जामिया, शाहीन बाग़ की आंखों-देखी: ऐसे ही नहीं चल रही गोली
30 जनवरी की दोपहर एक हमलावर ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया में प्रदर्शनकारियों पर दिन-दहाड़े गोली चलाई. हादसे में शादाब फ़ारूक़ नाम के एक छात्र घायल हुए.
एक फ़रवरी को शाहीन बाग़ में प्रदर्शन स्थल के नज़दीक कपिल गुर्जर नाम के एक व्यक्ति ने गोली चलाई. जब पुलिस ने इस व्यक्ति को पकड़ा तो वो नारा लगा रहा था,"हमारे देश में किसी और की नहीं चलेगी, सिर्फ़ हिंदुओं की चलेगी."
इसके बाद दो फ़रवरी को देर रात जामिया मिल्लिया इस्लामिया में छात्रों के प्रदर्शनस्थल के बिल्कुल नज़दीक गोली चलने की ख़बर आई. बताया जा रहा है कि दुपहिया वाहन पर सवार दो लोगों ने हवा में गोलियाँ चलाईं.
दिल्ली में आठ फ़रवरी को मतदान है लेकिन राष्ट्रीय राजधानी में बार-बार गोली चलने से सवाल खड़े हो रहे हैं कि गृह मंत्रालय की चूक है या फिर पुलिस प्रशासन की. या इस वक्त क़ानून व्यवस्था से जुड़ी जो भी घटना होगी उसकी ज़िम्मेदारी चुनाव आयोग पर होगी.
दो फरवरी को गोली चलने की घटना के बाद चुनाव आयोग ने दक्षिण-पूर्वी दिल्ली के डीसीपी चिन्मय बिस्वाल को तत्काल प्रभाव से हटा दिया था. उनके स्थान पर अब राजेंद्र प्रसाद मीणा को डीसीपी बनाया गया है.
कैसा है ये इलाक़ा
जामिया और शाहीन बाग़ में सुरक्षा व्यवस्था में चूक होने को दो स्तरों पर समझा जा सकता है.
ये इलाक़े दो थाना क्षेत्रों के अंतर्गत आते हैं- जामिया नगर थाना और शाहीन बाग़ थाना.
दो सड़कें जो आगे आपस में जुड़ती हैं, आपको जामिया तक जा सकती हैं. इसी सड़क पर आगे आप शाहीन बाग़ पहुंचते है जो तंग गलियों से भरी जगह है.
शाहीन बाग़ दूसरी तरफ से दिल्ली और नोएडा को जोड़ने वाली एक सड़क से सटा इलाक़ा है. महिलाओं के प्रदर्शन (50 दिनों से) के कारण ये सड़क फिलहाल बंद है. प्रदर्शनस्थल से थोड़ी दूर दोनों तरफ़ से पुलिस ने बैरिकेडिंग कर सड़क बंद किया है.
मतलब ये कि यहां पहुंचने के लिए केवल जामिया से गुज़रने वाली सड़क लेनी होगी. लेकिन खुला इलाक़ा होने के कारण किसी तंग गली से भी शाहीन बाग़ में प्रवेश किया जा सकता है.
रही जामिया की बात तो यहां गेट दो गेट के सामने 57 दिनों से लगातार छात्र प्रदर्शन कर रहे हैं. यहां सड़क को एक तरफ़ से बंद किया गया है जबकि सड़क का आधा हिस्सा खुला है और वहां ट्रैफ़िक की आवाजाही आम दिनों जैसी ही है.
सिक्योरिटी न के बराबर
जामिया में प्रवेश करने से पहले ही सड़क पर पुलिस की मामूली बैरिकेडिंग दिखी. वहां पुलिस अधिकारी भी मौजूद थे लेकिन उन्हें मुस्तैद कहना सही नहीं होगा.
हमें उम्मीद थी कि गोली चलने की घटनाओं के बाद वहां कड़ी सुरक्षा व्यवस्था दिखेगी. लेकिन न तो वहां मेटल डिटेक्टर थे न ही हथियारधारी सुरक्षाकर्मी. हमें वहां एक भी महिला सुरक्षाकर्मी नहीं दिखी.
