवार को बीमारी के कारण गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में मौत हो गई थी और तब से उनका शव अस्पताल के मुर्दा घर में रखा हुआ है.
परिवार ने शव लेने से इनकार किया
राज्य सरकार परिवार के सदस्यों को शव ले जाने के लिए मनाने की कोशिश कर रही है. इसी क्रम में सरकार ने दुलाल चंद्र पॉल के गांव में अपने एक प्रतिनिधिमंडल को भेजा था लेकिन परिवार वालों ने मांग रखी है कि जब तक सरकार दुलाल चंद्र पॉल को भारतीय नागरिक घोषित नहीं करती वे उनका शव लाने नहीं जाएंगे.
शोणितपुर ज़िले के ज़िला उपायुक्त मानवेंद्र प्रताप सिंह ने घटना की जानकारी देते हुए बीबीसी से कहा, "विदेशी ट्रिब्यूनल ने दुलाल चंद्र पॉल को 2017 में विदेशी घोषित किया था. उस समय वे मानसिक तौर पर बीमार थे. उनको डिटेन्शन कैंप में भेजा गया था.''
मानवेंद्र बताते हैं कि पॉल को गंभीर रूप से मधुमेह की बीमारी भी थी. पिछले महीने 26 तारीख को जब वे बीमार पड़े तो उन्हें तेजपुर मेडिकल कॉलेज एंड अस्पताल में भर्ती कराया गया था और बाद में अच्छे इलाज के लिए गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज भेजा गया जहां 13 अक्टूबर को उनकी मौत हो गई.
ज़िला उपायुक्त मानवेंद्र सिंह अपनी दुविधा कुछ यूं बयान करते हैं, "पॉल की मौत के बाद जब प्रशासन ने परिवार वालों से संपर्क किया तो वे लोग बोले कि पहले उन्हें भारतीय नागरिक घोषित कीजिए फिर हम शव लेने आएंगे. लेकिन इसमें जिला प्रशासन क्या कर सकता है. दुलाल चंद्र पॉल को शोणितपुर के एक विदेशी ट्रिब्यूनल ने विदेशी घोषित किया था.''
''उसके बाद परिवार के लोगों ने गुवाहाटी हाई कोर्ट में अपील की थी लेकिन वहां भी उनकी अपील खारिज हो गई और उन्हें विदेशी ही माना गया. अब ज़िला प्रशासन के पास इतनी पावर तो है नहीं कि वो कोर्ट के आदेश के ख़िलाफ़ जाकर उन्हें भारतीय नागरिक बना दे."
प्रशासन क्या करेगा?
पॉल की मौत को छह दिन हो चुके हैं, अगर परिवार वाले उनका शव नहीं लेते हैं तो प्रशासन आगे क्या कदम उठाएगा?
इस सवाल का जवाब देते हुए ज़िला उपायुक्त ने कहा, "दरअसल शव का क्या करना है इस पर बॉर्डर पुलिस और विदेशी ट्रिब्यूनल ही कोई फ़ैसला लेगी. इस मामले में ज़िला प्रशासन की बहुत ज्यादा भूमिका नहीं है.''
''अगर मृतक के परिवार वालों को शव लाने के लिए हमारी मदद चाहिए या फिर किसी तरह की क़ानूनी सहायता की ज़रूरत होगी तो हम मदद कर सकते हैं. ज़िला प्रशासन ने इस मामले की जांच के आदेश भी दिए हैं."
जेल प्रशासन पर लापरवाही का आरोप
दुलाल चंद्र पॉल के परिजनों का आरोप है कि जेल प्रशासन की लापरवाही के कारण उनकी मौत हुई है.
दुलाल चंद्र पॉल के मंझले बेटे अशोक पॉल ने बीबीसी से कहा, "दो साल पहले जब मेरे पिता को डिटेन्शन कैंप ले गए थे उस समय उनका शरीर बिल्कुल ठीक था. केवल वे मानसिक तौर पर थोड़े बीमार थे. लेकिन जेल में कुछ ही महीनों के भीतर उनका शरीर काफी कमजोर हो गया था और वे बीमार पड़ गए."
''जब हम उनसे मिलने जाते थे तो केवल एक ही बात पूछते थे कि मुझे यहां से बाहर कब निकालोगे. हमें पता चला था कि डिटेन्शन कैंप में उन्हें खाने-पीने की काफी तकलीफ होती थी."
सरकार की व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए अशोक पॉल कहते हैं, "मेरे पिता को जब इलाज के लिए गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज भेजा गया तो हमें बताया गया कि उनको आईसीयू में भर्ती किया गया है लेकिन मैं जब अपने बड़े भैया और मां के साथ वहां उन्हें देखने पहुंचा तो वे अस्पताल के बरामदे में एक बिस्तर पर लेटे हुए थे."
''मेरे पिता ठीक से बोल नहीं पा रहे थे. उनके पास तैनात दो पुलिस वालों नें हमें बताया कि उन्होंने पांच दिन से कुछ नहीं खाया है. अगले ही दिन सुबह साढ़े नौ बजे उनकी मौत हो गई."
जांच के आदेश
इस बीच असम सरकार ने दुलाल चंद्र पॉल की मौत से जुड़ी घटना की मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दिए है. शोणितपुर ज़िले के अतिरिक्त ज़िला उपायुक्त पराग काकोती इस मामले की जांच कर रहे हैं.
