कोरोना वायरस: लॉकडाउन से भारत में आ सकती ही भुखमरी- नज़रिया
सीएमआईई ने जो आँकड़े पेश किए हैं, उससे हमें पहली बार यह अंदाज़ मिलता है कि हमारी इकॉनमी के साथ हो क्या रहा है. हम सब देख रहे हैं कि सड़कों पर क्या हो रहा है.
कितने लोग घर पर बैठे हुए हैं. हम लोग जानते हैं कि क्या सब बंद हो रहा है लेकिन इसका कोई आँकड़ा हमारे पास नहीं था. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी ने जो रिपोर्ट जारी की है, वो ये बताती है कि देश में कितने लोग अभी बेरोज़गार हैं.
वो कहते हैं कि पहली बार बेरोज़गारी 23 प्रतिशत हो गई है. कोरोना वायरस के संक्रमण से पहले देश में आठ प्रतिशत बेरोज़गारी दर थी, जो कि बर्दाश्त से बाहर मानी जाती है. ये पहले से ही ज्यादा थी. अब इसे कहेंगे कंगाली में आटा गीला. बेरोज़गारी तीन गुना और बढ़ गई है.
अब इस आँकड़े को तोड़ कर देखने की कोशिश कीजिए. जब देश में कोरोना वायरस का संकट नहीं था और लॉकडाउन नहीं हुआ था. उस वक़्त अंदाज़न 40 करोड़ भारतीय किसी ना किसी रोज़गार में थे और तीन करोड़ बेरोज़गार थे. अब ये 40 करोड़ एक झटके में घटकर 28 करोड़ तक पहुँच गया है.
मतलब कि 12 करोड़ लोगों का रोज़गार एक झटके में चला गया. इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं देखा गया जिसमें एक झटके में इतनी बड़ी संख्या में लोगों का रोज़गार ख़त्म हो गया हो.
इस दौरान असंगठित क्षेत्र के प्रवासी मज़दूरों का जो इतना बड़ा पलायन हुआ, उसे लेकर हमें कोई जानकारी नहीं है. इसकी जानकारी का सिर्फ़ एक स्रोत है, वो है भारत सरकार ने जो सुप्रीम कोर्ट में हलफ़नामा डाला है, उसमें सरकार ने माना है कि छह लाख मज़दूर सड़कों पर थे, जिनको हमने कैम्प में डाल दिया है.
ये तो सरकार ने कबूल किया है. हक़ीक़त तो यह है कि दसियों लाख लोग सड़क पर थे. इस वक़्त हम देश के सबसे गंभीर समय से गुज़र रहे हैं, जब लाखों नहीं करोड़ों लोग भूख के संकट से गुजर रहे हैं. अगर दस करोड़ लोगों का रोज़गार चला गया तो इस दस करोड़ में से सात-आठ करोड़ लोग ऐसे होंगे जिनमें वो अपने घर के अकेले कमाने वाले होंगे.
किसानों का संकट
दूसरी ओर किसानों के लिए भी ये बहुत संकट का दौर है. पहला संकट तो है कि किसान कटाई करने खेत में नहीं जा पा रहे. 15 अप्रैल से लॉकडाउन खुल भी गया तो मज़दूर नहीं मिलेंगे. अगर मज़दूर मिल भी गए तो हार्वेस्टर जिसे एक राज्य से दूसरे राज्य में जाना होता है, वो आना लगभग बंद हो चुका है. वो सड़कों पर ट्रकों के साथ जहां है वहीं रुके पड़े हैं.
मंडियां अभी तो खुली नहीं हैं लेकिन जब खुल जाएंगी तो कहां खुलेंगी कोई पता नहीं. किसान को फसल का दाम तब मिलेगा जब सरकार ख़रीदी करेगी और सरकार के ख़रीदी केंद्र अब तक खुले नहीं. देर से खुलेंगे. पंजाब और हरियाणा में हालत थोड़ी से बेहतर हो सकती है. क्योंकि वहाँ सरकार ने घोषणाएँ की हैं.
बाक़ी जगह कितनी ख़रीद होगी, यह हम जानते नहीं. इसलिए किसान की अच्छी फसल होने के बावजूद बहुत बड़ा नुक़सान हो सकता है और ये तो हम गेहूँ-चावल और सरसों की बात कर रहे हैं, जो इस वक़्त की फसले हैं. लेकिन जो फल-सब्जी है, उसके किसान तो बर्बाद हो चुके हैं. किसान अपनी फल-सब्जियां फेंक रहे हैं क्योंकि मंडी खुली नहीं है. कहां ले कर जाएंगे वो. इसलिए यह किसानों के लिए बहुत संकट का दौर है.
ये जो रबी की फसल है, वो साल में एक बार होती है. और पूरे साल की कमाई इस पर ही निर्भर करती है.
सरकार ने जो घोषणाएँ की हैं, उसमें से एक सबसे अच्छी घोषणा है. सरकार की ओर से जो राशन मिलता है, उसे दोगुना कर दिया गया है. हालांकि अभी लोगों तक ये राशन पहुँचने में देर हो रही है.
जो सरकार ने मुफ़्त में देने की घोषणा की है, वो ज़मीनी स्तर पर अब भी नहीं हो पा रहा है और कोटेदार ग़रीबों से पैसे ले ही रहा है.
सरकार की ओर से क्या होना चाहिए
लेकिन इसके अलावा दो जो बड़ी चीज़ें होनी चाहिए थीं, वो नहीं हुई हैं.
पहली बात ये कि जिनके पास राशन कार्ड नहीं है, उन्हें भी राशन कार्ड दिया जाए क्योंकि लाखों लोग ऐसे हैं जिनका राशन कार्ड होना चाहिए, लेकिन वो बना नहीं है. शहरों में फंसे हुए भी बहुत सारे ऐसे लोग हैं, जिनके पास कोई राशन कार्ड नहीं. तो क्या ऐसी स्थिति में सरकार ये नहीं कर सकती कि जो शख्स राशन के दुकान तक पहुँच जाएगा, उसका नाम-पता नोट कर उसे राशन दिया जाए.
जबकि देश में अनाज की कोई कमी नहीं. एफसीआई के गोदाम में अनाज के भरे हुए हैं. चूहे खा रहे हैं उन्हें.
दूसरी बात जो करनी चाहिए, वो है कम्युनिटी किचन चलाने की व्यवस्था. देश के हर सरकारी स्कूल में मिड-डे मिल का सिस्टम है. तो अब वो मिड-डे मिल सभी ज़रूरतमंद लोगों को खिलाने में इस्तेमाल किया जाए.
देश में इस वक़्त लाखों लोग भुखमरी की कागार पर हैं. अगर अगले पाँच-सात दिनों में चीज़ें दुरुस्त नहीं की गईं तो भुखमरी की ख़बरें आनी शुरू हो जाएंगी.
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