दिल्ली हिंसा: जस्टिस एस. मुरलीधर क्यों चर्चा में हैं?


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Image captionदिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस एस मुरलीधर
दिल्ली में भड़की हिंसा और पीड़ितों के ज़रूरी इलाज को लेकर मंगलवार देर रात दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस एस मुरलीधर के घर में सुनवाई हुई.
जस्टिस एस मुरलीधर के आवास में हुई इस सुनवाई में जस्टिस अनूप भंभानी भी शामिल थे.
सुनवाई मानवाधिकार मामलों की वकील सुरूर मंदर के द्वारा दाख़िल की गई एक याचिका पर ये सुनवाई देर रात लगभग 12:30 हुई.
सुरूर मंदर ने कोर्ट से दरख़्वास्त की थी कि दिल्ली पुलिस ये सुनिश्चित करे कि मुस्तफ़ाबाद के अल-हिंद अस्पताल से घायलों को जीटीबी अस्पताल और दूसरे सरकारी अस्पतालों में ले जाया जा सके ताकि उन्हें उनका इलाज हो सके.
इसके बाद अदालत ने पुलिस को आदेश दिया था कि वो मरीज़ों के इलाज के लिए उन्हें दूसरे अस्पताल ले जाने के लिए उचित सुरक्षा व्यवस्था मुहैय्या कराए.
इसके बाद दिल्ली हिंसा मामले में बुधवार दोपहर हाई कोर्ट में जस्टिस एस. मुरलीधर और जस्टिस तलवंत सिंह की बेंच ने एक और याचिका पर सुनवाई की.
ये याचिका सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर ने दायर की थी जिसमें नेताओं के भड़काऊ भाषणों पर पुलिस ऐक्शन की मांग की गई थी.
सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने भड़काऊ भाषणों के मामले में कपिल मिश्रा समेत दूसरे नेताओं के ख़िलाफ़ एक्शन ना लेने पर दिल्ली पुलिस को फटकार लगाई.
दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली पुलिस के स्पेशल कमिश्नर से कहा कि वो जाकर अपने कमिश्नर को बता दें कि अदालत बहुत नाराज़ है.
हाई कोर्ट ने कहा कि बीजेपी के तीन नेताओं अनुराग ठाकुर, परवेश वर्मा और कपिल मिश्रा पर एफ़आईआर दर्ज होनी चाहिए. कोर्ट ने कहा कि अन्य वीडियो के आधार पर भी एफ़आईआर दर्ज की जाए.
अदालत ने कहा कि पुलिस इस मामले में गुरुवार को अदालत को बताए कि कितनी प्रगति हुई है.
अदालत ने कहा कि इन्हीं तरीक़ों से शांति बहाल की जा सकती है. मामले की सुनवाई दो जजों वाली बेंच ने की. इस बेंच की अध्यक्षता जस्टिस एस मुरलीधर ने की. अदालत ने कहा, "हम नहीं चाहते कि दिल्ली की हिंसा 1984 के दंगे का रूप ले ले."
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कौन हैं जस्टिस एस. मुरलीधर?