बैरिकेडिंग पर किसी भी गाड़ी (बस, कार, स्कूटर, साइकिल, ई-रिक्शा) की कोई जांच नहीं हो रही थी, न ही किसी का पहचान पत्र देखा जा रहा था. बिना ब्रेक लगाए हर दूसरी गाड़ी की तरह हम भी जामिया के बीच से होती सड़क पर आगे बढ़े. आगे शाहीन बाग़ तक तो सड़क के आसपास एक भी पुलिसकर्मी नहीं दिखा.
स्पष्ट समझा जा सकता है कि जामिया में प्रदर्शनस्थल तक किसी का पहुंचना बेहद आसान है और किसी हथियार को छिपा कर लाना भी संभव है.
जामिया और शाहीन बाग़ में हो रहे प्रदर्शनों में शिरकत करने के लिए कई दिल्ली और दूसरे रास्तों से लगातार लोग आ रहे हैं. प्रदर्शनकारी खुले दिल से उनका स्वागत कर रहे हैं.
न तो यहां कोई नेता है, न कोई समूह जो सुरक्षा व्यवस्था पर निगाह रखे. हालांकि कुछ लोग आगे बढ़ कर आने वालों पर नज़र रख रहे हैं, लेकिन वो खुद मानते हैं कि उनके लिए भी किसी पर शक़ करना मुश्किल काम है.
पूरे माहौल में साफ दिख रहा था कि कोई भी व्यक्ति बिना रोक-टोक के प्रदर्शनकारियों से घुलमिल सकता है और उसका उन पर हमला करना मुश्किल भी नहीं होगा.
जब हम दोपहर के वक्त शाहीन बाग़ पहुंचे तो वहां 100 से अधिक महिलाएँ थीं. कई महिलाएं रात के प्रदर्शन के बाद अपने घर लौट गई थीं.
पुलिस पर आरोप
जामिया और शाहीन बाग़ में हो रहे प्रदर्शनों से जुड़े छात्र आसिफ़ मुज़्तबा बताते हैं कि प्रदर्शन में साथ देने के लिए रोज़ अनेकों लोग आ रहे हैं और सुरक्षा चाक-चौबंद न होने से प्रदर्शनकारियों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं.
वो कहते हैं, "ख़तरा अभी इस वजह से है क्योंकि दिल्ली में जल्द चुनाव होने वाले हैं और प्रदर्शनों का राजनीतिक इस्तेमाल करने की कोशिश की जा रही है."
वो कहते हैं, "गोली मारने वालों में से कोई भी सड़क बंद होने की बात नहीं कर रहे. वो नफ़रत भरे नारे लगाते हैं तो कैसे माना जाए कि वो सड़क बंद होने से परेशान हैं. मतलब स्पष्ट है कि केंद्र में मौजूद पार्टी से जुड़े नेता नफ़रत फैलाने वाली बातें करते हैं तो उसका असर सड़कों पर दिखता है."
आसिफ़ बताते हैं कि अभी जो थोड़े बहुत पुलिसकर्मी दिख रहे हैं वो भी रात तक यहाँ से चले जाएंगे.
छात्र इमरान चौधरी इन हादसों के लिए पुलिस अधिकारियों के उदासीन रवैये को ज़िम्मेदार ठहराते हैं. वो कहते हैं, "2 फ़रवरी की रात गोली चलने के बाद हज़ारों छात्रों ने जामिया नगर थाने का घेराव किया. थानाध्यक्ष ने हमें आश्वासन दिया कि वो 3 फरवरी तक हमलावरों को पकड़ेगें, लेकिन अब तक कुछ पता नहीं चला."
वो कहते हैं कि "चुनाव जीतने के लिए भाजपा नेता गोली की बात करते हैं, अफरातफरी का माहौल बनाना चाहते हैं. लेकिन हम संविधान को बचाने के लिए निकले हैं, न हमें गोली का डर है, न डंडे का डर है और न ही न पुलिस का खौफ़ है."
