#Sulemani की हत्या और भारत ! भारत पर है सबसे ज़्यादा संकट ....

सुलेमानी की मौत से भारत में बढ़ेगी तेल की क़ीमत?

तेलइमेज कॉपीरइटREUTERS
अमरीका की सैनिक कार्रवाई के बाद मध्य पूर्व में जो तनाव पैदा हुआ है, उससे तेल जगत भी चिंतित है.
पूरी दुनिया का 30 फ़ीसदी तेल मध्य पूर्व से आता है. लेकिन तेल बाज़ार की मांग और आपूर्ति का मामला काफ़ी मज़बूत है. यानी दुनिया में तेल की जितनी मांग है, उससे ज़्यादा तेल बाज़ार में उपलब्ध है.
ईरानी जनरल की मौत ,गहराया तनाव
नॉन ओपेक देशों के साथ-साथ अन्य देशों में भी तेल मौजूद है. जैसे भारत अब अमरीका से भी तेल आयात करता है.
अमरीकी कार्रवाई के बाद की स्थिति को देखें तो राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप भी नहीं चाहेंगे कि ये स्थिति युद्ध में तब्दील हो. क्योंकि अमरीका में चुनाव का वर्ष है और ये हमेशा ही देखा गया है कि जब भी चुनाव का वक़्त होता है, तेल की क़ीमतों को क़ाबू में रखा जाता है.
अगर अमरीका में तेल की क़ीमतें बढ़ेंगी, तो ट्रंप चुनाव हार सकते हैं और ट्रंप ऐसा नहीं चाहेंगे.

क्या कर सकता है ईरान

सऊदी अरबइमेज कॉपीरइटAFP
ईरान की भी आर्थिक स्थिति ऐसी है कि वो नहीं चाहेगा कि अमरीका के साथ युद्ध हो. लेकिन ये भी है कि ईरान ख़ासकर तेल ठिकानों पर कोई न कोई कार्रवाई करने की कोशिश ज़रूर करेगा.
लेकिन अमरीका का आसपास कोई तेल का ठिकाना नहीं है इसलिए आशंका जताई जा रही है कि ईरान सऊदी अरब पर हमला न कर दे और इसी बात को लेकर चिंता का माहौल है.
मध्य पूर्व के तीन बड़े तेल निर्यातक देश सऊदी अरब, इराक़ और क़ुवैत का तेल हॉरमुज़ से निकलता है और यहाँ ईरान का दबदबा काफ़ी है. लेकिन ऐसा लगता नहीं है कि ईरान इस सप्लाई को काटेगा और वहाँ बारूदी सुरंग बिछा देगा. क्योंकि ईरान इस समय विदेशी मुद्रा के लिए चीन पर बहुत अधिक निर्भर है और चीन से उसकी असली कमाई तेल से है.
अगर ईरान इन देशों की सप्लाई लाइन काटता है, तो अमरीका भी उसे चीन तक तेल भेजने नहीं देगा. इसलिए ईरान के पास ये विकल्प नहीं है. ज़्यादा से ज़्यादा ये हो सकता है कि ईरान मिसाइल या ड्रोन से अटैक करे. इसलिए दुनिया में तेल की सप्लाई में कोई बड़ी रुकावट आ जाएगी, ऐसा लगता नहीं है.
ईरान कुछ करेगा, इसे लेकर चिंता है. लेकिन वहाँ स्थिति बेकाबू हो जाएगी, ऐसा नहीं लगता. तेल की क़ीमतें आसमान पर चली जाएँगी, ऐसा नहीं लगता.

भारत पर है सबसे ज़्यादा संकट

भारतइमेज कॉपीरइटAFP
भारत अमरीका और रूस से भी तेल मंगाता है. लेकिन भारत सबसे ज़्यादा तेल मध्य पूर्व के देशों से मंगाता है और इनमें इराक़ का नंबर सबसे पहला है. इसके अलावा सऊदी अरब, ओमान और क़ुवैत भी है.
भारत को इसकी चिंता नहीं है कि तेल की सप्लाई में कोई रुकावट आएगी. भारत की चिंता तेल की क़ीमतों को लेकर है. अभी तेल की क़ीमत प्रति बैरल तीन डॉलर बढ़ गई है.
भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए प्रति बैरल तीन डॉलर की क़ीमत बढ़ जाना बहुत बड़ी बात होती है. भारत में जो आम उपभोक्ता है, जो पेट्रोल-डीज़ल ख़रीदता है या एलपीजी ख़रीदता है या कंपनियाँ जो इन पर निर्भर हैं, उनके लिए ये अच्छी ख़बर नहीं है.
अमरीका की इस कार्रवाई का भारत के लोगों की जेब पर असर पड़ने वाला है क्योंकि आने वाले दिनों में पेट्रोल-डीज़ल और एलपीजी की क़ीमतें बढ़ना तय है. भारत को तेल की आपूर्ति तो होगी, लेकिन क़ीमतें बढ़ेंगी.
सुलेमानी की मौत पर कश्मीरी क्यों हुए नाराज़?
सरकार के लिए भी ये चिंता की बात है, क्योंकि तेल की क़ीमतें ऐसी समय में बढ़ रही हैं, जब सरकार के सामने वित्तीय घाटे की चुनौती बनी हुई है. रुपए पर भी दबाव बढ़ेगा. रुपए के लिए अच्छी ख़बर नहीं है.
आने वाले सप्ताह में भारतीय उपभोक्ताओं के लिए यह चिंता की बात है. ये भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए भी चिंता की बात है.
अमरीका ने ये कार्रवाई की तो इराक़ में है ईरान के ख़िलाफ़, लेकिन इसका सबसे प्रतिकूल असर भारत पर पड़ने वाला है.

