सरकार चाहती है कि इस देश में नागरिक नहीं, सिर्फ उसके वोटर रहें- नज़रिया
आज सारा देश सड़कों पर है. कितना अजीब और शर्मनाक है यह मंज़र. जिस नागरिक ने देश को ग़ुलामी से मुक्त कराया, जिसने अपने देश का अपना लोकतंत्र बनाया और जिसने ऐसी कितनी ही सरकारों को बनाया-मिटाया, आज उसी नागरिक से उसकी ही बनाई सरकार उसकी वैधता पूछ रही है. उसे अवैध घोषित करने का कानून बनाकर इतरा रही है. कोई कहे कि नौकरों ने (प्रधानसेवक) मालिक तय करने का अधिकार अपने हाथों में ले लिया है तो ग़लत नहीं होगा. यह लोकतंत्र के लिए सबसे नाज़ुक वक़्त है और ऐसा नाज़ुक वक़्त तब आता है जब सरकार संविधान से मुंह फेर लेती है; विधायिका विधान से नहीं, संख्याबल से मनमाना करने लगती है; जब नौकरशाही जी-हुजूरों की फौज में बदल जाती है और न्यायपालिका न्याय का पालन करने और करवाने के अलावा दूसरा सब कुछ करने लगती है. भारत ऐसे ही चौराहे पर खड़ा है. हाल यह है कि सरकार ने देश को दल में बदल लिया है और लोकसभा में मिले बहुमत को मनमाना करने का लाइसेंस बना लिया गया है. बहुमत को अंतिम सत्य मानने वाली सरकारों को सिर्फ अपनी आवाज़ ही सुनाई देती है; अपना चेहरा ही दिखाई देता है. वह भूल गई है कि नागरिक उससे नहीं हैं, वह नाग