अयोध्या मामलाः पंच परमेश्वर के फै़सले के बाद उठने वाले पांच ज़रूरी सवाल


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अयोध्या में राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने नौ नवंबर को फ़ैसला सुना दिया. माना जा रहा है कि आज़ाद भारत के न्यायिक इतिहास के सबसे विवादित और संवेदनशील मुद्दे का इसी के साथ अंत हो जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट के पाँच जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से यह फ़ैसला सुनाया है. लेकिन जिस आधार पर फ़ैसला दिया गया उस पर क़ानून और संविधान के कुछ अध्येता सवाल खड़े कर रहे हैं. क्या हैं ये सवाल.
इसकी सूची बनाते हुए बीबीसी हिंदी ने कुछ जानकारों से बात की है.
सुप्रीम कोर्ट के वकील और 'अयोध्याज़ राम टेंपल इन कोर्ट्स' किताब के लेखक विराग गुप्ता ने इस फै़सले से सहमति जताते हुए कहा कि इस फै़सले से एक ऐतिहासिक विसंगति दूर होगी पर उन्होंने साथ ही ये भी कहा कि इस न्यायिक फै़सले पर आलोचकों ने अनेक सवाल उठाए हैं, विशुद्ध न्यायिक दृष्टि से देखें तो इस फ़ैसले से जो सवाल खड़े हुए हैं, उन पर ग़ौर किया जाना चाहिए.
वरिष्ठ पत्रकार जे वेकंटेशन ने भी बीबीसी से बात करते हुए इन सवालों का ज़िक्र किया. आइए उन पांच सवालों पर एक नज़र डालते हैं.
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पहला सवालः अन्य धार्मिक स्थानों पर हो रहे विवादों पर इस फै़सले का क्या असर होगा?

मध्य काल में सल्तनत और मुगल शासकों ने अनेक धार्मिक स्थलों को ध्वस्त किया है, इस बात के अनेक वृतांत हैं. सुप्रीम कोर्ट के फै़सले के अनुसार विवाद की जड़ उतनी ही पुरानी है जितना भारत का विचार.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में संसद से पारित 1991 के क़ानून का ज़िक्र किया है, जिसके अनुसार अयोध्या को छोड़कर अन्य सभी धार्मिक स्थलों में 15 अगस्त 1947 का स्टेटस बरकरार रहेगा.
अयोध्या के अलावा काशी और मथुरा में भी मंदिरों के बीच में बनाई गई मस्जिदों की स्थापना को लेकर विवाद हैं.
सुप्रीम कोर्ट के फै़सले के बाद संघ परिवार ने आश्वस्त किया है कि अब अन्य स्थानों पर कोई विवाद शुरू नहीं किया जाएगा लेकिन देवता को न्यायिक व्यक्ति और सखा को मुक़दमा दायर करने के अधिकार दिए जाने के बाद, अब अन्य जगहों पर तीसरे पक्ष की ओर से मुक़दमेबाजी शुरू किए जाने की संभावना को कैसे ख़त्म किया जा सकता है?
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दूसरा सवालः क्या राम मंदिर का प्रंबधन केंद्र सरकार देखेगी?

अनुच्छेद 142 और राम मंदिर पर केंद्र सरकार के प्रबंधन से जुड़े कुछ सवाल हैं.
देश के अधिकांश राज्यों में बड़े मंदिरों के प्रबंधन पर राज्य सरकारों का ही नियंत्रण है.
सुप्रीम कोर्ट के फै़सले के बाद अयोध्या के राम मंदिर के लिए ट्रस्ट बनाने और प्रबंधन पर केंद्र सरकार का अधिकार होगा, जो एक अनोखा मामला होगा.
कहा जा रहा है कि राजीव गांधी ने विवादित स्थल का ताला खुलवाया था पर इस फै़सले के बाद मंदिर की चाबी अब केंद्र की भाजपा सरकार के हाथ में आ गई है.
संविधान के अनुसार भूमि राज्यों का विषय है. राष्ट्रपति शासन की वजह से अयोध्या की भूमि का अधिग्रहण केंद्र सरकार ने क़ानूनी प्रावधानों के तहत किया था.
तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार ने भूमि अधिग्रहण के बाद हलफ़नामा देकर अदालत को बताया था कि पुरातत्व विभाग की खुदाई में अगर मंदिर के पक्ष में प्रमाण आए तो फिर अधिग्रहित भूमि को मंदिर निर्माण के लिए दे दिया जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अयोध्या भूमि अधिग्रहण क़ानून की धारा 6 और 7 को वर्ष 1994 के फै़सले से संवैधानिक करार दिया था.
राम मंदिर पर अयोध्या के मुसलमान क्या कह रहे हैं?
सुप्रीम कोर्ट ने 1000 पेज से ज़्यादा के फै़सले में अयोध्या क़ानून 1993 की धारा 6 और 7 को मान्यता देते हुए केंद्र सरकार को नए ट्रस्ट बनाने का अधिकार दिया है.
लोकसभा के आम चुनावों से पहले केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर करके अधिग्रहित ज़मीन को वापस करने की मांग की थी, जिस पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई ही नहीं हुई.
उस अर्जी पर पुरातत्व विभाग के प्रमाणों के आधार पर केंद्र सरकार को मंदिर निर्माण के लिए ज़मीन देने का आदेश दिया जा सकता था जिसके लिए अदालत को तब इतना बड़ा फै़सला लिखने की आवश्यकता नहीं होती.
केंद्र और राज्य सरकार इस मामले में पक्षकार नहीं थे, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष भी नहीं रखा इसके बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को मंदिर के लिए ट्रस्ट और मस्जिद के लिए ज़मीन आवंटित करने का आदेश कैसे दिया?
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Image captionविवादित स्थल के नज़दीक खुदाई

तीसरा सवालः फै़सले के ख़िलाफ़ रिव्यू और क्यूरेटिव पिटिशन दायर कौन कर सकता है ?