जस्टिस एस. मुरलीधर काफ़ी चर्चित रहे हैं. बीते हफ़्ते उनके तबादले को लेकर भी सवाल उठ रहे थे और वकीलों ने इसके विरोध में 20 फ़रवरी को प्रदर्शन भी किया.
जस्टिस एस. मुरलीधर का तबादला दिल्ली हाई कोर्ट से पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में किया जा रहा है.
दिल्ली हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने एक रेजोल्यूशन पास करके उनके तबादले का विरोध किया और सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम के इस फ़ैसले पर नाराज़गी ज़ाहिर की. बार एसोसिएशन के अध्यक्ष मोहित माथुर ने कहा कि जस्टिस एस. मुरलीधर काफ़ी वरिष्ठ हैं और उनका तबादला जिस तरह किया जा रहा है वो अनुचित है.
बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, "हम लोगों ने एक रेजोल्यूशन पास किया था. अगर आप एक जज का तबादला कर रहे हैं तो उसमें कुछ चीज़ों का ख्याल रखना चाहिए. दिल्ली हाईकोर्ट में वरिष्ठता के मामले में जस्टिस मुरलीधर तीसरे नंबर पर हैं. इतने वरिष्ठ जज का ट्रांसफ़र जब होता है तो आप उन्हें किसी राज्य में चीफ़ जस्टिस बनाकर भेजें लेकिन आप उन्हें यूहीं जज बना रहे हैं, दूसरे राज्य में. हमें इस बारे में सूचित किया जाना चाहिए था और उनके तबादले को लेकर चर्चा की जानी चाहिए थी. कॉलेजियम ने बिना किसी वजह के उनका इस तरह तबादला करने का फ़ैसला ले लिया."
सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम
Image captionसुप्रीम कोर्ट कोलेजियम ने 12 फरवरी 2020 को बैठक के बाद तीन जजों के तबादले का फ़ैसला लिया था.
सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम ने 12 फरवरी को जस्टिस एस. मुरलीधर का तबादला करने पर सुझाव दिया था जिसके बाद बुधवार को उनके तबादले का नोटिफिकेशन जारी किया गया है.
नोटिफिकेशन में कहा गया है कि चीफ़ जस्टिस शरद बोबड़े और राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने विचार विमर्श करने के बाद जस्टिस एस. मुरलीधर का तबादला पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में करने का फ़ैसला लिया है.
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Image captionजस्टिस एस. मुरलीधर
जस्टिस मुरलीधर के तबादले को लेकर पहले भी चर्चाएं उठी. ऐसी ख़बरें आई थीं कि दिसंबर 2018 में उनका तबादला करने पर विचार किया जा रहा था.
दिल्ली हाईकोर्ट की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक़, जस्टिस एस. मुरलीधर ने सितंबर 1984 में चेन्नई में वकालत शुरू की. साल 1987 में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाई कोर्ट में वकालत करना शुरू किया.
एस. मुरलीधर दो बार सुप्रीम कोर्ट की लीगल सर्विस कमेटी के सक्रिय सदस्य रहे.
एस. मुरलीधर बिना किसी फीस के लोगों के केस लड़ने के लिए चर्चित रहे हैं इनमें भोपाल गैस त्रासदी और नर्मदा बांध पीड़ितों के केस भी शामिल हैं.
कई जनहित याचिकाओं के मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें न्याय मित्र बनाया.
एस. मुरलीधर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और भारतीय निर्वाचन आयोग के सलाहकार भी रहे हैं. साथ ही दिसंबर 2002 से मई 2006 तक वो लॉ कमिशन के पार्ट टाइम सदस्य भी रहे हैं.
साल 2006 में उन्हें दिल्ली हाईकोर्ट में जज नियुक्त किया गया. जस्टिस एस. मुरलीधर को साल 2003 में दिल्ली यूनिवर्सिटी से पीएचडी की डिग्री मिली. उन्होंने साल 2004 में 'लॉ, पॉवर्टी एंड लीगल एड: एक्सेस टु क्रमिनिल जस्टिस' नाम की एक किताब भी लिखी है.
हाशिमपुरा नरसंहारइमेज कॉपीरइटGETTY IMAGES

