हाथरस: यूपी में बड़ी घटनाओं के पीछे 'अंतरराष्ट्रीय साज़िश' कैसे आ जाती है? वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस इन घटनाओं को अंतरराष्ट्रीय साज़िश की बजाय 'प्रशासनिक नाकामी को ढकने की कोशिश' मानते हैं. सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं, "हाथरस में जो कुछ भी हुआ है वह प्रशासनिक नाकामी और संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है. सुप्रीम कोर्ट में भी इस नाकामी को ढकने के जो तर्क दिए गए हैं वो बेसिर-पैर के हैं. चूंकि प्रशासनिक नाकामी आख़िरकार सरकार की ही नाकामी की तरह है, इसलिए उसे ढकने के लिए अब अंतरराष्ट्रीय साज़िश की ढ़ाल तैयार की जा रही है." || यूपी के डीजीपी रह चुके रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी डॉक्टर वीएन राय हाथरस जैसी घटनाओं के पीछे अंतरराष्ट्रीय साज़िश जैसी बात को सिरे से नकारते हैं. बीबीसी से बातचीत में डॉक्टर वीएन राय कहते हैं, "इसमें कोई तथ्य नहीं हैं. सिर्फ़ गुमराह करने की कोशिश है. आप देखिएगा, दो-चार हफ़्ते के बाद ये सारी साज़िशें कहीं नहीं दिखेंगी. सब भूल जाएंगे. अंतरराष्ट्रीय साज़िश के जो प्रमाण दिए जा रहे हैं वो शुरुआती दौर में ही इतने खोखले हैं कि कोर्ट पहुंचने से पहले ही धराशायी हो जाएंगे." लेकिन सवाल उठता है कि ऐसे मामलों में अंतरराष्ट्रीय साज़िश की बात कहने के पीछे क्या सच में लोगों को गुमराह करना या फिर 'समय काटना' है या फिर इसके पीछे कुछ राजनीतिक नफ़े-नुक़सान का गणित भी काम करता है. इस सवाल के जवाब में सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं, "निश्चित तौर पर लोगों का ध्यान तो बँटेगा ही. लोग अब एक नए एंगल की थ्योरी पर सोचना शुरू कर देंगे और उन्हें लगेगा कि हां, सच में ऐसा हो रहा है. दूसरे, अंतरराष्ट्रीय साज़िश में सीधे तौर पर इस्लामिक देशों का ज़िक्र किया जा रहा है तो ऐसी बातों में बीजेपी अपना फ़ायदा ही देखती हैं.'' ''विरोधी को तो वो अपने पक्ष में ला नहीं सकते हैं लेकिन जिन समर्थकों का विश्वास सरकार की कार्यशैली से उठने लगा है, ऐसी साज़िशों का ज़िक्र करके और कुछ के ख़िलाफ़ कार्रवाई करके, उनका विश्वास एक बार फिर जीतने की कोशिश तो हो ही सकती है."

 

हाथरस: यूपी में बड़ी घटनाओं के पीछे 'अंतरराष्ट्रीय साज़िश' कैसे आ जाती है?

  • समीरात्मज मिश्र
  • बीबीसी हिंदी के लिए
हाथरस

उत्तर प्रदेश के हाथरस में दलित युवती के साथ हुए कथित बलात्कार और फिर हत्या के मामले में पीड़ित युवती के परिजन जहां न्यायिक जांच की मांग पर अड़े हैं वहीं पुलिस अब इस घटना को 'इतना तूल' देने के पीछे अंतरराष्ट्रीय साज़िश की बात कह रही है.

उत्तर प्रदेश पुलिस का आरोप है कि राज्य में जातीय और सांप्रदायिक दंगे कराने और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बदनाम करने के लिए अंतरराष्ट्रीय साज़िश रची गई थी.

हाथरस के चंदपा थाने में इस संबंध में तीन दिन पहले एक नई एफ़आईआर दर्ज की गई जिसमें कुछ अज्ञात व्यक्तियों के ख़िलाफ़ राजद्रोह जैसी धाराएं लगाई गई हैं.

बुधवार को इस मामले में चार लोगों को मथुरा से गिरफ़्तार भी किया गया जिनमें मलयालम भाषा के एक पत्रकार भी शामिल हैं.

इस मामले में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी कहा था, ''हमारे विरोधी अंतरराष्‍ट्रीय फ़ंडिंग के ज़रिए जातीय और सांप्रदायिक दंगों की नींव रखकर हमारे ख़िलाफ़ साज़िश कर रहे हैं.''