सुन्नी वक्फ़ बोर्ड ने इस फै़सले के ख़िलाफ़ रिव्यू या पुनरावलोकन याचिका दायर करने से इनकार किया है.
सबरीमाला और समलैंगिकता के मामलों में पहले यह देखा गया है कि पक्षकारों के अलावा तीसरे पक्ष की ओर से भी पुनरावलोकन याचिका (रिव्यू पिटिशन) दायर की जा सकती है.
हाईकोर्ट और निचली अदालतों ने अयोध्या मामले को सीपीसी क़ानून के तहत हिंदू पक्ष बनाम मुस्लिम पक्ष माना था.
यही वजह है कि क़ानूनन इस फै़सले के ख़िलाफ़ कोई भी व्यक्ति खुद को प्रभावित पक्ष बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक महीने के भीतर पुनरावलोकन याचिका दायर कर सकता है.
वर्तमान चीफ़ जस्टिस के रिटायर होने के बाद नए चीफ़ जस्टिस बोबड़े की अध्यक्षता वाली बेंच ही ऐसी किसी रिव्यू याचिका को सुनने या न सुनने पर फ़ैसला करेगी, जो सामान्यतः बंद कमरे में होती है.
सर्वसम्मति से दिए गए इस फै़सले के बाद रिव्यू से इस फै़सले में किसी प्रकार के बदलाव की उम्मीद नहीं दिखती.
केंद्र सरकार को तीन महीने के भीतर राममंदिर निर्माण के लिए नए ट्रस्ट का गठन करना है. इस ट्रस्ट में प्रतिनिधित्व के लिए निर्मोही अखाड़ा, हिंदू महासभा और राम जन्मभूमि न्यास के बीच दांवपेच होने की भरपूर संभावना है.
मस्जिद के लिए दी जाने वाली पाँच एकड़ भूमि कहां होगी इसे लेकर भी सवाल उठ रहे हैं. अदालत ने साफ़ नहीं किया है कि वह ज़मीन कहां होगी इसलिए सवाल बना हुआ है.
मस्जिद के लिए जो ज़मीन दी जा रही है, उसे स्वीकार किया जाए या नहीं इस पर भी सियासत शुरू होने के आसार दिखने लगे हैं. पंच परमेश्वर का फै़सला भले ही आ गया हो, लेकिन नेताओं की पंचायत अभी ख़त्म नहीं हुई है.
मोहन भागवत ने राम मंदिर पर क्या कहा?
चौथा सवालः अलग से परिशिष्ट क्यों जोड़ा गया?
एक सवाल ये भी उठ रहा है कि आम तौर पर अदालतों के फ़ैसलों में अलग से कोई परिशिष्ट नहीं जोड़ा जाता है लेकिन अयोध्या के फ़ैसले में ये जोड़ा गया है.
दूसरी तरफ़ जोड़े गए परिशिष्ट में जिन पाँच जजों की बेंच ने फ़ैसला सुनाया था उनमें से किसी का न तो नाम है और न ही हस्ताक्षर है. सवाल ये है कि आखिर ऐसा क्यों किया गया?
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पांचवा सवालः रामलला विराजमान साकार है या निराकार?

यदि विवादित स्थल पर सन 1949 से रखी हुई मूर्ति ही रामलला हैं जिसे सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक व्यक्ति माना है तो फिर सर्वोच्च अदालत ने उस मूर्ति रखने को अवैध क्यों बताया?
इस फै़सले के बाद क्या वर्तमान मूर्ति को ही नए बनने वाले राममंदिर में मुख्य स्थान मिलेगा?
देवता, मूर्ति और जन्म स्थान को न्यायिक दर्जा दिए जाने से जु़ड़े सवाल बहुत अहम हैं.
रामलला विराजमान के हक़ में 2.77 एकड़ भूमि का फै़सला दिया गया है, हिंदुओं की तरफ़ से इस लड़ाई को शुरू करने वाले हिंदू महासभा और निर्मोही अखाड़ा के दावों को निरस्त करते हुए, 1989 में दायर मुक़दमे के अनुसार रामलला विराजमान के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट ने फै़सला दिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने रामलला को न्यायिक व्यक्ति माना है लेकिन जन्म स्थान को न्यायिक व्यक्ति का दर्जा नहीं दिया है, इसके बावजूद जन्मस्थान ऐतिहासिक मान्यता दिया जाना दिलचस्प है.
अयोध्या में श्रीराम का जन्मस्थल है इस पर कभी विवाद नहीं रहा.
क्या जो विवादित स्थल है वही जन्मस्थान था, इस बिंदु पर फै़सले में आस्था और साक्ष्यों के घालमेल के आरोप लग रहे हैं.
विराग गुप्ता का ये भी मानना है कि अयोध्या विवाद को टाइटल सूट का यानि दीवानी मामला माना जाता था. ऐसे मामलों के लिए गाँवों में कहावत है कि पिता का मुक़दमा बेटा लड़ता है और पोते के समय फै़सला आता है और उसके बावजूद अधिकाँश मामलों में न्याय नहीं मिल पाता.
अयोध्या विवाद भी अदालतों की देहरी में 150 साल से लटका पड़ा था. इस फै़सले से ज़ाहिर है कि जजों में दृढ़ इच्छाशक्ति हो तो अन्य मामलों में भी 'तारीख पर तारीख' की बजाय जल्द फै़सला हो सकता है.
साभार ----- 
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