हालांकि पॉल की मौत से हिंदू बंगाली समुदाय के लोगों में काफी नाराज़गी है. इस घटना से नाराज़ ऑल असम बंगाली यूथ स्टूडेंट्स फेडरेशन ने 16 अक्टूबर को मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल को एक ज्ञापन भेजा है जिसमें दुलाल चंद्र पॉल को भारतीय नागरिक घोषित करने की बात लिखी गई है.
ऑल असम बंगाली यूथ स्टूडेंट्स फेडरेशन के अध्यक्ष प्रदीप डे ने बीबीसी को बताया, "फेडरेशन ने सर्कल अधिकारी के ज़रिए मुख्यमंत्री को एक ज्ञापन भेजा है. हमने साफ कहा कि दुलाल चंद्र पॉल को भारतीय नागरिक घोषित करे तभी उनका शव लाने जाएंगे.''
''पॉल के परिवारवालों की भी यही मांग है और अगर वे बांग्लादेशी हैं तो सरकार उनका शव बांग्लादेश भेज दें. ये केवल दुलाल चंद्र पॉल से जुड़ी घटना ही नहीं है बल्कि असम के कई डिटेन्शन कैंपो में हिंदू बंगाली लोगों के साथ ऐसा ही व्यवहार हो रहा है.''
प्रदीप डे कहते हैं, ''मैं खुद डिटेन्शन कैंप में जाकर लोगों से मिला हूं. भारतीय नागरिकता से जुड़े दस्तावेज होने के बाद भी ऐसे कई लोग है जिन्हें डिटेन्शन कैंप में कैद कर रखा गया है."
बंगाली हिंदू क्यों हैं नाराज़?
असम में 2011 की जनगणना के अनुसार बंगाली बोलने वाले लोगों की आबादी 91 लाख से अधिक है जो कि प्रदेश की कुल जनसंख्या का लगभग 29 फीसदी है. इनमें करीब 31 फीसदी बंगाली बोलने वाले लोग हिंदू हैं.
आख़िर हिंदुओं की बात करने वाली भाजपा के शासन में बंगाली हिंदुओं के मन में इतनी नाराज़गी क्यों है?
इस पर प्रदीप डे कहते हैं, "हिंदू बंगालियों के ख़िलाफ़ इससे पहले किसी भी सरकार ने इतना अन्याय नहीं किया था. जैसा आज बीजेपी की सरकार के शासन में हो रहा है. एनआरसी की फ़ाइनल सूची में 12 लाख से अधिक हिंदुओं के नाम नहीं है."
शोणितपुर ज़िले के ढेकियाजुली थाना क्षेत्र के अंतर्गत रबड़तला आलीसींगा गांव में दुलाल चंद्र पॉल के घर रिश्तेदारों से लेकर सरकारी अधिकारी और सामाजिक संगठनों से जुड़े लोगों का आना-जाना लगा हुआ है.
इस छोटे से गांव में हिंदू बंगाली लोगों के करीब दो सौ परिवार रहते हैं जो इस घटना के बाद से डरे हुए है. बीते सोमवार को गांव के लोगों ने अपनी नाराज़गी जताते हुए राष्ट्रीय राजमार्ग 15 को जाम कर दिया था.
गांव वालों का डर
गांव वालों के मन में इस बात का डर बैठ गया है कि अगर विदेशी घोषित किए गए पॉल का शव ग्रहण कर लिया तो बाद में उनके परिवार के बाकी सभी लोगों को विदेशी बना दिया जाएगा.
दुलाल चंद्र पॉल के भांजे शुकुमल पॉल ने कहा, "प्रशासन के लोग लगातार शव ले जाने के लिए हमारे परिवार पर दबाव बना रहे हैं, लेकिन शव को प्राप्त करने से पहले सरकार के जिस कागज पर दस्तखत करना होगा उस पर मेरे मामा दुलाल चंद्र पॉल को विदेशी नागरिक घोषित कर रखा है. आप बताइए हम एक विदेश नागरिक का शव कैसे ले सकते हैं?
शुकुमाल पॉल कहते हैं, ''मेरे मामा के पास भारतीय नागरकिता से जुड़े 1965 के कागजात थे लेकिन फिर भी उन्हें विदेशी बना दिया गया. असम में हिंदू बंगालियों को लेकर कई घटनाएं हो चुकी हैं. हमें अब बहुत डर लगने लगा है."
दुलाल चंद्र पॉल के तीन बेटे और पत्नी इस समय सदमे में है. पिता का न तो अंतिम संस्कार कर पाए हैं और न ही उनकी मौत के बाद खासकर श्राद्ध से पहले हिंदू रीति रिवाज के अनुसार नियमों का पालन कर पा रहे हैं.
अशोक पॉल कहते हैं, "हमसे ज़्यादा इस दुनिया में बदकिस्मत और कौन होगा जो अपने पिता की चिता को आग भी नहीं लगा पाए है. अगर हमने विदेशी नागरिक के तौर पर पिता की लाश ग्रहण कर ली तो हम तीनों भाइयों को भी विदेशी घोषित कर जेल में डाल दिया जाएगा.''
''एनआरसी की फ़ाइनल सूची में हम तीनों का नाम शामिल नहीं किया गया है. केवल मेरी मां का नाम एनआरसी में है. पता नहीं आगे हमारा क्या हश्र होने वाला है!"
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