हाथरस

100 करोड़ रुपये की फ़ंडिंग के आरोप

हाथरस मामले में कथित अंतरराष्ट्रीय साज़िश के संबंध में उत्तर प्रदेश पुलिस ने राज्य भर में कम से कम 19 एफआईआर दर्ज की हैं और मुख्य एफ़आईआर में क़रीब 400 लोगों के ख़िलाफ़ राजद्रोह, षडयंत्र, राज्य में शांति भंग करने का प्रयास और धार्मिक नफ़रत को बढ़ावा देने जैसे आरोप लगाए गए हैं.

प्रवर्तन निदेशालय के हवाले से मीडिया में ये ख़बरें भी चल रही हैं कि हाथरस की इस घटना को जातीय और सांप्रदायिक दंगों में बदलने के लिए मॉरीशस के ज़रिए क़रीब 100 करोड़ रुपये की फ़ंडिंग भी हुई है.

हालांकि इसके न तो पुख़्ता सबूत मिले हैं और न ही आधिकारिक रूप से इसकी पुष्टि हुई है.

पुलिस जिस संगठन पर शक़ ज़ाहिर कर रही है उसका नाम पीएफ़आई यानी पॉपुलर फ़्रंट ऑफ़ इंडिया है और गिरफ़्तार किए गए लोगों के भी इस संगठन से संपर्क बताए जा रहे हैं.

हाथरस

शक़ के घेरे में रही है पीएफ़आई

राज्य सरकार ने इससे पहले नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ इस साल दिसंबर में हुए प्रदर्शनों और इस दौरान हुई हिंसा के लिए भी पीएफ़आई को ही ज़िम्मेदार ठहराया था.

उस दौरान 100 से भी ज़्यादा पीएफ़आई सदस्यों को गिरफ़्तार किया गया था और मुख्यमंत्री ने इस संगठन पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी. यूपी में इससे पहले भी कुछ घटनाएं ऐसी हो चुकी हैं जिनके तूल पकड़ने के बाद उनके 'अंतरराष्ट्रीय तार' जोड़ने की कोशिश की गई.

स्थानीय घटनाओं में अंतरराष्ट्रीय साज़िश की बात से हैरानी ज़रूर होती है लेकिन यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सूचना सलाहकार शलभमणि त्रिपाठी कहते हैं कि इस साज़िश में कुछ राजनीतिक दल और उनके नेता भी शामिल हैं.

शलभमणि त्रिपाठी के मुताबिक, "राज्य सरकार ने दंगाई मानसिकता के लोगों के ख़िलाफ़ जो कार्रवाइयां की हैं, उससे ऐसे संगठनों में बौखलाहट है. उपद्रवियों के पोस्टर सरेआम चौराहों पर लगाए गए, उनकी संपत्तियां कुर्क करके सार्वजनिक नुकसान की वसूली भी की गई.'

''ऐसे में पीएफ़आई जैसे संगठनों ने योगी सरकार को बदनाम करने और प्रदेश में जातीय और सांप्रदायिक दंगे कराने की साज़िश रची. दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि कुछ राजनीतिक दल भी अराजकता की इस साज़िश में पीएफ़आई जैसे संगठनों के साथ खड़े दिख रहे हैं."

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नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ राज्य में कई जगह विरोध प्रदर्शन हुए थे और उस दौरान लखनऊ, कानपुर, आज़मगढ़, फ़िरोज़ाबाद, मेरठ जैसे कई शहरों में हिंसा भड़क गई थी.

इस हिंसा में कई लोगों की मौत हुई थी और सरकार की कार्रवाई पर सवाल भी उठे थे. सरकार ने प्रदर्शनों के आयोजन और उस दौरान हिंसा होने की घटना को भी अंतरराष्ट्रीय साज़िश बताया था.

वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस इन घटनाओं को अंतरराष्ट्रीय साज़िश की बजाय 'प्रशासनिक नाकामी को ढकने की कोशिश' मानते हैं.

सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं, "हाथरस में जो कुछ भी हुआ है वह प्रशासनिक नाकामी और संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है. सुप्रीम कोर्ट में भी इस नाकामी को ढकने के जो तर्क दिए गए हैं वो बेसिर-पैर के हैं. चूंकि प्रशासनिक नाकामी आख़िरकार सरकार की ही नाकामी की तरह है, इसलिए उसे ढकने के लिए अब अंतरराष्ट्रीय साज़िश की ढ़ाल तैयार की जा रही है."