भारत इस चुनौती के लिए कितना तैयार

मोदीइमेज कॉपीरइटGETTY IMAGES
भारत के पास इस मामले से निपटने के लिए अमरीका जैसा विकल्प नहीं है. अमरीका आज की तारीख़ में अपने यहाँ 12 मिलियन बैरल तेल का उत्पादन करता है. इसके अलावा दुनिया की सबसे बड़ी तेल कंपनियाँ अमरीका की हैं, जो दुनियाभर में जाकर तेल का खनन करती हैं, तेल का आयात-निर्यात करती हैं, तेल का उत्पादन करती हैं.
पूरी दुनिया में तेल का व्यापार अमरीकी डॉलर में चलता है. और अमरीका इससे काफ़ी कमाता है.
दूसरी तरफ़ भारत 85 फ़ीसदी तेल का आयात करता है. भारत में तेल की मांग भी लगातार बढ़ रही है. तेल की मांग प्रति वर्ष चार से पाँच फ़ीसदी बढ़ रही है. गाड़ियों की संख्या बढ़ रही है.
85 फ़ीसदी तेल के अलावा भारत 50 फ़ीसदी गैस भी आयात करता है. गाँव-गाँव में उज्ज्वला स्कीम के कारण जो एलपीजी दी जा रही है, वो भी आयात होती है.
दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में भारत एक ऐसा देश है, तो आयातित तेल और आयातित गैस पर बहुत ज़्यादा निर्भर है. चीन की लगभग 50 फ़ीसदी है.
इसलिए मध्य पूर्व में जब भी ऐसी बात होती है, भारत पर संकट के बादल मँडराने लगते हैं. भारत की अर्थव्यवस्था कुल मिलाकर ऑयल इकॉनॉमी है. भारत ने वैकल्पिक ऊर्जा को दोहन जैसा करना चाहिए था, वैसा किया नहीं है. हम अभी कोयला आयात कर रहे हैं, यूरेनियम आयात कर रहे हैं, सौर ऊर्जा के लिए जो उपकरण हैं, वो भी आयात किए जा रहे हैं.

और किन देशों पर असर

जब भी तेल की क़ीमतें बढ़ती हैं, उभरती हुई अर्थव्यवस्था पर उसका काफ़ी असर होता है. रूस की बात करें, तो रूस के पास अपना बहुत तेल है. ब्राज़ील के पास अपना बहुत तेल है. चीन की निर्भरता 50 फ़ीसदी है, अपना उनके पास उतना तेल नहीं है, लेकिन उन्होंने दुनियाभर में तेल के भंडार ख़रीद रखे हैं.
जापान भी लगभग पूरा तेल आयात करता है, लेकिन उसने भी दुनियाभर में तेल के भंडार ख़रीद रखे हैं और वो विकसित अर्थव्यवस्था है.
दरअसल जब भी ऐसी स्थिति होती है, तो सबसे बड़ा ख़तरा भारत के लिए पैदा हो जाता है. भारत की ऊर्जा नीति ऐसी नहीं है, जिससे उसकी तेल पर निर्भरता कम हो सके.

पाकिस्तान पर असर

पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था अंदर से बिल्कुल टूट चुकी है. उसकी अर्थव्यवस्था काफ़ी छोटी है. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था मात्र 280 बिलियन डॉलर की है. अगर आप रिलायंस ग्रुप और टाटा ग्रुप के टर्नओवर को मिला दें, तो ये लगभग पाकिस्तान के बराबर होगा.
ये भी भारत की तरह तेल के लिए आयात पर निर्भर करता है. लेकिन चूँकि पाकिस्तान इस्लामिक देश है, इसलिए जिन मुस्लिम देशों में तेल का उत्पादन होता है, ख़ासकर सऊदी अरब, ये सब देश पाकिस्तान को अच्छी शर्तों पर तेल देते हैं.
ये देश पाकिस्तान की तेल की ज़रूरतों का ख़याल रखते हैं. इसलिए पाकिस्तान की स्थिति थोड़ी अच्छी है. ये ज़रूर है कि पाकिस्तान को पेमेंट करने में परेशानी होती है, लेकिन यहाँ भी उसे रियायत मिलती है.

क्या कर सकता है इराक़

तेलइमेज कॉपीरइटREUTERS
इराक़ बिना अमरीका के आगे नहीं बढ़ सकता है. इराक़ की पूरी अर्थव्यवस्था तेल पर चलती है. इसलिए इराक़ तो तेल का उत्पादन बढ़ाना चाहता है और इसके लिए उसे अमरीका के साथ की ज़रूरत है.
इराक़ शिकायत करेगा, विरोध करेगा, लेकिन अमरीका के आगे इराक़ कहीं टिकता नहीं है.
अमरीका ने जो कुछ भी किया है, वो ज़रूरी नहीं कि वे इराक़ से पूछ कर करते हैं. वे अपने हिसाब से करते हैं. जैसा उन्होंने पाकिस्तान में ओसामा बिन लादेन के मामले में किया था.
इसलिए इराक़ इस मामले में ज़्यादा कुछ कर पाएगा, ऐसा नहीं होगा. उसके पास तेल के भंडार तो हैं, लेकिन वो एक कमज़ोर मुल्क है.
(बीबीसी संवाददाता पंकज प्रियदर्शी से बातचीत पर आधारित)
(नरेंद्र तनेजा भारतीय जनता पार्टी में एनर्जी सेल के संयोजक भी हैं)

Comments

Popular posts from this blog

"बक्श देता है 'खुदा' उनको, ... ! जिनकी 'किस्मत' ख़राब होती है ... !! वो हरगिज नहीं 'बक्शे' जाते है, ... ! जिनकी 'नियत' खराब होती है... !!"

Department of Education Directory