जस्टिस मुरलीधर और उनके कड़े फैसले

जस्टिस एस. मुरलीधर 1984 में हुए सिख दंगों में शामिल रहे सज्जन कुमार के मामले में भी फ़ैसला सुनाने वालों में से एक थे.
साल 2009 में नाज फ़ाउंडेशन के मामले की सुनवाई करने वाली दिल्ली हाईकोर्ट की बेंच में जस्टिस मुरलीधर भी शामिल थे जिसने पहली बार समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर किया था.
साल 2018 में उन्होंने कई बड़े फ़ैसले सुनाए. इनमें गौतम नवलखा समेत कई एक्टिविस्ट को माओवादियों से संबंध होने के मामले में ज़मानत देना भी शामिल है.
इसके अलावा साल 1987 में हुए हाशिमपुरा नरसंहार मामले में भी उन्होंने दोषियों को सज़ा दी थी. जस्टिस एस. मुरलीधर और जस्टिस विनोद गोयल की बेंच ने आईपीसी के तहत पीएसी के 16 पूर्व पुलिसकर्मियों को हत्या, अग़वा, आपराधिक साज़िश और सबूतों को मिटाने का दोषी पाया था और उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई थी.

दिल्ली हिंसा: सुनवाई करने वाले दूसरे जज कौन हैं?

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Image captionजस्टिस अनूप जयराम भंभानी
जस्टिस अनूप जयराम भंबानी
दिल्ली में भड़की हिंसा और पीड़ितों के ज़रूरी इलाज को लेकर मंगलवार देर रात हुई सुनवाई में जस्टिस एस. मुरलीधर के अलावा जस्टिस अनूप जयराम भंभानी भी थे.
जस्टिस मुरलीधर और जस्टिस भंभानी की बेंच ने कहा कि अगर मरीज़ों को जीटीबी अस्पताल नहीं ले जाया जा सकता है तो उन्हें एलएनजेपी, मौलाना आज़ाद या किसी अन्य सरकारी अस्पताल में पहुंचाया जाए.
दिल्ली हाईकोर्ट की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक़, अनूप जयराम भंभानी का जन्म साल 1965 में दिल्ली में हुआ. वो दिल्ली में ही पले बढ़े और साल 1989 में दिल्ली यूनिवर्सिटी से न्यूक्लियर फिजिक्स में मास्टर डिग्री हासिल की.
इसके बाद उन्होंने साल 1992 में दिल्ली यूनिवर्सिटी से क़ानून की डिग्री हासिल की.
सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट के अलावा उन्होंने निचली अदालतों और दूसरे राज्यों में भी हाईकोर्ट में कई मामलों में पैरवी की.
दिल्ली हाईकोर्ट ने फ़रवरी 2014 में उन्हें वरिष्ठ वकील बनाया और 22 अक्टूबर 2018 को उन्हें दिल्ली हाईकोर्ट में जज नियुक्त किया गया.
जस्टिस तलवंत सिंहइमेज कॉपीरइटDELHIHIGHCOURT.NIC.IN
Image captionजस्टिस तलवंत सिंह

जस्टिस तलवंत सिंह

दिल्ली हाईकोर्ट की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक़, पंजाब के होशियारपुर में साल 1961 में जन्मे जस्टिस तलवंत सिंह ने मेरठ यूनिवर्सिटी से साल 1986 में वकालत की पढ़ाई पूरी की.
उन्होंने साल 1986 में दिल्ली हाईकोर्ट और ज़िला अदालतों में वकालत शुरू की.
साल 2000 में उन्होंने दिल्ली हायर जुडिशियल सर्विस के तहत एडिशनल डिस्ट्रिक्ट और सेशन जज के तौर पर कार्यभार संभाला. दिसंबर 2014 में उनका प्रमोशन हुआ और वो डिस्ट्रिक्ट एंड सेशन जज बने.
साल 2017 में उन्हें तीस हज़ारी कोर्ट में डिस्ट्रिक्ट एंड सेशन जज नियुक्त किया गया. 27 मई 2019 को उन्हें दिल्ली हाईकोर्ट में स्थायी जज बनाया गया.
न्यायिक कार्यों के अलावा उनकी दिलचस्पी इनफॉर्मेशन एंड कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी (ICT) के अदालतों में इस्तेमाल पर भी रही और वो बीते क़रीब 18 सालों से इस दिशा में सक्रिय हैं. दिल्ली की अदालतों को कंप्यूटरीकृत किए जाने में उनका काफ़ी योगदान है.
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