यूपी के डीजीपी रह चुके रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी डॉक्टर वीएन राय हाथरस जैसी घटनाओं के पीछे अंतरराष्ट्रीय साज़िश जैसी बात को सिरे से नकारते हैं.

बीबीसी से बातचीत में डॉक्टर वीएन राय कहते हैं, "इसमें कोई तथ्य नहीं हैं. सिर्फ़ गुमराह करने की कोशिश है. आप देखिएगा, दो-चार हफ़्ते के बाद ये सारी साज़िशें कहीं नहीं दिखेंगी. सब भूल जाएंगे. अंतरराष्ट्रीय साज़िश के जो प्रमाण दिए जा रहे हैं वो शुरुआती दौर में ही इतने खोखले हैं कि कोर्ट पहुंचने से पहले ही धराशायी हो जाएंगे."

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हाथरस केस: सीमन का शरीर पर पाया जाना ही रेप होता है? - Fact Check

लेकिन सवाल उठता है कि ऐसे मामलों में अंतरराष्ट्रीय साज़िश की बात कहने के पीछे क्या सच में लोगों को गुमराह करना या फिर 'समय काटना' है या फिर इसके पीछे कुछ राजनीतिक नफ़े-नुक़सान का गणित भी काम करता है.

इस सवाल के जवाब में सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं, "निश्चित तौर पर लोगों का ध्यान तो बँटेगा ही. लोग अब एक नए एंगल की थ्योरी पर सोचना शुरू कर देंगे और उन्हें लगेगा कि हां, सच में ऐसा हो रहा है. दूसरे, अंतरराष्ट्रीय साज़िश में सीधे तौर पर इस्लामिक देशों का ज़िक्र किया जा रहा है तो ऐसी बातों में बीजेपी अपना फ़ायदा ही देखती हैं.''

''विरोधी को तो वो अपने पक्ष में ला नहीं सकते हैं लेकिन जिन समर्थकों का विश्वास सरकार की कार्यशैली से उठने लगा है, ऐसी साज़िशों का ज़िक्र करके और कुछ के ख़िलाफ़ कार्रवाई करके, उनका विश्वास एक बार फिर जीतने की कोशिश तो हो ही सकती है."

हाथरस

ख़ुफ़िया एजेंसियों को ख़बर क्यों नहीं?

हालाँकि यदि अंतरराष्ट्रीय साज़िश की बात यदि मान भी ली जाए, तो अहम सवाल यह भी उठता है कि इतनी बड़ी साज़िश हो रही थी तो पुलिस या ख़ुफ़िया एजेंसियों को पता क्यों नहीं चला? और उन्हें पहले ही रोकने की कोशिश क्यों नहीं हुई.

सीएए के ख़िलाफ़ प्रदर्शन को भी अंतरराष्ट्रीय साज़िश से जोड़ा गया लेकिन न तो कोई पुख़्ता सबूत मिले और न ही किसी के ख़िलाफ़ अब तक कोई चार्ज शीट फ़ाइल की जा सकी है.

शलभ मणि त्रिपाठी कहते हैं, "सीएए प्रदर्शन के दौरान भी पूरे देश में अराजकता पैदा करने की कोशिश की गई, लेकिन सरकार की मुस्तैदी और ख़ुफ़िया तंत्र की सक्रियता के चलते पूरे प्रदेश में एक भी बेक़सूर व्यक्ति को इस उपद्रव से नुक़सान नहीं पहुंचा."

शलभ मणि त्रिपाठी का दावा है कि सीएए प्रदर्शन के दौरान एक भी बेक़सूर व्यक्ति को नुक़सान नहीं हुआ लेकिन प्रदर्शन के दौरान कई लोगों की मौत पुलिस की गोली से हुईं और उससे जुड़े कई मुक़दमे अभी अदालत में लंबित हैं.

जहां तक हाथरस की घटना का सवाल है, राज्य सरकार ने चार दिन पहले ही उसकी जांच सीबीआई को सौंपने की सिफ़ारिश की थी लेकिन उसकी स्वीकृति अब तक नहीं मिली है.

दूसरी ओर, जांच का दायरा अब गैंगरेप और हत्या के अलावा अंतरराष्ट्रीय साज़िश के साथ-साथ युवती की मौत की अन्य वजहों की ओर भी मुड़ता दिख रहा है.

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