इस मामले में दिल्ली पुलिस का कहना है कि घटनास्थल से कोई भी गोली नहीं मिली है. हालांकि देर रात इस मामले में जामिया नगर पुलिस स्टेशन में आईपीसी की धारा 307 और आर्म्स एक्ट की धारा 27 के तहत केस दर्ज किया गया.
लेकिन जामिया प्रदर्शन से जुड़े छात्रों का आरोप है कि उन्होंने पुलिस से स्पष्ट कहा है कि हमलावर को वो पहचान सकते हैं, लेकिन पुलिस इस पर खामोश है.
क्या कहती है पुलिस?
बीबीसी की टीम तीन बार जामिया नगर और शाहीन बाग़ थाने गई. जामिया नगर थाने पहुंचने पर पता चला कि वहां पुलिस के आला अधिकारियों की बैठक चल रही थी.
थाने में किसी ने भी हमें गोलियां चलने से संबंधित किसी तरह की जानकारी देने से इनकार कर दिया. लेकिन थाने में हो रही हलचल से पता चला कि इस पूरे इलाके की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर गंभीर तैयारियां चल रही है और बाहर के कई प्लाटून अर्धसुरक्षा बलों को यहां तैनात किया जाने वाला है.
अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं था कि जैसे-जैसे विधानसभा चुनावों में मतदान की तारीख नज़दीक आ रही है पुलिस पर सुरक्षा व्यवस्था और कड़ी करने का दबाव बढ़ रहा है.
शाम को क़रीब चार बजे के आसपास शाहीन बाग़ के पास अर्धसैनिक बलों के कुछ सैनिक हमें दिखे लेकिन जामिया की तरफ कोई तैयारी नहीं दिखी. शाहीन बाग़ थाने पर भी किसी से हमारी बात न हो सकी.
बाद में एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि चुनाव के मद्देनज़र अभी पुलिस अधिकारियों की व्यस्तता काफ़ी बढ़ गई है. 2 फरवरी की घटना के बारे में उन्होंने बताया कि अभी तक ये नहीं पता कि गोली चलाने वाले स्कूटी पर थे या बाइक पर थे. साथ ही ये भी नहीं पता चल पाया है कि गोली चली भी थी या ये सिर्फ अफ़वाह थी.
लड़ाई जारी रखने की 'उम्मीद'
दो बार गोली चलने के बाद भी जामिया में प्रदर्शनस्थल पर दोपहर में दो सौ से अधिक छात्र थे. शाम के चार बजते-बजते भीड़ बढ़ने लगी.
वहीं शाहीन बाग़ में महिलाओं की संख्या दो बजे के बाद धीरे-धीरे बढ़ने लगी.
न तो शाहीन बाग़ में बैठी महिलाओं के चोहरों पर डर दिखा न ही जामिया में बैठे छात्रों के चेहरों पर ही घबराहट के निशान थे.
जामिया के पास पैंतासील साल की उम्र के एक व्यक्ति मुफ्त में सभी छात्रों और आने वालों को चाय पिला रहे थे. उनके बच्चे जामिया में पढ़ते हैं और वो लोगों से दान लेकर रोज़ाना सौ से कहीं अधिक लोगों को मुफ्त की चाय पिलाते हैं.
उनका कहना है लोगों से दान मिल जाता है तो छात्रों को चाय पिलाता हूं, सभी मेरे बच्चे जैसे ही तो हैं.
इधर पास बने मंच पर नारा गूंज रहा है - "तू झूठ का कलमा पढ़, हम हिंदुस्तान का गाना गाएंगे, हम हिंदुस्तानी मुस्लिम हैं, हम हिंदुस्तान बचाएंगे."
हम जामिया से बाहर की ओर निकलते हैं, रास्ते में चार-पांच पुलिस अधिकारी बैरिकेड पर खड़े हैं और एक दूसरे के साथ बातों में मशगूल हैं. संदेश साफ़ दिखता है कि अपनी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी आपकी खुद की होनी चाहिए.
एक पूरे दिन में हमें आसिफ़ मुज़्तबा के सवाल का उत्तर नहीं मिला, "इत्तेफाक़ से अगर गोली मारने वाले का नाम कपिल न हो कर शादाब होता तो सोचिए क्या होता?"
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