भाजपा/संघ अमरबेल के समान हैं, जिस पेड़ पर लिपट जाती है वह पेड़ सूख जाता है और वह पनप जाती है। नितीश जी, लालू जी ने आपके साथ संघर्ष किया है आंदोलनों मे जेल गए है भाजपा/संघ की विचारधारा को छोड़ कर तेजस्वी को आशीर्वाद दे दीजिए। इस “अमरबेल” रूपी भाजपा/संघ को बिहार में मत पनपाओ। नितीश जी, बिहार आपके लिए छोटा हो गया है, आप भारत की राजनीति में आ जाएँ। सभी समाजवादी धर्मनिरपेक्ष विचारधारा में विश्वास रखने वाले लोगों को एकमत करने में मदद करते हुए संघ की अंग्रेजों के द्वारा पनपाई “फूट डालो और राज करो” की नीति ना पनपने दें। विचार ज़रूर करें। यही महात्मा गॉंधी जी व जयप्रकाश नारायण जी के प्रति सही श्रद्धांजलि होगी। आप उन्हीं की विरासत से निकले राजनेता हैं वहीं आ जाइए। आपको याद दिलाना चाहूँगा जनता पार्टी संघ की Dual Membership के आधार पर ही टूटी थी। भाजपा/संघ को छोड़िए। देश को बर्बादी से बचाइए।
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#BiharVidhansbhaChunao || BJP ने कैसे तब से अब तक कैसे खिलाये कमल
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बिहार चुनाव: बीजेपी ने कठिन चुनौतियों के बीच कैसे खिलाया कमल दिव्या आर्य बीबीसी संवाददाता इमेज स्रोत, SONU MEHTA/HINDUSTAN TIMES VIA GETTY IMAGES कोरोना महामारी की मार झेल रही जनता, आर्थिक तंगी, बेरोज़गारी, कामगारों की परेशानियां और गठबंधन के 15 साल की 'एंटी-इनकम्बेंसी' के बीच भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) बिहार में जीत दर्ज करने में कामयाब रही है. हालांकि राज्य में अपने बल पर सरकार बनाने और सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर सामने आने का सपना फिर भी पूरा नहीं हो पाया. बीस साल से सरकार बनाने की कोशिश और गठबंधन सरकार में जूनियर पार्टनर रहने के बाद, इस विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने अपना प्रभुत्व तो साबित किया है. अब बीजेपी वादे के मुताबिक भले ही नीतीश को मुख्यमंत्री बना दे लेकिन दबदबा उसी का होगा, सीनियर पार्टनर वही होगी. हिंदी भाषी राज्यों में उत्तर प्रदेश के बाद राजनीतिक तौर पर दूसरा प्रमुख राज्य, बिहार, हमेशा ही बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती रहा है. विज्ञापन इमेज स्रोत, REUTERS साल 2014 की मोदी लहर के बाद 2015 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी, राज्य में अपने दम पर सरकार बनाने लाय
बिहार चुनाव: ओवैसी की वजह से आरजेडी को कितना नुक़सान, बीजेपी को कितना फ़ायदा?
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दिलनवाज़ पाशा बीबीसी संवाददाता इमेज स्रोत, AIMIM बिहार के सीमांचल इलाक़े में 24 सीटे हैं जिनमें से आधी से ज़्यादा सीटों पर मुसलमानों की आबादी आधी से ज़्यादा है. असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम इनमें से पांच सीटों पर आगे चल रही है. आमौर सीट से पार्टी के अख़्तरउल ईमान, कोचाधाम से इज़हार आसिफ़, बायसी से रुकुनुद्दीन, बहादुरगंज से अंजार नईमी और जोकीहाट से शाहनवाज़ आलम जीत रहे हैं. चुनाव नतीजे आने से पहले राजनीतिक विश्लेषक ये मान रहे थे कि सीमांचल के मुसलमान मतदाता ओवैसी की पार्टी के बजाए धर्मनिरपेक्ष छवि रखने वाली महागठबंधन की पार्टियों को तरजीह देंगे. लेकिन, अब ये साफ़ हो गया है कि सीमांचल के मतदाताओं ने बदलाव के लिए वोट किया है. विज्ञापन 'ख़बर सीमांचल' के संस्थापक हसन जावेद के मुताबिक, "सीमांचल की जनता बदलाव के लिए वोट कर रही है. सेक्युलर दलों को लगता है कि मुसलमान सिर्फ उन्हें ही वोट देंगे, भले ही वो काम करें या नहीं. लेकिन इस बार लोग नए चेहरों को चुन रहे हैं." छोड़कर और ये भी पढ़ें आगे बढ़ें और ये भी पढ़ें बिहार चुनाव: मायावती का बीजेपी को ‘समर्थन’ और ओवैसी की चु